गुरु प्यारी साध संगत जी यह एक सच्ची आप बीती है जो की एक सत्संगी लड़की की है और उसे नामदान मिले 2 साल हो गए थे उस लड़की का परिवार सत्संगी था जिसके कारण उसने भी नाम दान ले लिया साध संगत जी आप तो जानते ही हैं कि जैसे हमारे माता-पिता होंगे आगे उनके बच्चे भी वैसे ही होते हैं माता-पिता का प्रभाव ही बच्चों पर पड़ता है क्योंकि शुरुआती दौर में बच्चा जो भी सीखता है वह अपने माता-पिता से ही सीखता है इस सृष्टि में सबसे पहला गुरु उसके माता पिता ही होते हैं और अगर हमारे माता पिता रोहानियत से जुड़े हुए हैं और उन्हें कुल मालिक की शरण मिली हुई है जिन्होंने पूरे गुरु का पल्ला पकड़ा हुआ है तो हम बहुत भागोवाली जीव है
जिन्हें ऐसे माता-पिता मिले हैं क्योंकि उनको देखकर हम भी इस मार्ग पर चलने की कोशिश करते हैं हम भी उनके साथ सेवा पर चले जाते हैं सत्संग पर चले जाते हैं तो इन बातों का बच्चों पर बहुत प्रभाव पड़ता है इसलिए तो फरमाया जाता है कि भाई बच्चों को सत्संग में लेकर आना चाहिए तो साध संगत जी ऐसे ही लड़की के माता पिता उसे सेवा में ले आते, सत्संग में ले आते तो लड़की शुरू से ही रुहानियत से जुड़ गई थी उसने बहुत सत्संग सुने हुए थे उसे रूहानियत के बारे में ज्ञान भी था तो उसे नाम दान मिले 2 साल हो गए थे वह बचपन से सेवा में आती रहती अपने माता पिता के साथ सेवा पर चली जाती और वह शुरू से ही रुहानियत से जुड़ी हुई थी जब उसे नामदान नहीं भी मिला था तो जैसे कि फरमाया जाता है कि आपको आंखें बंद कर बैठना है तो वह भी ऐसे ही किया करती जैसे बताया जाता है वैसे ही करती साध संगत जी अगर हम पहले से ही अभ्यास करना शुरू कर दें कि तो जब हमें नाम दान की बख्शीश हो जाती है तब हमारा अभ्यास पक्का होता है और हमारी बात जल्दी बन जाती है अगर हम नाम दान की बक्सीष से पहले ही अभ्यास कर रहे हैं या करते आ रहे हैं तो जब नाम की बख्शीश होगी तब सद्गुरु की कृपा से बात भी जल्दी बन जाती है साध संगत जी वह लड़की भी अक्सर ऐसे चुपचाप बैठ जाया करती क्योंकि वह बचपन से ही अपने माता-पिता को कहती थी कि मैं भी भजन सिमरन करूंगी मैं भी आपके साथ बैठूंगी तो अक्सर वह भी ऐसे ही चुपचाप बैठ जाया करती और उसे 2 साल नाम दान मिले को हुए थे और उसके बाद उसकी शादी हो गई साध संगत जी आप तो जानते ही हैं कि जब हम गृहस्थ जीवन में प्रवेश करते हैं तो बहुत सारी जिम्मेदारियां साथ आ जाती हैं जिन्हें निभाना हमारी जिम्मेवारी हो जाती है हम उन से भाग नहीं सकते और जब शादी हो जाती है तो उसके बाद सब कुछ बदल जाता है क्योंकि वहां पर सब कुछ हमारे लिए नया ही होता है अपने ससुराल वालों के हिसाब से वहां पर रहना होता है वहां पर हम अपनी मनमर्जी नहीं कर सकते तो साध संगत जी जब उस लड़की की शादी हो गई तो उसके ऊपर भी बहुत सारी जिम्मेदारियां आ गई बहुत सारे काम उसे पढ़ने लगे वह सुबह जल्दी उठ जाया करती और सुबह उठकर ही काम में लग जाया करती जिसकी वजह से उसे भजन सिमरन करने के लिए समय मिल ही नहीं पाता था और वह किसी के सामने बैठ भी नहीं सकती थी क्योंकि साध संगत जी आप तो जानते ही हैं कि जब भी कोई अभ्यासी किसी के सामने बैठ जाए जिसको रोहनियत के बारे में कोई