Saakhi : एक सत्संगी लड़के की सच्ची साखी । भजन सिमरन चाहे कम कर लेना लेकिन ये गलती कभी मत करना ।


साध संगत जी यह कहानी एक लड़के की है जो कि उसकी सच्ची आप बीती है जो जो भी उसके साथ हुआ है और जो भी उसके अनुभव रहे हैं वह उसने संगत से सांझा किए हैं ताकि वह संदेश गुरु के हर प्रेमी सत्संगी के पास पहुंच सके, और अगर आपको यह साखी अच्छी लगी तो इसे और संगत के साथ शेयर जरूर कर देना जी ताकि इसे सुनकर हम वह गलती ना करें जोकि उसके द्वारा हुई है तो साध संगत जी वह बातें आपसे साझा करने जा रहा हूं जो भी उसके अनुभव रहे हैं कि अगर हम भी कोई नौकरी करते हैं या फिर हमारा कोई बिजनेस है और उसके साथ ही हम रूहानियत से भी जुड़े हुए हैं और हमें पूरे गुरु से नाम की बख्शीश भी हुई है तो हमें कौन-कौन सी सावधानी बरतनी चाहिए आज हमें इस साखी में पता चलेगा तो साध संगत जी साखी को पूरा सुनने की कृपालता करें जी ।

