गुरु प्यारी साध संगत जी आज की साखी एक सच्चे नाम अभ्यासी, सिमरन करने वाले एक सत्संगी बुजुर्ग से संबंधित है जिन्होंने अपनी जवानी में मालिक की तरफ ध्यान तो नहीं दिया केवल अपने घर परिवार के बारे में सोचते रहे अपने बच्चों के बारे में सोचते रहे कि मैं इनको सभी सुविधाएं प्रदान कर सकूं ताकि इनकी जिंदगी अच्छी हो जाए इन्हें कोई मुश्किल ना हो इन्हें आगे जिंदगी में कोई मुश्किल ना आए इसलिए उन्होंने अपनी जिंदगी में बहुत मेहनत की और अपनी उस मेहनत के कारण उन्होंने बहुत कुछ अपने परिवार वालों के लिए बना दिया उनकी जिंदगी को आसान बना दिया उन्हें एक अच्छा रोजगार दे दिया उनकी जिंदगी को एक अच्छी ऐशो आराम की जिंदगी बना कर रख दिया लेकिन जब अंतिम समय आया जब बुढ़ापा आया तो उनके साथ क्या-क्या हुआ आज इस साखी में हमें पता चलेगा तो साखी को पूरा सुनने की कृपालता करें जी ।
गुरु प्यारी साध संगत जी जैसे की हम सभी जानते हैं कि जब हमारी अवस्था बालपन की होती है तब हमारे ऊपर इतनी जिम्मेदारियां नहीं होती हम अपने माता पिता पर निर्भर होते हैं हमारे ऊपर किसी तरह की कोई भी जिम्मेवारी नहीं होती हमारा बचपन एक प्रकार से खेलकूद में ही चला जाता है इसलिए तो कहा जाता है कि बचपन का जो समय होता है वह सबसे अच्छा होता है ना कोई जिम्मेवारी, ना कोई परेशानी, केवल खेलना कूदना और अपने दोस्तों के साथ समय बिताना और उसके बाद जवानी आती है जवानी में हमें बहुत कुछ सीखने को मिलता है बहुत कुछ जानने को मिलता है हमें समझ आ जाती है हमें समाज के बारे में पता चल जाता है कि हमें समाज में कैसे रहना है कौन-कौन से काम हमें करने हैं कौन-कौन से काम हमें नहीं करने इसके बारे में पता चलता है बहुत सारी जानकारियां हमें समाज से हासिल होती हैं बहुत कुछ हमें हमारे माता-पिता से सीखने को मिलता है उस समय हमारे अंदर एक अलग ही प्रकार की ऊर्जा होती है एक शक्ति होती है जो हमें कुछ करने के लिए प्रेरित करती है वह ऊर्जा सभी के अंदर होती है जब हमारे ऊपर जवानी आती है लेकिन कुछ ही लोग होते हैं जो इस शक्ति को इस ऊर्जा को एक सही मार्ग दे पाते हैं एक सही रास्ता दिखा पाते हैं नहीं तो हम में से बहुत ऐसे हैं जो इसको जाया कर देते हैं इसको व्यर्थ कर देते हैं साध संगत जी जो जवानी का समय होता है वह समय मालिक की याद के लिए मालिक की भजन बंदगी के लिए बहुत ही अच्छा समय माना गया है क्योंकि साध संगत जी जवानी में हमारे अंदर किसी चीज की कमी नहीं होती
हमारे अंदर ऊर्जा का स्रोत होता है हम किसी काम को कितनी देर तक करें लेकिन हमें किसी तरह की कोई थकान नहीं होती, हमारा शरीर भी मजबूत होता है उस समय हमारे सभी अंग अच्छे से विकसित हो जाते हैं किसी तरह की बीमारी हमें तब नहीं होती क्योंकि हमारा शरीर ऊर्जावान होता है तब हम इसे कहीं पर भी लगा दें लेकिन हमारा शरीर थकता नहीं लेकिन जब बुढ़ापा आ जाता है तब तरह-तरह की बीमारियां हमें लग जाती हैं, तरह तरह के रोग हमें लग जाते हैं जिसके कारण भजन सिमरन तो हमसे होता नहीं और हम अपना जीवन जाया कर चले जाते हैं इसलिए तो कहा जाता है कि जवानी का समय मालिक की याद के लिए सबसे उत्तम समय है हम मालिक की भजन बंदगी अगर जवानी से ही शुरु कर ले मालिक का नाम सिमरन जवानी से ही करना शुरू कर दें तो