Guru Nanak Sakhi : मां के दूध को लेकर सतगुरु नानक क्या उपदेश करते है । जरूर सुने

 

साध संगत जी आज की साखी है कि हम में से कुछ लोग कहते हैं कि मेरे पास मालिक की भजन बंदगी के लिए उसकी पाठ पूजा के लिए बिल्कुल भी समय नहीं है और गरीब कहता है कि मैं बहुत गरीब हूं मैं पाठ पूजा करूं या कमाई करूं, साध संगत जी यहां पर सतगुरु नानक हमें बहुत ही प्यारा संदेश देते हैं तो आइए बड़े ही प्यार से आज का यह प्रसंग सरवन करते हैं ।

साध संगत जी आज के समाज में दो तरह के लोग हैं एक तो वह जिनके पास धन की कोई कमी नहीं है बेअंत धन दौलत उनके पास है और वह धन दौलत को कमाने में इतने व्यस्त हैं अपने काम काजो में इतने व्यस्त हैं कि जब मालिक का कोई प्यारा उनसे मिलता है उनसे बात करता है तो वह कहते हैं कि हमारे पास बिल्कुल भी समय नहीं है हमारे पास अपने लिए भी समय नहीं है तो उसकी पाठ पूजा के लिए समय कहां से निकाले और दूसरी और गरीब लोग हैं जो कहते हैं कि हम गरीब हैं हम उसकी पाठ पूजा करें या फिर अपना घर चलाने के लिए कमाई करें तो साध संगत जी ऐसा ही एक प्रशन भाई झंडा जी ने सतगुरु नानक से किया था की हे गुरु जी ! मैं बहुत ही गरीब व्यक्ति हूं, घर में खाने पीने के लिए भी कभी-कभी कुछ नहीं होता, भूखे रहना पड़ता है काम भी कभी कभी मिलता है इतनी गरीबी है कि बच्चों को अच्छे से पाल भी नहीं सकता तो ऐसे में मैं प्रभु की भक्ति कैसे कर सकता हूं उसकी पाठ पूजा कैसे कर सकता हूं मेरे पास तो बिल्कुल भी समय नहीं है मैं उसकी पाठ पूजा करूं या फिर कमाई करके अपने घर को चलायूं क्योंकि शाम का खाना मुझे तभी नसीब होता है जब मैं सुबह सुबह घर से काम के लिए निकल पड़ता हूं तो ऐसे में मुझसे पाठ पूजा नहीं होता तो उसकी यह बात सुनकर सतगुरु नानक ने उसे बड़े ही प्यार से समझाया था और सतगुरु ने एक शब्द उच्चारण कर उसे उपदेश दिया था और वह शब्द आज श्री गुरु ग्रंथ साहिब जी में अंग 900 में दर्ज है जिसका अर्थ है कि जब बच्चा मां के गर्भ में होता है तब मां के स्तनों में दूध नहीं होता लेकिन जैसे ही बच्चे का जन्म हो जाता है तो बच्चे के लिए दूध उपलब्ध हो जाता है क्योंकि मालिक ने हर जीव के पालन पोषण का प्रबंध पहले से ही कर रखा है इसलिए हे झंडा तू चिंता मत कर और अगर हम यह समझते हैं कि हम किसी पर निर्भर है या फिर कोई हम पर निर्भर है तो हम डरने लगते हैं या फिर वह व्यक्ति डरने लगता है और मोह माया उन जीवो को भगाए फिरती है इस बात को हम ऐसे समझ सकते हैं कि जब कोई आदमी यह सोचने लगता है कि अगर मेरी मृत्यु हो गई तो मेरे पीछे मेरे परिवार का क्या होगा मेरे बाल बच्चों का क्या होगा इनका पालन-पोषण कौन करेगा और दूसरी और जो बच्चे ये मानते हैं कि अगर उनके पिता को कुछ हो गया तो उनका पालन पोषण कैसे होगा लेकिन दोनों ही परिस्थितियों में वे यह नहीं जानते जो कुछ हो रहा है और जो कुछ होना है वह तो प्रभु की लीला है तो ये सुनकर भाई झंडा बोले की हे गुरु जी ! जो कुछ भी आप मुझे बता रहे हो वह तो रहस्य की बातें हैं यह बातें मुझ जैसा अज्ञानी कैसे समझ सकता है इसके पश्चात सतगुरु नानक ने फिर भाई झंडा को समझाने के लिए एक शब्द का उच्चारण किया था जिसका अर्थ है कि हे भाई इस शरीर की आत्मा इस शरीर की मालिक है और इस शरीर में छिपी रहती है और देखने वाले को सिर्फ शरीर दिखाई देता है परमात्मा जीव को पैदा कर कर अनेक करिश्में करता रहता है परंतु मोह माया जीव को पकड़े रहती है उसे भगाए रखती है अपने जाल में फंसाए रखती है और जीव मोह माया के जाल में फंसा रहता है और उसका यह हाल इसलिए होता है क्योंकि वह परमात्मा का नाम नहीं जपता और मोह माया से चिपका रहता है सतगुरु कहते हैं कि साध पुरुषों में बैठकर और वेद शास्त्र पढ़कर उस परमात्मा की लीलाओं पर जो विचार है उस पर विचार करो और जो मनुष्य इस संसार में उस परमात्मा के गुणों का अनुसरण करता है उस पर विचार करता है और उसकी महिमा को समझता है उसी की ही आत्मिक अवस्था सबसे ऊंची बनती है और वह ईश्वर प्राप्ति के मार्ग पर चलकर ईश्वर से मिलाप कर लेता है तो