गुरु प्यारी साध संगत जी अक्सर देखा गया है जिन्हें नाम दान की बख्शीश हुई है कुल मालिक की शरण जिन्हें मिली हुई है एक पूरे गुरु का पल्ला जिन्होंने पकड़ा हुआ है उनकी अक्सर यह शिकायत रहती है कि हमें ही इतने दुख क्यों आते हैं जबकि दुनिया में और भी बहुत लोग हैं जो कि पता नहीं कितने गलत कार्य करते हैं लेकिन वह फिर भी एशो आराम से रहते हैं आराम की जिंदगी जीते हैं चाहे ही वह कितने ही पाप क्यों न करते हैं उन्होंने कितनों का दिल क्यों ना दुखाया हो लेकिन फिर भी वह सुखी है उनके जीवन में सुख ही सुख है और अगर दूसरी तरफ बात की जाए जिन्हें नाम की बक्सीश हो गई है जो सत्संगी हो गए हैं
जिन्होंने रोहा नियत का मार्ग पकड़ लिया है जो इस मार्ग पर चल पड़े हैं अक्सर देखा गया है कि उन्हें ही ज्यादा दुख झेलने पड़ते हैं तो ऐसा ही एक प्रश्न एक अभ्यासी ने सतगुरु के आगे रखा था कि हे सतगुरु हे सच्चे पातशाह, सत्संगीयों की अक्सर शिकायत रहती है कि उन्हें बहुत दुख तकलीफ झेलनी पड़ती है जबकि उनके जीवन में तो आनंद होना चाहिए सुख होना चाहिए क्योंकि उन्हें नाम मिल गया है और वह रोहानियत से जुड़ गए हैं मालिक से जुड़ गए है, लेकिन होता इससे उल्टा ही है उन्हें बहुत मुश्किलें सहन करनी पड़ती है बहुत दुख झेलने पड़ते हैं ऐसा क्यों होता है ? कृपया आप बताएं, तो जब यह प्रश्न सतगुरु ने सुना पहले तो सतगुरु ने थोड़ा सा मुस्कुराया उसके बाद सतगुरु कहते हैं कि आप यह जानना चाहते हो कि आखिर जो सत्संगी है जो मालिक से जुड़ गए हैं उन्हें ही इतने दुख क्यों आते हैं जबकि उन्हें नाम की बख्शीश हो गई है उनके जीवन में तो सुख होना चाहिए आप यही जानना चाहते हो तो इसका जवाब यह है कि अगर हमने सोने की परख करनी हो तो पहले उसे अच्छे से रगड़ा जाता है उसे घिसा कर देखा जाता है उसे रगड़ कर देखा जाता है कि यह वाक्य ही असली सोना है इसके बिना हम उसकी परख नहीं कर सकते, परख करने के लिए उसको रगड़ना पड़ता है देखना पड़ता है तराशना पड़ता है कि यह वाक्य ही असली सोना है तो ऐसे ही जिन्हें नाम की बख्शीश हो जाती है जिन्हें एक पूर्ण संत महात्मा द्वारा नाम मिल जाता है उन को बेहतर बनाने के लिए उनके कर्मों को खत्म करने के लिए उन्हें इतने दुख झेलने पड़ते हैं क्योंकि जो भी मालिक का प्यारा मालिक से जुड़ जाता है उसे नाम दान की बख्शीश हो जाती है वह इस मार्ग पर चलने लगता है तब उसे बहुत मुश्किलों का सामना करना पड़ता है क्योंकि यहां पर सतगुरु कहते है कि सालों के करम महीनो में, महीनो के करम दिनो में और दिनो के करम घंटो में निबटाए जाते है सो इतनी किरपा वो सतगुरु हम पर करते है, कभी सेवा से करम हल्के करवाते है तो कभी भजन सिमरम से कटवाते है क्यूँकि उनका एक ही लक्ष्य होता है जीवात्मा को दोबारा जनम ना लेना पढ़े और इसी जनम में ही उसे मुक्ति हासिल हो सके, लेकिन हम इसे नहीं समझ सकते क्योंकि हम वहां तक पहुंचे ही नहीं मालिक हमें सूली का शूल कर के दे रहा है और शिष्य को इतनी ताक़त देता है कि वो कब इन कष्टों से निकल जाता है उसे पता ही नहीं चलता इतनी कृपा सतगुरु की हम पर हो रही है लेकिन अगर