साध संगत जी आज की साखी ऐसे सत्संगीयों के लिए है जिन्हें नाम की बख्शीश तो हुई है लेकिन वह इस संसार में मोह और माया को छोड़ने के लिए तैयार नहीं है जब उनके सामने इसको छोड़ने की बात आती है तो वह ढेरों बहाने बनाने लगते हैं कि अभी हमारे पास समय नहीं है बच्चे छोटे हैं इन को पालने की जिम्मेदारी हमारी है और अगर बच्चे बड़े भी हो जाए तब भी यही बात कहते हैं कि अभी हमारी जिम्मेवारी खत्म नहीं हुई अभी इनकी शादी करनी है बच्चों को पैरों पर खड़ा करना है जब बच्चे पैरों पर खड़े हो जाएंगे तब जाकर हम मालिक की भजन बंदगी की तरफ ध्यान देंगे और जब बच्चे पैरों पर भी खड़े हो जाते हैं और उनकी शादी भी हो जाती है अगर तब हमें कोई मालिक का प्यारा आकर कहे कि भाई अब समय है अब भजन सिमरन कर लो और तब भी हम यही कहते हैं कि नहीं अभी हमारा अपने पोते और पोतियों को खिलाने का समय है जब यह बड़े हो जाएंगे तब जाकर भजन बंदगी करेंगे, ऐसे ऐसे हम बहाने बनाते रहते हैं, तो साध संगत जी आज की साखी कबीर महाराज जी के समय की है तो साखी को पूरा सुनने की कृपालता करें जी ताकि साखी का जो मूल अर्थ है वह आपको समझ में आ सके ।
साध संगत जी यह बात कबीर महाराज जी के समय की है उस समय सतगुरु अक्सर शाम के समय बाहर घूमने जाया करते थे और जिन से भी उनका मिलना होता था वह उसको मालिक की तरफ लगाने की कोशिश करते थे साध संगत जी आप तो जानते ही हैं कि जो संत महात्मा होते हैं उनका इस संसार में आने का केवल एक ही मकसद होता है कि वह हमें उस मालिक की तरफ लगा सके और वह शुरू से ही नाम का प्रचार करते हैं उसके नाम का हाेका संसार में देते हैं ताकि हमें अपने असल की खबर हो सके और हमारा रिश्ता उस मालिक से जुड़ सके तो वह इसी कारण इस संसार में जन्म लेते हैं इस माया की नगरी में केवल हमारे लिए ही आते हैं हमारा उद्धार करने के लिए ही आते हैं तो साध संगत जी सतगुरु जब शाम को सैर करने जाया करते थे तो जिस रास्ते से वह जाते थे उस रास्ते में एक बूढ़े बुजुर्ग का घर आता था और वह बुजुर्ग शाम के समय अपने घर के बाहर बैठ जाता था तो उसका मिलना सतगुरु से हो जाता था तो सतगुरु जब उस रास्ते से जाते थे तो उसका हाल-चाल पूछ कर जाते थे और उसे यह कहकर जाते थे कि भाई मालिक का नाम जप लिया कर उस मालिक की भजन बंदगी कर लिया कर और सतगुरु का उससे प्यार पड़ गया था क्योंकि हर रोज उससे मिलना होता था जब भी सतगुरु सैर करने जाते थे तो वह अपने घर के बाहर बैठा होता था तो सद्गुरु अक्सर उसे बुलाकर जाया करते थे और यही बात बार-बार कह कर उसे जाया करते थे कि भाई मालिक की भजन बंदगी कर ले, तो जब सतगुरु उसे यह बात कहते थे तो वह आगे से कहता था कि मेरे ऊपर जिम्मेदारियां बहुत है बच्चे नादान है गलती कर बैठते हैं इसलिए सब कुछ मुझे ही देखना पड़ता है तो मुझे समय ही कहां मिल पाता है कि मैं मालिक की भजन बंदगी कर सकूं जब बच्चे अपने पैरों पर खड़े हो जाएंगे मेरे कारोबार को संभाल लेंगे और मेरी जितनी भी जमीन है उसकी देखरेख करने के लायक बन जाएंगे तब जाकर मेरी परेशानी दूर होगी तब जाकर मैं उस मालिक की भजन बंदगी करूंगा, वह अक्सर ऐसा ही सतगुरु को कह देता था तो सतगुरु जब भी जाते उसका हाल-चाल जरूर पूछ कर जाते और उसे यही बात बार-बार कह कर जाते थे, तो सतगुरु ने उसे यह कह दिया था कि जब तेरी जिम्मेदारियां खत्म हो जाएंगी जब तुझे लगेगा कि अब मैं उस मालिक की भजन बंदगी कर सकता हूं तब मुझे बता देना क्योंकि मैंने