मालिक हर पल हमारी संभाल करता है हमारे हर एक निर्णय पर हमारे साथ होता है हमें कभी भी गलत राह पर नहीं जाने देता वह हमारा मार्गदर्शन बन जाता है हमें हर तरह का मार्गदर्शन वह प्रदान करता है साध संगत जी जवानी का समय ऐसा है कि हमारे मन के अंदर तरह-तरह के विचार आते हैं कुछ बुरे विचार होते हैं कुछ अच्छे विचार होते हैं और उस समय पूरी तरह से हमारे ऊपर ही निर्भर करता है कि हमें किन के साथ जाना है उस समय हमें एक सहारा चाहिए होता है कि हमें कोई मार्गदर्शन करने वाला हो अगर उस समय हम उस कुल मालिक की भजन बंदगी करनी शुरू कर दें तब हमें वह मार्गदर्शन भी प्रदान करता है और हर पल हमारे अंग संग सहाई रहता है किसी चीज की कमी हमें नहीं रहने देता और उस समय हम जितना चाहे भजन सिमरन कर सकते हैं और उस समय हमारी सूरत भी लग जाती है रूह की चढ़ाई भी हो जाती है और किसी तरह की कोई भी शिकायत नहीं रहती उस समय कहा जाए तो मालिक की कृपा हम पर अपार रहती है अगर हमने जवानी के समय में उस कुल मालिक को याद किया है तो वह जीव बहुत ही भागो वाले होते हैं कुल मालिक की उन पर कृपा होती है मालिक का हाथ ऊपर होता है वह कभी गलत राह पर नहीं चलते वह खुद भी नाम सिमरन करते हैं और दूसरों को भी करने के लिए प्रेरित करते हैं और अगर वह शुरू से ही नाम सिमरन करते आ रहे हैं और जब उन्हें नामदान की बख्शीश हो जाती है नाम मिल जाता है तब उन्हें बैठने में भी कोई तकलीफ नहीं होती क्योंकि वह पहले से ही करते आए हैं उनका अभ्यास पका हुआ है बना हुआ है उनकी बात जल्दी बन जाती है गुरु की कृपा उन पर हो जाती है मालिक की कृपा उन पर हो जाती है उनका कुल मालिक से जल्दी ही मिलाप हो जाता है उदाहरण के तौर पर कहा जाए कि हमने पहले से ही तैयारी कर रखी थी और जिस समय हमें नाम मिला उस कुल मालिक की कृपा हो गई अभ्यास पका हुआ था रूह की चढ़ाई जल्दी हो गई मालिक से मिलाप हो गया, अंदर पर्दा खुल जाता है और फिर आनंद ही आनंद है महा आनंद है लेकिन जो इस जवानी के समय को जाया कर देते हैं व्यर्थ गवा देते हैं उन्हें बुढ़ापे में एक मौका मिलता है कि वह नाम की कमाई कर कर उस कुल मालिक में मिल जाए उसे मिलाप कर ले लेकिन इस समय हमारा शरीर हमें जवाब दे देता है वह हमारा साथ नहीं देता तरह-तरह की बीमारियां हमें लग जाती हैं जिसके कारण हमारी बैठक नहीं हो पाती तो साध संगत जी ऐसे ही एक सत्संगी बुजुर्ग थे जिन्होंने जवानी में खूब मेहनत की कमाई की, अच्छा घर बार बना लिया अच्छा कारोबार खड़ा कर लिया लेकिन वह नाम की कमाई से दूर रह गए अगर उन्होंने उस समय नाम की कमाई की होती शब्द की कमाई की होती तो वह "सोने पर सुहागे जैसी बात होती" लेकिन उन्होंने केवल दुनिया में सब कुछ मिल जाए इसी बात पर ध्यान दिया और अपने परिवार के लिए अपने बच्चों के लिए उन्होंने पूरी जिंदगी कड़ी मेहनत की उन्हें हर एक सुविधा प्रदान की, उनकी एक लड़की थी और एक लड़का था और वह अपने लड़के से ज्यादा प्रेम करते थे जैसा कि अक्सर होता आया है वह शुरू से ही लड़के से प्रेम करते थे और उनकी लड़की की शादी हो गई थी और वह अपने लड़के के साथ रहते थे जब भी बात नाम की कमाई की आती थी शब्द की कमाई की आती थी परमार्थ की बात आती थी रूहानियत के बारे में जब उनके सामने चर्चा होती थी तब वह