हर पल उस मालिक का शुक्र करना चाहिए और यही कहना चाहिए कि हे मालिक ! जो भी मिला है सब तेरी दया है क्योंकि तेरी मजुदगी ही हम जीवों का आधार है साध संगत जी, सतगुरु महाराज फरमाया करते थे वास्तव में मालिक की रजा में अपने आप को पूरी तरह से राज़ी रखने का एकमात्र उपाय यही है कि 'भजन-सुमिरन' में लगन-पूर्वक परिश्रम करके, अपनी आत्मा को अंदर 'अनहद-शब्द', 'सच्चे-नाम' या 'दिव्य-धुन' के साथ जोड़ा जाए...!
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