ज्ञान ना हो वह फिर ऐसे अभ्यासियों को देखकर हंसने लग जाते हैं वह सोचने लग जाते हैं कि पता नहीं क्या कर रहे हैं तो इसीलिए बहुत सत्संगी ऐसे हैं जो अकेले में बैठना पसंद करते हैं ताकि ना ही उन्हें कोई देखे और ना ही उन्हें कोई परेशान कर सकें साध संगत जी उस लड़की के साथ भी ऐसा ही हुआ वह वहां पर नहीं बैठ सकती थी और उसे बैठने का समय मिल ही नहीं पाता था कि वह मालिक की भजन बंदगी कर सके जब उसने शुरू शुरू में बैठने की कोशिश की तो उसे कोई ना कोई काम आ जाता तो उसे उठना पड़ जाता तो ऐसे ही उसके साथ भी हुआ तो धीरे-धीरे उसने भजन सिमरन पर जोर देना कम कर दिया और धीरे-धीरे उसका भजन सिमरन कम होता गया साध संगत जी इस मार्ग पर तो हमें समय और बढ़ाना है लेकिन हम कम करते चलते आते हैं तो जैसे-जैसे उसका भजन सिमरन कम होता गया तो एक दिन ऐसा आया कि उससे भजन सिमरन हुआ ही नहीं और फिर नागे पढ़ने शुरू हो गए और ऐसे धीरे-धीरे उसका भजन सिमरन छूट गया लेकिन वह कभी कभी सेवा पर चली जाती और सत्संग में भी चली जाती थी जब वह अपने मायके आई तो वहां पर उसका बहुत सारे सत्संगियों से उसका प्रेम था और जब वह गुरु घर गई तो वह सब से मिली सबसे उसने बातें की तो उसका एक माता जी से बहुत प्रेम था जो कि बहुत ही कमाई वाली थी तो जब वह वहां पर गई तो माताजी ने उससे ऐसे ही पूछ लिया की सफर कैसे चल रहा है, की भजन सिमरन कैसा चल रहा है तो उसने माता को कहा कि अब मुझसे भजन सिमरन होता ही नहीं मुझे समय ही नहीं मिल पाता मैं बहुत कोशिश करती हूं कि भजन सिमरन के लिए समय निकाल सकू लेकिन मैं निकाल ही नहीं पाती वहां पर इतना काम होता है कि भजन सिमरन पर बैठने के लिए समय ही नहीं मिल पाता और मैं संगत से भी दूर हो गई हूं जिसकी तड़प मेरे अंदर है वहां पर तो मैं सेवा पर भी नहीं जा सकती सत्संग में भी नहीं जा सकती साध संगत जी उससे पहले जब उस लड़की की शादी नहीं हुई थी उसने कभी भी सेवा नहीं छोड़ी थी सत्संग नहीं छोड़ा था यह बात माई को भी पता थी लेकिन जब माई को पता लगा कि बेटी अब रोहानियत से दूर होती जा रही है तो उन्हें थोड़ा सा दुख भी लगा तो उन्होंने उस लड़की को कहा कि बेटा जैसा मैं बोलती हूं वैसा करोगी तो उस लड़की ने कहा जी आप बताइए मैं करने के लिए तैयार हूं तो जब उसने ऐसा कहा तो माई ने कहा कि जब तू अपने ससुराल जाएगी वहां पर जाकर भजन सिमरन पर बैठ जाना उसके बाद जो जो होगा वह तुम्हें दिखाई पड़ने लग पड़ेगा लेकिन तुम्हें कुछ नहीं करना है तुम्हें बस देखना है और उसका साक्षी बनना है तुम्हें अमृत वेले के समय भजन पर बैठ जाना है जो समय बताया जाता है उस समय बैठ जाना है और फिर जो होगा उसे देखना है, उन्होंने यह करने के लिए उस लड़की को बोला जब लड़की अपने ससुराल गई तो उसने ऐसा ही किया और वह भजन सिमरन पर बैठ गई और उसका पति भी उसके साथ ही था वह सोया हुआ था और वह बैठी हुई थी और सुबह हुई तो उसके पति ने देखा कि मेरी पत्नी की सांसे नहीं चल रही है सुबह 4:00 का समय था उसके पति को लगा कि मेरी पत्नी मर चुकी है उसे यह मालूम पड़ गया था कि मेरी पत्नी अब नहीं रही और उसने सोचा कि अगर मैंने अभी सभी को बता दिया तो सभी उठ जाएंगे और फिर रोना-धोना