गुरु प्यारी साध संगत जी यह साखी एक सत्संगी परिवार से एक सत्संगी महिला की है जिन्हें बहुत पहले नाम की बख्शीश हो चुकी है और उनकी कमाई इतनी है कि किसी भी सत्संगी को अभ्यास में किसी तरह की मुश्किल आती है तो वह उनके पास जाते हैं उनसे वार्तालाप करते हैं क्योंकि बहुत सारी संगत से सुनने को मिला है कि वह बहुत ही पहुंची हुई है उन्हें सब मालूम है तो इसलिए किसी को भी अभ्यास में या मालिक की भजन बंदगी में कोई भी मुश्किलें आती हैं रुकावट आती हैं तो वह उनसे मिलने चला जाता है उनसे वार्तालाप करने चला जाता है उसके बाद माताजी ऐसे ही लोगों के काम बनवाने लगी जिससे कि उनका नाम बहुत हो गया, आसपास के लोग भी उनके पास आने लगे तो उसके बाद उन्हें इसका क्या नतीजा भुगतना पड़ा आज इस साखी में इसी के बारे में पता चलेगा तो साखी को पूरा सुनने की कृपालता करें जी ।
गुरु प्यारी साध संगत जी एक सत्संगी माता जो कि एक सत्संगी परिवार से है जिन्हें बहुत पहले ही नाम मिल चुका है और उनकी कमाई इतनी है कि आसपास के लोग उनके पास आते हैं अपनी मुश्किलें उनके आगे रखते हैं उनसे बातचीत करते हैं और उनसे अपने भविष्य के बारे में पूछते हैं अपना भविष्य जानने की कोशिश करते हैं साध संगत जी जैसे कि आप जानते हैं जो लोग नाम की कमाई करते हैं उस कुल मालिक की याद में बैठते हैं मालिक की भजन बंदगी करते हैं उन्होंने बहुत कुछ देखा होता है बहुत अनुभव किए होते हैं और ऐसे कमाई वाले जीव जो कह देते हैं वैसा हो भी जाता है क्योंकि मालिक की कृपा उन पर अपार होती है तो इसीलिए जब भी वह अपने मुख्य से कोई वाक्य कहते हैं तो मालिक उसे पूरा कर देता है क्योंकि मालिक अपने भक्तों प्यारों कि किसी बात को व्यर्थ नहीं जाने देता क्योंकि जितना प्यार उसके भक्त उससे करते हैं उससे कहीं ज्यादा मालिक अपने भक्तों और प्यारों से करता है तो ऐसे ही माताजी भी बहुत कमाई वाली थी मालिक की भजन बंदगी में बैठती थी और बहुत लोग उनके पास आते थे क्योंकि जैसे ही लोगों को पता चलने लग जाता है कि कोई मालिक का प्यारा है तो लोग उनके पास जाने लग जाते हैं मालिक के ऐसे भक्तों प्यारों के पास केवल दो ही प्रकार के लोग जाते हैं एक तो वह हैं जिन्हें भी उनके जैसा बनना है मालिक की भजन बंदगी करनी है जिन्हें उस कुल मालिक की बातें करनी है उस रूहानियत के मार्ग के बारे में जानना है वह उनके पास जाते हैं और दूसरे वह है जो अपने निजी स्वार्थ के लिए उनके पास जाते हैं कि उनका काम अच्छा चल पड़े या फिर वह अपने भविष्य के बारे में जानने के लिए उनके पास जाते हैं या फिर वह अन्य दुनिया के कार्य करवाने के लिए उनके पास चले जाते हैं लेकिन जो मालिक के प्यारे होते हैं वह केवल मालिक की ही बात करते हैं दुनिया की बातें नहीं करते जो पहुंचे हुए होते हैं वह केवल गुरु घर की ही बातें करते हैं मालिक की बातें करते हैं भजन बंदगी की बातें करते हैं अगर कोई उनके पास दुनिया की बातें करता है तो वह उन बातों पर इतना ध्यान नहीं देते क्योंकि उनकी सुरत मालिक से लगी होती है नाम से जुड़ी होती है उन्हें निरंतर धुन सुनाई पड़ती रहती है लेकिन इस मार्ग में अगर हम भटक जाते हैं अगर हम अपने सतगुरु का हाथ छोड़ देते हैं और मार्ग में आने वाली चीजों में हम उलझ जाते हैं तो हम मालिक से मिल आप नहीं कर सकते ऐसा बहुत बार देखा गया है तो ऐसे ही उस माताजी ने भी करना शुरू कर दिया जैसे जैसे उनके पास लोग आने लगे माताजी लोगों की बातें सुनने लगी लोगों की मुश्किलों का हल करने लगी तरह तरह के लोग उनके पास आने लगे और यह सब देख कर कभी न कभी हमारे मन में यह अहंकार आ जाता है कि यह सब मैं कर रहा हूं मेरी वजह से सब हो रहा है मैं ही हूं जो सब ठीक कर रहा हूं जब अभ्यासी के मन में अहंकार आ जाता है तो मालिक उसे दूर हो जाता है उससे वह अपनी ताकत खींच लेता है क्योंकि जहां पर अहंकार होता है वहां पर मालिक नहीं हो सकता वहां पर मालिक का नाम नहीं हो सकता तो ऐसे ही माताजी ने भी लोगों के काम बनवाने शुरू कर दिए अगर कोई नवविवाहित जोड़ा उनके पास आता तो उनको वह लड़का होने का आशीर्वाद देती जैसे जैसे लोगों की मनोकामनाएं होती हैं वैसे वैसे उन्होंने करना शुरू कर दिया और उनके मन में अहंकार भी होने लगा साध संगत जी आप तो जानते ही हैं कि जब भी ऐसी बातें होने लगती है तो मालिक