गुरु प्यारी साध संगत जी आज की इस साखी में हमें पता चलेगा कि अगर हमने एक पूर्ण संत महात्मा से नाम ले लिया है अगर हमें एक पूरे सतगुरु से नाम की बख्शीश हो गई है और उसके बाद हम मांस और शराब का सेवन करते हैं या फिर अपने गुरु के हुकुम की उल्लंघना करते हैं उनके भाने में नहीं रहते तो ऐसे जीवो का क्या हाल होता है क्या दुर्दशा होती है उसके बारे में पता चलेगा, साध संगत जी ये साखी एक ऐसे ही सत्संगी परिवार से संबंधित है जिन्हें एक पूरे सतगुरु से नाम मिला हुआ था एक पूरे सतगुरु की शरण उन्हें मिली हुई थी लेकिन उस परिवार के एक सदस्य ने नाम लेने के बाद शराब का सेवन करना शुरू कर दिया मांस का सेवन करना शुरू कर दिया जिसके बाद उसकी क्या दुर्दशा हुई आज इस साखी में उसके बारे में पता चलेगा तो साखी को पूरा सुनने की कृपालता करें जी
गुरु प्यारी साध संगत जी एक सत्संगी परिवार था जिन्हें एक पूर्ण संत महात्मा से नाम की बख्शीश हुई थी और उन्हें एक पूर्ण संत महात्मा की शरण मिली हुई थी लेकिन उस परिवार में जो उस बीवी का पति था उसने नाम लेने के बाद शराब का सेवन करना शुरू कर दिया इसके पीछे का कारण यह था कि उसकी संगत शराबियों की हो गई थी तो जैसे कि फरमाया जाता है कि जैसी हमारी संगत होगी वैसा ही प्रभाव हम पर पड़ेगा अगर हमने शराबियों की संगत की है तो हम शराब पीने लग जाएंगे हमें शराब पीने की आदत लग जाएगी अगर हमने चोरी करने वालों की संगत की है तो हमें चोरी करने की आदत पड़ जाएगी जैसी हम संगत करते हैं वैसा ही हमारे ऊपर प्रभाव पड़ता है वैसे ही कार्य हम करने लग जाते हैं क्योंकि मन बहुत जल्दी प्रभाव लेता है इसके ऊपर किसी चीज का प्रभाव बहुत ही जल्दी पड़ता है इसीलिए तो कहा जाता है कि भाई नाम अभ्यासियों की संगत करो अच्छे लोगों की संगत करो जो आपको एक सही मार्गदर्शन दे सकें आपको एक अच्छा माहौल दे सकें एक अच्छा मार्गदर्शन दे सके क्योंकि मन पर पड़ने वाले प्रभाव ही हमारे कर्मों में तब्दील हो जाते हैं हमारी करनी में तब्दील हो जाते हैं इसलिए तो अक्सर फरमाया जाता है कि हमें अच्छा देखना चाहिए अच्छा ही सुनना चाहिए और मन के ऊपर किसी तरह का गलत प्रभाव नहीं पड़ने देना चाहिए क्योंकि मन हमारा बहुत ही चंचल है अगर हमारे मन के ऊपर तरह-तरह के प्रभाव पड़े हुए हैं तो उससे हमारी भजन बंदगी में भी मुश्किलें आएंगी इसलिए कहा जाता है कि हमें संतों की संगत करनी चाहिए उनकी संगत की सेवा करनी चाहिए ताकि हमारा मन मालिक की तरफ लग सके, मालिक की भजन बंदगी की तरफ लग सके तो साध संगत जी ऐसे ही उस परिवार में जो बीबी थी उनकी भजन बंदगी बहुत थी वह तो जैसे बताया जाता था वैसे ही मालिक के भाने में रहकर मालिक की भजन बंदगी करती थी और उन दोनों को इकट्ठे नाम मिला था लेकिन उनका जो पति था उसने शराब का सेवन करना शुरू कर दिया जिससे