गुरु प्यारी साध संगत जी यह साखी एक 50 वर्ष की एक अभ्यासी सत्संगी माता जी की है जिन्हें कुछ समय पहले नाम मिला और उन्हें रूहानियत का ज्ञान हुआ साध संगत जी जब भी हम इस मार्ग पर चलते हैं या फिर चलने की कोशिश करते हैं तो हमारे अंदर कितना उत्साह होता है हमारे अंदर उस मालिक से मिलने की तड़प होती है मालिक से मिलने का प्यार होता है इसलिए हम इस मार्ग पर चलते हैं और सद्गुरु की कृपा से नाम की बख्शीश हो जाती है
नाम दान मिल जाता है और उसके बाद हम ज्यादा से ज्यादा समय भजन सिमरन में गुरु घर की सेवा में सत्संग में बिताने की कोशिश करते हैं ताकि हमारा माहौल बन सके ताकि वह माहौल हमारी भजन बंदगी में सहायक बन सके क्योंकि साध संगत जी जैसा माहौल होता है मन उसी का प्रभाव लेता है हम जिस माहौल में रहेंगे मन उसी का प्रभाव लेगा अगर हम अपना समय ज्यादा से ज्यादा संगत में बिताएंगे गुरु घर की सेवा में बताएंगे भजन सिमरन में बताएंगे तो हमारी बात जल्दी बनती है तो इसलिए माहौल बहुत ही जरूरी होता है तो माताजी भी नाम लेने के बाद गुरु घर की सेवा पर जाने लगी ज्यादा से ज्यादा समय संगत की सेवा में सत्संग में और भजन सिमरन में बिताने लगी माताजी ने कहा कि मुझे बहुत अच्छा लगता है जब मैं संगत में जाती संगत के साथ सेवा करती और उनके साथ बैठकर भजन सिमरन करती सतगुरु की कृपा से मैंने कोई भी सेवा का मौका नहीं छोड़ा जब भी कोई सेवा का हुक्म आता मैं तैयार रहती सतगुरु की कृपा होती सेवा बहुत अच्छे से हो जाती मैं ज्यादा से ज्यादा कोशिश करती कि ज्यादा से ज्यादा समय संगत में बितायू, मालिक की याद में बियायू, भजन सिमरन करू ताकि उस कुल मालिक से मिलाप हो सके, सतगुरु की कृपा हुई मुझे गुरु घर में सेवा मिल गई वह सेवा 3 दिन की थी मुझे गुरु घर से हुक्म हुआ आपकी सेवा जा रही है और मैं उसी समय तैयार होकर सेवा पर चली गई मेरे पड़ोस में भी कुछ सत्संगी है वह भी मेरे साथ चले गए हम सभी सेवा पर चले गए वहां पर हमने गुरु घर की सेवा की, संगत की सेवा की, आप जी कहती हैं कि जब सेवा कर कर हमें आराम करने के लिए समय दिया जाता है उस समय कुछ सत्संगी ऐसे होते हैं जिन्हें आराम नहीं करना होता उन्हें केवल भजन सिमरन करना होता है आप जी कहती हैं कि मैं यह देखकर बहुत प्रसन्न होती कि कैसे सब कुछ बैलेंस कर रखा है कैसे संगत सेवा करती है और उनके खाने का समय भी बिल्कुल सही तरीके से निर्धारित होता है और आराम करने का समय भी निर्धारित होता है और बहुत सारी संगत आराम के समय आराम नहीं करती भजन सिमरन करती हैं तो आप भी कहती हैं कि मुझे भी नाम दान मिले को कुछ ही समय हुआ था मैं भी मालिक के हुक्म के अनुसार सिमरन पर ज्यादा जोर देती थी कभी-कभी समय मिल पाता तो मैं बैठ जाती थी आप जी ने कहा कि सभी आराम कर रहे थे और मैं भजन सिमरन पर बैठ गई हमें 2 घंटे आराम के लिए मिलते हैं मैंने सोचा कि क्यों ना 2 घंटे भजन सिमरन कर लिया जाए मालिक की याद में बैठा जाए तो मैं भजन सिमरन पर बैठ गई और मैंने सिमरन शुरू कर दिया जैसे कि बताया जाता है कि हम केवल सिमरन कर सकते हैं ध्यान हमारे बस की बात नहीं है वह तो मालिक की कृपा से ही हो सकता है हमें केवल और केवल सिमरन पर जोर देना है तो जैसे कि बताया जाता है मैंने वैसा ही किया मैं सतगुरु की कृपा से सिमरन