गुरु प्यारी साध संगत जी आज की यह साखी एक ऐसे सत्संगी लड़के की है जिसका सतगुरु से इतना प्यार देखकर आप भी रो पड़ोगे, साध संगत जी आपका भी मन भर जाएगा कि ऐसे ऐसे जीव भी हैं जो सतगुरु के दर्शनों के लिए क्या-क्या नहीं करते उनके अंदर अपने गुरु के दर्शनों की इतनी तड़प देख कर आज आपका भी मन भर जाएगा आपको भी सतगुरु की याद आएगी आपकी आंखों में भी सद्गुरु की याद में आंसू आ जाएंगे और आपको भी सतगुरु के रूहानी स्वरूप के अंदर दर्शन हो जाएंगे तो साध संगत जी साखी को पूरा सुनने की कृपलता करें जी ।
साध संगत जी आज की यह साखी एक ऐसे अभ्यासी की है जिसे उसके पिछले जन्म में ही उसे नाम मिल गया था उसे सतगुरु से नाम की बख्शीश हो गई थी और उसकी भजन बंदगी भी इतनी थी कि उसका पिछले जन्म में ही पार उतारा हो गया था उसकी भजन बंदगी पूरी हो गई थी लेकिन उसके अंदर सतगुरु के दर्शनों की अपने गुरु के दर्शनों की इतनी तड़प थी कि जब उसकी मृत्यु हुई तो वह इच्छा उसकी अधूरी रह गई जिसके कारण उसे दोबारा जन्म लेना पड़ा ताकि वह अपने सद्गुरु के दर्शन कर सके उनके दर्शन कर कर अपनी आत्मा को तृप्त कर सकें साध संगत जी ऐसे ऐसे सत्संगी जीव है जिनका इतना प्यार है अपने सद्गुरु से कि वह कितने ही पहुंचे हुए क्यों ना हो लेकिन उनके अंदर अपने गुरु के दर्शनों की तड़प लगी ही रहती है, इतनी उनके अंदर सतगुरु से मिलने की तड़प है, वह सतगुरु के रूहानी रूप के दर्शन तो अंदर करते ही रहते हैं लेकिन अपने सतगुरु के बाहरी दर्शनों की तड़प भी उनके अंदर इतनी होती है जिसे हम शब्दों में बयान नहीं कर सकते, ऐसा बहुत सारे अभ्यासियों के साथ होता है जिन्होंने नाम की कमाई तो की होती है और उन्होंने अपना आना जाना भी खत्म किया होता है लेकिन जब मृत्यु के समय उनके मन में या फिर उनके अंदर कोई इच्छा रह जाती है जिसे वह पूरा करना चाहते हैं और वह पूरा नहीं कर पाए तो उनका दोबारा से जन्म होता है उनके दोबारा जन्म होने का केवल एक ही कारण है कि वह अपनी उस इच्छा को पूरा कर सकें लेकिन जब उनका दोबारा से जन्म होता है तब उनके कोई कर्म नहीं होते और वह मालिक का रूप होते हैं और शुरू से ही वह मालिक से जुड़े हुए आते हैं और उनका बचपन से ही पता चल जाता है कि यह कोई मालिक की प्यारी रूह है और मालिक भी कभी कभी दोबारा से अपने भक्तों और प्यारों को भेज देता है ताकि वह इस संसार में उसके नाम का ह होका दे सके उसके नाम का प्रचार कर सकें और उनका मकसद केवल नाम का प्रचार करना होता है केवल लोगों को मालिक से जोड़ना होता है और उनका कोई काम नहीं होता और वह नाम का प्रचार करते करते ही चले जाते हैं मालिक में समा जाते हैं, और जब ऐसे महापुरखों का जन्म होता है उनका तेज ही इतना होता है कि जो उनके आसपास होते हैं वह उनके ऐसे तेज को सहन नहीं कर पाते जिससे कि पता चल जाता है कि यह मालिक का कोई प्यारा आया है तो साध संगत जी ऐसे ही उस बच्चे का जन्म भी एक सत्संगी परिवार में हुआ ताकि वह भी अपनी इस इच्छा को पूरा कर सके जो उसके अंदर रह गई थी कि उसे अपने गुरु के दर्शन करने थे उसके अंदर अपने गुरु के दर्शनों की तड़प थी लेकिन वह अपने पिछले जन्म में नहीं कर पाया था और उसकी मृत्यु हो गई थी और उसका अंतिम समय आ गया था जिसके कारण वह अपने गुरु के दर्शन नहीं कर पाया तो इसी के कारण उसका दोबारा जन्म हुआ और जब उसका जन्म हुआ तो साध संगत जी वह सत्संगी परिवार के कुछ जीव बताते हैं कि जिस कमरे में हमारे इस बच्चे का जन्म हुआ उस कमरे में एक अलग ही प्रकार की रोशनी हुई एक ऐसा तेज जिसे हम सहन नहीं कर पाए और हमारे परिवार में भी हमारे जो बुजुर्ग हैं वह भी