एक सत्संगी का शराब पीकर 2.30 घंटे भजन सिमरन करना । ये लीला जरूर सुने


गुरु प्यारी साध संगत जी आज की साखी एक शराबी की है, एक शराबी था जिसने एक पूर्ण संत महात्मा से नाम लिया हुआ था और उसको रोजाना शराब पीने की आदत थी, वह बहुत कोशिश करता था कि उसकी शराब छूट जाए उसकी यह बुरी आदत छूट जाए लेकिन ऐसा नहीं हो पाता था इसी बात को लेकर उसे अपने आप पर घृणा भी आती थी कि मेरे से शराब क्यों नहीं छूट रही है जबकि मुझे नाम मिला हुआ है मैंने हर एक पर्यतन कर कर देख लिया है लेकिन मेरी यह बुरी आदत नहीं छूट रही, और वह अपनी इस बुरी आदत से बहुत परेशान हो गया था
तो उसने एक दिन तय किया कि वह अपने सतगुरु के पास जाएगा और उनके सामने अपनी यह समस्या रखेगा अब केवल सतगुरु ही उसकी इस समस्या का हल निकाल सकते हैं तो वह अपने सतगुरु के पास गया, साध संगत जी आप तो जानते ही हैं कि जो पूर्ण संत महात्मा होता है वह चाहे तो एक चुटकी में सब कुछ ठीक कर सकता है लेकिन वह ऐसा करते नहीं है नहीं तो उनके पास लोगों की लाइनें लगी ही रहेगी इसलिए वह हमें खुद सुधार करने के लिए बोलते हैं तो जब वह अपने गुरु जी के पास गया,और वहां जाकर उसने सतगुरु से कहा कि हे महाराज मेरी शराब पीने की आदत नहीं जाती मेरी शराब छूटती ही नहीं, यह बात उनको भी पता थी पहले तो वह थोड़ा सा मुस्कुराए और फिर उन्होंने कहा, तू इसकी फिक्र ही छोड़ दे, छोड़ना भी क्या है ? शराब ही पीता है, किसी का खून तो नहीं पी रहा, वह थोड़ा चौंका, उसने कहा, लेकिन शराब बड़ी बुरी चीज है  उन्होंने कहा, मालूम है बुरी है, बुरी है पर ज्यादा ध्यान मत दे, क्योंकि जीवन के बड़े जटिल नियम हैं, अगर तुम बुरे को छोड़ने पर ज्यादा ध्यान दोगे, तो तुम बुरे से ही आविष्ट होते जाओगे, जिस चीज पर ध्यान दोगे, उसी से सम्मोहन हो जाता है, आंख लगाकर देखते रहो किसी चीज को, तुम उसके प्रभाव में पड़ जाते हो, तू छोड़ दे फिक्र, शराब की फिक्र मत कर, मालिक की भजन बंदगी की फिक्र कर, तेरी जीवन—ऊर्जा उसकी तरफ जाने लगे, किसी दिन अपने आप तू पाएगा, शराब गई । पता भी नहीं चलेगा, कैसे छूटी, पता चले, तो मजा ही नहीं रहा, छोड़ना पड़े, तो बात ही क्या हुई, छोड़—छोड़कर छोड़ी, तो क्या खाक छोड़ी, छोड़ी ही नहीं, छोड़—छोड़कर छोड़ी, तो रेखा छूट जाएगी, घाव बन जाएगा ,घाव बन जाए सदा के लिए, वह उचित नहीं है। फिर कभी गिरने का डर रहेगा, छूटनी चाहिए, छोड़नी नहीं चाहिए । कुछ विराट मिले, कुछ बड़ा मिले, तो छूट जाए, अपने आप छूट जाती है, इस संसार में कुछ भी नहीं है, जो तुम्हें परमात्मा के पास जाने से रोक सके, हाँ , तुम ही रुकना चाहो, तो बात अलग, लेकिन जब तुम मेरे पास आए हो, तो उसका अर्थ है कि तुम जाना चाहते हो, बात पूरी हो गई, तुम तामसी हो, कि राजसी, कि सात्विक, कुछ अंतर नहीं पड़ता, तुम जहां हो, मैं वहीं से काम शुरू करता हूं, मेरे द्वार सबके लिए खुले हैं, साध संगत जी अपने सतगुरु के इस प्रवचन को सुनने के बाद उसने मालिक की भजन बंदगी की तरफ ध्यान देना शुरू कर दिया वह रोजाना भजन बंदगी पर बैठने लगा उसकी यह बुरी आदत एक ही दिन में तो खत्म नहीं हुई, कुछ समय जरूर लगा लेकिन उसने अपने गुरु का हुक्म मान कर मालिक की भजन बंदगी की तरफ ध्यान दिया, रोजाना मालिक को समय देना शुरू किया और धीरे-धीरे वह समय बढ़ाता गया और उसे रस आना शुरू हो गया वह रोजाना भजन सिमरन पर बैठता क्योंकि अब उसे रस आना शुरू हो गया था और जब किसी अभ्यासी को अंदर रस आना शुरू हो जाए तो फिर वह पीछे मुड़कर नहीं देखता वह आगे ही आगे बढ़ता है पीछे देखने का कोई सवाल भी नहीं रहता उसे आनंद आने लगता है वह आगे बढ़ता चले जाता है तो ऐसे ही उसे भी जब अंदर से आनंद आना शुरू हो गया वह आगे बढ़ता गया और धीरे-धीरे करके उसकी शराब पीने की आदत छूट गई क्योंकि अब उसे कुछ बड़ा मिल चुका था अब उसे कुछ विराट मिल गया था जिसकी वजह से उसकी ये बुरी आदत छूट गई, छूटने का कारण भी है क्योंकि जब हमें कुछ विराट मिल जाता है कुछ बड़ा मिल जाता है तभी हम छोटे को छोड़ सकते हैं छोटे मजे छोड़े जा सकते हैं तभी, जब कोई बड़ा मजा मिले छोटे रस छोड़े जा सकते हैं तभी, जब कोई बड़ा आनंद मिले तो ऐसे ही उसे भी उस कुल मालिक के नाम का रस हासिल हुआ जिससे ऊपर और कोई रस नहीं है तो यह जो छोटे-मोटे जो मज़े थे वह उसके अपने आप ही छूट गए क्योंकि अब उसे परमात्मा रूपी आनंद मिल चुका था और वह उस नाम धुन में लीन होता जा रहा था और यह केवल गुरु की कृपा के कारण ही हुआ इसलिए तो फरमाया जाता है कि अगर हमें इस भवसागर से कोई पार लेकर जाने वाला है तो वह केवल एक पूरा गुरु ही है जो हमें एक सही मार्ग दे सकता है हमारा मार्गदर्शन कर सकता है और उसकी कृपा से हम इस भवसागर को पार कर सकते हैं गुरु के बिना इस मार्ग पर चलना नामुमकिन है उसकी कृपा के बिना हम इस मार्ग पर नहीं चल सकते गुरु का मार्गदर्शन होना बहुत जरूरी है इसलिए हमें भी अपने सतगुरु के हुक्म की पालना करनी है उनके भाने में रहना है और उनकी खुशियां प्राप्त करनी है ।

साध संगत जी इसी के साथ हम आपसे इजाजत लेते हैं आगे मिलेंगे एक नई साखी के साथ,अगर आप साखियां, सत्संग और सवाल जवाब पढ़ना पसंद करते है तो आप नीचे E-Mail डालकर इस Website को Subscribe कर लीजिए, ताकि हर नई साखियां, सत्संग और सवाल जवाब की Notification आप तक पहुंच सके ।

By Sant Vachan

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