साध संगत जी ये साखी एक लड़के की है जिसे की 24 वर्ष की आयु में नाम मिला उसे नाम दान की बख्शीश हुई साध संगत जी उसके बाद वह लड़का नौकरी करने के लिए दुबई में चला गया और वहां पर उसकी बहुत अच्छी नौकरी लग गई क्योंकि वह एक अच्छा ड्राइवर था तो इसलिए उसकी वहां पर ट्रक चलाने की नौकरी थी और जिस कंपनी में वह लड़का काम करता था उस कंपनी का सामान दूसरी जगह छोड़ कर आना होता था तो यही उसका काम था और उसके साथ 3 लोग और थे जिनका भी यही काम था तो साध संगत जी वह लड़का बताता है कि जब मैं यहां पर नया नया आया था तब मैंने बहुत ही ईमानदारी से यहां पर नौकरी की लेकिन जैसे-जैसे समय बीतता गया तो मैंने देखा कि मेरे जो साथ वाले लोग हैं वह कंपनी को धोखा देकर गलत तरीके से पैसा कमाते हैं और उसने यह भी बताया कि वह लोग ट्रक में से तेल निकालकर उसको बेचते थे और उससे पैसा कमाते थे और ऐसे धीरे-धीरे उन्होंने बहुत पैसे इसी काम से बना लिए थे तो जब यह बात मुझे पता चली कि यह लोग ऐसे काम करते हैं तो उस लड़के ने कहा कि उस समय मैंने उनको कहा कि मैं आपकी शिकायत कंपनी में कर दूंगा तो जो उसके साथी थे उन्होंने उस लड़के को समझाया कि ऐसा मत करना हम तुझे भी तुम्हारा हिस्सा दे दिया करेंगे तो उस लड़के के मन में भी लालच आ गया और वह डोल गया तो जब उन्होंने यह बात कही कि हम तुझे भी तुम्हारा हिस्सा दे दिया करेंगे तो उसके बाद वह लड़का भी उनके साथ शामिल हो गया उसने भी वही काम करना शुरू कर दिया वह भी तेल निकाल कर उसको बेचने लग गया था और जितना भी उसका हक बनता था उसे दे दिया जाता था वह आपस में बांट लेते थे साध संगत जी उसके कुछ ही समय बाद लड़के के साथ कुछ ऐसी चीजें होने लगी जिससे कि उसे यह महसूस होने लगा की जितने पैसे मैं ऐसे गलत तरीके से कमाता हूं वह पैसे मेरे काम नहीं आते और उसने कहा कि मैं जितनी बार भी उन पैसों को बचाने की कोशिश करता था वह मुझसे नहीं हो पाता था क्योंकि वह पैसे या तो किसी दूसरे खर्चों में लग जाते थे या फिर वह पैसे मुझसे गिर पड़ते थे और उसने ऐसा होता हुआ बहुत बार देखा की बहुत बार उसके पैसे गिर जाते थे तो जब उसके साथ ऐसा हुआ तब भी उसने यह काम करना नहीं छोड़ा क्योंकि साध संगत जी जब पैसों का लालच लग जाता है जब पैसों का लालच आ जाता है तब इंसान पीछे नहीं हटता वह अपने मन के पीछे लग कर उस लालच में फंसता चले जाता है तो ऐसा ही उस लड़के के साथ भी हुआ उसने वह काम करना नहीं छोड़ा तो उसके बाद एक दिन उस लड़के की कार का एक्सीडेंट हो जाता है और कार का कुछ नुकसान हो जाता है और उस एक्सीडेंट में भी लड़के की ही गलती होती है और जिसकी वजह से उसे सामने वाले व्यक्ति को भी पैसे देने पड़ते हैं क्योंकि उसका भी बहुत नुकसान हो जाता है तो उसे उसको भी पैसे देने पड़ते हैं और अपनी कार की रिपेयर भी उसको खुद ही करवानी पड़ती है क्योंकि गलती उसकी ही होती है तो जब उसके साथ ऐसा होता है तो वह फिर इस बात को नकार देता है और वह मालिक के इस इशारे को भी नहीं समझ पाता और वह उस काम को नहीं छोड़ता तो साध संगत जी वह लड़का कहता है कि उसके कुछ दिनों बाद एक बार फिर मेरा एक्सीडेंट हो जाता है और उस एक्सीडेंट में गाड़ी का तो नुकसान होता ही है लेकिन मुझे भी गहरी चोट आती है और जब यह बात लड़के ने अपने घर वालों को बताई तो लड़के की मां उसे तुरंत ही घर वापस बुला लेती है और उसे बाबाओं के पास पंडितों के पास लेकर जाती है क्योंकि साध संगत जी जब वह दूसरे लोगों से पूछती है कि मेरे लड़के के साथ ऐसा हो रहा है तो वह उसे बाबाओं के पास और पंडितों के पास जाने की सलाह देते हैं और वह वैसा ही करती है क्योंकि साध संगत जी जब मुश्किल की घड़ी में अगर किसी पर कोई मुसीबत आती है तो उस मुसीबत का हल ढूंढने के लिए हम ऐसे लोगों के पास जाना शुरु कर देते हैं जो कि हमारी उस मुसीबत का हल निकाल सके तो ऐसा ही उनके साथ भी होता है वह अपने रिश्तेदार के बताए गए एक पंडित के पास जाते हैं और जब वह उनके पास जाते हैं तो वह पंडित सबसे पहले उस लड़के की कुंडली को देखता है और देखते ही उससे यह सवाल करता है कि तुम्हें नाम की बख्शीश हुई है तो लड़का कहता है कि जी हां ! मुझे नाम मिला हुआ है तो उसके बाद वह पंडित कहता है कि तुम्हारे जो संत हैं जो तुम्हारे गुरु हैं वह एक पूरे महात्मा है और पहुंचे हुए हैं और जिसका गुरु पूरा होता है उसे बहुत सावधानी से चलना पड़ता है और उसे अपने गुरु के हुक्म में रहना पड़ता है अपने गुरु के भाने में रहना पड़ता है ऐसा नहीं है कि तुम्हें नाम की बख्शीश हो गई बस बात खत्म हो गई, नहीं ऐसा बिल्कुल भी नहीं है क्योंकि जो पूरा गुरु होता है उसकी आंख अपने शिष्य के हर कर्म पर होती है कि मेरा शिष्य क्या कर रहा है और जब हम गलती करते हैं तो वह हमें दंड भी देता है तो यह बात सुनने के बाद उस लड़के ने कहा कि पंडित जी आपकी बातों का तात्पर्य क्या है आपने जो भी कहा है वह बिल्कुल ठीक कहा है लेकिन वह आप मुझे क्यों बता रहे है तो उसके बाद उस पंडित ने कहा कि मैं देख पा रहा हूं कि तुम कोई ऐसा काम कर रहे हो जो कि तुम्हें नहीं करना चाहिए, क्या तुम किसी गलत तरीके से धन कमा रहे हो ? तो जब यह बात उसके सामने आती है तो वह समझ जाता है कि पंडित जी मुझे क्या कह रहे हैं तो वह खुद ही बता देता है कि मैं दुबई में नौकरी करता हूं और वहां पर कुछ पैसे गलत तरीके से भी कमाता हूं तो जब यह बात वह उस पंडित को बताता है तो वह उसे समझाता है कि तुम्हें ऐसा नहीं करना चाहिए था क्योंकि तुम्हें नाम की बख्शीश हुई है और जैसे कि मैंने कहा कि तुम्हारे जो संत है वह बहुत पहुंचे हैं और उनकी नजर