एक सच्ची आप बीती । जब एक सत्संगी परिवार का 9 साल का लड़का रोज़ाना भजन सिमरन पर बैठने लगा । जरूर सुने


गुरु प्यारी साध संगत जी यह साखी एक सत्संगी परिवार के 9 साल के लड़के की है जो कि एक सच्ची आपबीती है साध संगत जी एक सत्संगी परिवार का लड़का अपने माता पिता को देखकर रोजाना भजन सिमरन पर बैठने लग गया, उसके बाद उसके साथ क्या-क्या हुआ, क्या क्या उसके अनुभव रहे उसकी माता ने संगत से सांझा किए क्योंकि साध संगत जी जब भी ऐसी कोई बात होती है तो पहले माता-पिता चिंता में पड़ जाते हैं कि पता नहीं बच्चे के साथ क्या हो रहा है माता पिता अक्सर अपने बच्चों के साथ ऐसा होता देख कर डर जाते हैं घबरा जाते हैं कि पता नहीं हमारे बच्चे के साथ क्या होने लग गया तो ऐसे ही उस लड़के के सत्संगी माता पिता के साथ भी हुआ उन्हें भी लगा कि पता नहीं लड़के को क्या हो गया है इसके साथ ऐसा क्यों होता है तो जो उस लड़के के अनुभव रहे आज इस साखी में आपसे सांझा किए जाएंगे तो साखी को पूरा सुनने की कृपालता करें जी ।
गुरु प्यारी साध संगत जी जब भी कोई अभ्यासी नाम की कमाई करने वाला जीव रूहानियत के मार्ग पर चलता है परमार्थ के मार्ग पर चलता है तो उसे बहुत अनुभव होते हैं जिनको शब्दों में जाहर नहीं किया जा सकता साध संगत जी ऐसे बहुत ही सत्संगी जीव हैं जिनके साथ बहुत ही दुर्लभ अनुभव होते हैं और वह कहने की कोशिश भी करते हैं लेकिन उनसे कहे नहीं जाते क्योंकि उन अनुभवों को शब्दों में जाहर किया ही नहीं जा सकता हम जितनी भी कोशिश कर ले वह शब्दों में कहे नहीं जा सकते, साध संगत जी परमार्थ का मार्ग संत मत का मार्ग ऐसा है जो भी इस पर चलता है जो भी उसे अनुभव होते हैं वह अनुभवों का मालिक केवल वही जीव होता है जिसे वह अनुभव हुए हैं वह दूसरे को चाह कर भी नहीं बता सकता कि उसके साथ क्या हो रहा है उसे कैसे-कैसे अनुभव हो रहे हैं क्योंकि इन बातों को जाहर करने के लिए कोई शब्द ही नहीं है इसलिए आप देखते होंगे की संगत में बहुत सारे कमाई वाले जीव होते हैं और वह अक्सर चुप रहते हैं कुछ भी बोलते नहीं क्योंकि उन्हें समझ आ जाती है कि यह मार्ग ऐसा है कि इसे बताया नहीं जा सकता, कहने के लिए कुछ बचता ही नहीं कोई शब्द रही नहीं जाता तो फिर वह कहे भी तो क्या कहें इसलिए वह चुप रहते हैं ज्यादा किसी से बात नहीं करते और अगर उनसे कोई पूछता भी है तो उसे करनी में लगा देते हैं कि खुद जानो, खुद करो इसलिए तो अक्सर फरमाया जाता है कि भाई यह नाम का रस ऐसा है कि इसे खुद चखना पड़ता है, किसी के कहने पर कुछ नहीं हो सकता कहीं कहाई बातों में हमें नहीं आना हमने खुद इस मार्ग पर चलना है खुद नाम की कमाई करनी है खुद भजन सिमरन करना है और उस नाम रूपी रस को चखना है इसीलिए परमार्थ के राह पर आने वाले अनुभवों को साझा करने से मना भी किया जाता है और फरमाया जाता है कि भाई इसे हजम करना सीखो अपने हाजमे को बढ़ाओ , साध संगत जी, ऐसे ही उस सत्संगी परिवार के एक 9 साल के लड़के के साथ भी हुआ उसके माता-पिता को नामदान मिला हुआ था और जैसे कि नाम के समय बताया जाता है कि रोजाना भजन सिमरन करना है नाम सिमरन करना है और बिना नागा