गुरु प्यारी साध संगत जी आज की साखी एक ऐसे विषय से संबंधित है जो कि हम भी जानना चाहते हैं कि आखिर जो नाम की कमाई वाले सत्संगी होते हैं जो भजन बंदगी को बताए गए समय से ज्यादा समय देते हैं अक्सर देखा गया है कि वह दूसरों के घर का खाना तक तो दूर वह तो पानी तक भी नहीं पीते, जो कमाई वाले सत्संगी है, वह ऐसा क्यों करते हैं उनके ऐसा करने के पीछे का क्या कारण है वह आज हमें इस साखी में पता चलेगा तो साखी को पूरा सुनने की कृपालता करें जी, साखी शुरू करने से पहले आपसे एक विनती की जाती है कि अगर आप शब्द सुनना पसंद करते हैं और अगर आप रूहानी शायरी सुनना पसंद करते हैं तो आप हमारे दूसरे चैनल को भी सब्सक्राइब कर सकते हैं Click here to subscribe : www.youtube.com/rssupdate
साध संगत जी एक बहुत ही कमाई वाली बीवी थी उनकी कमाई इतनी थी कि बताने वाले बताते हैं कि वह तो कितने कितने दिन खाना तक नहीं खाती थी और आसपास के लोग जब भी उनसे मिलने जाते थे वह तो उनके पैरों में पड़ जाते थे साध संगत अक्सर देखा जाता है कि जब भी कोई संत महात्मा होता है तो लोग उनके पैरों में पढ़ना शुरू कर देते हैं जबकि वह ऐसा करने से मना करते हैं क्योंकि वह कहते हैं कि रूहानियत हमारे पैरों में नहीं है हमारे कपड़ों में नहीं है रोहानियत आपके अंदर भी है जो दौलत मालिक ने हमारे अंदर रखी है वह आपके अंदर भी रखी है बस फर्क सिर्फ इतना है कि उन्होंने पहचान कर ली होती है और हमने पहचान नहीं की होती इसलिए हम बाहर भटकते रहते हैं इसलिए तो अक्सर फरमाए जाता है कि मन्मुख और गुरमुख में सिर्फ पहचान का ही फर्क है और कोई फर्क नहीं है जो गुरमुख होता है उसने पहचान कर ली होती है जो मन्मुख होता है वह बाहर ही भटकता रहता है बाहर ही धक्के खाता रहता है तो साध संगत जी ऐसे ही वह जो सत्संगी माई थी उनकी कमाई बहुत थी माता के परिवार वाले उनके कमरे में खाने की थाली छोड़कर आ जाते थे लेकिन जब वह वापस लेने जाते थे तो वह देखते थे कि खाना तो वैसे का वैसा ही पड़ा है माई ने खाया ही नहीं है सु तो साध संगत जी आप इस बात से अंदाजा लगा सकते हैं कि वह पूरा पूरा दिन पूरी पूरी रात भजन बंदगी में लीन रहती थी उन्हें खाने-पीने का भी कोई ख्याल नहीं होता था क्योंकि वह हर पल मालिक से जुड़ी रहती थी और जो मालिक से जुड़े होते हैं उन्हें खाने-पीने की क्या जरूरत है उनकी खुराक तो अब मालिक का नाम बन चुकी होती है उन्हें फिर खाने की जरूरत नहीं रहती उन्हें मालिक से वह नूर मिलता रहता है मालिक से वह शक्ति मिलती रहती है जिससे कि उनका शरीर चलता रहता है और उन्हें किसी तरह की कोई कमजोरी नहीं आती और जब माई बाहर आती थी तो बाहर बहुत संगत इकट्ठी हो जाया करती थी क्योंकि जैसे जैसे लोगों को पता चलता गया कि माई बहुत कमाई वाली है तो लोग अपनी मुसीबतें उनके पास लेकर आ जाते थे कोई उनसे अपने घर का मामला सुलझाने के लिए चला आता था कोई अपनी कोई और तकलीफ लेकर उनके पास आ जाता था तरह-तरह के लोग उनके पास आने लगे थे लेकिन माई को यह सब अच्छा नहीं लगता था जो कोई भी उनसे किसी तरह का सवाल करता था कोई भी उनसे कुछ पूछता था तो माई अक्सर कह दिया करती थी कि भजन सिमरन करो, नाम जपो, मालिक का नाम लेने से ही सभी दुख दूर होंगे और कोई दूसरा