गुरु प्यारी साध संगत जी ये एक सत्संगी बीवी के वह अनमोल और कीमती अनुभव हैं जो उन्होंने संगत से सांझा किए हैं जैसे कि अक्सर देखा जाता है कि जब हमें नाम की बख्शीश हो जाती है नामदान हमें मिल जाता है एक पूर्ण संत महात्मा की शरण हमें मिल जाती है और उसके बाद हम अभ्यास करना शुरू करते हैं भजन सिमरन करना शुरू करते हैं और जैसे-जैसे हम इस मार्ग पर चलना शुरू करते हैं तो हमें बहुत अनुभव होते हैं जैसे कि कुछ सत्संगियों की तो भजन सिमरन करते चीखें निकल जाती हैं कोई रोने लग जाता है कोई जोर जोर से चिल्लाने लग जाता है कोई गिर पड़ता है ऐसे बहुत सारे अनुभव है जो अक्सर नाम की कमाई करने वाले सत्संगीयों को, नाम की कमाई करने वाले अभ्यासियों को होते हैं जोकि बहुत ही कीमती अनुभव होते हैं जिनके पीछे बहुत सारे कारण होते हैं जोकि माताजी ने संगत से सांझा किए, साध संगत जी हम अक्सर ऐसा देखकर हंसने लग जाते हैं क्योंकि हमें वह समझ नहीं होती वह ज्ञान नहीं होता हमें नहीं पता कि उनको क्या अनुभव हो रहा है उनके साथ क्या हो रहा है उनके साथ अंदर क्या हो रहा है हमें नहीं पता होता और जब वह चिल्लाते हैं या फिर जोर जोर से रोने लगते हैं तो जो देखने वाले हैं वह हंसते हैं क्योंकि उन्हें वहां तक की समझ नहीं होती इसलिए वह ऐसा करते हैं अक्सर ऐसा देखा गया है लेकिन हमें ऐसा बिल्कुल भी नहीं करना चाहिए क्योंकि साध संगत जी यह मार्ग कोई मजाक नहीं है नाम की कमाई कोई मजाक नहीं है जिसके ऊपर मालिक की कृपा होती है केवल वही कर सकता है जिसके ऊपर उसका हाथ होता है वही कर सकता है, नहीं तो हम नहीं कर सकते नहीं निभा सकते तो साध संगत जी आज इस साखी में इन अनुभवों के पीछे का कारण क्या होता है, ऐसा क्यों होता है उसके बारे में माताजी ने कुछ दृष्टांत संगत को दिया जो मैं आपसे सांझा करता हूं तो साखी को पूरा सुनने की कृपालता करें जी ।
गुरु प्यारी साध संगत जी माता जी कहती हैं कि मुझे 32 वर्ष की आयु में नाम की बख्शीश हुई थी और तब मुझे इतना ज्ञान नहीं था मैंने केवल थोड़े ही सत्संग सुने थे ज्यादा मुझे ज्ञान नहीं था जो नाम के समय बताया जाता है कि आपको इतने समय तक भजन सिमरन करना है इतने समय तक बैठना है कुल मालिक की भजन बंदगी करनी है जैसा उन्होंने बताया था वैसे ही मैं करती थी पहले पहले थोड़ी मुश्किल होती है , नहीं बैठा जाता, पूरा समय नहीं दिया जाता, हर एक सत्संगी के साथ हर एक उस अभ्यासी के साथ यह मुश्किल होती है कि वह भजन सिमरन को पूरा समय नहीं दे पाता, जब उन्हें नाम की बख्शीश होती है लेकिन उन्होंने कहा कि जब नाम की बख्शीश हो जाती है तो वह समय ऐसा होता है कि जो अभ्यासी उस समय पूरा समय देता है अपने गुरु का हुक्म मानकर अपने गुरु के भाने में रहकर उस कुल मालिक की भजन बंदगी करता है अगर वह पूरी लगन से करें तो दो से तीन महीनों के अंदर उसे वह ज्ञान प्राप्त हो जाता है जिसे पाने के लिए हम यहां भटक रहे हैं उसके अंदर प्रकाश हो जाता है उसका पूरा शरीर नूर से भर जाता है माया का पर्दा हट जाता है अंदर पर्दा खुल जाता है ,उस समय कुल मालिक की इतनी कृपा अभ्यासी पर होती है कि अगर जीव अपने गुरु के हुक्म के अनुसार नाम लेने के बाद लगातार भजन सिमरन करें