साध संगत जी आज की साखी हमारे मन में ना चाहते हुए चलने वाले ढेरों विचारों से संबंधित है जब हमारे मन में ना चाहते हुए ऐसे ऐसे विचार आने लगते हैं जो कि नहीं आने चाहिए तो उसे कैसे रोका जाए उसका कैसा सामने किया जाए तो आज की साखी में हमें इसी के बारे में पता चलेगा, तो साध संगत जी क्या आपके मन में दूसरे व्यक्ति के प्रति ना चाहते हुए भी अश्लील विचार आते हैं ? अब वह सामने वाला व्यक्ति स्त्री हो सकती है या पुरुष हो सकता है और साध संगत जी अगला प्रश्न यह है कि अपने अंदर की और कैसे मुड़ा जाए और भजन बंदगी के जरिए अपने भीतर की तरफ कैसे उतरा जाए और मन का साक्षी कैसे बना जाए क्योंकि अगर हम एक बार भी भजन बंदगी के जरिए अपने भीतर की तरफ उतर गए और हमारी इंद्रियां अगर भीतर की तरफ मुड़ गई तो जो हमारी पहली समस्या है वह बहुत छोटी है ऐसी बहुत सारी छोटी-छोटी समस्याएं अपने भीतर जाने से हल हो जाएंगी तो अगर आप जानना चाहते हैं कि अपने भीतर कैसे जाया जाए, कैसे मन को अंदर की तरफ मोडा जाए तो आपको इस साखी को पूरा सुनना होगा और यह साखी आपको सिखाएगी कि कैसे अपने मन को और इंद्रियों को अंदर की तरफ मोड़ना है और उस नाम रूपी धुन को सुनना है तो साखी को पूरा सुनने की कृपालता करें जी ।
साध संगत जी एक राजा अपना राज छोड़कर रोहानियत की खोज के लिए चल पड़ा और अचानक से उसके अंदर मालिक के नाम की तड़प पैदा हुई जिसके कारण उसने अपना राज तक त्याग दिया और सन्यासी बन गया और एक पूर्ण संत महात्मा की खोज में निकल पड़ा जो कि उसे रूहानियत के बारे में बता सके उसका मार्गदर्शन कर सके तो जब उसका मिलाप एक महात्मा से हुआ तो जब वह उनके पास गया तो उसने अपनी रूहानियत की तड़प उनके सामने रखी कि मुझे रूहानियत चाहिए कृपया मुझे अपना शिष्य बना लीजिए तो उसकी ऐसी तड़प देखकर उन्होंने उसे अपना शिष्य बना लिया और उस गांव में उस महात्मा की एक सेविका रहती थी जोकि सुबह शाम उस महात्मा को खाना दिया करती थी उन को भोजन देने जाया करती थी और उनकी सेवा में हाजिर रहती थी तो जब वह राजा उस महात्मा का शिष्य बन गया तो उस महात्मा ने उसे उस सेविका के घर भिक्षा मांगने के लिए भेज दिया और जब वह भिक्षा मांगने गया तो रास्ते में सोचता जा रहा था कि मैं एक राजा था और मुझे अच्छे-अच्छे पकवान खाने को मिलते थे अच्छा अच्छा भोजन मुझे खाने की आदत थी तो जब वह उस सेविका के घर गया और उसका दरवाजा खटखटाया सेविका ने आकर दरवाज़ा खोला और उसका स्वागत किया और उसे अंदर आने के लिए कहा और जब उसने उस महात्मा का नाम बताया तो वह सेविका समझ गई थी और वह उसके लिए भोजन तैयार करने रसोई में चली गई और वह मन ही मन सोच रहा था कि अगर अब मैं अपने राज महल में होता तो मुझे अच्छे-अच्छे पकवान खाने को मिलते जो उसे बहुत पसंद थे वह इसी के बारे में सोच रहा था और जब वह सेविका उसके लिए खाना बनाकर ले आई तो वह हैरान रह गया क्योंकि उसे वही पकवान उस भोजन में देखने को मिले जो उसे बहुत पसंद थे वही पकवान उस सेविका ने उसके लिए हाजिर किए और उसने भोजन किया और भोजन करने के बाद वह सोच