गुरु प्यारी साध संगत जी यह साखी एक सच्ची घटना है आज इस साखी में हमें पता चलेगा कि अगर हमने नाम दान ले लिया है अगर हमें नाम की बख्शीश हो गई है तो हमें किन किन बातों का ख्याल रखना पड़ता है किन-किन चीजों का हमें ख्याल रखना पड़ता है ताकि जिन से हमने नाम लिया है जिनसे हमने नाम की बख्शीश ली है वह हमसे नाराज ना हो सके हमारा सतगुरु हमसे नाराज ना हो सके साध संगत जी आप जानते हैं कि अगर गुरु नाराज हो जाए गुरु अपने शिष्य से नाराज हो जाए तो शिष्य की क्या हालत होती है, उसके लिए फिर यह दुनिया कोई मायने नहीं रखती वह अपने मुर्शिद को मनाने के लिए कुछ भी करने के लिए तैयार हो जाता है आप बुल्ले शाह जी को देख सकते हैं कि जब उनके गुरु उनसे नाराज हो गए जिनसे उन्होंने नाम बक्शीश ली हुई थी, तो उनकी क्या हालत हुई, बुल्ले शाह जी को क्या क्या करना पड़ा था, क्या क्या उन्होंने नहीं किया था यहां तक कि वह कंजरी बनकर अपने गुरु के लिए नाचने लग गए थे उन्होंने अपने पैरों में घुंघरू डाल लिए थे कि जिसको नहीं भी पता उसको भी पता चल जाए कि गुरु का इश्क गुरु का प्यार क्या होता है अगर गुरु अपने शिष्य से नाराज हो जाए तो क्या उसकी हालत होती है यह आप जान सकते हैं तो आज इस साखी में हमें इसी के बारे में पता चलेगा तो साखी को पूरा सुनने की कृपालता करें जी ।
गुरु प्यारी साध संगत जी एक सत्संगी परिवार था जिन्होंने एक पूर्ण संत महात्मा की शरण ली हुई थी उन्होंने उनसे नाम दीक्षा भी ली हुई थी और वह संत एक पहुंचे हुए संत थे साध संगत जी हम पहुंचा हुआ उसे कहते हैं जो हमें मालिक से मिला दे जो उस कुल मालिक से मिला हुआ हो जिसने वह रास्ता तय किया हो, जिसने वह मंजिले जानी हो, जो पारब्रह्म तक गया हो, उसे हम एक पूर्ण संत महात्मा कहते हैं और जो पूर्ण संत महात्मा होते हैं वह हमें केवल नाम की कमाई में लगाते हैं वह हमें केवल और केवल अंदर जाने के लिए बोलते हैं नाम सिमरन करने के लिए बोलते हैं धुन को सुनने के लिए बोलते हैं वह हमें बाहर मुखी भक्तियों में नहीं लगाते, बाहर के कार्यों में नहीं लगाते वह हमें अंदर जाने का उपदेश देते हैं ज्यादा से ज्यादा भजन सिमरन करने का ज्यादा से ज्यादा नाम की कमाई करने का हमें उपदेश देते हैं उन्हें बाहर के कार्यों से कोई लेना देना नहीं होता वह ज्यादा जोर अंदर की तरफ देते हैं ताकि जीव का अंदर उस कुल मालिक के साथ मिलाप हो जाए जीव अंदर उस नामरूपी धुन को सुन ले और उसमें मोहित होकर उस कुल मालिक में मिल जाए यह एक पूर्ण संत महात्माओं की पहचान होती है कि वह अपने सत्संग में केवल नाम की चर्चा करते हैं नाम के बारे में ही बताते हैं और कोई बातें नहीं करते उनकी रहनी सहनी भी बहुत ही अलग होती है साध संगत जी ऐसे ही एक सत्संगी परिवार था जिन्होंने एक पूर्ण संत महात्मा से नाम दीक्षा ली हुई थी वह उनको कुल मालिक का रूप मानते थे और साथ ही साथ वह अन्य स्थानों की देवी देवताओं की पूजा भी करते थे और यह बात उनके गुरु जी को मालूम थी साध संगत जी जो एक पूर्ण संत महात्मा होता है वह कभी भी किसी को बुरा नहीं कहता कभी भी किसी को यह नहीं कहता कि तुम यह गलत कर रहे हो वह तो कहते हैं कि जो जहां पर लगा है वह ठीक है हम उसे गलत ठहरा नहीं सकते जो जहां पर लगा है वह ठीक है जो जिसकी पूजा कर रहा है वह ठीक है क्योंकि जिसको मालिक ने अपने से मिलाना होता है उस पर मालिक खुद अपनी कृपा करता है खुद उसको वह समझ देता है खुद उसको वह ज्ञान देता है तो मालिक से मिलना यह तो उसकी कृपा से ही हो सकता है और मालिक के नाम का ज्ञान मालिक की भजन बंदगी का ज्ञान भी उसकी कृपा से ही होता है तभी जीव