नाम की कमाई करते हैं और जब उन्होंने देखा कि ऐसा हुआ है तब उन्हें तो पता चल ही गया था कि कोई कमाई वाला जीव आया है कोई महात्मा आया है तो साध संगत जी वह कहते हैं कि हमारे पुरखों ने हमें यह कह दिया जो हमारे बुजुर्ग थे उन्होंने हमें यह बता दिया कि यह कोई साधारण बालक नहीं है यह मालिक का प्यारा है जिसने हमारे घर जन्म लिया है साध संगत जी वह जो बुजुर्ग थे जो कि उस परिवार में सबसे बड़े थे उन्होंने सभी को बताया कि यह कोई मालिक की प्यारी रूह है जो हमारे घर आई है तो साध संगत जी सभी बहुत खुश थे और वह बताते हैं कि जब हमारे इस बच्चे का जन्म हुआ तब इसके दोनों हाथ जुड़े हुए थे और यह बिल्कुल भी नहीं रोया और इसने तीन दिन तक कुछ नहीं खाया पिया जैसा कि अक्सर बच्चे रोने लगते हैं और जब उन्हें दूध पिलाया जाता है या फिर गुड़ती दी जाती है तब ही वह चुप होते हैं लेकिन उन्होंने बताया कि हमारा यह बच्चा बिल्कुल ही अलग था इसने तीन दिन तक कुछ नहीं खाया और ना ही यह बिल्कुल भी रोया और उसके बाद जो कमाई वाले बुजुर्ग थे उन्होंने अपनी उंगली से उस बच्चे को शहद चटाया तब जाकर उसने अपना मुंह खोला और उसे खाया, साध संगत जी ऐसी लीला संगत को देखने को मिली तो सभी बहुत खुश थे साध संगत जी उस बच्चे का जन्म केवल इसलिए हुआ था कि वह अपने गुरु के दर्शन कर सके जो उसके अंदर गुरु के दर्शनों की प्यास थी वह उसे पूरा कर सके उसकी जो इच्छा थी वह उसे पूरा कर सकें लेकिन यह बात उस परिवार को नहीं पता थी तो साध संगत जी जैसे जैसे वह बच्चा बड़ा हुआ तो उनके परिवार वालों को तो पता चल ही गया था की ये कोई कमाई वाली रूह है जिसका हमारे घर जन्म हुआ है साध संगत जी उस लड़के की जो माता थी वह भी कमाई वाली थी और अक्सर देखा जाता है कि अगर किसी कमाई वाली रूह ने जन्म लेना होता है या फिर किसी मालिक के प्यारे ने आना होता है तो वह गर्भ भी उसी के जैसा चाहिए होता है कोई साधारण गर्भ किसी महात्मा को जन्म नहीं दे सकता इसलिए जो महात्मा होते हैं उनका जन्म ऐसे गर्भ में होता है जो की कमाई वाला होता है तो उसकी माता भी कमाई वाली थी और उसकी मां बताती है कि जब इसका जन्म होने वाला था तब मेरे अंदर से भी एक अजीब सी रौशनी निकली जिसे देखकर मेरी आंखें तो बंद हो गई क्योंकि मेरी आंखें वह रोशनी को झेल ही नहीं पाई और मुझे तब ही पता चल गया था कि मेरा बच्चा कोई साधारण बालक नहीं है यह मालिक की प्यारी रूह है साध संगत जी जैसे जैसे वह लड़का बड़ा होता गया तो उसे यह ज्ञान होता गया कि मेरा जन्म किस कारण वश हुआ है क्योंकि उसकी भजन बंदगी तो पूरी थी और वह बचपन से ही सब जान गया था और उसे बचपन से ही यह लो हो गई थी कि मेरा पिछला जन्म कहां पर हुआ था और मुझे दोबारा आना पड़ा है और मैं केवल इसलिए आया हूं क्योंकि मैं अपने सतगुरु के दर्शन कर सकूं जो मेरी इच्छा मेरे पिछले जन्म में पूरी नहीं हो पाई उसको पूरा कर सकूं वह बचपन से ही रूहानियत की बातें करता था क्योंकि साध संगत जी हमारे पास जो होता है हम वही बताते हैं जो हमारे पास है ही नहीं हम उसको कहते भी नहीं है तो वह लड़का अक्सर ऐसी बातें करता था जो उसके घर वालों को भी समझ में नहीं आती थी केवल उसकी मां ही उसे समझती थी कि मेरा बच्चा क्या कह रहा है और वह लड़का अपनी मां से बहुत प्यार करता था और अक्सर अपनी बातें अपनी मां से करता था और उसने अपनी मां को सब बता दिया था कि मेरा पिछला जन्म किस गांव में हुआ था और मेरी एक इच्छा अधूरी रह गई थी और केवल उसी इच्छा के कारण मेरा दोबारा जन्म हुआ है मेरा और कोई मकसद नहीं है मेरा मकसद केवल अपने गुरु के दर्शन करना है क्योंकि मेरे