माता का रूहानी सफर । जब 4 घंटे भजन सिमरन करने वाली सत्संगी माता ने अपने रूहानी अनुभव सांझा किए ।

गुरु प्यारी साध संगत जी यह अनुभव एक सत्संगी द्वारा फरमाए गए हैं जिनकी रोजाना 4 घंटे की भजन बंदगी है जो कि बताए गए समय से 2 गुना है वह एक माताजी हैं जिनकी आयु 50 वर्ष के आसपास है जिन्हें 35 वर्ष की आयु में नाम मिला साध संगत जी उन्होंने नाम लेने के बाद जैसे बताया जाता है वैसे ही किया उन्होंने रोजाना मालिक की भजन बंदगी को समय दिया, जिस आसन में बैठने के लिए बोला जाता है उस आसन में बैठकर उन्होंने मालिक की भजन बंदगी की और जैसे नाम सिमरन को जपने के लिए बोला जाता है वैसे ही उन्होंने किया जैसे-जैसे बताया जाता है उन्होंने बिल्कुल वैसे ही किया और आज उन पर मालिक की कृपा है बहुत सारे सत्संगी उनके पास आते हैं उनसे अपने निजी अनुभव सांझा करते हैं और माता जी उनको इस मार्ग के बारे में बताती हैं कि कैसे हमें इस पर चलना है किन किन बातों का ध्यान रखना है तो यह सारी बातें माताजी ने अपने अनुभवों में सांझा की तो साध संगत जी वीडियो को पूरा सुनने की कृपालता करें जी

गुरु प्यारी साध संगत जी माता जी को 35 वर्ष की आयु में ही नाम मिल गया था और उसके बाद उन्होंने अपना रूहानी सफर शुरू किया, मालिक की याद में बैठना शुरू किया बिना नागा उन्होंने भजन बंदगी की, माताजी यह बात बहुत जोर देकर कह रही थी कि अगर हम इस मार्ग पर चलने के लिए तैयार है अगर हमने नाम ले लिया है कुल मालिक की शरण हमें मिली हुई है एक पूर्ण संत महात्मा की शरण हमें मिली हुई है और हमने नाम ले लिया है तो हमें यह बात पक्की कर लेनी चाहिए कि हमें उनकी बताई गई बातों पर चलना है जैसे कि वह कहती हैं रोजाना भजन बंदगी करनी है और बिना नागा करनी है इस बात का पूरा ख्याल रखना है कि कभी भी भूल कर भी कोई दिन ऐसा ना हो जिस दिन उस कुल मालिक की याद में ना बैठा जाए या फिर उसकी याद ना आए, ऐसा भूल कर भी कभी भी कोई दिन ना आए, जिस दिन हम उसकी याद में ना बैठ सके, इस बात पर उन्होंने जोर देकर कहा कि हममें से कुछ अभ्यासी हैं जो कि ऐसे करते हैं उनका कभी-कभी नागा भी पड़ जाता है जो कि ठीक नहीं है उस नागे की भरपाई हमसे नहीं हो पाएगी हमारा कितना नुकसान हो गया हम नहीं जानते हम कितने पीछे चले गए या फिर हम कितने पीछे रह गए यह हम नहीं जानते यहां पर आप जी ने उदाहरण देकर बताया कि जैसे कि एक गाड़ी सड़क पर जा रही है और उस गाड़ी की स्पीड बहुत ज्यादा है और वह सड़क पर बहुत ही रफ्तार से आगे बढ़ रही है और उस गाड़ी का ड्राइवर यह सोचे कि अब मैं रुक जाता हूं कल दोबारा से चलूंगा तो उन्होंने कहा कि वह गाड़ी रोक लेता है और जब वह दोबारा चलता है तो उस गाड़ी का उतना ही जोर लगता है जिसका उतना पहले लगा था क्योंकि अब गाड़ी रुक गई है उसे वापस उसी रफ्तार में आने के लिए समय लगेगा और वह समय कितना हो सकता है इसके बारे में कुछ कहा नहीं जा सकता इसलिए