करना है तो वह लड़के के माता पिता रोजाना उस कुल मालिक की याद में बैठते थे गुरु के हुक्म के मुताबिक भजन सिमरन को पूरा समय देते थे और उनका एक लड़का है जब भी वह भजन सिमरन पर बैठते वह अपने लड़के को बोल देते कि अगर कोई हमारे घर पर आए या फिर कोई आस पड़ोस का कोई भी व्यक्ति घर पर आए तो उसे कह देना की मम्मी पापा घर पर नहीं है तो वह लड़का ऐसा ही करता जब भी कोई उनके भजन सिमरन के समय उनके घर पर आता तो वह लड़का उन्हें कह देता कि मेरे माता-पिता घर पर नहीं है और वह लड़का उनको देखता रहता की मेरे माता पिता आंखें बंद कर बैठे हैं तो कभी-कभी वह भी उनके साथ बैठ जाता उनकी तरह ही आंखें बंद कर लेता क्योंकि साध संगत जी जैसे कि फरमाया जाता है कि बच्चे अपने माता-पिता को देखकर सीखते हैं वह जो भी सीखते हैं अपने माता पिता को देखकर सीखते हैं जैसे उनके माता-पिता करते हैं वैसे ही वह करना शुरू कर देते हैं बच्चों पर सबसे पहला प्रभाव उनके माता-पिता का होता है जैसे उनके माता-पिता होंगे उनके बच्चे भी वैसे ही होंगे अगर हमारे माता-पिता रोहानियत के मार्ग से जुड़े हैं मालिक की भजन बंदगी के साथ जुड़े हैं तो हम बहुत ही भागो वाले जीव है कि जिन्हें ऐसे माता-पिता मिले हैं तो वह हमें भी प्रेरित करते हैं कि इस मार्ग पर चलो और हम भी उन्हें देखकर इस मार्ग पर चलना शुरू कर देते हैं साध संगत जी जिनके माता-पिता को नाम मिला हुआ है एक पूर्ण संत महात्मा की शरण मिली हुई है और वह हमारे माता-पिता है तो हम बहुत ही भागो वाले जीव हैं कि हमें ऐसे माता-पिता मिले क्योंकि साध संगत जी आप आसपास देख सकते हैं कि दुनिया में क्या हो रहा है दुनिया कैसे मोह माया में फंसी पड़ी है कैसे मोह माया में उलझी पड़ी है किसी को काम ने जकड़ रखा है किसी को क्रोध ने पकड़ रखा है बच्चों के माता-पिता पार्टी पर चले जाते हैं बच्चे रात रात तक घर नहीं आते, माता-पिता को अपने बच्चों की फिक्र नहीं है बच्चे अपने माता-पिता से कोई बात नहीं करते आज का समय ऐसा हो गया है कि माता-पिता को अपने बच्चों की कोई परवाह नहीं है बच्चे क्या करते हैं कहां जाते हैं उन्हें कोई लेना देना नहीं उन्हें तो बस अपनी मौज मस्ती करनी है अपनी जिंदगी जीनी है बस इतना ही है लेकिन अगर हम देखें कि हमारे माता-पिता जो कि एक सत्संगी है जिन्हें नाम मिला हुआ है गुरु की शरण मिली हुई है और वह भजन सिमरन करते हैं और रोहनियत से जुड़े हुए हैं तो हम कितने भागों वाले जीव हैं कि हमें ऐसे माता-पिता मिले हम चाह कर भी उनका शुक्रिया नहीं कर सकते हम चाह कर भी उनका धन्यवाद नहीं कर सकते क्योंकि यह कुल मालिक की कृपा होती है कि जिन को उसने अपने साथ मिलाना होता है वह ऐसी रूह को ऐसे घर में जन्म देता है जहां पर पहले से ही उसका नाम लिया जा रहा हो तो हमें समझ लेना चाहिए की मालिक ने हम पर कृपा की है हमें ऐसे माता-पिता दिए जो कि मालिक से जुड़े हुए हैं तो साध संगत जी ऐसे ही वह बच्चा भी था जिसे नाम की कमाई करने वाले माता-पिता मिले और वह उनको देखकर कभी-कभी भजन सिमरन करने की कोशिश करता क्योंकि बच्चों ने तो माता-पिता को देखना होता है कि वह क्या करते हैं