तुम्हारा उद्धार करने की जिम्मेवारी ले ली है तो जब तेरे बच्चे पैरों पर खड़े हो जाएंगे तब मुझे बता देना तो ऐसे ही कुछ समय बीत गया और वह जो बूढ़ा किसान था उसके बच्चे पैरों पर खड़े हो गए उसकी जमीन की देखरेख करने लग गए तब कबीर जी फिर उससे मिले और उसे कहने लगे कि भाई अब तो तेरे बच्चे भी पैरों पर खड़े हो गए हैं और तेरी जो जमीन है उसकी देखरेख करने लग गए हैं तो अब तो मालिक की तरफ ध्यान दें, ज्यादा से ज्यादा समय उसकी भजन बंदगी को तुझे देना चाहिए तो जब यह बात सतगुरु ने उस बूढ़े किसान से कहीं तो उसने सतगुरु से कहा कि माना कि बच्चे अपने पैरों पर खड़े हो गए हैं और मेरी जमीन की देखरेख करने लग गए हैं लेकिन अभी भी मेरी जिम्मेवारी कम नहीं हुई है अभी इनकी शादी करनी है तो जब इनकी शादी हो जाएगी तब जाकर मेरी जिम्मेवारी थोड़ी कम होगी तब जाकर मैं भजन बंदगी कर पाऊंगा, तो सतगुरु मुस्कुरा पड़े और वहां से चले गए तो उसके लड़कों की शादी भी हो गई सब कुछ हो गया और एक दिन कबीर जी फिर उस रास्ते से जा रहे थे और वह बुजुर्ग बाहर बैठा हुआ था तो कबीर जी ने उससे उसका हालचाल पूछा और कहा कि अब तो तुम्हारे लड़कों की शादी भी हो गई है और जैसे तुमने कहा था कि जब लड़कों की शादी हो जाएगी तब मैं उस मालिक की तरफ ध्यान दूंगा तो अब कौन सी परेशानी है ? तो उसने कहा कि अभी बहुत समय पड़ा है और अभी अभी बच्चों की शादी हुई है और अभी तो मुझे अपने पोते पोतियो को खिलाना है उनसे खेलना है तो जब सतगुरु ने उसकी यह बात सुनी सतगुरु समझ गए थे की मन माया से ग्रस्त हो चुका है तो सतगुरु वहां से चले गए तो कुछ महीनों बाद सतगुरु फिर वही से गुजरे और वह बूढ़ा बुजुर्ग वहां पर नहीं था सतगुरु ने उसके घर जाकर पूछा कि जहां जो आपके पिताजी बैठते थे वह कहां है तो उन्होंने देखा कि कबीर जी आए हैं तो उन्होंने कहा कि वह तो कब के चले गए उनकी मृत्यु हो गई है और सतगुरु ने कहा कि वह मेरे मित्र थे इसलिए मैंने आपसे पूछा कि वह कहां पर है तो जब उन्होंने यह बात कही कि उनकी मृत्यु हो गई है तो सतगुरु उसी समय अंतर्ध्यान हुए और उन्होंने देखा कि वह जो बूढ़ा किसान था उसका उसकी एक गाय से बहुत प्रेम था वह उसका बहुत ख्याल रखता था तो वह उसके पेट में उस गाय का बच्चा बना हुआ है तो जब सतगुरु उस गाय के पास गए तो उन्होंने बड़े ही प्यार से उस गाय पर हाथ रखा और चले गए तो कुछ दिनों बाद जब सतगुरु फिर से उससे मिलने गए और उसका हाल चाल पूछने गए सतगुरु ने उसके ऊपर हाथ फेरते हुए कहा कि क्या हाल-चाल है तो उसने कहा कि मैं ठीक हूं तो सतगुरु ने कहा क्या हम तुम्हारी मुक्ति कर दे क्योंकि हमने तुम्हारी जिम्मेवारी ली थी कि तुम्हें सचखंड लेकर ही जाएंगे तो उसने कहा नहीं सतगुरु मुझे ऐसे ही रहने दे क्योंकि मुझे अपने पोते और पोतियों को देखना है और इसी बहाने मैं इनके पास तो रहूंगा तो सतगुरु यह सुनकर मुस्कुरा कर वहां से चले गए तो कुछ दिनों बाद उसकी मृत्यु हो जाती है और वह एक कुत्ता बन जाता है तो सतगुरु फिर उनके घर जाते हैं और देखते हैं कि वह वहां पर नहीं है और सतगुरु अंतर्ध्यान होते हैं शक्ति से देखते हैं कि वह कहां पर है तो देखते हैं कि वह अब कुत्ता बना हुआ है और जो उसकी जमीन थी वहां पर बैठा हुआ है तो सतगुरु उसके पास जाते हैं और उसका हालचाल पूछते हैं और कहते हैं कि क्या अब तुम्हारी मुक्ति कर दे, तो वह कहता है नहीं मेरे जो बच्चे हैं वह घर की देखभाल नहीं करते और उनको