करने लग गई जो शब्द हमें बताए जाते हैं वैसे वैसे मैंने किया लेकिन कुछ समय बाद ऐसा होता है कि नाम सिमरन हमसे छूट जाता है और हम कहीं और ही चले जाते हैं वह ऐसा इसलिए होता है क्योंकि मन हमारा टिकता नहीं मन इधर-उधर भटकता रहता है हम नाम सिमरन कर रहे होते हैं मन कहीं और भटक रहा होता है इसलिए तो कहा जाता है कि आप केवल नाम सिमरन पर ध्यान दें मन को नाम सिमरन पर केंद्रित करें तो मैं भी कोशिश करती थी कि मन को नाम सिमरन में लगाऊं लेकिन जब भी मैं नाम सिमरन करती कुछ देर तो सिमरन चलता रहता लेकिन थोड़ी देर बाद नाम सिमरन मुझसे छूट जाता और मेरा ध्यान कहीं और चला जाता और उस दिन भी माता जी के साथ ऐसा ही हुआ वह नाम सिमरन का जाप कर रही थी करीब आधे घंटे के बाद नाम सिमरन उनसे छूट गया आप जी कहती हैं कि जब ऐसा हुआ तो मेरी रूह कहीं और चली गई और मैं डर गई क्योंकि वह लोक ही ऐसा था यह देख कर मेरी चीख निकल गई और मैंने चिलाना शुरु कर दिया यह देखकर आसपास के सत्संगी इकट्ठे हो गए और वहां पर एक सत्संगी बुजुर्ग थे उन्होंने मुझे संभाला और जैसे-जैसे मेरा ध्यान नीचे आया मैंने आंखें खोली और मेरे सामने वह सत्संगी बुजुर्ग थे जो कि बहुत ही पहुंचे हुए लग रहे थे उन्होंने मुझसे बहुत ही प्यार से पूछा कि आप कहां रह गई थी जब यह उन्होंने मुझसे पूछा तो मैं यह सुनकर हैरान रह गई कि इन्हें कैसे पता है तो मैं समझ गई कि यह वाक्य ही पहुंचे हुए हैं और यह कहने के बाद उस सत्संगी बुजुर्ग ने माता जी से कहा कि आपने नाम सिमरन क्यों छोड़ा आपको नाम सिमरन नहीं छोड़ना चाहिए था केवल यही तो हमारी ताकत है यही तो हमारा सहारा है गुरु शब्द रूप में मौजूद है और जब तक नाम सिमरन हमारे साथ है कोई भी ताकत हमें हाथ नहीं लगा सकती हमारा कुछ नहीं बिगाड़ सकती, गुरु नाम सिमरन के माध्यम से इन शब्दों के माध्यम से हमारे साथ होता है और जब हमारा मन कहीं और भटक जाता है और नाम सिमरन हमसे छूट जाता है तो हम कहीं और ही चले जाते हैं हम भटक जाते हैं क्योंकि जब तक नाम रूपी शब्द हमारे साथ है तब तक हमारी संभाल होती रहती है हमें मार्गदर्शन प्राप्त होता रहता है हम चलते रहते हैं और जैसे ही हमारा मन भटक जाता है नाम सिमरन हमसे छूट जाता है हम भटक जाते हैं इसलिए हम चीखते चिल्लाते हैं तो हमें नाम सिमरन नहीं छोड़ना चाहिए नाम सिमरन हमारी ताकत है यह शब्द हमारी ताकत है इन्हीं के माध्यम से हमने उस कुल मालिक से मिलाप करना है इनमें बहुत ताकत है तो हमें नाम सिमरन नहीं छोड़ना, चाहे जो हो जाए, मन भटकता है तो इसे भटकने दें लेकिन हमें नाम सिमरन नहीं छोड़ना चाहिए तो साध संगत जी माताजी ने कहा कि ऐसे उस महापुरुष ने मेरा मार्गदर्शन किया और मुझे समझ आ गई मुझे ज्ञान हो गया, तो साध संगत हमें भी चाहिए कि हमें भी नाम सिमरन पर ध्यान देना चाहिए अगर हमारा मन भटकता है तो इसे नाम सिमरन पर केंद्रित करना चाहिए जो हमें नाम बताया जाता है हमें केवल उसी का सिमरन करते रहना चाहिए वह हम से छूटना नहीं चाहिए तो हमें भी इन बातों पर अमल कर कर उस कुल मालिक की भजन बंदगी करनी है नाम सिमरन पर ध्यान केंद्रित करना है शब्द की कमाई करनी है ।
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By Sant Vachan
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