एक रूहानी साखी । इसे सुनने के बाद आप कभी नहीं कहोगे कि मेरे साथ जो हुआ वह गलत हुआ ! जरूर सुने


साध संगत जी वाणी में फरमाया गया है,
"जो होआ होवत सो जाने - प्रभ अपने का हुकम पछाणे"
साध संगत जी, सतगुरु कहते हैं कि जो भी होता है वो प्रभु के हुक्म से ही होता है क्योंकि प्रभु के हुकम अथवा प्रभु के बनाए नियम के विपरीत कुछ भी नहीं होता लेकिन हम में से बहुत ऐसे है जो कहते है कि जो हुआ - काश वो न हुआ होता" हम अक़्सर ऐसा सोच कर दुखी होते रहते हैं लेकिन जो संत महात्मा होते है वह हर परिस्थिति में  "जो हुआ वही होना था " मान कर उसे स्वीकार कर लेते हैं ।
कहो नानक जिन हुक्म पहछाता,
प्रभ साहिब का तिन भेद जाता,
जिसका अर्थ है कि जो होना होता है वह होकर ही रहता है और जो इस बात को समझ लेता है वह उस मालिक के हुकुम को समझ लेता है और उसकी रजा को समझ लेता है और वही उसका भेद जान सकता है तो साध संगत जी आज की साखी एक सत्संग करता की है जो उन्होंने संगत से सांझा की है जो उनकी सच्ची कहानी है वह मैं आपसे साझा करने जा रहा हूं और आज की यह कहानी सुनकर जो कि उनकी सच्ची आप बीती है वह सुनकर हमें आज यह पता चलेगा कि जो हमारे साथ होता है वह होना ही होता है उसको कोई रोक नहीं सकता क्योंकि वह मालिक के हुक्म से होता है और उसकी मर्जी से होता है और यहां पर जिस पर उस कुल मालिक की अपार कृपा होती है वह उसके इस भेद को समझ पाता है वह उसकी रजा को समझ पाता है और वही कुछ ऐसे सत्संगी भी हैं जो मालिक की मर्जी को नहीं समझ पाते, मालिक के हुक्म को नहीं समझ पाते और कहने लगते हैं कि हमारे साथ जो हुआ अच्छा नहीं हुआ ! हमारे साथ यह नहीं होना चाहिए था हमारे साथ बहुत बुरा हुआ ऐसा नहीं होना चाहिए था, साध संगत जी यह भी उस मालिक की कृपा है कि वह जिस को चाहे उसी को अपनी तरफ खींचता है अपना भेद देता है और जिसके अंदर उस मालिक से मिलने की सच्ची तड़प है सच्चा प्यार है तो वह उसी पर वह कृपा करता है उसी को वह समझ देता है उसी को अपना भेद देता है, तो ऐसा ही एक वाक्य एक सत्संगी के साथ हुआ जो अक्सर संगत को मालिक की तरफ जोड़ते थे उन्हें मालिक से जुड़ी हुई साखियां सुनाते और उसकी रजा में रहने के लिए कहते उसके हुकुम में रहने के लिए कहते और वह अक्सर फरमाते थे कि जो उसका हुक्म होता है केवल वही होता है जो उसकी मर्जी होती है वैसा ही होता है और जो हमारे साथ होना होता है वह होकर ही रहता है उसमें हम कुछ नहीं कर सकते तो ऐसे ही उनके घर उनके लड़के की शादी होती है उन्होंने बहुत प्रयास किए होते हैं कि लड़के की शादी हो जाए क्योंकि उनका लड़का ठीक से चल नहीं सकता जिसकी वजह से उनके लड़के की शादी नहीं हो पाती है लेकिन बहुत ही मुश्किल से उन्हें एक रिश्ता मिलता है और लड़के की शादी तय हो जाती है सब कुछ हो जाता है और ठीक शादी से एक दिन पहले रात को उन्हें फोन आता है की शादी को रद्द कर दिया गया है हम यह शादी नहीं कर सकते तो यह बात सुनकर उनको बहुत झटका लगता है एक सदमा सा लगता है कि यह क्या हो गया क्योंकि उन्होंने तो अपने घर रिश्तेदार भी बुलाएं होते हैं और शादी की पूरी तैयारी की होती है और सुबह बारात जानी होती है बारात की तैयारियां चल रही होती है और जैसे ही लड़की वालों की तरफ से फोन आता है की शादी नहीं हो सकती तो उन्हें एक बहुत बड़ा सदमा लगता है क्योंकि यह उनकी इज्जत का सवाल होता है कि