रोजाना उस कुल मालिक की याद में बैठे, बिना नागा बैठे और पूरा समय दे तो उसकी बात 2 से 3 महीनों के अंदर अंदर बन सकती है क्योंकि उस समय उस कुल मालिक की उस सतगुरु की जो कुल मालिक का रूप है उनकी दृष्टि हम पर पड़ी होती है उसका प्रभाव हम पर रहता है क्योंकि जब हम नाम लेते हैं तब सतगुरु हमारे पिछले जो कर्म होते हैं वह काट देते हैं हमारे ऊपर जितनी भी बुराइयां होती हैं वह उसी समय खाक हो जाती हैं उस दिन हम एकदम से पवित्र हो जाते हैं मालिक के प्यारे हो जाते हैं जितने भी दाग हम पर लगे होते हैं वह सब धुल जाते हैं जब हमें एक पूर्ण संत सतगुरु द्वारा नाम की बख्शीश होती है जब उनकी एक रहम की नजर हम पर पड़ती है हम बिल्कुल साफ हो जाते हैं बिल्कुल पवित्र हो जाते हैं वह इसलिए होता है क्योंकि सतगुरु जिसे भी नाम दान की बख्शीश करते हैं पहले उसके जो पिछले कर्म है उसको काटते हैं उसको एकदम से नया कर देते हैं क्योंकि साध संगत जी नाम की दौलत बहुत ही अनमोल है वह ऐसे दी नहीं जा सकती अगर बर्तन साफ हो तो उसी में डाली जा सकती है जैसे कि अक्सर फरमाया जाता है कि गंदे बर्तन में अगर हम कोई पवित्र चीज उस में डालेंगे तो वह भी अपवित्र हो जाएगी, ये तो फिर भी नाम की दौलत है वह दौलत जिसका कोई मोल नहीं यह वह दौलत है जिसे पाने के लिए पहले हमें पवित्र होना पड़ता है क्योंकि सतगुरु ने हमें नाम की बख्शीश करनी होती है तो हमें अपने अंदर से जो भी बुराइयां होती हैं उसका साफ होना जरूरी है तो उस समय पूर्ण संत महात्मा हम पर कृपा करते हैं क्योंकि हम बहुत ही कमजोर हैं हम अपनी बुराइयों को खुद से खत्म नहीं कर सकते, हम अपने कर्मों को खुद से काट नहीं सकते, हम जितनी कोशिश कर ले लेकिन इस जंजाल से हम नहीं निकल सकते उस समय केवल एक पूर्ण महात्मा ही हम पर एक रहम की नजर डालें और हमारी सभी बुराइयां एक नजर से ही खाक कर दे, खत्म कर दे, और ऐसा ही होता है, संत सतगुरु नाम की बक्शीश के समय हमारे सभी कर्म खत्म कर देते हैं और हमें नाम की बख्शीश कर देते हैं नाम रूपी खजाना हमारी झोली में डाल देते हैं उसके बाद बारी हमारी होती है हमें रोजाना भजन करना होता है और जैसे-जैसे हम आगे बढ़ते हैं वैसे वैसे बहुत अनुभव होते हैं जैसे कि मुझे भी नाम मिला, उस समय मुझे रोहनियत के बारे में इतना ज्ञान नहीं था, लेकिन जैसे ही मुझे नाम मिला मैंने बहुत सारी किताबें पढ़नी शुरू की जिससे कि इस मार्ग से संबंधित कुछ ज्ञान होने लगा लेकिन जैसे कि बताया जाता है कि यह जो बाहरी ज्ञान है इसकी सीमा केवल कुछ हद तक है लेकिन जो ज्ञान हमें अंदर मिलता है वह हमें पारब्रह्म तक लेकर जाता है हमारी यात्रा में सहाई होता है माता जी ने कहा कि जब मुझे नाम मिला तो जैसे कि बताया जाता है कि भजन सिमरन करना है मैंने भजन सिमरन को पूरा वक्त देने की कोशिश की भजन सिमरन किया लेकिन जब भी मैं बैठती थी तो जो मैंने पीछे किया है वह मेरे सामने आ जाता, कि मैं क्या क्या कर कर आई हूं क्या क्या मेरे कर्म थे, क्या क्या मैंने किया था कहां कहां मैं भटकी हूं, मैंने क्या-क्या नहीं किया, मैंने बहुत बुराई की बहुत लोगों का दिल दुखाया जो कि मेरे सामने आ जाता जब भी मैं भजन सिमरन करती वह मेरे सामने आ जाता, क्योंकि साध संगत जी बाहर हम जो भी करते हैं हमें तब तक नहीं पता चलता जब हम खुद भजन सिमरन नहीं करते, मालिक की भजन बंदगी पर नहीं बैठते और जब भजन सिमरन का समय आता है तब वह चीजें इकट्ठी होकर हमारे सामने आ खड़ी होती हैं कि हमने क्या-क्या किया है इसलिए तो कहा जाता है कि भाई जो भी करो सोच समझ कर करो, कोई भी कर्म करने से पहले मालिक को याद करो मालिक आपका मार्गदर्शन करेगा क्योंकि कर्म हमारी करनी पर भी प्रभाव डालते हैं हम जो भी करते हैं उसका प्रभाव हमारी भजन बंदगी पर भी पड़ता है तो ऐसे ही उस माता जी के साथ हुआ जब भी वह बैठती तो उन्होंने कहा कि वह सब कुछ मेरे सामने आ जाता और मुझे एहसास होता कि मैंने ऐसे क्यों किया और माताजी ने कहा कि मैंने ऐसा इसलिए किया, क्योंकि तब मुझे रोहानियत का ज्ञान नहीं था लेकिन जब ज्ञान होने लगा तब मैं चीखती थी चिल्लाती थी भजन सिमरन करते करते मेरी बहुत चीखें निकलती बहुत जोर जोर से मैं रोती थी कि मैं क्या करती रही हूं मैंने कितना समय खराब किया, क्या-क्या मैंने नहीं किया किस-किस का मैंने दिल नहीं दुखाया वह सब मेरे सामने आकर जब खड़ा हो जाता था तब मैं चिल्लाती थी रोती थी लेकिन फिर भी मालिक अंदर से ताकत देता था कि आगे बढ़ो वह ऐसा इसलिए होता है क्योंकि साध संगत जी जब भी कोई रूहानियत के मार्ग से जुड़ता है मालिक के नाम से जुड़ता है और नाम की कमाई करने लगता है तब उसकी आंखें खुल जाती हैं वह माया का पर्दा आंखों से हट जाता है वह माया की नींद से उठ जाता है उसकी नींद टूट जाती है और जब नींद टूटती है तब जोर-जोर से चीखे निकलती है उसे दुख होता है कि मैं माया की नींद में सोता रहा, माया के दायरे में रहकर मैंने क्या-क्या नहीं किया, मैंने अपना समय बर्बाद किया, इसलिए अभ्यासी को दुख होता है क्योंकि हम जो भी करते हैं उसका प्रभाव हमारे ऊपर रहता ही है हमने जो भी किया हो, अच्छा किया हो, बुरा किया हो, उसका प्रभाव हम पर रहता है अगर हम सेवा करते हैं मालिक की याद में अपना पूरा दिन पूरा समय बिताते हैं तो भजन सिमरन करने में और भी आसानी हो जाती है बात जल्दी ही बन जाती है लेकिन अगर हम दिन भर बुराइयां करते हैं दूसरों के बारे में बुरा सोचते हैं काम क्रोध लोभ मोह में फंसे पड़े हैं और साथ-साथ भजन भी कर रहे हैं तो इतनी जल्दी बात नहीं बनती, बहुत समय लगता है और बहुत मुश्किलों का सामना भी करना पड़ता है , हमारा ध्यान नहीं लगता क्योंकि हम जो भी खाते हैं जो भी पीते हैं जो भी करते हैं उसका प्रभाव हमारी भजन बंदगी पर पड़ता है तो इसीलिए तो कहा जाता है कि भाई सोच समझ कर खाओ, सोच समझ कर करो जो भी करना है मालिक ने हमें विवेक की ताकत दी है तो इसलिए माताजी ने कहा कि मैंने बहुत पाप किए हुए थे मैंने मांस भी खाया हुआ था मैंने बहुत लोगों का दिल भी दुखाया हुआ था जो कि मेरे सामने आ जाता जिसके कारण मेरी चीखें निकलती थी मैं रोती रहती थी लेकिन फिर भी मैंने हार नहीं मानी सतगुरु की कृपा से आगे बढ़ती गई और आज मेरे ऊपर मालिक ने कृपा की है वह समझ बख्शी है वह सोच दी है और वह ज्ञान दे दिया जिसे पाने के लिए हमारा जन्म होता है, मालिक की कृपा हो गई मेरा जो भी पिछला हिसाब था जो भी पिछले कर्म थे जो जो