ऐसे ही हमें भी बिना नागा भजन सिमरन करना है क्योंकि हम नहीं जानते कि हमारी रोहानियत में कितनी तरक्की हुई है या फिर हो रही है क्या पता हम तरक्की की राह पर हो और दूसरे दिन हम भजन सिमरन पर ना बैठे और हमारा नुकसान हो जाए तो इसी बात का हमें ख्याल रखना है उसके बाद नाम सिमरन का जाप करना है जैसे बताया जाता है वैसे ही करना है जैसे जैसे हम नाम सिमरन करते जाएंगे मालिक की कृपा से ध्यान आना शुरू हो जाएगा और जब ध्यान आना शुरू हो जाता है तब पैरों के तलवों से रूह सिमटकर ऊपर आती है पैरों के तलों से जब रूह ऊपर उठती है तब हमें एक हल्का पन महसूस होता है जैसे कि हम बहुत ही हल्के हो गए हैं वह ऐसा इसलिए होता है क्योंकि हमारा शरीर छूटने लगता है और उस समय हमें आनंद भी आता है जैसे-जैसे रूह पैरों के तलवों से ऊपर उठती है और नाभि तक आती है उसके बाद का जो सफर है वह तो मालिक की कृपा से हो जाता है लेकिन पैरों के तलवों से ऊपर उठना यहां पर जीव को मुश्किल होती है क्योंकि हमें इसके बारे में कोई अनुभव नहीं होता लेकिन जो पूर्ण संत महात्मा होते हैं उन्हें नीचे से ऊपर आने में कोई समय नहीं लगता वह एक पल में ऊपर चले जाते हैं और दूसरे पल में नीचे आ जाते हैं वह जहां रहते हुए भी उस कुल मालिक से जुड़े हुए हैं लेकिन हमें समय लगता है क्योंकि हमने कोई अभ्यास नहीं किया होता हम इस मार्ग पर नए होते हैं तो जब रूह ऊपर चढ़ती है तब समय तो लगता ही है और हमारा शरीर सुन्न होना शुरू हो जाता है जब ऐसा होने लग जाए तब हमें समझ जाना चाहिए कि मालिक की कृपा से बात बनने लगी है, पैरों के तलवों से ऊपर उठकर दोनों आंखों के पीछे तीसरे तल पर आना है अगर इतना सफर उस मालिक की कृपा से हो जाए तो आगे मालिक खुद संभाल करता है केवल यही सफर है जो हमसे बहुत मुश्किल से होता है बहुत समय लग जाता है लेकिन जब हम तीसरे तिल पर आ जाते हैं उसके बाद सतगुरु खुद हमारी संभाल करते हैं उस सफर में सतगुरु हमारे साथ होते हैं वह सफर बहुत ही बारीक है जैसे कि अक्सर फरमाया जाता है कि वह सफर ऐसा है जैसे एक सुई की नोक हो, सच में वह सफर बहुत ही बारीक है वहां पर चलने के लिए हमें शून्य हो जाना पड़ता है तभी हम उस पर चल पाएंगे नहीं तो हम चल नहीं पाएंगे वह सफर इतना बारीक है कि कुछ कहा नहीं जा सकता उस सफर में सतगुरु हमारे साथ होते हैं और सतगुरु हमारी संभाल करते हैं इसलिए तो कहा जाता है कि "बिन सतगुरु नाम ना जापे" क्योंकि यह रोहानियत का सफर ऐसा है जिसमें सतगुरु का होना बहुत ही जरूरी है बिना सतगुरु के हम यह सफर नहीं कर सकते हम भटक जाएंगे जैसे कि अक्सर होता है कुछ अभ्यासियों का कहना है कि मुझे यह मुश्किल आ रही है और रास्ते में हमें बहुत कुछ देखने को मिलेगा, बहुत सारी चीजें रास्ते में आएंगी, बहुत मुश्किलें आएंगी लेकिन अगर हमारी बाजू सतगुरु ने पकड़ी है तो सतगुरु हमें सीधा पारब्रह्म लेकर जाते हैं अगर हम भटक गए अगर हमने दूसरी