सभी रिश्तेदार घर पर आए हुए हैं शादी की तैयारियां हुई पड़ी है और एकदम से लड़की वालों का फोन आ गया कि शादी नहीं होगी तो यह हमारे लिए बेइजती वाली बात है हम अपने रिश्तेदारों को क्या मुंह दिखाएंगे उन्हें क्या कहेंगे क्योंकि सभी घर पर आए हुए हैं लोग क्या कहेंगे कि पता नहीं ऐसी कौन सी बात हो गई कि लड़की वालों ने एक दिन पहले शादी तोड़ दी और उनको इसी बात की चिंता सताने लगती है और उनके घर संगत भी गई होती है तो वहां पर जो वह सत्संगी सत्संग करता है वह यह बात सुनकर कह देते हैं कि हमारे साथ जो हुआ वह बिल्कुल अच्छा नहीं हुआ, यह नहीं होना चाहिए था तो वहां पर जो मौजूद संगत होती है वह उनकी इस बात को गौर से सुनती है कि यह क्या कह रहे हैं ऐसी कौन सी बात हो गई कि जो ऐसा कह रहे हैं तो वह सभी को बता देते हैं कि हमारे लड़के की शादी रद्द कर दी गई है लड़की वालों ने शादी करने से मना कर दिया तो वहां पर सभी अपने अपने घर चले जाते हैं लेकिन वहां पर कुछ ऐसे सत्संगी होते हैं जिनको उनकी यह बात समझ में नहीं आती और वह दुविधा में पड़ जाते हैं कि यह ऐसा क्यों बोल रहे हैं कि हमारे साथ जो भी हुआ अच्छा नहीं हुआ ऐसा नहीं होना चाहिए था जबकि यह खुद सत्संग करता है और हमें मालिक का हुक्म मानने के लिए कहते हैं उसके हुकम में रहने के लिए कहते हैं और इन्होंने तो बहुत बार सत्संग में फरमाया है कि जो भी होता है उसकी मर्जी से होता है उसकी रजा में होता है तो हमें उस पर उंगली नहीं उठानी चाहिए तो अब यह खुद ही ऐसा कर रहे हैं तो वह दुविधा में पड़ जाते हैं कि यह क्या है तो उनके मन में दुविधा बहुत बढ़ जाती है तो उसके कुछ दिनों बाद जब वह गुरु घर जाते है तो संगत इस दुविधा को दूर करने के लिए उनके पास जाती हैं और उनसे सवाल करती हैं कि आप तो हमें अक्सर समझाते हैं आप तो अक्सर सत्संग में हमें समझाते हैं कि जो भी होता है उस मालिक के हुक्म से होता है उसकी मर्जी से होता है जो भी होना होता है वह होकर ही रहता है तो अब आपने यह बात क्यों कही कि हमारे साथ जो भी हुआ अच्छा नहीं हुआ ऐसा नहीं होना चाहिए था तो हमें इस बात को लेकर दुविधा हो गई है क्योंकि दोनों बातें बिल्कुल अलग है तो अब आप हमें बताइए कि आपकी कौन सी बात सही है और कौन सी गलत है क्योंकि हमें बड़ी दुविधा हो गई है क्योंकि उस समय आपने कुछ कहा था और अब आप कुछ कह रहे हैं तो उनकी इस बात को सुनकर वह भी घबरा जाते हैं कि यह मुझसे क्या बोल हो गया और अंदर ही अंदर वह भी दुविधा में पड़ जाते हैं और वह सेहम जाते हैं कि इस प्रश्न का जवाब तो मेरे पास भी नहीं है और वह अपने आप को बहुत असहाय पाते हैं कि अब मैं क्या करूं ! संगत मुझसे सवाल पूछ रही है कि कौन सी बात सही है तो मुझे तो जवाब देना पड़ेगा, तो उन्हें कुछ नहीं सूझ रहा होता, तो वहां पर आप जी कहते हैं कि मैं बहुत डर गया था क्योंकि ऐसा पहली बार मेरे साथ हुआ था की मैं चुप रह गया और मेरे पास कोई जवाब नहीं था तो उस समय मैंने सतगुरु के आगे यह अरदास की, मालिक के आगे यह अरदास की हे सच्चे पातशाह, संगत के सामने मेरी लाज रख ले और आप जी कहते हैं कि मैंने यही अरदास उसके आगे की, जैसे तू अपने भक्तों और प्यारों का मार्गदर्शन करता है उनकी संभाल करता है वैसे ही मेरे पर भी वह कृपा कर दे और मेरे मालिक मुझे इस सवाल का जवाब दे और मेरा मार्गदर्शन कर दे, आप जी कहते हैं कि मैंने