रास्ता नहीं है अगर दुखों से छुटकारा चाहिए तो मालिक के नाम का जाप करो भजन सिमरन करो और साध संगत जी माई अगर कहीं भी जाती थी तो वह किसी के घर का खाना तक तो दूर वह तो पानी तक नहीं पीती थी और ऐसा अक्सर देखा गया है कि जो नाम की कमाई करते हैं वह किसी के घर का पानी तक नहीं पीते तो एक सत्संगी ने उनसे यह पूछ लिया था की माताजी आप किसी के घर का पानी क्यों नहीं पीते तो साध संगत जी वह भी एक अभ्यासी था उसे भी नाम मिला हुआ था वह भी कमाई वाला था लेकिन उसकी कमाई इतनी नहीं थी जितनी वह माई की थी तो जब उसने माई से पूछा की माता जी कृपया इसके पीछे का कारण बताएं कि जो आप जैसे कमाई वाले जीव हैं वह किसी के घर का पानी तक क्यों नहीं पीते क्योंकि हमें भी यह जानना है क्योंकि हम भी इस मार्ग पर चल पड़े हैं और इसलिए हमें भी ये जानना है हमारे लिए भी यह जानना बहुत जरूरी हो गया है कि आप ऐसा क्यों करते हैं तो माता ने उस समय उस अभ्यासी के इस प्रश्न का उत्तर दिया था कि ऐसा क्यों है कि जो नाम की कमाई करते हैं वह किसी के घर का पानी भी नहीं पीते माता ने कहा था कि हम सभी जीवो के अपने-अपने कर्म है हमारा सभी का अपना अपना बोझ है जो हम साथ लेकर घूमते हैं लेकिन जो नाम की कमाई करते हैं भजन सिमरन करते हैं मालिक के प्यारे हैं उनके कोई कर्म नहीं होते वह इस चक्कर से मुक्त हो जाते हैं उनके सभी कर्म खत्म हो जाते हैं और जब ऐसा हो जाता है तो व्यक्ति अकरम की प्रक्रिया में प्रवेश करता है क्योंकि जब भी कोई अभ्यासी नाम की कमाई कर कर वह नाम रूपी धुन को सुन लेता है तब उस दिन से उसका कोई भी कर्म नहीं बनता और जो भी पिछले कर्म होते हैं सब खत्म हो जाते हैं व्यक्ति निरभार हो जाता है मालिक का रूप बन जाता है और अगर हम इस मार्ग पर चल पड़े हैं और अगर हमें नाम की बख्शीश हो गई है और हम भजन सिमरन को भी समय देते हैं तो हमें एक बात का ख्याल रखना होगा कि हमें जगह-जगह से खाना पीना बंद करना होगा ऐसा नहीं कि कहीं भी गए और कुछ भी खा लिया कुछ भी पी लिया, आप अक्सर देखते होंगे कि जो साधु महात्मा होते हैं वह कम खाते हैं वह ऐसा इसलिए है क्योंकि हम जो भी खाते हैं उसका असर हमारे मन पर पड़ता है क्योंकि जैसा हम अन्य ग्रहण करते हैं वैसा ही हमारा मन हो जाता है और इसलिए जो नाम की कमाई करते हैं वह सोच समझ कर खाते हैं सोच समझ कर पीते हैं और कम खाते हैं कम बोलते हैं कम सोते हैं ऐसा इसलिए है क्योंकि उन्हें पता चल जाता है जब वह नाम की कमाई पर बैठते हैं और उनकी चढ़ाई नहीं होती, रूह ऊपर नहीं चड़ती तब उन्हें पता चल जाता है कि कहीं पर कोई गड़बड़ हुई है और अक्सर ऐसा देखा गया है कि जब हम जगह-जगह से कुछ भी खा लेते हैं तो अक्सर ऐसी मुसीबतों का सामना हमें करना पड़ता है यह दिक्तें हमारे अभ्यास में आती है क्योंकि हमें नहीं पता होता कि वह किस मनोभावना से हमारे लिए वह खाना लेकर आया है या फिर किस भावना से वह हमारे लिए वह चीज लेकर आया है जो हमें ग्रहण करनी है और आप अक्सर देखते होंगे कि जो गुरु घर में लंगर बनता है प परशाद बनता है और जब हम उसको ग्रहण करते हैं तो मन को कितनी शांति मिलती है इसके पीछे का भी एक कारण है क्योंकि वहां पर हर समय नाम सिमरन का जाप चलता रहता है संगत नाम की कमाई