साध संगत जी सतगुरु ने फरमाया है कि जब आप नौ द्वारों को छोड़कर ब्रह्म और पारब्रह्म में जाएंगे तो आपको पता लग जाएगा कि गुरु क्या है गुरु की ताकत क्या है और गुरु क्या देता है क्योंकि इन बातों पर विश्वास हमें बाहर तो नहीं आता लेकिन अगर अंदर जाकर देख ले, तो विश्वास पक्का हो जाएगा, साध संगत जी इसलिए तो अक्सर फरमाया जाता है कि कहीं कहाई बातों पर हमें विश्वास नहीं आ सकता, विश्वास तभी आयेगा जब हम खुद करनी करेंगे उस मालिक की भजन बंदगी करेंगे तब जाकर जब अंदर पर्दा खुलता है तो विश्वास होता है नहीं तो बाहर की बातों पर विश्वास नहीं आता इसलिए भजन बंदगी पर इतना जोर दिया जाता है तो साध संगत जी आज की साखी कबीर महाराज जी के समय की है इस साखी को सुनकर हमें यह एहसास होगा कि जब हम गुरु की खोज में निकलते हैं तो हम अपनी तरफ से भी कितनी परख करने की कोशिश करते हैं कि जिसे हम गुरु बनाएंगे वह एक पूरा गुरु होना चाहिए और मालिक से मिला हुआ होना चाहिए और ऐसी बहुत सारी बातें देखकर हम गुरु बनाते हैं लेकिन साध संगत जी अगर गुरु परीक्षा करने लग जाए तो हमारा क्या हाल होगा आज हमें इस साखी में पता चलेगा जब संत कबीर जी ने अपने एक शिष्य की परीक्षा ली जो कि एक राजा था तो साध संगत जी साखी को पूरा सुनने की कृपालता करें जी ।
साध संगत जी कबीर साहिब जुलाहा थे और राजा बीर सिंह राजपूत उनका सेवक था और उसका संत कबीर जी से बहुत प्रेम प्यार था अक्सर उनकी सेवा के लिए हाजिर रहता था उसका अपने सतगुरु के प्रति बहुत मान आदर था जब भी कबीर साहिब उसके पास जाते थे उसके राज में जाते थे तो वह तख्त छोड़ देता था और कबीर साहब को ऊपर बैठा देता था और आप नीचे बैठता था तो एक बार कबीर साहब ने राजा को आजमाना चाहा उसकी परीक्षा लेनी चाही और साध संगत जी ये संतों की मौज होती है कि वह जब चाहे अपने शिष्य की परीक्षा ले लेते हैं तो साध संगत जी एक वैश्या थी जिसने अपना पेशा छोड़कर कबीर साहिब की शरण ले ली थी तो कबीर साहब ने एक तरफ उसको लिया और दूसरी तरफ संत रविदास जी थे और कबीर साहब ने अपने दोनों हाथों में शराब जैसे रंगदार पानी की बोतलें पकड़ ली और कांशी के बाजारों में झूमते हुए शब्द पढ़ते निकले और उस समय हिंदू और मुसलमान दोनों जातियां उनके विरुद्ध थी इसलिए वहां पर शोर मच गया और लोग तरह तरह की बातें बनाने लगे और कहने लगे कि एक तरफ तो वैश्या है और दूसरी तरफ रविदास है हाथों में शराब की बोतलें हैं लगता है फकीरों की फकीरी निकल गई तो कबीर साहब इसी तरह राज दरबार में पहुंच गए तो जब राजा ने कबीर साहिब को इस हालत में देखा तो उसके मन में अभाव आ गया और वह तख्त से नहीं उठा तो कबीर साहब ने सोचा कि ये तो गिर गया है यह अपने आप को अभी संभाल ले, नहीं तो इसके लिए मुश्किल हो जाएगी तो कबीर साहब ने दोनों बोतले पैरों पर गिरा ली, जब राजा ने यह देखा तो राजा सोचने लगा कि शराबी कभी भी अपनी शराब नहीं गिराता और उसे यह मालूम हो गया कि ये शराब नहीं है कोई और ही चीज है तो राजा