तुम्हारे हर एक कर्म पर होती है तो यह बात सुनकर वह लड़का कहता है कि मैं अकेला ही ये काम नहीं करता मेरे साथ तीन लोग और है जो मेरे साथ यह काम करते हैं और जितना भी बनता है हम आपस में बांट लेते हैं तो उसकी यह बात सुनकर वह पंडित उसे कहता है की बात यह नहीं है कि तुम कितने लोग यह काम कर रहे हो बात यह है कि तुम्हें नाम मिला हुआ है और तुम तभी भी यह काम कर रहे हो तो वह लड़का कहता है कि कृपया विस्तार से बताइए आप क्या कहना चाहते हैं तो वह पंडित उसे बताता है कि जैसे कि एक विश्वविद्यालय है बहुत अच्छा विश्वविद्यालय है और उस विद्यालय में जो गुरु है वह भी बहुत अच्छा है और सख्त भी है और उस विद्यालय के नियम भी बहुत सख्त है अगर उस विद्यालय में कोई विद्यार्थी गलत काम करता है उस विद्यालय के नियम के पार जाकर कोई काम करता है तो उसे दंड मिलता है और वह दंड उसे इसलिए मिलता है ताकि उसे एक अच्छा इंसान बनाया जा सके और दंड इसलिए नहीं दिया जाता कि यह उसका नियम है, दंड तो इसलिए दिया जाता है ताकि आगे से सुधार हो और तुम्हारी तरक्की हो सके तो वह लड़का उस पंडित जी की यह बात सुनकर उनसे सवाल पूछता है कि मेरे साथ जो 3 लोग हैं वह भी तो यह काम करते हैं उनके साथ ऐसा कुछ भी नहीं हुआ वह बहुत अच्छी जिंदगी जीते हैं मेरे ही साथ ऐसा क्यों होता है तो वह पंडित उसे बहुत ही अच्छे तरीके से फिर समझाता है कि उनके साथ इसलिए ऐसा कुछ नहीं हुआ क्योंकि उनका कोई गुरु ही नहीं है उन्हें कोई समझाने वाला ही नहीं है कोई बताने वाला ही नहीं है कोई दंड देने वाला ही नहीं है इसलिए उनके साथ ऐसा कुछ भी नहीं हुआ जो कि तुम्हारे साथ हुआ, तुम्हें तुम्हारे गुरु ने बहुत बार समझाने की कोशिश की लेकिन तुम समझे नहीं तुम फिर वही काम करते रहे इसलिए तुम्हारे साथ ऐसा होता रहा और गुरु जो भी करता है अपने शिष्य की भलाई के लिए ही करता है और वह जो भी करता है उसमें हमारी ही भलाई होती है तो जब यह बात उस लड़के ने सुनी तो सुनते सुनते ही उसकी आंखों में से आंसू टपक पड़े और उसे समझ आ गई कि वह पंडित मुझे क्या समझाना चाहते हैं तो उसके बाद वह लड़का यह काम करना छोड़ देता है और हक हलाल की कमाई करता है तो साध संगत जी इस साखी से हमें भी यही सीख मिलती है हमें भी यही प्रेरणा मिलती है कि अगर हमें नाम की बख्शीश हुई है तो हमें ऐसा कोई भी गलत काम नहीं करना चाहिए जो उस मालिक के भाने से बाहर हो जो उसके नियमों के खिलाफ हो क्योंकि उसका नतीजा भी फिर हमें ही भुगतना पड़ेगा क्योंकि जैसे कि फरमाया जाता है कि यहां पर एक एक चीज का हिसाब किताब देना पड़ेगा तो अगर हम ऐसे काम करते हैं तो हमारी क्या हालत होगी जिसका अंदाजा हम अभी नहीं लगा सकते क्योंकि मालिक ने सत्संग के जरिए हमें सब बताया है और अब हम यह भी नहीं कह सकते कि हमें इस बात का ज्ञान नहीं था इसलिए हमसे गलती हो गई और अक्सर फरमाया जाता है कि भाई अगर जानते हुए गलती करोगे तो उसका बहुत भारी नतीजा भुगतना पड़ेगा और जो जानता नहीं है जो अनजाने में गलती करता है उसको तो फिर भी माफी दी जा सकती है लेकिन जो जानते हुए भी ऐसे कार्य करता है उसको दो गुना हिसाब देना पड़ता है तो साध संगत जी हमें भी चाहिए कि हमें ऐसा कोई भी काम नहीं करना चाहिए जोकि संत मत के खिलाफ हो और उस मालिक के हुक्म से बाहर हो, क्योंकि हमारी रूहानी तरक्की तभी हो सकती है जब हम हक हलाल की कमाई करें और दूसरों को भी ऐसा करने के लिए प्रेरित करें क्योंकि क़ुरान शरीफ़ में भी कहा गया है कि एक-दूसरे का धन धोखे से मत छीनो और न हाकिमों को रिश्वत दो, एक अन्य स्थान पर फरमाया गया है, जब तोलने लगो, पूरा तोलो और ठीक तराज़ू से तोलो, असल में पराए धन और अनुचित ढंग से कमाए धन का लालच इतना प्रबल होता है कि साधारण जीव तो क्या, कई परमार्थी पुरुष भी इसके लोभ से नहीं बच पाते, हम सोचते हैं कि पैसा जिस तरह से भी कमाया जा सके, कमा लें और फिर थोड़ा-बहुत साध संगत की सेवा में ख़र्च कर देंगे, जिससे अपने आप ही सब कुछ ठीक हो जाएगा, ये हमारी गलत फहमी है, साध संगत जी, ठीक है कि न देने से देना अच्छा है, क्योंकि इससे धन का मोह घटता है, कमाई सफल होती है, विष्-विकार, बीमारी, मुक़द्दमे आदि में लगनेवाला धन नेक काम में लगता है, धीरे-धीरे नेक कमाई करने की प्रेरणा और शक्ति मिलती है और जीव ग़लत मार्ग से हटकर ठीक मार्ग की ओर प्रवृत्त होता है। परंतु जो लाभ नेक और पवित्र कमाई में से परमार्थ में लगाए धन का होता है, उसका मुक़ाबला नहीं किया जा सकता, सतगुरु कहते है कि सत्संगी भजन-सिमरन चाहे कम करे, लेकिन बुरे कर्मों, बेईमानी की कमाई तथा धोखे और छल से ज़रूर बचे, क्योंकि भजन की कमी किसी न किसी समय पूरी हो सकती है, परंतु ठगी, छल, कपट और बेईमानी तो परमार्थ की जड़ ही काट देते हैं और पराए धन का हिसाब चुकाने के लिए जीव को दोबारा जन्म भी लेना पड़ सकता है, गुरु नानक साहिब ने पराए हक़ को छीनना हिंदुओ के लिए गाय तथा मुसलमानों के लिए सूअर का मांस खाने के समान बताया है, आप फ़रमाते हैं कि प्रभु की दरगाह में सतगुरु अपने शिष्य का पक्ष तभी लेते हैं, तभी उसकी हिमायत करते हैं यदि वह उनकी खींची हुई लकीर में रहता है और पराए धन से बचता है, सतगुरु गोबिन्द सिंह जी के समय की बात है कि उन्होंने एक बार सेवा और भेंट का बहुत-सा धन नदी में फिंकवा दिया लेकिन अपने जरूरत मंद शिष्यों को नहीं दिया, कारण पूछे जाने पर आप जी ने फरमाया कि चढ़ावे का धन ज़हर के समान होता है, और शिष्य सतगुरु के बेटे-बेटियों के समान होते हैं और कोई भी पिता अपने बच्चों को ज़हर नहीं खिला सकता, और गुरु अमरदास जी फ़रमाते हैं :