उनसे दूर हो जाता है वह अपनी कृपा का हाथ ऐसे जीवो से उठा लेता है इसलिए तो फरमाया जाता है कि भाई हजम करना सीखो अगर ऐसे ही बांटते गए तो खाली हाथ रह जाओगे, हमें तो और आगे जाना है हमें भटकना नहीं है तो माताजी ऐसे ही भटक गई क्योंकि लोग उनके पास आने लगे थे आप तो जानते ही हैं कि किसी को लड़का चाहिए होता है तो किसी को लड़की चाहिए होती है तो माताजी ने यही काम करना शुरू कर दिया और जब वह ऐसा करती गई तो उन्हें इसका नतीजा भी भुगतना पड़ा क्योंकि साध संगत जी अगर हम मालिक के भाने में नहीं रहते मालिक के हुक्म में नहीं रहते तो हमें उसका हिसाब भी देना पड़ता है हमें उसका दंड भी भोगना पड़ता है क्योंकि हम मालिक के हुक्म में नहीं है मालिक के भाने में नहीं है हम अपनी मनमर्जी से सब कर रहे हैं और हमारे मन में अहंकार है कि मैं कर रहा हूं तो जब ऐसा होने लगता है तब हमें अपने कर्मों का नतीजा भुगतना पड़ता है अपनी करनी का हमें नतीजा भुगतना पड़ता है तो माताजी ने जब यह सब काम करने शुरू कर दिए कि किसी को लड़के होने का आशीर्वाद दे दिया किसी को कुछ कह दिया, तो माता जी की भी दो लड़कियां थी और उन दोनों लड़कियों की शादी हुई थी लेकिन उनकी लड़कियों को पता था कि हमारी मां जो भी कर रही है ठीक नहीं है क्योंकि एक पूरा सतगुरु कभी भी ऐसे काम अपने शिष्य को करने नहीं देता अगर शिष्य ऐसा करता है तो वह अपने सतगुरु के हुकम में नहीं है अपने गुरु के भाने में नहीं है तो उनको पता था कि हमारी माता भटक गई है गलत राह पर चल पड़ी है तो जब उनकी शादी हुई उसके बाद जो उनकी बड़ी बेटी थी उसका जो पति था उसे भी पता था की माताजी सभी को आशीर्वाद देती है तो उसने भी अपनी पत्नी से कहा कि चलो माताजी के पास चलते हैं उन से आशीर्वाद लेते हैं लेकिन वह नहीं मानी लेकिन उसके पति के जोर देने पर उसे अपने पति के साथ जाना पड़ा वह भी अपनी माता के पास चली गई और उसके पति ने माताजी से लड़के होने का आशीर्वाद मांगा माताजी ने बहुत ही खुशी के साथ कहा कि लड़का होगा साध संगत जी जब उन्होंने ऐसा कहा लड़की को तो पता था कि मेरी मां ठीक नहीं कर रही क्योंकि ये मालिक के भाने से बाहर है तो जब उसकी माता ने उससे लड़के होने का आशीर्वाद दिया उसके कुछ महीनों के बाद लड़की के गर्भ से बच्चे ने जन्म लिया वह बच्चा लड़का ही था लेकिन उसके शरीर के अंग खराब थे उसके पूरे अंग अच्छे से विकसित नहीं हुए थे डॉक्टरों ने तो यहां तक बोल दिया था कि यह बच्चा ज्यादा देर नहीं रह सकता तो जब ऐसा हुआ लड़की रोने लग गई लड़की को पता चल गया था की ये मेरे साथ ऐसा क्यों हुआ है साध संगत जी मालिक सब देख रहा होता है उसे सब मालूम है वह पहले तो जीव द्वारा किए गए कार्यों को देखता रहता है और जब दंड देने की बारी आती है तब जीव को दंड देता है और सही समय आने पर देता है जैसे की माताजी ने लोगों को लड़के होने का आशीर्वाद तो दिया लेकिन माता जी की अपनी ही लड़की के साथ ऐसा हुआ यह देखकर माताजी भी रोने लग पड़ी कि यह ऐसा कैसे हो सकता है मैंने बहुत लोगों के काम किए हैं लेकिन मेरे अपने ही घर में मेरी लड़की के साथ ऐसा कैसे हो सकता है तो जब ऐसा हुआ तो माता जी को भी समझ आ गई कि मेरे मन में अहंकार आ गया मैं मालिक के हुक्म से बाहर हो गई मालिक के भाने से बाहर हो गई मैं भटक गई थी इसलिए मालिक ने मुझे दंड दिया है साध संगत जी उस दिन के बाद माताजी ने लोगों से मिलना बंद कर दिया और मालिक के भाने में रहकर मालिक की भजन बंदगी करनी शुरू कर दी, साध संगत जी इसीलिए तो फरमाया जाता है कि इस मार्ग पर हमें बहुत कुछ अनुभव करने को मिलता है बहुत कुछ देखने को मिलता है लेकिन हमें अपने सतगुरु का हाथ पकड़ कर सीधे पारब्रह्म जाना है और किनी बातों में हमें नहीं पढ़ना तो साध संगत जी इस साखी से हमें भी यही प्रेरणा मिलती है कि अगर मालिक हम पर कृपा करता है तो हमें उसे हजम करना सीखना चाहिए ना कि उसे लोगों में बांटना शुरू कर देना चाहिए जैसे कि फरमाया जाता है कि इस मार्ग पर चलना है तो हजम करना सीखो, नहीं तो आगे नहीं बढ़ पाओगे तो साध संगत जी ऐसे ही हमें भी उस कुल मालिक की भजन बंदगी करनी है नाम की कमाई करनी है और हजम करना है
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By Sant Vachan
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