तख्त से उतरा और संत रविदास जी से राजा ने पूछा कि महाराज यह क्या कोतक है तो संत रविदास जी ने कहा कि तू अंधा है तुझे पता ही नहीं कि जगन्नाथ के मंदिर में आग लग गई है और कबीर साहब उसे बुझा रहे हैं तो संत रविदास जी की यह बात सुनकर उस राजा ने तारीख और वक्त नोट कर लिया और इसका पता लगाने के लिए उसने अपने सैनिक वहां पर भेजें और जब वह वहां पर पहुंचे और सब मालूम किया तो लोगों ने बताया कि यहां पर वाक्य ही आग लगी थी और लोगों ने यह भी कहा कि हम देख रहे थे कि उस आग को कबीर साहिब जी खुद बुझा रहे थे और जब यह बात सैनिकों को पता लगी तो सैनिकों ने आकर वैसा ही राजा को बताया कि लोग कह रहे थे कि वहां पर आग लगी थी और हमने उनसे समय भी पूछा और समय भी बिल्कुल ठीक था और लोग यह भी कह रहे थे कि उस आग को संत कबीर खुद बुझा रहे थे तो राजा ने जब यह बात सुनी उसकी आंखों में आंसू आ गए और उसके बाद राजा का विश्वास और भी पक्का हो गया तो साध संगत जी जब सतगुरु हमारी परीक्षा लेने लग जाए तो हमारी क्या हालत होगी हम उसका अंदाजा भी नहीं लगा सकते क्योंकि हमारे साथ कुछ गलत हो जाए या फिर कुछ बुरा हो जाए हम तो तभी डोल जाते हैं और अपने सतगुरु पर विश्वास खो देते हैं तो ऐसे मौके पर बड़े-बड़े अभ्यासी भी लोक लाज में बह जाते हैं गुरु की कृपा से कोई कोई प्रेमी ही ऐसी परीक्षा में खरा उतरता है और यह आसान बात नहीं है साध संगत जी वह तो कबीर साहिब जी का समय था अगर यही बात आज के समय में की जाए तो हम में से बहुत ऐसे सत्संगी है जिनका अभी भी वह विश्वास नहीं बन पाया है जो कि बनना चाहिए था इसीलिए तो बार-बार फरमाया जाता है कि भाई भजन बंदगी करो और बार-बार भजन बंदगी पर जोर दिया जाता है ताकि जब हमारा अंदर पर्दा खुले और हम वह सब देख ले जो गुरु हमें दिखाना चाहता है और जब अंदर पर्दा खुल जाएगा तब हमें गुरु का एहसास होगा गुरु की ताकत का एहसास होगा और गुरु की अहमियत का पता हमें तब चलेगा जब हमारा अंदर पर्दा खुलेगा तो साध संगत जी आज की इस साखी से हमें भी यही सीख मिलती है कि हमारा अपने सतगुरु के प्रति विश्वास पक्का होना चाहिए हमें कभी डोलना नहीं चाहिए क्योंकि हम नहीं जानते कि कब सतगुरु ने हमारी परीक्षा ले लेनी है और उस परीक्षा में केवल वही अभ्यासी वही सत्संगी पास हो सकता है जिसका अपने सतगुरु पर पूरा विश्वास है और जो अपने सतगुरु के हुक्म की पालना करता है उनके भाने में रहता है केवल वही पास हो पाएगा ।
साध संगत जी इसी के साथ हम आपसे इजाजत लेते हैं आगे मिलेंगे एक नई साखी के साथ, अगर आपको ये साखी अच्छी लगी हो तो इसे और संगत के साथ शेयर जरुर करना, ताकि यह संदेश गुरु के हर प्रेमी सत्संगी के पास पहुंच सकें और अगर आप साखियां, सत्संग और रूहानियत से जुड़ी बातें पढ़ना पसंद करते है तो आप नीचे E-Mail डालकर इस Website को Subscribe कर लीजिए, ताकि हर नई साखी की Notification आप तक पहुंच सके ।
By Sant Vachan
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