भी मैंने किया था सब मालिक ने खत्म कर दिया क्योंकि साध संगत जी जब भी हम नाम सिमरन करते हैं नाम की कमाई पर बैठते हैं तो हमारे कर्म हमारे सामने आ जाते हैं क्योंकि अगर हमारे कर्म अच्छे हो अगर हमने किसी के साथ बुरा नहीं किया, मालिक की कृपा से मालिक के भाने में हम रहे हैं तो हमारी बात जल्दी बन जाती है अगर हमने गलतियां की हैं पाप किए हैं तो हमारी चीखें निकलती है जब हम भजन सिमरन पर बैठते हैं यही कारण है कि हमारी चीखें निकलती है और जैसे ही हमें नाम धुन सुनाई पड़ती है हमारे अंदर नाम गूजने लगता है तब हमारे सभी कर्म खत्म हो जाते हैं खाक हो जाते हैं जैसे कि अक्सर फरमाया जाता है कि एक आग की चिंगारी लकड़ी के ढेर को खाक कर देती है ऐसे ही नाम की कमाई है जो कि हमारे भारी से भारी, बुरे से बुरे कर्मों को खाक कर देती है हम स्वच्छ हो जाते हैं मालिक का रूप बन जाते हैं तो यह बातें कहकर माताजी ने कहा कि हमें यह ख्याल रखना चाहिए कि हमें क्या क्या करना है क्या नहीं, अगर हम इस मार्ग पर चल पड़े हैं तो हमें समझ होनी चाहिए कि हमारे सतगुरु ने हमें कौन-कौन सी चीजों से परहेज रखने को बोला है कौन-कौन सी चीजों से दूर रहने को बोला है क्योंकि साध संगत जी वह तो एक पूर्ण संत महात्मा है उन्हें सब मालूम है हम उनके आगे सवाल नहीं कर सकते कि आप हमें मना क्यों कर रहे हैं वह कुल मालिक का रूप है वह सब जानते हैं हमें उनके भाने में रहना है जो वह कहते हैं वैसा ही करना है अगर हम उस कुल मालिक से मिलाप करना चाहते हैं तो हमें अपने सतगुरु के हुक्म की पालना करनी है , हमें उनके आगे किंतु परंतु नहीं करनी अगर हम सवाल करते हैं किंतु परंतु करते हैं तो हम यहीं पर भटकते रह जाएंगे उस कुल मालिक से मिलाप नहीं हो पाएगा, सतगुरु जो भी कहते हैं उनकी हर बात के अंदर कोई ना कोई राज अवश्य होता है जिस चीज से दूर रहने के लिए वे कहते हैं उसमें भी कोई ना कोई राज अवश्य होता है बिना कारण के वह कुछ भी नहीं कहते इसलिए तो वह हमें उन चीजों से दूर रहने को बोलते हैं जो हमारी भजन बंदगी में बाधा बनती है क्योंकि साध संगत जी जितनी साधारण हमारी रहनी सहनी होगी जितना साधारण हमारा खाना पीना होगा हमारी बात उतनी ही जल्दी बनेगी इसीलिए तो संत महात्मा मांस और शराब से दूर रहने के लिए बोलते हैं कि इन चीजों का सेवन मत करो अगर आपको उस कुल मालिक से मिलाप करना है क्योंकि यह चीजें हमारी भजन बंदगी में बाधा बनती हैं नाम की कमाई में बाधा बनती है क्योंकि हम जो भी खाते हैं इसका हमारे मन पर प्रभाव पड़ता है बहुत ही गहरा प्रभाव पड़ता है इसलिए तो कहा गया है जैसा अन वैसा ही मन , तो हमें भी अपने सतगुरु के हुक्म की पालना करनी है उनकी बातों को मानकर चलना है उनके भाने में रहना है और नाम की कमाई करनी है शब्द की कमाई करनी है ।
साध संगत जी इसी के साथ हम आपसे इजाजत लेते हैं आगे मिलेंगे एक नई साखी के साथ,अगर आप साखियां, सत्संग और सवाल जवाब पढ़ना पसंद करते है तो आप नीचे E-Mail डालकर इस Website को Subscribe कर लीजिए, ताकि हर नई साखियां, सत्संग और सवाल जवाब की Notification आप तक पहुंच सके ।
By Sant Vachan
0 Comments
Please do not enter any spam link in the comment box.