साध संगत जी आज की साखी एक ऐसे सत्संगी की है जिन्हें नाम दान मिले अभी दो ही वर्ष हुए हैं और उनका एक बहुत बड़ा कारोबार है और उसके साथ ही उनके अंदर सतगुरु के प्रति प्रेम प्यार इतना है कि अगर कहीं पर गुरु घर की बातें चल रही हो मालिक की बातें चल रही हो या फिर कोई साखी सुना रहा हो तो वह ऐसी चीजों को सुनना बहुत पसंद करते हैं जो उस कुल मालिक से जुड़ी होती है तो उनके अंदर भी रोहानियत को लेकर बहुत तड़प है सतगुरु के प्रति बहुत प्यार है वह तो बातों-बातों में यहां तक कह देते हैं कि मुझे अपने सतगुरु से इतना प्यार है कि अगर वह मुझे कहे की दुनिया को छोड़ कर मेरे पास आ जाओ तो मैं एक पल का भी समय नहीं लगाऊंगा भागकर उनके पास चला जाऊंगा मुझे उनके अलावा और कुछ नहीं चाहिए ।
मैंने सब देखा है कि यह दुनियादारी कैसी है यह दुनिया क्या है और मैंने अंत में यही पाया है की यह दुनिया ऊपर से तो बहुत खूबसूरत है लेकिन जब हम इसकी गहराई में जाते हैं तब हमें पता चलता है कि यह तो माया का हिस्सा है माया रूपी है हम जिस में उलझे पड़े हैं वह हमारे साथ नहीं जाएगी और अगर कुछ जाएगा तो केवल सतगुरु का दिया हुआ नाम जाएगा तो उनका सतगुरु के प्रति बहुत प्रेम है प्यार है तो ऐसे ही वह अपने कुछ निजी अनुभव बातों ही बातों में संगत से सांझा कर देते हैं हाल ही में उन्होंने अपना एक निजी अनुभव संगत से सांझा किया है और आप जी कहते हैं कि यह अनुभव उनके जीवन का सबसे कीमती अनुभव था उन्होंने ऐसा पहले अपने साथ हुआ कभी नहीं देखा था उनके लिए यह एक दिव्य घटना थी और एक प्रकार का चमत्कार ही था जो उनके साथ हुआ जब उन्होंने अपना वह अनुभव संगत से सांझा किया तो कुछ अभ्यासियों को डर लगने लगा कि अगर इनके साथ ऐसा हुआ है तो हमारे साथ भी होगा तो साध संगत जी आप जी कहते हैं कि मैंने अपने घर में मालिक की भजन बंदगी के लिए एक अलग कमरा बना रखा है यहां पर बैठकर उस कुल मालिक की कृपा से भजन बंदगी करता हूं जितना समय बताया जाता है देता हूं और जब मैं उस कमरे में जाता हूं तो दुनियादारी बाहर छोड़कर जाता हूं और अपने परिवार वालों को भी बोल देता हूं कि जब मैं अपने इस कमरे में जाऊं तो कोई मुझे परेशान ना करें कोई भी बाहर से दरवाजा खटखटाए ना और मुझे परेशान ना करें तो उनकी पत्नी को भी पता है कि वह भजन बंदगी के लिए जाते हैं तो वह भी उन्हें परेशान नहीं करती साध संगत जी वह कहते हैं कि जिस दिन से मुझे नाम मिला है तब से मैं अपने सतगुरु के हुक्म के अनुसार भजन बंदगी करता आ रहा हूं और मुझे बहुत सारे अनुभव हुए हैं जिनमें से एक कीमती अनुभव आपसे सांझा करता हूं आप जी कहते हैं कि एक दिन में भजन बंदगी के लिए बैठा और उस दिन मालिक की कृपा से ध्यान भी बहुत अच्छा हुआ ऐसा ध्यान पहले कभी नहीं हुआ था और जब समय 2:30 घंटे से भी ऊपर हो गया, उससे कहीं ज्यादा समय हो चुका था लेकिन ध्यान इतना अच्छा लगा था कि समय का कोई पता ही नहीं चला ऐसी उस कुल मालिक की कृपा हुई और उस दिन मुझे किसी ने परेशान भी नहीं किया और ना ही मेरे अंदर कोई विचार थे क्योंकि अक्सर देखा जाता है कि जब हम भजन बंदगी पर बैठते हैं तो विचार ही सबसे पहले बाधा बनते हैं तो इनको हमने सिमरन के जरिए साफ करना होता है जैसे जैसे हम सिमरन करते जाते हैं यह अपने आप गायब हो जाते हैं तो आप जी कहते हैं कि उस दिन मैंने सिमरन करना शुरू किया और जैसे-जैसे ध्यान आना शुरू हुआ मुझे पता ही नहीं चला कि समय क्या हो गया है और ऐसा लगा कि मैं हूं ही नहीं और उस समय मुझे बहुत हल्का पन महसूस हो रहा था और उसके कुछ देर बाद मैंने पाया कि मैं अपने स्थूल शरीर से अलग हो चुका हूं यह अनुभव मेरे लिए बहुत कीमती था लेकिन उस समय मैं डर गया कि यह क्या हो गया क्योंकि जब मैं अपने शरीर से अलग हुआ तब मुझे इस बात का डर लग रहा था कि अब मैं अपने शरीर में वापस कैसे जाऊंगा मेरी नाभि से एक चमकीली तार मेरे स्थूल शरीर से