उनको देखकर वह भी वैसा ही करने लग जाते हैं तो उस लड़के ने भी अपने माता-पिता को देखकर भजन सिमरन पर बैठना शुरु कर दिया, पहले तो वह अपने माता-पिता को देखता रहता कि मेरे माता पिता आंखें बंद कर बैठे हुए हैं और उनको देखता ही रहता तो उसने भी वैसे ही करना शुरू कर दिया साध संगत जी जैसे कि आप जानते हैं कि बच्चों का जो मन होता है वह कोमल होता है बच्चे बहुत ही कोमल होते है इसलिए तो बच्चों को मालिक का रूप भी कहा जाता है क्योंकि बालपन का समय ऐसा है कि बच्चों के मन में किसी के प्रति इर्खा नहीं होती उनके अंदर किसी तरह की बुराइयां नहीं होती इसलिए उनका ध्यान भी जल्दी लग जाता है जिसका एक ही कारण है कि बालपन के समय बच्चों पर किसी तरह की जिम्मेदारियां नहीं होती उनका दिमाग एकदम खाली सा रहता है ज्यादा विचार नहीं होते ज्यादा परेशानियां नहीं होती इसलिए उनका ध्यान भी लग जाता है इसलिए तो बाइबल में भी कहा गया है कि अगर मालिक से मिलाप करना हो तो एक बच्चे जैसे बन जाओ जैसे कि बच्चे होते हैं लेकिन जैसे जैसे हम बड़े होते जाते हैं हमारे अंदर तरह-तरह के विचार आने लगते हैं तरह-तरह की बातें हमारे अंदर इकट्ठी हो जाती हैं साध संगत जी उदाहरण के तौर पर कहा जाए जैसे कि एक कंप्यूटर है वह अभी नया नया है उसमें अभी कुछ डाला नहीं है तो वह कितना बढ़िया चलता है अच्छा चलता है क्योंकि उसके अंदर कोई डाटा नहीं है कुछ भी नहीं है खाली है और उसके बाद हम उसमें डाटा जमा करना शुरू कर देते हैं उसमें अलग अलग तरह का डाटा उसमें डालना शुरू कर देते हैं जिससे कि उसकी मेमोरी कम होने लगती है और वह भर सा जाता है जिससे कि उसकी चलने की स्पीड भी कम हो जाती है क्योंकि साध संगत जी जब वह खाली था तब वह बहुत ही अच्छा चलता था क्योंकि उसमें कोई डाटा नहीं था लेकिन अब उस में बहुत कुछ डाल दिया गया है जिससे कि उसके चलने की स्पीड तो कम होगी ही ऐसे ही हम जीव भी हैं जब हम बालपन की अवस्था में होते हैं हमारे अंदर ऐसा कुछ भी नहीं होता कि जो हमें मालिक की राह पर चलने से रोक सके या फिर हमारे रास्ते में रुकावट बन सके लेकिन हम जैसे जैसे बड़े होते है वैसे ही वैसे हमें समाज के बारे में पता चलता है हमारे अंदर बातें इकट्ठी होनी शुरू हो जाती है जिससे कि हम कहीं पर भी लगन से काम नहीं कर सकते हमारा ध्यान लगना मुश्किल हो जाता है क्योंकि जो जो हमने इकट्ठा किया है वह हमारा मन है मन उसी के हिसाब से चलता है लेकिन बच्चों में ऐसी कोई बात नहीं होती बच्चों का मन अभी खाली है इसलिए उनकी सुरत जल्दी लग जाती है मालिक से मिलाप भी जल्दी हो जाता है तो ऐसे ही उस लड़के के साथ भी हुआ उसने अपने माता-पिता को देखकर भजन सिमरन करना शुरू कर दिया उसकी बात बनने लगी उसे अंदर से रास आने लगा इसीलिए वह ज्यादा से ज्यादा भजन सिमरन पर बैठने लगा उसके स्कूल से भी शिकायतें आने लगी कि आपका बच्चा ना तो खेलता है ना किसी से बात करता है बस अकेले बैठा रहता है और चुप सा रहता है यह दूसरे बच्चों से बिल्कुल ही अलग है ऐसी शिकायतें उसके स्कूल से आने लगी कि यह स्कूल में भी बच्चों से खेलता नहीं, अलग बैठकर आंखें बंद कर बैठा रहता है तो