कहा करते थे कि कोई बात नहीं बुढ़ापे में कर लेंगे बहुत समय पड़ा है तो जब उन पर बुढ़ापा आया तो वह अपने लड़के के साथ रहते और उन्होंने रोहनियत की तरफ ध्यान देना शुरू कर दिया था क्योंकि उन्हें मालूम हो गया था कि मेरा अंतिम समय नजदीक है और अगर मैं इस समय को संभाल पाऊ, उतना ही मेरे लिए अच्छा है अगर मैं अब नाम की कमाई कर लूं शब्द की कमाई कर लूं तो मालिक की कृपा मेरे ऊपर जरूर होगी तो उन्होंने उस समय को संभालना शुरू कर दिया वह दिन भर नाम के बारे में चर्चा करते कुल मालिक की बातें करते और जैसे-जैसे आस-पड़ोस के लोगों को मालूम होने लगा कि वह बुजुर्ग रूहानियत की चर्चा करते हैं नाम की चर्चा करते हैं तो उनके घर में कुछ सत्संगी आ जाया करते उनसे वार्तालाप करने आ जाया करते तो यह बात उनके लड़के को अच्छी नहीं लगती उसने बहुत बार बोला भी कि आप ऐसा मत करा करें लोगों को अपने घर ना आने दिया करें आप ऐसा क्यों करते हैं इसी बात को लेकर वह थोड़ा सा अपने पिता से नाराज रहता था लेकिन जैसे कि आप जानते हैं जो मालिक के प्यारे होते हैं मालिक के नाम की चर्चा करते हैं तो लोग उनसे अपने आप ही जुड़ जाते हैं लोगों से रहा नहीं जाता वह ऐसे मालिक के प्यारों के पास भाग भाग कर जाते हैं तो ऐसे ही रोज उनके घर पर लोग आ जाया करते उनके पिता से नाम के बारे में पूछते चर्चा करते कुल मालिक की बातें करते, साखियां पढ़ते सुनते ताकि जितना हो सके इस समय को संभाला जा सके और ध्यान को मालिक की तरफ किया जा सके इसी बात को लेकर लड़के को बहुत गुस्सा आ जाता है कभी-कभी अपने पिता से झगड़ भी बैठता और उन्हें उल्टा सीधा बोल देता इस बात का उन्हें बहुत दुख हुआ करता और एक दिन उनका चश्मा टूट गया और उन्होंने अपने लड़के को कहा कि बेटा मेरा चश्मा टूट गया है तो क्या तू इसे बनवा लाएगा जब उन्होंने अपना टूटा हुआ चश्मा लड़के के हाथ पर रखा तो लड़के ने जोर से चश्मा फेंक दिया और कहा कि मेरे पास इतना समय नहीं है कि आपके चश्मे बनाता फिरू, खुद बना लो और इसी बात को लेकर उसके पिता ने भी कह दिया क्या तुझे इसलिए इतना बड़ा किया था कि तू आज मेरे ही सामने बोले, मेरे ही सामने आवाज उठाए, तो लड़के को और गुस्सा आ गया उसने अपने पिता को घर से निकाल देने की बात कही और जब यह बात कही तो लड़की को पता चल गया कि भैया पिताजी को घर से निकाल देंगे तो लड़की तुरंत उनके पास आ गई और पिताजी को अपने साथ ले गई और वे उनके साथ चले गए और जब वह लड़की के घर पर गए साध संगत जी वहां पर भी ऐसे ही उनका मेल मिलाप कुछ सत्संगी भाइयों से हो गया जब उनको भी पता चला कोई महापुरुष नाम की कमाई करते हैं नाम की चर्चा करते हैं तो वहां पर भी कुछ सत्संगी लोग उनके घर पर आने लगे लड़की को मालूम था कि मेरे पिताजी अब रूहानियत की तरफ ध्यान देने लगे हैं तो लड़की इस बात को लेकर बहुत खुश थी वह भी उनसे इसके बारे में चर्चा करने लग जाती और उसके पिता इसी बात को लेकर बहुत खुश होते और उनके मन में एक बात आई कि मैंने जिंदगी भर अपने बच्चों के लिए बहुत कुछ किया लेकिन मुझे मिला कुछ भी नहीं, एक प्रकार से कहूं तो मैंने अपना जीवन व्यर्थ किया है अगर मैंने जवानी में उस कुल मालिक को याद किया होता उस मालिक की याद में समय दिया होता तो मेरी आज यह अवस्था नहीं होनी