रहा था कि मुझे भोजन करने के बाद आराम करने की आदत थी लेकिन अब तो मुझे धूप में चल कर मुझे वापस जाना पड़ेगा तो उस सेविका ने उसे आराम करने के लिए कहा और उसके मन में तभी यह बात आई कि मैं आराम करने के बारे में सोच ही रहा था और उसी समय इन्होंने मुझे आराम करने के लिए कह दिया तो उसने इस बात को सयोग समझा और उसके बाद वह वहां पर आराम करने लग गया और जब वह वहां पर आराम कर रहा था तो वह मन ही मन सोच रहा था कि ना तो मेरे पास घर है ना ही परिवार है और ना ही सिर पर छत है अभी थोड़ी देर में मुझे यहां से विदा लेनी होगी तो उस सेविका ने उसी समय कहा कि आप ऐसा क्यों सोच रहे हैं कि आपके पास घर नहीं है परिवार नहीं है और सिर पर छत नहीं है ये घर भी आपका ही है, आप जितनी देर चाहो यहां पर आराम कर सकते हो, तो वह एकदम से चौका और उठकर बैठ गया और उसे इस बात की हैरानी थी कि मैं जो भी सोच रहा हूं वह इनको कैसे पता चल रहा है और तब उसने यह पक्का मन बना लिया था कि यह कोई संयोग नहीं है तो उसने उस सेविका से पूछ लिया कि क्या आप व्यक्ति के विचार पढ़ सकती है तो उस सेविका ने मुस्कुराते हुए कहा जी हां मैं दूसरों के विचार पढ़ सकती हूं क्योंकि अब मेरे अपने विचार नहीं रहे मेरे मन में भी ढेरों विचार होते थे लेकिन जब मैंने अपने विचारों को देखना शुरू किया तब मैं ना तो उनके पक्ष में गई और ना ही उनके विपक्ष में गई मैंने केवल अपने विचारों को देखा और देखने का प्रयास किया वैसे वैसे ही मेरे विचार कम होते गए और एक दिन ऐसा आया कि मेरे सभी विचार विलीन हो गए, अंदर बिल्कुल शांति हो गई एकदम सन्नाटा सा छा गया बस उसी दिन से मैं दूसरों के विचार पढ़ लेती हूं तो वह जो सन्यासी था वह उस सेविका की यह बात सुनकर डर गया और उसने सोचा ये तो बहुत खतरनाक बात है कि यह दूसरों के विचार पढ़ लेती है तो वह वहां से भागा और उस सेविका ने उनसे पूछने की कोशिश की कि क्या हुआ ! लेकिन उसने कोई जवाब नहीं दिया वह वहां से भागकर महात्मा के पास आया और उनके पास आकर कहने लगा कि अब से मैं उस सेविका के घर नहीं जाऊंगा तो वह जो महात्मा थे वह उसकी यह बात सुनकर कहने लगे कि ऐसी कौन सी बात हो गई कि दुबारा तुम उसके घर नहीं जाओगे, क्या उससे कोई गलती हो गई है कि तुम उसके घर नहीं जाओगे, तो उसने कहा नहीं, ऐसी कोई बात नहीं है वह जो सेविका है वह दूसरों के विचार पढ़ लेती है यह बहुत ही खतरनाक बात है, तब तो उसने मेरे सभी विचार पड़ लिए होंगे, क्योंकि जब मैं उसके घर गया था, तब उसको देखकर मेरे अंदर गलत विचार भी आए थे, उसने वह भी पढ़ लिए होंगे, तो उस महात्मा ने कहा कि फिर तो तुम्हें वही जाना पड़ेगा और तुम वहां से भागे क्यों ? तुम्हें वहां रहकर उस परिस्थिति का सामना करना चाहिए था ऐसे भागना नहीं चाहिए था, क्या इसीलिए तुम सन्यासी हुए हो और तुमने अपना राज छोडा है, नहीं तुम्हें फिर से दोबारा वहीं पर जाना होगा यह मेरा हुक्म है और अब दोबारा जब वहां पर जाओगे तो जागे हुए जाना और पूरी जागरूकता के साथ जाना जो भी विचार तुम्हारे अंदर चलेंगे उनको देखना लेकिन उनके