कि वह परेशान रहने लगी क्योंकि साध संगत जी अगर कोई जीव नाम लेने के बाद ऐसी चीजों का सेवन करना शुरू कर दें तो उसे इसका दोगुना हिसाब देना पड़ता है क्योंकि जैसे कि फरमाया जाता है की एक तो वह जीव है जिन्हें मालिक की कोई खबर नहीं, मालिक के नाम की कोई खबर नहीं और वह ऐसी चीजों का सेवन करते हैं उन्हें तो माफी मिल भी सकती है क्योंकि उन्हें मालिक के नाम की कोई खबर नहीं है और ना ही उन्हें नाम मिला हुआ है और जिन्हें नाम मिला हुआ है जिन्हें सब कुछ पता है कि हमें इसका हिसाब देना पड़ेगा और अगर वह जीव ऐसी चीजों का सेवन करते हैं तो उन्हें दोगुना हिसाब देना पड़ता है और अपने गुरु की मार को भी झेलना पड़ता है क्योंकि जो पूर्ण संत सद्गुरु होता है उसने हमारी जिम्मेवारी ली होती है जिसे वह नाम की बख्शीश करते हैं उनकी जिम्मेवारी ले लेते हैं उन्हें सचखंड पहुंचाना उनकी जिम्मेवारी हो जाती है और अगर ऐसे जीव गलत कार्यों में लग जाते हैं मांस और शराब का सेवन करना शुरू कर देते हैं तो उन्हें गुरु की मार भी झेलनी पड़ती है और उसका दोगुना हिसाब भी देना पड़ता है क्योंकि गुरु की जिम्मेवारी होती है कि वह हमें एक सही मार्गदर्शन देता रहे संत महात्माओं ने तो यहां तक फरमाया है कि अगर शिष्य ऐसे गलत कार्य में लग जाता है फिर से माया की मीठी नींद में सो जाता है तो गुरु का हक बनता है कि उसके सिर पर डंडा मारे और उसे उठाएं और उसे गलत रास्ते पर जाने से रोके क्योंकि जिन की जिम्मेवारी एक पूर्ण संत सतगुरु लेता है उसे सही मार्ग पर लाना उसकी जिम्मेवारी है यह सब देखकर गुरु को भी दुख होता है कि मेरा जीव किस तरफ लग गया यह क्या करने लग गया और बहुत सारे सत्संगियों से यह सुनने को मिला है कि जो जीव ऐसी चीजों का सेवन करते हैं गुरु उन्हें पहले उनके सपनों में आकर उन्हें समझाने की कोशिश करता है कि भाई सुधर जा लेकिन अगर जीव फिर भी ना माने, तो उसे दंड भी मिलता है तो ऐसे ही साध संगत जी जब भी उस सत्संगी परिवार की बीबी अपने गुरु के पास जाती तो अक्सर उनके पास जाकर अरदास करती कि मेरे पति को बक्श ले उनकी संभाल करें वह गलत रास्ते पर चले गए हैं तो यह बात सुनकर वह अक्सर कह देते कि कोई बात नहीं मालिक सब देख रहा है तो उन्होंने बहुत समझाने की कोशिश की लेकिन वह नहीं माना उसकी यह आदत और बढ़ती गई जिसकी वजह से मोहल्ले वाले भी परेशान रहने लगे इसी बात को लेकर वह भी और परेशान हो गई और चिंता में पड़ गई कि लोग क्या कहेंगे एक तरफ तो हमने एक पूर्ण संत सतगुरु की शरण ली हुई है और मेरे पति ऐसे कार्य करते हैं, तो वह फिर अपने सतगुरु के पास जाकर उनसे अरदास करने लगी कि उनको एक सही मार्गदर्शन दें उन्हें इस गलत रास्ते पर जाने से रोके तो साध संगत जी जब भी कोई अभ्यासी जीव अपने गुरु के पास जाकर अरदास करता है उनके पैरों में पढ़कर उन से