अंदर वह तड़प थी जो मेरी पूरी नहीं हो पाई तो इसी के कारण मेरा जन्म हुआ है तो साध संगत जी उसने अपनी मां को बताया था कि जब यह इच्छा मेरी पूरी हो जाएगी मैं यहां से चला जाऊंगा और जब यह बात उसने अपनी मां को कहीं उसकी मां रोने लग गई और उसने अपने बच्चे को गले लगा लिया कि ऐसा मत बोल और वह उसे गले लगाकर घंटों रोती रही साध संगत जी वह जो सत्संगी परिवार था वह अक्सर सत्संग पर जाया करता और वह लड़का भी उनके साथ जाता था उन्होंने कभी भी कोई सत्संग मिस नहीं किया था वह अक्सर सत्संग पर जाया करते थे और सतगुरु के दर्शन किया करते थे तो साध संगत जी एक दिन ऐसे ही वह सत्संग के लिए तैयार हो रहे थे और उसकी मां ने अपने लड़के को कहा कि बेटा तैयार हो जाओ हमें सत्संग पर जाना है और उस दिन वह कुछ अलग सा व्यवहार कर रहा था उसने अपनी मां को बोल दिया कि मां मेरी वह इच्छा पूरी हो गई है मैंने अपने गुरु के जी भर कर दर्शन कर लिए हैं अब मेरा जाने का समय आ गया है जब यह बात उसकी मां ने सुनी तब उसकी मां तो वहीं बेहोश हो गई साध संगत जी वहां पर जो संगत मौजूद थी वह बताती है कि उसकी मां को तो एक-दो घंटे तक होश नहीं आया साध संगत जी होश आने के बाद उसकी मां ने अपने बच्चे को गले लगा लिया और उसे कहा कि तू कहीं नहीं जाएगा, और उस बच्चे ने अपनी मां को कहा नहीं मां सतगुरु का हुक्म हो गया है मालिक का हुक्म हो गया है कि अब तेरी इच्छा पूरी हो गई है अब तुझे यहां से प्रस्थान करना है मैं तुझे इस समय लेने आ जाऊंगा और सतगुरु ने मुझे समय भी दे दिया है और मेरे जाने का समय हो गया है अब मैं चाह कर भी यहां और नहीं रुक सकता साध संगत जी यह बातें सुनकर उसकी मां रोने लग गई और बहुत सारी संगत उनके घर इकट्ठी हो गई क्योंकि सभी को पता था कि कोई कमाई वाली रूह है साध संगत जी उसने अपनी मां को बता दिया था कि मैं इस समय चला जाऊंगा और इस समय मुझे सतगुरु लेने आ जाएंगे तो उसने 10, 15 मिनट पहले, अपनी मां की तरफ प्यार से देखा और वह अपने बिस्तर पर बैठ गया और अंतर्ध्यान हो गया साध संगत जी उसी समय सतगुरु आए और उसे अपने साथ लेकर चले गए, वहां पर जो संगत मौजूद थी वह बताती है कि लड़के के चेहरे पर एक अजीब सी मुस्कान थी जैसे कि सतगुरु बड़े ही प्यार से उसे लेकर गए हैं साध संगत जी ऐसी मृत्यु उन्होंने पहले कभी नहीं देखी थी ऐसे कोई हंस कर अपने प्राण त्याग गया तो वहां पर सभी संगत यह सब देख कर बहुत हैरान थी क्योंकि उन्होंने ऐसा दृश्य पहले नहीं देखा था और सभी संगत उसकी मां को हौसला दे रही थी क्योंकि उसकी मां का रो रो कर बुरा हाल था और इस तरह उस लड़के ने सभी साध संगत से विदाई ली और अपना जन्म सफल किया साध संगत यह सतगुरु की लीला ही है जो वह अपने भक्तों के साथ करते हैं ये उसकी लीला है हम उसकी लीला को नहीं समझ सकते उसके भक्त और प्यारे भी उसी का रूप होते हैं उन्हें समझना इतना आसान नहीं होता वह चाहे तो कुछ भी कर सकते हैं लेकिन वह मालिक के भाने में रहते हैं साध संगत जी वह लड़का चाहता तो वह यहां पर कुछ देर और रुक सकता था लेकिन उसने ऐसा नहीं किया जैसे ही उसे मालिक का हुक्म हुआ सतगुरु का उसे हुक्म हुआ उसने उनके भाने में रहकर उनके हुकम को माना और उसका उस कुल मालिक से मिलाप हो गया, साध संगत जी हमें भी अपने सतगुरु के भाने में रहना है भजन सिमरन करना है, जोर देकर करना है मन लगे ना लगे अपने सतगुरु का हुक्म मान कर डटकर भजन सिमरन करना है और अपने सतगुरु की खुशी प्राप्त करनी है ।
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By Sant Vachan
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