देखा जाए तो कमी केवल और केवल हमारी तरफ से ही है उनकी तरफ से कोई भी कमी नहीं है वह तो हमारे लिए 100 कदम आगे चलकर आने के लिए तैयार खड़े हैं लेकिन हम एक कदम भी नहीं उठाते और जब मुश्किल की घड़ी आ जाती है तब उसे याद करने लग जाते हैं सतगुरु की रहमत हम पर इतनी बरस रही है कि हमें उसका अंदाजा भी नहीं वह तो कहते हैं कि भाई आपके पास जो भी पड़ा हुआ है आपके अंदर जो भी पड़ा हुआ है वह मुझे दे दो और जो मेरे पास है वह मैं आपको दे दूंगा इतनी कृपा वह हम पर कर रहे हैं तो इसके अलावा हमें और क्या चाहिए किस चीज की कमी रह गई है लेकिन हम फिर भी उसके भाने में नहीं रहते भजन सिमरन को पूरा वक्त नहीं देते जबकि इसमें फायदा हमारा ही है किसी और का फायदा नहीं है अगर हम अपने सतगुरु के हुक्म में रहकर उनके भाने में रहकर चलेंगे तो सतगुरु हम पर अपार कृपा करेंगे जैसे कि कहा जाता है कि भाई अगर आप मालिक की भजन बंदगी में बैठते हो उसे समय देते हो तो मालिक आप पर इतनी कृपा करेगा कि आपका परमार्थ भी बना देगा और स्वार्थ भी बना देगा आपको किसी चीज की कमी नहीं रहने देगा बस जरूरत है उसके हुकम में रहने की उसके भाने में रहकर उसकी भजन बंदगी करने की , और जो अभ्यासी उसके हुकम में रहता है उसे कभी दुख आता ही नहीं, वह सुख दुख से ऊपर उठ जाता है उसका मालिक से मिलाप हो जाता है और उसके अंदर हर पल आनंद प्रफुल्लित होता रहता है उसके अंदर पल-पल आनंद के झरने फूटते रहते हैं वह कभी उदास नहीं होता क्योंकि वह अंदर से मालिक से जुड़ गया है और मालिक परमानंद है इसलिए तो देखा गया है कि जो संत महात्मा होते है वह कितने खुश रहते हैं उनके अंदर पल-पल आनंद के झरने फूट रहे होते हैं जो कि हमें दिखाई नहीं देते और वह सुख दुख से ऊपर उठ जाते उन्हें इन चीजों से कोई फर्क नहीं पड़ता और उनके अंदर हर पल आनंद बना रहता है इसलिए तो वह हमें भी प्रेरित करते हैं कि भाई भजन सिमरन करो इसके अलावा आपका पार उतारा नहीं हो सकता अगर आप नहीं करते तो आपको बार बार आना पड़ेगा बार-बार जन्म लेना पड़ेगा इसलिए अभी भी मौका है क्योंकि मौत के बाद किसी ने हमें कुछ नहीं दे देना और ना ही हम कुछ कर सकते हैं जो भी करना है अभी करना है इसी वक्त करना है कल किसने देखा है और अक्सर फरमाया जाता है कि भाई समय बहुत थोड़ा है इसे व्यर्थ मत ग्वाओ यह बार-बार नहीं मिलेगा अभी भी समय है अभी भी बहुत कुछ किया जा सकता है क्योंकि बाद में रोने और चिल्लाने के अलावा हमारे पास कुछ नहीं होगा अगर हमने जीते जी मर कर नहीं देखा तो हमारा जन्म लेना व व्यर्थ हो गया और फिर से दोबारा आना पड़ेगा और जब तक उस नाम धुन को हम नहीं सुन लेते तब तक बार-बार आना पड़ेगा बार-बार जन्म लेना पड़ेगा और यह चक्कर चलता ही रहेगा और जो नाम की कमाई करते हैं वह मालिक में विलीन हो जाते हैं उनका फिर से जन्म नहीं होता वह मालिक में मिलकर उसका रूप हो जाते हैं और इस जन्म मरण के चक्कर से छूट जाते हैं और उस परमानंद में समा जाते हैं ।
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By Sant Vachan
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