ये सुनकर भाई झंडा गुरु जी के चरणों पर गिर गए थे तो साध संगत जी, इस साखी से हमें भी यही संदेश मिलता है कि हमें ऐसा कभी भी नहीं सोचना चाहिए कि मेरे बाद मेरे परिवार का मेरे बाल बच्चों का क्या होगा क्योंकि सब कुछ उसके हुकम से चल रहा है उसके हुकम के अंदर है सतगुरु नानक ने अपनी वाणी में फरमाया है " हुकुम है अंदर सबको बाहर हुकम ना कोई " जिसका अर्थ है कि सब कुछ उसके हुक्म के अंदर है और जो कुछ भी इस संसार में व्याप्ता है या फिर होता है उसके हुक्म से होता है उसके हुकम से कुछ भी बाहर नहीं है इसलिए हमें यह सभी चिंताएं छोड़ कर उसके चरणों में ध्यान लगाना चाहिए उसकी बंदगी के लिए समय निकालना चाहिए साध संगत जी सतगुरु नानक ने अपनी पूरी वाणी में केवल एक ही चीज पर जोर दिया है वह नाम शब्द की कमाई है नाम की कमाई है सतगुरु ने नाम की चर्चा अपनी वाणी में बहुत बार की है सद्गुरु बार-बार हमें यह समझाने की कोशिश करते हैं कि भाई जो मर्जी कर लो लेकिन अगर नाम की कमाई नहीं कि शब्द की कमाई नहीं की तो यहां से छुटकारा नहीं होना, बार-बार इस संसार में जन्म लेना पड़ेगा और 84 के इस जेलखाने में आना पड़ेगा यमदूतों के हाथ खराब होना पड़ेगा इसलिए इस कीमती जामें को अभी से संभाल ले इसकी कीमत जाने यह बहुत अनमोल है इसको ईश्वर प्राप्ति के मार्ग पर लगा दे तभी जाकर यह मनुष्य जन्म सफल होगा, नहीं तो यहां पर भटकना लगी रहेगी साध संगत जी सतगुरु नानक ने अनेक लीलाएं रच कर हमें यह संदेश दीया है कि भाई अगर हमारा जन्म इस संसार में हो गया है तो अपने इस जामे को अच्छे कार्यों में लगाओ दूसरों की मदद करो, उनका सुख-दुख बांटो, स्वार्थी मत बनो, साध संगत जी सतगुरु नानक के बचपन का एक किस्सा है कि जब सतगुरु के पिता मेहता कालू जी ने सतगुरु को 20 रुपए दिए और कहा कि कुछ ऐसा सामान दूसरे नगर से लेकर आओ जो यहां पर महंगा हो ताकि उसको यहां पर बेच कर कुछ कमाई की जा सके और जब सतगुरु नानक ने वह 20 रुपए ले लिए और अपने एक साथी के साथ अपने पिताजी के कहे अनुसार चल पड़े तो सतगुरु नानक को रास्ते में कुछ साधु मिल गए जो कि भूखे थे साध संगत जी जो मालिक का प्यारा होता है जो उसका रूप होता है उसके अंदर किसी तरह का स्वार्थ नहीं होता वह तो इस संसार का भला करने आया होता है वह अपनी नहीं दूसरों की परवाह करता है तो ऐसे ही सतगुरु ने देखा कि वह भूखे हैं तो सतगुरु ने जो उनके पिताजी द्वारा दिए हुए 20 रुपए थे उनका भोजन उन महापुरुषों को करवा दिया सद्गुरु के एक मित्र ने उनको ऐसा करने से रोका भी लेकिन सद्गुरु ने कोई बात नहीं सुनी और सतगुरु ने उनको बड़े ही प्रेम प्यार से भोजन करवाया और घर आ गए और जब घर आ गए तो उनके पिताजी ने उनसे हिसाब मांगा कि मैंने जो तुम्हें 20 रुपए दिए थे उसका क्या किया कोई सौदा हुआ या फिर नहीं ? तो सतगुरु ने कहा कि सच्चा सौदा हुआ है मैंने उन पैसों का भोजन कुछ साधु महापुरुषों को करवा दिया तो ये सुनकर सतगुरु के पिता बहुत क्रोधित हुए थे लेकिन उस समय सतगुरु नानक की बहन बेबे नानकी जी ने सद्गुरु की तरफदारी करते हुए उन्हें पिताजी की डांट से बचा लिया था साध संगत जी संत महात्मा तो दानी होते हैं वह इस संसार में धन दौलत जा पदार्थ को इकट्ठा नहीं करते और ना ही उनकी इनको इकट्ठा करने में कोई रूचि होती है इसलिए उनके पास जो भी होता है वह सब बांट देते हैं कुछ भी अपने पास नहीं रखते वह तो सिर्फ हमारा उद्धार करने के लिए आए होते हैं हमें ईश्वर प्राप्ति के मार्ग पर चलने का संदेश देने आए होते हैं ।

साध संगत जी इसी के साथ हम आपसे इजाजत लेते हैं आगे मिलेंगे एक नई साखी के साथ, अगर आपको ये साखी अच्छी लगी हो तो इसे और संगत के साथ शेयर जरुर कीजिए, ताकि यह संदेश गुरु के हर प्रेमी सत्संगी के पास पहुंच सकें और अगर आप साखियां, सत्संग और रूहानियत से जुड़ी बातें पढ़ना पसंद करते है तो आप नीचे E-Mail डालकर इस Website को Subscribe कर लीजिए, ताकि हर नई साखी की Notification आप तक पहुंच सके । 

By Sant Vachan


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