विनती करता है तो गुरु अपने शिष्य की यह हालत नहीं देख पाता वह तो उन्हें अपने जैसा बनाना चाहता है तो जब वह बीवी ने उनके चरणों में पढ़कर उन से विनती की अरदास की तो उन्होंने उन्हें घर जाने को बोला कि तुम घर जाओ मालिक सब ठीक कर देगा और जब वह घर गई और घर जाकर नाम की कमाई करने लगी और वह बीबी पूरी रात भजन सिमरन पर बैठी रही अगले ही दिन जब सुबह हुई तो उसके पति ने सुबह ही शराब का सेवन करना शुरू कर दिया क्योंकि साथ संगत जी यह आदत इतनी बुरी है कि जिससे ऐसी आदत पड़ जाती है वह सुबह सुबह ही ऐसी चीजों का सेवन करना शुरू कर देता है तो उसने भी ऐसा ही किया और उसके बाद उसका पति किसी कारणवश शहर में चला गया उसके कुछ देर बाद उसकी पत्नी को उसके पड़ोस वालों ने बताया कि आपके पति का एक्सीडेंट हो गया है वह भागकर हॉस्पिटल पहुंची वहां जाकर देखा कि उनकी दोनों टांगे टूट गई यह देख कर वह रोने लग गई और उसने डॉक्टरों को सभी बात बताई और जब उन्हें होश आया तो डॉक्टरों ने उन्हें सखती से कहा कि अब से आप शराब का सेवन नहीं कर सकते अगर आपने ऐसा किया तो उसके जिम्मेदार आप खुद होंगे यह बात सुनकर वह बीवी का पति भी वही रोने लग गया क्योंकि उसे तब समझ आ गई की ये सब मेरी यह बुरी आदत की वजह से ही हुआ है मुझे मेरी पत्नी ने कितना समझाने की कोशिश की और सतगुरु ने भी मुझे बहुत समझाने की कोशिश की लेकिन मैं नहीं माना और अब मेरी ऐसी हालत हो गई है कि मैं चल भी नहीं सकता इस हालत का केवल मैं ही जिम्मेदार हूं मेरे मालिक ने जो भी किया है मेरे साथ ठीक ही किया है क्योंकि ऐसे मैंने हटना भी नहीं था मेरी आदत छूट ही नहीं पानी थी अब मेरे मालिक ने मुझे बिस्तर पर बिठा दिया है ताकि मैं उसके नाम की कमाई कर सकूं उसकी भजन बंद कर सकूं साध संगत जी ऐसा उस सत्संगी जीव के साथ हुआ साध संगत जी इस साखी से हमें भी यही सीखना है कि हमें अपने गुरु के हुक्म में रहकर भजन बंदगी करनी और उनके हुक्म में रहना है, अगर हम ऐसा नहीं करते और गलत कार्यों में लग जाते है तो हमें बहुत ही भयंकर नतीजा भुगतना पड़ सकता है क्योंकि उन्होंने हमारी जिम्मेदारी ली है और अगर हम ऐसे गलत कार्य करते हैं तो हमें दंड देना भी उनका हक है अगर हम उनके समझाने से नहीं समझते अगर हम उनकी प्यार की भाषा नहीं समझते तो उन्हें दूसरे तरीके से भी समझाना आता है तो हमें उनके हुक्म की पालना करनी है उनके भाने में रहना है उनकी खुशी प्राप्त करनी है ।
साध संगत जी इसी के साथ हम आपसे इजाजत लेते हैं आगे मिलेंगे एक नई साखी के साथ,अगर आप साखियां, सत्संग और सवाल जवाब पढ़ना पसंद करते है तो आप नीचे E-Mail डालकर इस Website को Subscribe कर लीजिए, ताकि हर नई साखियां, सत्संग और सवाल जवाब की Notification आप तक पहुंच सके ।
By Sant Vachan
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