उस राह पर चलता है मालिक हर पल उसकी संभाल करता है उसका मार्गदर्शन करता रहता है लेकिन हमें से कुछ जीव होते हैं जो डोल जाते हैं जिनको भरोसा नहीं होता जिनका मन डोल जाता है ऐसी परिस्थिति में अक्सर हम दूसरों के पास जाते हैं कि वह हमारी मदद करें साध संगत जी ऐसे ही वह सत्संगी परिवार भी था जिनका बहुत अच्छा बिजनेस था अच्छा काम उनका चल रहा था लेकिन जैसे कि आप जानते हैं कि बिजनेस में उतार-चढ़ाव तो चलते ही रहते हैं कुछ ना कुछ होता ही रहता है तो उन्हें बिजनेस में बहुत सारा नुकसान हो गया उनका घर तक दांव पर लग गया और जब ऐसी मुसीबत आई तो वह अपने गुरु जी के पास गए साध संगत जी उन्होंने कहा कि हमें डोलना नहीं है उस कुल मालिक पर विश्वास रखना है वह जो भी करता है ठीक ही करता है अगर वह एक रास्ता बंद कर देता है तो 10 और खोल देता है हमें उसकी भजन बंदगी को समय देना है बाकी कार्य उसका है हमें दिल नहीं छोड़ना हमें उस पर विश्वास रखना है उस पर भरोसा रखना है वह सब ठीक कर देगा जब यह बातें उनके गुरु जी ने उनसे कहीं तब वह घर आ गए और घर आकर उनके कुछ अन्य परिवार वालों ने पूछा कि गुरु जी ने क्या कहा तो उन्होंने कहा कि गुरु जी ने उपदेश दिया की मालिक पर भरोसा रखो उस पर विश्वास रखो मालिक सब ठीक कर देगा लेकिन इस बात को सुनकर उन्हें कोई तसल्ली नहीं हुई क्योंकि साध संगत जी जो मन है यह इतनी आसानी से काबू में नहीं आता, परिस्थिति को देखकर यह डोल ही जाता है, डोलना इसका सभभाव है तो ऐसे ही उनका मन भी डोल गया और उन्होंने दूसरे लोगों के पास जाना शुरू कर दिया और जैसे कि आप जानते हैं कि जब हम किसी के पास जाते हैं तो वह हमें जो जो कहते हैं वह हमें करना पड़ता है जो जो वह बताते हैं वह हमें करना पड़ता है तो ऐसे ही उन्होंने भी किया और इसकी खबर उनके गुरु जी को हो गई क्योंकि साध संगत जी जो संत महात्मा होते हैं उनसे कुछ छिपा नहीं होता उन्हें पूरे ब्राह्मण की खबर होती है कि कहां पर क्या हो रहा है लेकिन वह चुप रहते हैं कुछ बोलते नहीं, मालूम उन्हें सब होता है कि कहां पर क्या हो रहा है किस के मन में क्या चल रहा है तो ऐसे ही उन्हें खबर हो गई और वह मन ही मन मुस्कुराने लगे साध संगत जी जब किसी का बाप इतना बड़ा हो जब किसी का बाप राजा हो और उसके बच्चे भिखारियों की तरह भीख मांगे तब बाप को कैसा लगता है बाप के मन को ठेस तो पहुंचती ही है बाप कभी नहीं चाहेगा कि उसके बच्चे दर-दर भीख मांगे वह तो चाहता है कि मेरे बच्चे मुझ पर विश्वास रखें मेरे हुकम में रहे और धीरे-धीरे वह सब ठीक कर देता है लेकिन हममें से कुछ होते हैं जिनमें धैर्य नहीं होता वह फिर ऐसे कार्यों में लग जाते हैं तो जैसे जैसे उनको बताया जाता वह वैसे वैसे करने लगे, जब उन्होंने जैसे जैसे बोला गया सब कर दिया तो कुछ दिनों बाद वह अपने सतगुरु से मिलने उनके डेरे में गए और जब वह वहां पर गए तो वह साधु संत महापुरुष धूप का आनंद ले रहे थे सर्दियों का मौसम था धूप बहुत ही अच्छी निकली थी और वह धूप का आनंद ले रहे थे उनके डेरे में और कोई नहीं था वह अक्सर हफ्ते में एक या दो बार शरीर की मालिश करवाया करते थे क्योंकि साध संगत जी उनकी भजन बंदगी इतनी थी कि वह घंटों बैठे रहते, दिन रात का कोई हिसाब नहीं होता अगर मालिक की भजन बंदगी के लिए वह गए हैं तो पता नहीं कब लौट कर आएंगे इसका कोई समय बताया नहीं जा सकता, सेवादार उनके लिए खाना रख कर चले जाते हैं लेकिन खाना वैसे का वैसा पड़ा रहता है लेकिन उनके बाहर आने की कोई खबर नहीं होती तो संगत डेरे में जाती थी और बाहर से ही उनको नमस्कार कर कर आ जाती थी लेकिन उस दिन सौभाग्य से गुरुजी धूप