थी मेरी अवस्था कुछ और होनी थी, सच में आज मैं जान गया हूं कि यहां पर सब मतलब के रिश्ते हैं मोह माया है एक मालिक ही है जो सत्य है एक वही है जो संभाल करने वाला है बाकी तो सब गरजों के रिश्ते हैं, क्या-क्या मैंने अपने परिवार और घर के लिए नहीं किया इतनी कड़ी मेहनत की लेकिन आज मुझे ही उस घर से निकाल दिया गया और अपनी बेटी को उन्होंने कहा कि मैं सबसे ज्यादा प्रेम लड़के को करता था लेकिन आज मैं कहता हूं, जितना लड़कियां अपने मां बाप के बारे में सोचती हैं लड़के नहीं सोच सकते यह शुरू से ही होता आया है तो साध संगत जी उनकी आंखों में भी आंसू आ गए कि मेरी बेटी ने मुझे संभाला है मुझे अपने घर ले आई, और उस समय उन्होंने अपनी लड़की को गले लगाया, संगत जी उन्हें नाम मिल चुका था और उस समय उनका जोर केवल नाम की कमाई की तरफ था तो वह पूरा पूरा दिन नाम की कमाई पर लगे रहते भजन सिमरन करते रहते वह अपने कमरे से बाहर नहीं निकलते थे उनसे बैठा तो नहीं जाता था लेकिन वह एक कुर्सी पर बैठकर भजन सिमरन करते थे नाम की कमाई करते थे वह घंटों उस कुर्सी पर बैठे रहते और नाम की कमाई करते रहते उनकी लड़की को पता था कि पिताजी भजन सिमरन कर रहे हैं तो वह भी उन्हें ज्यादा परेशान नहीं करती और वह अपनी लड़की से बहुत खुश थे एक दिन उन्होंने अपनी लड़की को कहा कि मेरा समय पूरा हो गया है मुझे अब जाना होगा मुझे सतगुरु ने बोल दिया है कि मैं तुझे इस तारीख को लेने आऊंगा , तो मुझे अब जाने की तैयारी करनी होगी यह बात सुनकर लड़की की आंखों में आंसू आ गए और वह अपने पिताजी के सामने रो पड़ी और उनके गले लग गई और उन्होंने अपनी लड़की को आशीर्वाद दिया तो साध संगत जी ऐसे ही कुछ दिनों के बाद वह कमरे से बाहर नहीं आए अंदर ही कुर्सी पर बैठे रहे क्योंकि साध संगत जी जब नाम के अभ्यासी को पता चल जाता है कि मेरा अंतिम समय नजदीक है वह ज्यादा से ज्यादा समय नाम सिमरन को देने लगता है वह एक पल भी व्यर्थ नहीं गंवाना चाहता तो वह अपने कमरे से नहीं निकले कुर्सी पर बैठे रहे लड़की को पता चल गया कि आज बहुत समय हो गया है लेकिन पिताजी बाहर नहीं आए और जब वह उनके कमरे में गई
तो उनके पिताजी कुर्सी पर बैठे थे और उनके चेहरे पर एक मुस्कान थी आंखों में आंसू थे आंखें बंद थी ऐसे लग रहा था की सतगुरु आए हैं और बड़े ही प्यार से उन्हें लेकर सचखंड चले गए और सतगुरु का वह स्वरूप देखकर उनकी आंखों में आंसू आ गए और इसलिए उनके चेहरे पर ऐसी मुस्कुराहट है , ऐसे उनकी मृत्यु हुई, नहीं तो साध संगत जी मृत्यु के समय कौन मुस्कुराता है मुस्कुराता वही है जिसने नाम की कमाई की होती है शब्द की कमाई की होती है जिसने जीते जी मर कर देखा होता है ,जिसने अपना पूरा जीवन दुनिया को दे दिया, दुनिया के कार्य को दे दिया और नाम की कमाई नहीं की, वह मृत्यु के समय रोता है चिल्लाता है लेकिन जो नाम के अभ्यासी है नाम की कमाई करने वाले हैं वह तो मुस्कुराते हैं क्योंकि उन्होंने सत्य को जान लिया होता है उन्हें कोई तकलीफ नहीं होती जैसे कि कबीर साहिब जी का कहना है "जिस मरने ते जग डरे मेरे मन आनंद मरने ही ते पाइए पूर्ण परमानंद"
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By Sant Vachan
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