जब उसके माता-पिता को यह बात पता चली कि हमारा बच्चा ऐसा हो गया है तो वह चिंता में पड़ गए क्योंकि साध संगत जी जब ऐसी कोई बात होती है तो माता-पिता को चिंता तो होती ही है तो उन्हें चिंता होने लगी लेकिन उनके अंदर एक खुशी भी थी कि हमारा बच्चा बचपन से ही मालिक की तरफ ध्यान देने लगा है लेकिन उसके साथ चिंता यह भी थी कि कहीं इसका प्रभाव इसकी पढ़ाई पर ना पड़े यह इसकी गहराई में ना चला जाए यह चिंता उन को सताने लगी तो, एक दिन क्या हुआ कि बच्चा स्कूल से आया और घर आकर फिर से भजन सिमरन पर बैठ गया वह अक्सर ऐसा करता जब भी उसे समय मिलता वह ऐसे आंखें बंद कर बैठ जाता जैसे कि उसे कोई रस आता हो क्योंकि साध संगत जी नाम का रस ऐसा है जिसे लग जाता है वह फिर पीछे मुड़कर नहीं देखता वह तो फिर आगे ही चलता है तो उसके साथ भी ऐसा होने लगा जैसे उसे अंदर से रस आ रहा हो तो जब भी उसे समय मिलता वह आंखें बंद कर बैठ जाता और कभी-कभी तो वह देर रात तक बैठा रहता उसे नींद इतनी अच्छी नहीं लगती जितना उसे ऐसे आंखें बंद कर बैठना अच्छा लगने लगा तो 1 दिन क्या हुआ कि वह सुबह नहीं उठा और उसे स्कूल भी जाना था और वे देर रात तक बैठा रहा था इसलिए सुबह उठने मैं उसे देर हो गई क्योंकि जब भी कोई ऐसे ध्यान पर बैठता है भजन सिमरन पर बैठता है और उसके बाद अगर कोई अभ्यासी जीव नींद में चला जाए तो उसकी नींद बहुत ही गहरी होती है वह नींद इतनी गहरी होती है कि जीव को लगता है कि जैसे वह है ही नहीं तो उस बच्चे के साथ भी ऐसा हुआ वह लेटा रहा और उसकी मां उसके पास गई और उसे जगाने की कोशिश की उसकी मां ने देखा कि इसकी तो सांस भी नहीं चल रही तो वह चिंता में पड़ गई कि पता नहीं बच्चे को क्या हो गया साध संगत जी जो भी नाम की कमाई करने वाले होते हैं शब्द की कमाई करने वाले होते हैं अक्सर देखा गया है कि वह जब भी भजन सिमरन पर बैठते हैं उनकी सांस धीरे-धीरे इतनी कम हो जाती है कि उन्हें पता ही नहीं चलता कि उन्हें सांस आ रही है या फिर नहीं ऐसे लगता है कि व्यक्ति बिना सांस के जी रहा है सांस उनके अंदर होती है लेकिन इतनी कम होती है कि ना के बराबर हो जाती है तो इसीलिए जो नाम अभ्यासी होते हैं उनके साथ अक्सर ऐसा होता है कि उन्हें लगता है कि उन्हें सांस नहीं आ रही उन्हें लगता है कि हम बिना सांस के जी रहे हैं साध संगत जी वह इसलिए होता है कि उनका अभ्यास इतना पक गया होता है कि उनकी सांस इतनी कम हो जाती है इतनी कम हो जाती है कि उन्हें लगता है कि वह बिना सांस के जी रहे हैं और अब तो यह विज्ञान ने भी कह दिया है कि जो ध्यान करते हैं मालिक की याद में बैठते हैं उन्हें कभी दिल से संबंधित कोई समस्या नहीं हो सकती उन्हें हार्ट अटैक नहीं आ सकता क्योंकि वह अभ्यासी हैं वह अभ्यास करते हैं ध्यान करते हैं तो उनकी सास एकदम से विलुप्त हो जाती है उनके अभ्यास के कारण ही ऐसा होता है तो उस बच्चे के साथ भी ऐसा हुआ जब वह सो गया तो उसकी सांस ना के बराबर हो गई क्योंकि वह भी एक अभ्यासी था तो उसकी माता को चिंता होने लगी और उसने बच्चे को जगाने की कोशिश की लेकिन बच्चा इतनी गहरी नींद सोया हुआ था कि उसे पता ही नहीं चला