पक्ष में नहीं जाना और ना ही उनके विपक्ष में जाना बस तुम्हें उन्हें देखना है और जागकर देखना है जागरूकता के साथ तुम्हें देखते हुए जाना है तो जब वह सन्यासी दोबारा उस सेविका के घर जा रहा था तब वह पहली बार जागा हुआ चल रहा था उसे हर एक चीज बहुत ही स्पष्ट दिखाई दे रही थी वह ऐसे जा रहा था जैसे उसके अंदर दीया जल रहा हो और वह जागा हुआ हो उसके मन में जो जो विचार आ रहे थे जैसे भी उसके अंदर विचार आ रहे थे वह उनको देख रहा था और जैसे-जैसे वह उस सेविका के घर के पास जाता जा रहा था वैसे वैसे ही उसके विचार विलीन होने लगे थे और उसके अंदर शांति आनी शुरू हो गई थी क्योंकि वह अपने विचारों को जागकर देख रहा था वे पूरी जागरूकता के साथ जा रहा था और जब वह उस सेविका के घर पहुंचा और जब उसने दरवाजा खटकाया तो उस सेविका ने दरवाजा खोला और जब उसने दरवाजा खोला तो उसके अंदर बिल्कुल सन्नाटा छा गया, शांति छा गई उसके सभी विचार विलीन हो गए उसके अंदर कोई भी विचार नहीं था और उस सेविका ने उसका स्वागत किया और उसे भोजन कराया उसने जागरूकता के साथ भोजन किया जैसे कि महात्मा ने बताया था की पूरी जागरूकता के साथ मन की हरकतों को देखना जो जो भी तुम्हारे अंदर विचार आएंगे उनको देखना तो वह पूरी तरह से जाग गया था और उसने वहां पर भोजन किया और उस सेविका का धन्यवाद किया और वापस जब आया तो वह पहले जैसा डरा हुआ नहीं था जैसे कि पहले जब वह वापस आया था तो वह निराश था हताश था इस बार वह खुशी से भरा हुआ उस महात्मा के पास आया और उसने उस महात्मा के पांव पकड़ लिए और उसने कहा की आज तो एक दिव्य घटना घटी है, ऐसा आज से पहले कभी नहीं हुआ, एक अजीब सी शांति प्रतीत हो रही है, ये मेरे साथ किसी चमत्कार से कम नहीं है, तो उस महात्मा ने कहा कि अब तुम्हें वहां पर जाने की कोई आवश्यकता भी नहीं है क्योंकि अब तुम्हारा विवेक जाग गया है तुम्हे अपने मन का साक्षी बनना आ गया है और उसने उस महात्मा के पांव पकड़कर उनका धन्यवाद दिया, तो साध संगत जी आज कि इस साखी से हमें यही प्रेरणा मिलती है की आंख बंद करने से परिस्थिति नहीं बदलती, आंख खोल कर उस परिस्थिति का सामना करने से ही परिस्थिति बदलती है, साध संगत जी हमें भी ऐसे ही अपने मन का साक्षी बनना है हमारे अंदर जो फालतू के विचार चलते हैं हमें इनका साक्षी बनना है हमें ना तो इनके पक्ष में जाना है और ना ही इनके विपक्ष में जाना है हमें केवल इनको देखना है और साक्षी बन कर देखना है एक दिन ऐसा आएगा जिस दिन यह सभी विचार विलीन हो जाएंगे और उस कुल मालिक की हम पर किरपा हो जाएगी वह नाम धुन हमें सुनाई देने लगेगी और हमारा उस कुल मालिक से मिलाप हो जाएगा ।
साध संगत जी इसी के साथ हम आपसे इजाजत लेते हैं आगे मिलेंगे एक नई साखी के साथ,अगर आप साखियां, सत्संग और सवाल जवाब पढ़ना पसंद करते है तो आप नीचे E-Mail डालकर इस Website को Subscribe कर लीजिए, ताकि हर नई साखियां, सत्संग और सवाल जवाब की Notification आप तक पहुंच सके ।
By Sant Vachan
0 Comments
Please do not enter any spam link in the comment box.