तरफ ध्यान दिया तो हम वही भटक जाएंगे जैसे कि होता भी है कुछ अभ्यासी रिद्धि सिद्धि में पड़ जाते हैं क्योंकि वह चीजें हमें आकर्षित करती हैं इस मार्ग में बहुत कुछ है बहुत कुछ देखने को मिलेगा बहुत कुछ अनुभव करने को मिलेगा हम अकेले इस मार्ग पर नहीं चल सकते, सद्गुरु की कृपा होनी बहुत ही जरूरी है सतगुरु की संभाल के बिना हम इस मार्ग पर नहीं चल सकते सतगुरु हमारे साथ होते हैं हमारी संभाल करते हैं हमारा मार्गदर्शन करते हैं सतगुरु का अर्थ यह नहीं कि कोई शरीर हमारे साथ होता है गुरु का अर्थ है कि वह शब्द रूप में हमारे साथ होता है और हमारी संभाल करता है हमें मार्गदर्शन देता है क्योंकि इस मार्ग पर कैसे चलना है कहां जाना है हमें नहीं पता होता और ना ही हम चल सकते हैं यह तो उस कुल मालिक की कृपा हो उसने हमें एक पूर्ण संत महात्मा से मिलाया हो जिसने खुद यह मार्ग तय किया हो जिसने खुद सारे अनुभव किए हो वह हमारी इस मार्ग पर चलने में मदद कर सकता है हमारी संभाल कर सकता है नहीं तो हम नहीं चल सकते जब हम पैरों के तलवों से ऊपर आना शुरू करते हैं धीरे-धीरे हमारी बात बनने लगती है और जिस दिन बात बन जाती है उस दिन हमें बहुत अनुभव देखने मिलते है क्योंकि इस मार्ग पर हर एक अभ्यासी के अनुभव अलग-अलग होते हैं अगर एक बार भी हम दोनों आंखों के पीछे तीसरे तल पर आ जाएं तो हमारी बात बन जाती है हमारा जीना मरना खत्म हो जाता है हमारी इस 84 के गेड़ से मुक्ति हो जाती है मालिक की कृपा हम पर हो जाती है हम अपने निजधाम सचखंड पहुंच जाते हैं और उसके बाद हम यहां रहते हुए भी जहां के नहीं रहते, हमारी सूरत उस कुल मालिक के साथ जुड़ी रहती है हमें निरंतर नाम धुन सुनाई देती रहती है और हमारे अंदर उस मालिक के नाम का रस बना रहता है आनंद बना रहता है तब हमें बाहर क्या हो रहा है हमें कोई फर्क नहीं पड़ता क्योंकि हम पर मालिक की कृपा हो जाती है हम उस सत्य को जान गए होते हैं और उस आनंद में जी रहे होते हैं और उसके बाद हमें जांच आ जाती है कि कैसे हमें रोजाना अभ्यास कर कर, रूह को पैरों के तलवों से लेकर ऊपर लेकर जाना है हमें वह जांच आ जाती है और इसे ही हम हर रोज मरना कहते हैं इसे ही हम जीते जी मरना कहते है, जैसे कि अक्सर फरमाया जाता है "I die daily" मैं रोज मरता हूं, इसी को हर रोज मरना कहते हैं जो अभ्यासी नाम की कमाई कर कर ऊपर तीसरे तिल पर आते हैं उन्हें ही हर रोज मरना कहते हैं और यह केवल मालिक की कृपा से ही हो सकता है उसकी जांच भी मालिक ही हमें देता है और जैसे ही हमें वह जांच आ जाती है हमारे अंदर खुशियां ही खुशियां होती है आनंद ही आनंद होता है हम जब चाहे ऊपर आ जाते हैं और उस मालिक के साथ जुड़ जाते हैं इस दुनिया में रहते हुए भी हमारी सुरत कुल मालिक से जुड़ी रहती है ।

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By Sant Vachan

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