साध संगत जी आज की साखी में सतगुरु नानक ब्रह्मा विष्णु और महेश के बारे में क्या कहते हैं आइए बड़े ही प्यार से आज का ये प्रसंग सरवन करते हैं ।
साध संगत जी, आज की साखी शुरू करने से पहले आज की शिक्षा है जो की बानी में 323 अंग में दर्ज है सतगुरु फरमाते है हे मेरे मन ! यह दुनिया एक खेल है एक नाटक है, हे मेरे भाई यह संसार नाशवान है और एक दिन नश्वर और नाश हो जाएगा और सद्गुरु फरमाते हैं की छोटी बुद्धि वाला व्यक्ति भाव बुरे विचारों वाला व्यक्ति परमात्मा का नाम नहीं जपता उसका नाम नहीं सिमरता, हे मेरे मन ! बुरी बुद्धि वाला व्यक्ति वह कर्म करता रहता है जिसके करने का कोई लाभ नहीं जिसके करने का कोई फायदा नहीं लेकिन फिर भी ऐसा व्यक्ति ऐसे बेकार कर्म करके बड़ी-बड़ी बातें करता है समाज में मान और सम्मान हासिल करने की कोशिश करता है जब कोई व्यक्ति ठगी कर कर और लूट मार कर आता है तो वह यह सोचता है कि उसने पूरी दुनिया को ही जीत लिया है हे मेरे मन ! छोटी बुद्धि वाला व्यक्ति भाव बुरी बुद्धि वाला और बुरे विचारों वाला व्यक्ति यह नहीं सोचता कि दुखदाई काल उसे आकर पकड़ लेगा और उसको कष्ट सहना पड़ेगा हे नानक ! जिस व्यक्ति के हृदय में परमात्मा खुद मेहर करके विराजमान हो जाता है उस व्यक्ति के अंदर से मौत का डर निकल जाता है और सतगुरु यह समझाने की कोशिश कर रहे हैं कि हमें बुरे कर्म त्याग कर अच्छे कर्म करने चाहिए अच्छे कर्मों की तरफ ध्यान देना चाहिए ।
साध संगत जी एक बार सतगुरु नानक एक ऐसे नगर में जा पहुंचे जहां पर सभी लोग देवी देवताओं की पूजा करते थे और उनके अंदर ब्रह्मा, विष्णु और महेश जी को लेकर बहुत श्रद्धा थी तो जब सतगुरु वहां पर पहुंचे और वहां जाकर नगर के बीच सतगुरु विराजमान हो गए तो सतगुरु को वहां पर विराजमान होता देख उस नगर के नगर वासी सतगुरु के पास आने लगे और उनके पास आकर खड़े हो गए तो उनमें से किसी एक ने सतगुरु नानक से कहा कि आप एक फकीर हो तो हमारी आपसे एक विनती है कि हम आपसे ईश्वर से संबंधित कुछ सुनना चाहते हैं कृपया हमें सुनाने की कृपा करें, तो ये सुनकर सतगुरु नानक बहुत प्रसन्न हुए तो वहां पर सतगुरु नानक ने वाणी का उच्चारण कर कुछ शब्दों के माध्यम से उन सभी नगर वासियों के मन को शांति दी तो साध संगत जी सतगुरु नानक को वह लोग बहुत प्यारे लगे क्योंकि उनके अंदर ईश्वर के प्रति बहुत कुछ जानने की इच्छा थी ईश्वर से लगाव था तो इसलिए सतगुरु नानक उन लोगों से बहुत प्रसन्न हुए और सतगुरु नानक ने उस नगर के लोगों को कहा कि अगर आपके मन में कोई प्रश्न है तो आप बेझिझक मुझसे पूछ सकते हैं तो ये सुनकर उनमें से एक ने सतगुरु नानक से कुछ प्रश्न पूछे जिसमें से पहला प्रश्न था की हे गुरु जी ! उस परमेश्वर का रंग कैसा है ? उस कर्ता का आदि अंत किससे हुआ ? परमेश्वर स्वयं में क्या है, क्या वह एक वस्तु है ? तो सतगुरु नानक ने उनके इन प्रश्नों का बहुत सरल तरीके से उत्तर दिया सतगुरु ने फरमाया कि हे भक्तजनों ! उस ईश्वर की माया बेअंत है साध संगत जी सतगुरु नानक अक्सर लोगों को उनके धर्म के अनुसार समझाते थे वह जिस धर्म के होते थे उनको उन्हीं के धर्म का ज्ञान देते थे और उन्हें ईश्वर से जोड़ने की कोशिश करते थे तो उन लोगों को उन्हीं के धर्म के अनुसार समझाते हुए सतगुरु ने कहा हे भक्तों वेद कहते हैं अनंत वर्षों के बीत जाने के बाद ब्रह्मा जी का एक दिन व्यतीत होता है यानी कि पूरा होता है और विष्णु जी की समस्त आयू का शिव जी का एक दिन होता है इस प्रकार कई हजार वर्ष शिव जी का एक दिन होता है इसलिए उस जगत के ईश्वर की माया का कोई पार नहीं पाया जा सकता उसकी माया का कोई अंत नहीं पाया जा सकता तो जिस की माया का अगर कोई अंत नहीं है तो उस माया के स्वामी