आंखें बंद कर उस मालिक के आगे बस यही अरदास की और आप जी ने यह भी कहा कि अरदास की गहराई इतनी है जितनी किसी और चीज की नहीं हो सकती उसके बाद आप जी कहते हैं कि मेरी वह अरदास कबूल हुई और मुझे उसका उत्तर मिल गया, मेरे मालिक ने मेरा मार्गदर्शन किया, तब मैंने वहां पर जवाब दिया कि मैंने जो पहले कहा था वह भी ठीक है और जो दूसरी बार कहा वह भी ठीक है, तो मेरी इस बात को सुनकर संगत की दुविधा अभी भी दूर नहीं हुई थी तो मैंने उन्हें अच्छे से समझाने की कोशिश की, की होता तो उसके हुकम से ही है जो भी होता है, उसकी रजा में होता है उसकी मर्जी से होता है तो मेरे लड़के की शादी भी उसके हुकम से तय हुई थी उसकी मर्जी से तय हुई थी और उसकी ही मर्जी से टूट गई और तब उस दुख की घड़ी में मेरे मुख्य से जो वाक्य निकले वह भी उस कुल मालिक की कोई मौज थी उसकी मर्जी थी कि वह वाक्य मेरे मुख्य से निकले क्योंकि ऐसा होना ही था, वह शादी टूटनी ही थी और मेरे मुख्य से वह शब्द भी निकलने थे, जो मेरे अंदर उस समय दुख था वह ऐसे शब्दों के जरिए प्रगट होना था, यह ही उसका हुक्म था तो उनका यह जवाब सुनने के बाद तब जाकर संगत की दुविधा दूर होती है और उनमें से कुछ अभ्यासी ऐसे थे जो कि सोच रहे थे कि अब तो इनके पास कोई उत्तर नहीं होगा लेकिन मालिक की ऐसी कृपा होती है कि मुझे उत्तर मिल जाता है क्योंकि मालिक अपने भक्तों और प्यारों की लाज रख लेता है जो उसके नाम का प्रचार करते हैं जो हर पल उसकी ही बातें करते हैं जो हर समय उसकी याद में डूबे रहते हैं तो अपने ऐसे भक्तों और प्यारों की मालिक लाज रख लेता है उनकी संभाल करता है तो साध संगत जी, जैसे कि इस कहानी में जो हुआ कैसे मालिक ने उनकी लाज संगत के सामने रखी, साध संगत जी कई बार हम भी अपने आपको बहुत बुद्धिमान मानते हैं लेकिन जब कुछ ऐसी बातें हमारे सामने आ जाती हैं जब हम दुविधा में पड़ जाते हैं और हमें कुछ नहीं पता चल रहा होता तो उस समय केवल मालिक ही होता है जो हमें उस परिस्थिति से जूझने की ताकत देता है तो इस कहानी से भी हमें यही शिक्षा मिलती है कि हम चाहे कितने ही बुद्धिमान क्यों ना हो कितने ही ज्ञानी क्यों ना हो लेकिन कुछ चीजें ऐसी होती हैं जिसमें मालिक ही हमारी मदद कर सकता है वही हमारा मार्गदर्शन कर सकता है और हमें रास्ता दिखा सकता है, साध संगत जी, यदि हम थोड़ा गहराई से इस पर विचार करें तो हमारे पास दो विकल्प हो सकते हैं एक, जो हुआ उसे अपनी इच्छा के अनुसार बदल दें और जैसा हम चाहते हैं वैसा कर दें, या फिर अपनी इस इच्छा - इस विचार को कि "काश ऐसा न हुआ होता" इसको ही बदल दें, साध संगत जी, जो घटना हो चुकी है - क्या उसे बदला जा सकता है ? "जो हुआ - काश वो न हुआ होता".....ऐसा सोच सोच कर क्या हम बीती हुई घटनाओं को बदल सकते हैं ?
हम जानते हैं कि ऐसा होना मुमकिन नहीं हैं
लेकिन हम अपनी इच्छा - अपने विचारों को बदल सकते है तो हक़ीक़त में हमारे पास दो ही विकल्प बचते हैं :
या तो "काश ऐसा न हुआ होता" सोच सोच कर दुखी होते रहें या अपनी इस इच्छा को बदल कर "जो हुआ वही होना था" मान कर दूसरों को, स्वयं को या परिस्थिति को दोष देने की जगह उसे स्वीकार कर लें और सहज भाव में जीवन की गाड़ी को आगे बढ़ाते रहें । 

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By Sant Vachan

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