जुड़ी हुई थी जिसने मुझे अपने स्थूल शरीर से जोड़ रखा था और उस समय मुझे इतना हल्का पन महसूस हो रहा था कि जैसे मैं हूं ही नहीं और मैं एक प्रकार से हवा में ही था और अपने स्थूल शरीर के अंदर वापस जाने की कोशिश कर रहा था और उस समय मुझे बहुत डर लगा कि ऐसा पहले कभी नहीं हुआ अब मैं अपने शरीर के अंदर वापस कैसे जाऊंगा अब क्या होगा क्योंकि मुझे इसके बारे में कोई ज्ञान नहीं है तो आप जी कहते हैं कि मैंने उसी समय सतगुरु का सिमरन करना फिर से शुरू कर दिया और उनको याद करना शुरू कर दिया और आप जी कहते हैं कि जब मैंने सतगुरु का दिया हुआ सिमरन करना शुरू किया और उसी समय मैं अपने स्थूल शरीर के अंदर वापस चला गया और उसके बाद मैंने अपनी आंखें खोली और देखा कि मैं फिर से अपने स्थूल शरीर में वापस आ गया और उसी के साथ मैंने अपने शरीर में कुछ परिवर्तन पाए क्योंकि जब हम अपने शरीर से अलग हो जाते हैं तब कुछ तब्दीलियां हमारे स्थूल शरीर में होती है जैसे कि बहुत सारे अभ्यासियों के जो बाल होते हैं वह सफेद होने लगते हैं और ऐसा होने का कारण यह है क्योंकि जब हम अपने शरीर से अलग हुए वह ऊर्जा हमारे स्थूल शरीर से अलग हुई तब इसके अंदर कुछ परिवर्तन आते हैं बहुत सारे अभ्यासियों की आयु भी कम हो जाती है ऐसा देखा गया है क्योंकि जब वह ऊर्जा स्थूल शरीर से अलग होती है तो जब वापस शरीर में आती है तो कुछ तब्दीलीयों के साथ आती है इसीलिए तो फरमाया जाता है कि भाई बिना गुरु के अंदर जाने की कोशिश मत करना क्योंकि इस मार्ग पर गुरु के बिना जाया नहीं जा सकता चला नहीं जा सकता अगर आपको इस मार्ग पर चलना है तो आपको एक पूरे गुरु की शरण में जाना होगा उसकी शरण आपको लेनी पड़ेगी तभी आपकी बात बन सकती है बिना गुरु के हम इस मार्ग पर नहीं चल सकते क्योंकि इस मार्ग पर बहुत कुछ ऐसा है जो हमें समझ में ही नहीं आएगा और हम डर जाएंगे कि अब क्या करें और उस समय केवल सतगुरु ही है जो हमारी संभाल कर सकते हैं जो हमारा मार्गदर्शन कर सकते हैं जो हमें बता सकते हैं इसलिए हम बहुत ही भागो वाले हैं कि हमें ऐसा गुरु मिला है जो पल पल हमारे साथ है जिसके नाम में ही इतनी शक्ति है कि जब हम उसके नाम का जाप करते हैं और उसी समय वह हाजिर हो जाता है और हमारी संभाल हो जाती है तो हमें और क्या चाहिए हमें तो कुल मालिक का शुक्र करना चाहिए कि उसने हमें ऐसे गुरु की शरण बख्श दी जो उसी का रूप है कुल मालिक है साध संगत जी ये अनुभव उन्होंने संगत से साझा किया और इसे सुनकर सभी संगत बहुत प्रेरित हुई और आप जी की पत्नी बताती है कि इनकी भजन बंदगी बहुत है कभी-कभी तो यह पूरा पूरा दिन बैठे रहते हैं और ज्यादा समय सत्संग में सेवा में और भजन सिमरन में ही व्यतीत करते हैं और काम की ही बात करते हैं नहीं तो चुप रहते हैं तो साध संगत जी ऐसे ऐसे सत्संगी जीव भी हैं जिनकी रूहानियत के प्रति इतनी तड़प है जिनके अंदर अपने गुरु के लिए इतना प्यार है और जिन्होंने ठान लिया है कि हमें भजन बंदगी कर कर उस कुल मालिक से मिलाप करना है और वह भजन बंदगी को पूरा समय देते हैं क्योंकि उन्होंने यह ठान लिया है कि हमें कर कर दिखाना है बन कर दिखाना है अगर सतगुरु से नाम लिया है तो सतगुरु से किया हुआ वादा पूरा करना है क्योंकि जब सतगुरु हमें नाम देते है तो इसी उम्मीद के साथ देते है कि मेरा यह शिष्य मेरा दिया हुआ काम करेगा और जब हम अपने सतगुरु का हुक्म मानते हैं उनके कहे अनुसार चलते हैं तो सद्गुरु भी हमसे बहुत खुश होते हैं और हम पर अपार कृपा करते हैं जिसके काबिल हम नहीं भी होते तो साध संगत जी हमें भी इस साखी से यही प्रेरणा लेनी है कि हमें भी दुनिया के कामों के साथ मालिक की भजन बंदगी के लिए समय निकालना है और उसकी याद में बैठना है नाम की कमाई करनी है ।
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By Sant Vachan
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