जोगी होवा जग भवा घर घर भीखिआ लेउ ॥
दरगह लेखा मगीऐ किस किस उतर देउ

जिसका अर्थ है, कि योगी लोग घर-घर भिक्षा माँगते
फिरते हैं, वह भूल जाते हैं कि इस तरह प्राप्त किए हुए पैसे-पैसे और दाने-दाने का हिसाब देना पड़ता है, पहले तो दुनिया का कथित त्याग कर देना और फिर उसी दुनिया के आगे हाथ फैलाना, ये न तो बुद्धिमत्ता की निशानी है, न ही योग की, गुरु साहिब कहते हैं कि घर-घर माँगने का नाम योगी फ़क़ीरी नहीं है, जो लोग पराए धन और दान पर निर्भर रहते हैं, वे मनुष्य-चोले और साधु के भेष, दोनों पर दाग़ लगाते हैं। सांसारिक आशा-तृष्णा से ऊपर उठकर केवल नाम की कमाई करनेवाले ही सच्चे साधु और फ़क़ीर होते हैं और वे ही अपने मनुष्य-जन्म को सफल करते हैं ।

साध संगत जी इसी के साथ हम आपसे इजाजत लेते हैं आगे मिलेंगे एक नई साखी के साथ, अगर आपको ये साखी अच्छी लगी हो तो इसे और संगत के साथ शेयर जरुर करना, ताकि यह संदेश गुरु के हर प्रेमी सत्संगी के पास पहुंच सकें और अगर आप साखियां, सत्संग और रूहानियत से जुड़ी बातें पढ़ना पसंद करते है तो आप नीचे E-Mail डालकर इस Website को Subscribe कर लीजिए, ताकि हर नई साखी की Notification आप तक पहुंच सके ।

By Sant Vachan


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