कोई परवाह नहीं है तो मुझे ही देखना पड़ता है कि कोई चोर आकर इनका कोई नुकसान ना कर जाए, कुछ चोरी कर कर ना ले जाए तो मुझे ही इनकी रखवाली करनी पड़ती है, तो सतगुरु फिर वहां से चले जाते हैं और उसके बाद वह एक सांप की जूनी में चला जाता है और सांप बनकर जो उसके घर का धन होता है उसकी रखवाली करनी शुरू कर देता है और एक दिन जब घर वालों को पता चलता है कि घर में सांप है तो घरवाले उसे मार डालते हैं तो उसकी मृत्यु हो जाती है तो वह एक कीड़े की जूनी में चला जाता है और उसी घर की नाली का कीड़ा बन जाता है तो सतगुरु फिर उसी घर में जाते हैं और अंतर ध्यान होते हैं देखते हैं कि वह कहां पर है तो सतगुरु को पता चलता है कि वह कीड़े की जूनी में है तो सतगुरु के साथ उनका एक शिष्य होता है सतगुरु उसे कहते हैं कि यह जो नाली में कीड़ा है इसे बाहर निकालो तो वह उनका हुक्म मान कर उस कीड़े को बाहर निकाल कर रख देता है और सद्गुरु उसे हाथ पर उठा लेते हैं और उसका हालचाल पूछते हैं कि अब कैसा है तो वह कहता है की बहुत बुरा हाल हो रहा है अब मुझे आप मुक्ति दे दो अब मुझे और यहां नहीं रहना तो सतगुरु उसकी यह बात सुनकर उसी समय उसे मुक्ति दे देते हैं और उसका उद्धार कर देते हैं तो साध संगत जी आज की इस साखी से हमें यह पता चलता है कि संतों का प्रेम जिनसे पड़ जाता है और अगर वह उनकी जिम्मेवारी ले ले और कह दे कि हम तुझे सचखंड लेकर जाएंगे तो वह हर हालत में उसे लेकर ही जाते फिर चाहे वह व्यक्ति भजन बंदगी करें या ना करें लेकिन वह सचखंड जाता ही जाता है क्योंकि संतों के मुख से निकला हुआ कोई भी शब्द पूरा होता ही होता है और वह तो खुद उस कुल मालिक का रूप होते हैं तो हमें इस साखी से यह भी पता चलता है कि हमारी हालत भी वह एक बूढ़े किसान जैसी ही है हम भी ऐसे ही माया की गहरी नींद में पड़े हुए हैं और अगर हमारे पास सतगुरु आए भी और कहे भी कि चलो सचखंड जाने की तैयारी करो हम तब भी तैयार नहीं होंगे और हम यही कहेंगे कि नहीं हमारे ऊपर बहुत जिम्मेदारियां हैं अभी बच्चे छोटे हैं अभी उनकी शादी करनी है तरह-तरह के बहाने हम तब भी बनाने लग जाएंगे क्योंकि माया का प्रभाव हम पर पड़ा हुआ है और हम इसकी गहरी नींद में सोए हुए हैं और हमें हमारे असल रूप की, जो कि हमारी आत्मा है हमें उसकी पहचान ही नहीं है हम शरीर से इतने जुड़े हुए हैं कि हमें लगता है कि यह माया ही सब कुछ है और जो हमारे रिश्ते बने हुए हैं हमें लगता है कि यह सदा के लिए रहेंगे लेकिन जब शरीर छूटता है तो वह रिश्ते भी छूट जाते हैं लेकिन जब हमारे मन के ऊपर इतने गहरे प्रभाव माया के पड़ जाते हैं कि जब हमारा शरीर भी हमसे छूट जाता है हम तब भी इन्हीं का ही गुणगान करते रहते है तो साध संगत जी हमें उस कुल मालिक के आगे यही अरदास करनी है कि हमें अपनी शरण बख्श और हमें इतनी ताकत दे कि हम तेरी भजन बंदगी कर सकें और अपने सच्चे धाम सचखंड पहुंच सके ।
साध संगत जी इसी के साथ हम आपसे इजाजत लेते हैं आगे मिलेंगे एक नई साखी के साथ, अगर आपको ये साखी अच्छी लगी हो तो इसे और संगत के साथ शेयर जरुर करना, ताकि यह संदेश गुरु के हर प्रेमी सत्संगी के पास पहुंच सकें और अगर आप साखियां, सत्संग और रूहानियत से जुड़ी बातें पढ़ना पसंद करते है तो आप नीचे E-Mail डालकर इस Website को Subscribe कर लीजिए, ताकि हर नई साखी की Notification आप तक पहुंच सके ।
By Sant Vachan
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