जो गुरु की शरण में चला गया समझो उसका जन्म सफल हो गया और सतगुरु महाराज फरमाते थे कि मनुष्य-जन्म धारण करने का सौभाग्य प्राप्त करने वाली हर आत्मा के लिए यह जरुरी नही है की वह परमात्मा से मिलाप करने का सौभाग्य प्राप्त कर ले,
हर इन्सान का परमपिता परमात्मा से मिलाप करने का भाग्य नही होता सिर्फ वे ही जीव उससे मिलाप कर सकते है जिन्हें वह परमात्मा खुद अपने से मिलाना चाहता है जब परमेश्वर चाहता है की कोई जीव उससे मिले तो वह उस जीव को ऐसे मौके और सहूलियतें बख्शता है ताकि वह परमेश्वर-प्राप्ति के सच्चे मार्ग पर चल सके इसलिए संत कहते है की केवल वे ही चुनी हुई भेडे़ दौडती हुई मेरे पास आयेगी जिन पर परमपिता परमात्मा ने अपनी मोहर लगा दी है परमपिता परमात्मा ने जो-जो भेडे़ मुझे सौपी है यानि जो-जो जीव मुझे सौपे है केवल वही जीव परमात्मा से मिलाप कर सकते है क्यों की वह परमात्मा ही सबसे बड़ा है" मै" (गुरु) तो केवल प्रभु के सौपे गये कार्य को पुरा करने के लिए ही इस संसार में आया हुँ और जो-जो रूहें मेरे हिस्से में आयी है "मै" उन्हे "अमर-जीवन" देता हुँ इसलिए उनका कभी नाश नही होगा और कोई दुसरा उन्हें मेरे हाथों से छीन नही सकता ।
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