के बारे में कौन कुछ कह सुन सकता है साध संगत जी इसके पश्चात सतगुरु नानक ने एक शब्द का उच्चारण किया जो कि आज श्री गुरु ग्रंथ साहिब जी में अंग 489 में दर्ज है जिसका अर्थ है की हे भाई ! पुराणों में कथा आती है कि जिस ब्रह्मा जी के रचे हुए वेदों को ब्राह्मण अपने मुख्य से मीठे स्वरों में पढ़ते हैं वह ब्रह्मा जी विष्णु जी की नाभि से उगे हुए कमल के फूल से पैदा हुए और अपने जन्मदाता यानी की विष्णु जी के कुदरती अंत को ढूंढने के लिए उसी नाभि से निकली नाली में वापस चल पड़े जिस नाभि से वह पैदा हुए थे उस नाली में ब्रह्मा जी ने अपने जन्मदाता विष्णु जी की माया का अंत ढूंढना चाहा और कई वर्षों तक विष्णु जी की माया का अंत ढूंढने के पश्चात भी उनको विष्णु जी की माया का अंत नहीं पता चल पाया, साध संगत जी वह परमेश्वर इतना बड़ा है कि सूरज और चंद्रमा उसके त्रिलोक में छोटे-छोटे दीपक ही है सारे जगत में उसी की ही ज्योति फैली हुई है जो मनुष्य गुरु के बताए हुए मार्ग पर चलता है गुरु के बताए हुए मार्ग पर चलकर परमात्मा की भक्ति करता है उसके नाम का सिमरन करता है तो उसको उस परमेश्वर की प्राप्ति हो जाती है और वह मनुष्य पवित्र जीवन वाला हो जाता है लेकिन जो मनुष्य गुरु के बताए हुए मार्ग पर ना चलकर अपने मन के पीछे लग कर कर्म करते हैं अपना समय व्यतीत करते हैं उनका जीवन अंधेरे में ही निकल जाता है बड़े-बड़े योगी जपी, तपी समाधि लगाते हैं और अपने मन को जीतने की कोशिश करते हैं परंतु वह जो उनके अंदर ज्योति है उसको कठोर समाधि लगाने के पश्चात भी जान नहीं पाते उसे देख नहीं पाते परंतु जो मनुष्य गुरु को अंग संग मानता है गुरु के आदेश पर चलता है तो वह परमेश्वर उस व्यक्ति के मन का झगड़ा बिल्कुल समाप्त कर देते हैं यानी वह मन के पीछे नहीं लगते और ना ही मन उन्हें परेशान करता है ऐसे व्यक्ति के अंदर शब्द रूपी मीठी लगन लग जाती है उसके अंदर परमात्मा की ज्योति जल जाती है और उसके अंदर पल पल खुशी फूटने लगती है वह एक ऐसी खुशी होती है जिसका कोई कारण नहीं होता वह बिना कारण के होती है और निरंतर व्यक्ति को सुख और आनंद का अनुभव करवाती है तो सतगुरु फरमान करते है हे नानक ! अरदास कर रहे देवताओं और मनुष्य के मालिक, हे जुनी रहित परमेश्वर, सचखंड में निवास करने वाले प्रभु, मुझ पर मेहर कर ताकि मुझे इस अडोलता में निवास मिले मुझ पर मेहर की नजर कर कि मेरा बेड़ा पार हो जाए साध संगत जी इस तरह सतगुरु नानक ने उन लोगों को वेदों के आधार पर यह समझाने की कोशिश की थी कि विष्णु जी की नाभि से जन्म लेने वाले जब ब्रह्मा जी उनकी माया का अंत नहीं पा सके तो उस जगत के ईश्वर एक ओंकार का अंत कोई कैसे ढूंढ सकता है और उसकी माया अनंत है साध संगत जी इस तरह सतगुरु नानक बहुत सरल तरीके से लोगों को समझाने की कोशिश करते थे कि इस जगत का मालिक वह एक ओंकार है जिसने इस जगत की रचना की है और सब उसके हुक्म के अंदर है उसके हुक्म से बाहर कोई भी नहीं है जो कुछ भी हो रहा है उसके हुक्म के अंदर ही हो रहा है और सतगुरु नानक ग्रंथों और वेदों के आधार पर लोगों को उस एक ओंकार की महिमा समझाते थे कि वह अनंत है बेअंत है और उसकी माया भी बेअंत है ।
साध संगत जी इसी के साथ हम आपसे इजाजत लेते हैं आगे मिलेंगे एक नई साखी के साथ, अगर आपको ये साखी अच्छी लगी हो तो इसे और संगत के साथ शेयर जरुर कीजिए, ताकि यह संदेश गुरु के हर प्रेमी सत्संगी के पास पहुंच सकें और अगर आप साखियां, सत्संग और रूहानियत से जुड़ी बातें पढ़ना पसंद करते है तो आप नीचे E-Mail डालकर इस Website को Subscribe कर लीजिए, ताकि हर नई साखी की Notification आप तक पहुंच सके ।
By Sant Vachan
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