तो उसकी मां पड़ोस में एक सत्संगी परिवार के पास गई साध संगत जी जहां पर वह रहते थे वहां पर उनके आसपास ज्यादातर लोग सत्संगी थे और वहां पर एक कमाई वाले बुजुर्ग रहते थे लड़के की मां भागकर उनके पास गई और वह उनके घर आए उन्होंने देखा कि लड़का सोया हुआ है साध संगत जी जो कमाई वाले जीव होते हैं वह तो जीव को पैरों से लेकर सिर तक देखते हैं तो उन्होंने भी ऐसे ही देखा वह ऐसा इसलिए देखते हैं क्योंकि उन्हें जीव के कर्मों का पता चल जाता है जीव के बारे में उन्हें पता चल जाता है कि यह जीव कहां से आया है और कहां तक पहुंचा है तो वह जो बुजुर्ग थे वह थोड़े से हैरान हुए कि यह छोटी सी उम्र का बच्चा उस नाम के रस से जुड़ा हुआ है यह कैसे हो सकता है तो साध संगत जी उन्होंने तो देखकर ही बता दिया कि यह मालिक का प्यारा है तो उन्होंने उसकी मां को कहा कि आपको घबराने की जरूरत नहीं है बच्चा सोया हुआ है गहरी नींद सोया हुआ है इसकी सांस चल रही है लेकिन बहुत ही धीमी चल रही है कह सकते हैं कि ना के बराबर है वह ऐसा इसलिए है क्योंकि इस बच्चे ने कमाई की है और यह उस नाम के रस से जुड़ा हुआ है इसलिए इसके साथ ऐसा हो रहा है इसमें डरने की कोई बात नहीं है आप बहुत ही भागोवाली मां है जिसने एक ऐसे कमाई करने वाले बच्चे को जन्म दिया जो कि मालिक का रूप बन गया है तो आपको घबराने की जरूरत नहीं है यह अक्सर अभ्यासियों के साथ होता है कि उनकी सांस नहीं चलती ,ऐसा होने लगता है लेकिन ऐसा बिल्कुल भी नहीं है वह तो अभ्यास कर कर ध्यान कर कर उनकी ऐसी अवस्था हो जाती है कि वह बिना सांस के भी रह सकते हैं सांस उनके अंदर ही चलती है लेकिन उन्हें मालूम नहीं पड़ता ऐसा केवल नाम के अभ्यासियों के साथ होता है जो ध्यान करते हैं उनके साथ होता है तो यह बातें सुनकर उसकी मां को थोड़ा सा हौसला होने लगा उसकी मां ने अपने बच्चे के पैरों को दबाना शुरू किया उसके माथे को चुम्मा उसे अपने बच्चे पर प्यार आने लगा कि उसका बच्चा नाम से जुड़ा हुआ है साध संगत जी इसीलिए तो कहा जाता है की बालपन का समय मालिक की याद के लिए भजन सिमरन के लिए अच्छा इसलिए होता है क्योंकि उस समय हमारे अंदर इतने विचार नहीं होते हमें जो बताया जाता है हम वैसा ही करने लग जाते हैं ज्यादा हमारे अंदर परेशानी नहीं होती और हमारी बात बन जाती है कुल मालिक से मिलाप हो जाता है नाम धुन हमें सुनाई देने लगती है ऐसा अक्सर बहुत जीवो में देखा गया है तो साध संगत जी हमें इस साखी से यही प्रेरणा लेनी चाहिए कि हमें भी अपने बच्चों को मालिक के नाम से जोड़ना है उनको एक सही मार्ग देना है उनका मार्गदर्शन करना है जैसे कि अक्सर फरमाया जाता है कि बच्चों को सत्संग में लेकर आना चाहिए उनको एक सही मार्ग देना चाहिए ताकि बच्चे एक अच्छे मार्ग पर चल सके और जैसा कि बाहर दुनिया का माहौल है उस माहौल से बचे रहें और मालिक के नाम से जुड़े रहे ऐसा तभी हो सकता है जब बच्चों के माता-पिता उन्हें एक सही मार्गदर्शन दें उन्हें सत्संग में लेकर आए ।

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By Sant Vachan

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