शुरू हो जाएगा और मेरी तो आज एक बहुत बड़ी डील होने वाली है मुझे वहां पर जाना है और अगर मैंने सभी को बता दिया कि मेरी पत्नी अब नहीं रही तो सभी इकट्ठे हो जाएंगे तो उसने सुबह उठकर अपना नाश्ता बनाना शुरू कर दिया वह जो भी कर रहा था उसकी पत्नी उसे देख रही थी साध संगत का जी उसकी सुरत ऊपर चढ़ी हुई थी जिसके कारण उसके पति को लगा कि वह अब नहीं रही लेकिन वह सब देख रही थी कि मेरे पति क्या कर रहे हैं तो उसने देखा कि वह अपना नाश्ता बना रहे हैं और अपनी मीटिंग पर जाने के लिए तैयार है तैयार हो रहे हैं यह सब दृश्य वह देख रही थी लड़के ने सोचा कि मैं सुबह ही चला जाता हूं नहीं तो रोना धोना शुरू हो जाएगा और मैं मीटिंग पर नहीं जा पाऊंगा इसलिए मैं सुबह सुबह ही निकल जाता हूं बाकी जो भी होगा बाद में आकर देख लूंगा यह सारा दृश्य वह देख रही थी और जब वह अपना नाश्ता बना कर मीटिंग के लिए तैयार होकर घर से चला गया तो उसकी पत्नी की सुरत नीचे आई और वह जोर जोर से रोने लगी क्योंकि उसे मालूम पड़ गया था कि यहां सब गरजो के रिश्ते हैं यहां कोई किसी का नहीं सबको अपनी-अपनी पड़ी हुई है इसलिए तो फरमाए जाता है कि जब गर्ज खत्म हो जाती है तो रिश्ता भी खत्म हो जाता है वह समझ गई थी उसे ज्ञान हो गया था यह सब मोह माया है जिनके लिए मैं दिन-रात काम करती रही हूं जिनके लिए मैंने भजन तक छोड़ दिया और आज वही मुझे छोड़ कर चले गए मुझे देखना तक ठीक नहीं समझा और वह बहुत रोई
और ये पूरा वाक्य उसने माई को आकर बताया और उस दिन के बाद फिर उसने भजन सिमरन करना शुरू कर दिया और वह समझ गई थी कि अगर अंतिम समय किसी ने मेरा साथ देना है तो वह केवल सतगुरु है और भजन सिमरन है अगर मैं भजन सिमरन करती रही तो मेरी संभाल हो सकती है नहीं तो नहीं हो सकती तो उसे इस चीज की समझ आ गई थी कि यहां पर कोई किसी का नहीं है यह तो हमारा एक दूसरे से कर्मों का कोई हिसाब किताब है जिसकी वजह से हम मिले हुए हैं और जब यह खेल खत्म हो जाएगा जब हमारे कर्म खत्म हो जाएंगे तो हमारा इस माया की नगरी से छुटकारा हो जाएगा हम अपने सच्चे धाम सचखंड वापस चले जाएंगे ।
और ये पूरा वाक्य उसने माई को आकर बताया और उस दिन के बाद फिर उसने भजन सिमरन करना शुरू कर दिया और वह समझ गई थी कि अगर अंतिम समय किसी ने मेरा साथ देना है तो वह केवल सतगुरु है और भजन सिमरन है अगर मैं भजन सिमरन करती रही तो मेरी संभाल हो सकती है नहीं तो नहीं हो सकती तो उसे इस चीज की समझ आ गई थी कि यहां पर कोई किसी का नहीं है यह तो हमारा एक दूसरे से कर्मों का कोई हिसाब किताब है जिसकी वजह से हम मिले हुए हैं और जब यह खेल खत्म हो जाएगा जब हमारे कर्म खत्म हो जाएंगे तो हमारा इस माया की नगरी से छुटकारा हो जाएगा हम अपने सच्चे धाम सचखंड वापस चले जाएंगे ।
साध संगत जी इसी के साथ हम आपसे इजाजत लेते हैं आगे मिलेंगे एक नई साखी के साथ,अगर आप साखियां, सत्संग और सवाल जवाब पढ़ना पसंद करते है तो आप नीचे E-Mail डालकर इस Website को Subscribe कर लीजिए, ताकि हर नई साखियां, सत्संग और सवाल जवाब की Notification आप तक पहुंच सके ।
By Sant Vachan
0 Comments
Please do not enter any spam link in the comment box.