का आनंद ले रहे थे तो उन्होंने उस परिवार के कुछ जीवो को अपने डेरे में सेवा में लगा दिया और उन्होंने बहुत ही प्यार से वहां पर सेवा की, परिवार के कुछ सदस्य गुरुजी की मालिश करने लग पड़े साध संगत जी उन्होंने मालिश करते वक्त देखा कि गुरु जी के पेट पर छाले पड़े हुए हैं, साध संगत जी उनकी भक्ति इतनी थी उनकी बैठक इतनी थी कि उनके पेट पर छाले पड़ जाते तो वह समझ गए कि गुरुजी की बैठक के कारण ही यह छाले पड़े हैं तो जब उन्होंने गुरुजी की मालिश कर दी तो जब शाम का समय हुआ तब सभी परिवार के सदस्य गुरुजी के पास आ गए और उन्होंने गुरु जी से घर जाने की आज्ञा ली गुरुजी ने उस समय वहां पर कहा कि हमें डोलना नहीं चाहिए लेकिन हम डोल जाते हैं करना तो उस कुल मालिक ने ही है जो भी करना है उसने ही करना है हम जो मर्जी कर ले, लेकिन होना उसकी मौज से ही है लेकिन फिर भी हम भूल जाते हैं जब मालिक ने हमारी बाजू पकड़ी है हमें अपनी शरण बक्शी है तब हम फिर क्यों डोलते हैं क्यों हम उसके भाने में नहीं रहते, जो भी देना है उसी ने देना है देने वाला एक है तो यह सब बातें सुनकर उनको पता चल गया कि गुरु जी हमें समझा रहे हैं और गुरु जी को पता चल गया है कि हमने क्या-क्या किया है तो उस परिवार के कुछ सदस्य तो रोने लग गए, गुरु जी की शरण में पड़ गए, गुरु जी के चरणो में पड़ गए और जोर जोर से रोने लगे कि हमें बख्श दो, हमें बख्श दो और कहा कि गुरु जी आप तो सब जानते हैं आपसे क्या छुपा है आप तो जानी जान हैं आप अंतर्यामी हैं लेकिन हम क्या करें हम तो एक साधारण मनुष्य जीव हैं मन हमारा वश में नहीं है डोल जाता है तो उस समय गुरु जी ने उन्हें आशीर्वाद दिया कि सब ठीक हो जाएगा और उसके बाद उनका बिजनेस जो एक प्रकार से खत्म ही हो गया था वह धीरे-धीरे ठीक होने लगा उन्हें समझ में आने लगा कि गुरु जी की कृपा से ही हो रहा है और जो उनके काम रूके हुए थे वह सब होने लगे तो वह अच्छी तरह से समझ गए थे कि अगर मांगना है तो कुल मालिक से मांगना चाहिए देने वाला वह एक ही है क्यों ना उससे सीधा ही मांग लिया जाए, देना तो उसने ही है जो भी देता है वही देता है, जैसे की वाणी में आया है "दद्दा दाता एक है सबको देवन हार" और वाणी में यह भी फरमाया गया है कि वह मालिक तो हमें शुरू से ही देता आया है और देता आ रहा है उसने देते देते हमें नहीं थकना हमने लेते लेते थक जाना है उसकी कृपा अपार है उसके पास किसी चीज की कोई कमी नहीं है तो हमें उसकी शरण लेनी चाहिए जो भी हमारी अरदास विनती होती है उससे की जानी चाहिए क्योंकि मुश्किल के समय बाप ही अपने बच्चों की सहायता करता है साध संगत जी हमें भी उस कुल मालिक के भजन बंदगी करनी है उसके भाने में रहना है रोजाना उसकी भजन बंदगी को समय देना है अपनी हर मुश्किल उससे सांझा करनी है और उस पर भरोसा रखना है उस पर विश्वास रखना है डोलना नहीं है साध संगत जी वह सब जानता है उसको पता है कि मेरे बच्चे दुखी हैं परेशान है तो वह कोई ना कोई रास्ता निकाल ही देता है मार्गदर्शन कर ही देता है कोई भी बाप अपने बच्चों को दुखी देखकर खुश नहीं हो सकता तो हमें भी उस पर भरोसा रखना है वह हमारी पुकार सुनता ही सुनता है और हर पल हमारी संभाल करता है और करता आया है ।
साध संगत जी इसी के साथ हम आपसे इजाजत लेते हैं आगे मिलेंगे एक नई साखी के साथ,अगर आप साखियां, सत्संग और सवाल जवाब पढ़ना पसंद करते है तो आप नीचे E-Mail डालकर इस Website को Subscribe कर लीजिए, ताकि हर नई साखियां, सत्संग और सवाल जवाब की Notification आप तक पहुंच सके ।
By Sant Vachan
0 Comments
Please do not enter any spam link in the comment box.