में लीन रहती है और साथ-साथ लंगर भी बनाती है इसलिए मालिक के नाम का रस उस लंगर में भी आ जाता है और जब संगत उसको ग्रहण करती है तो संगत के मन को शांति मिलती है संतोष मिलता है और अगर हम बात करें दूसरी तरफ कि हम किसी के घर गए और उन्होंने हमें जो दिया और हमने खा लिया यहां तक तो ठीक है कि अगर हम इस मार्ग पर नहीं चले हैं लेकिन जो चल पड़े हैं जिनका लक्ष्य बन गया है कि इस मनुष्य जन्म में मालिक की कृपा से अपना आना जाना खत्म करना है जीना मरना खत्म करना है वह किसी के घर का पानी तक नहीं पीते वह एक-एक कदम फूंक-फूंक कर रखते हैं और घर का बना खाना ही खाते हैं जहां पर हर समय मालिक का नाम लिया जा रहा हो, यही कारण है कि वह किसी के घर का पानी तक नहीं पीते वह उसी घर का खाना खाना पसंद करते हैं या फिर पानी पीना पसंद करते हैं जो मालिक से जुड़े हैं जो रूहानियत से जुड़े हैं जिनके घर मालिक का नाम लिया जा रहा है यहां उसके नाम की चर्चा होती हो, यहां उसके नाम का जाप होता हो, उसी के घर का पानी पीते हैं उसी के घर का खाना खाते हैं अथवा वह किसी के घर का खाना नहीं खाते और ना ही किसी के घर का पानी पीते हैं तो साध संगत जी ये जवाब माताजी ने उस सत्संगी अभ्यासी को दिया और यह जवाब सुनकर उसको समझ आ गई थी कि माई हमें क्या समझाना चाहती हैं तो साध संगत जी इस साखी से हमें भी यही शिक्षा मिलती है कि अगर हम इस मार्ग पर चल पड़े हैं मालिक की कृपा से हमें नाम की बख्शीश हुई है तो हमें जगह-जगह से खाना बंद करना होगा तब हमें सोच समझ कर चलना पड़ेगा क्योंकि हम जो भी दिनभर करते हैं उसका असर हमारी भजन बंदगी पर भी पड़ता है क्योंकि मन बहुत जल्दी प्रभाव लेता है और हम जो भी अपने अंदर डालते हैं जैसा भी हम खाते हैं उसका प्रभाव हमारे मन पर पड़ता है और अगर हम कोई ऐसी चीज खा लेते हैं जिससे कि हमारी रूहानी तरक्की रुक जाए तब हमें बहुत तकलीफ होती है ऐसा अक्सर देखा गया है कि जब हम जगह-जगह से कुछ भी खा लेते हैं तो अक्सर उसका प्रभाव हमारी भजन बंदगी पर पड़ता है तो हमें सतगुरु की कृपा से वही खाना खाना चाहिए जहां पर मालिक का नाम लिया जा रहा हो उसके नाम का जाप किया जा रहा हो , बहुत सारे सत्संगी जीवों की शिकायत रहती है कि वह इतने सालों से भजन सिमरन करते आ रहे हैं लेकिन उनकी बात नहीं बनी तो ऐसे बहुत से कारण होते हैं जिसके कारण उनकी बात नहीं बनती जिनमें से एक कारण यह भी है कि हमें कम से कम खाना चाहिए और जितना हो सके बाहर का खाना कम करना चाहिए केवल घर का ही खाना खाना चाहिए जहां पर मालिक का नाम लिया जा रहा है अगर हम अपना यह मनुष्य जन्म सफल करना चाहते हैं तो हमें मालिक की भजन बंदगी में लगना है अपने सतगुरु के हुक्म में रहना है उसके भाने में रहना है ताकि हमारा इस जन्म में पार उतारा हो सके उस कुल मालिक से हमारा मिलाप हो सके ।
साध संगत जी इसी के साथ हम आपसे इजाजत लेते हैं आगे मिलेंगे एक नई साखी के साथ,अगर आप साखियां, सत्संग और सवाल जवाब पढ़ना पसंद करते है तो आप नीचे E-Mail डालकर इस Website को Subscribe कर लीजिए, ताकि हर नई साखियां, सत्संग और सवाल जवाब की Notification आप तक पहुंच सके ।
By Sant Vachan
0 Comments
Please do not enter any spam link in the comment box.