साध संगत जी आज की साखी है कि जब अभ्यासी को नाम की बख्शीश हो जाती है और वह कोई ऐसी गलती कर बैठता है जिससे कि सतगुरु नाराज हो जाते हैं और जब सतगुरु अपने उस शिष्य से नाराज हो जाते हैं तब उस शिष्य की हालत कैसी बन जाती है यह तो केवल वही बता सकता है जिसके साथ ऐसा हुआ हो और जिसके अंदर अपने सतगुरु के प्रति सच्चा प्यार हो अंदर सच्ची तड़प हो तो साध संगत जी अभ्यासी से अक्सर ऐसी गलतियां हो जाती हैं जिससे कि उसे ध्यान आना ही बंद हो जाता है उसे धुन सुनाई देनी बंद हो जाती है और जब उसके साथ ऐसा होता है तब उसकी क्या हालत होती है उस पर क्या गुजरती है वह आज हमें इस साखी के माध्यम से पता चलेगा तो साखी को पूरा सुनने की कृपालता करें जी ।
साध संगत जी, सन 1947 में हुकम सिंह नाम का एक सत्संगी था वह एक मिनट भी बेकार नहीं बैठता था रात को भजन सिमरन करता था और दिन में डट कर सेवा करता था और संगत उसका बहुत ही मान आदर करती थी क्योंकि सब को यह बात पता थी इन पर सतगुरु की बड़ी कृपा है यह बहुत कमाई वाले हैं और एक सेवादार भी हैं तो उसका सतगुरु से बहुत प्यार था तो वह सतगुरु के पास ही रहने लग गया था तो वहां रहकर वह खूब सेवा करता था, दिन में सेवा करता और रात को वह भजन बंदगी करता था तो उसका अंदर पर्दा खुल गया, तो साध संगत जी जिस तरह गरीब की झोपड़ी में हाथी नहीं समाता उसी तरह वह भी नाम की कमाई को हजम ना कर सका और जो जो भी उसके साथ होता था वह सब कुछ बता देता था अंदर की बातें वह संगत से करने लगा था तो एक बार सतगुरु ने उसको अपने पास बुलाया और उसे समझाया की हुकम सिंह हजम करना सीखो ! इसे हजम करो ! तो उसने सतगुरु को कहा कि इस समय अगर चारों वेदों का ज्ञाता भी मेरे सामने आ जाए तो वह भी मेरे साथ बात नहीं कर सकता तो उसकी यह बात सुनकर सतगुरु महाराज ने दया मेहर का हाथ उसके ऊपर से खींच लिया था और उसके बाद उसे शब्द सुनाई देना बंद हो गया उसने बहुत कोशिश की मगर फिर भी कोई बात ना बनी, अंदर पर्दा ना खुला, तो जब उसको यह आभास हो गया कि मेरे साथ ऐसा क्यों हुआ है तो उसने सतगुरु को कहा मैं आपके खिलाफ अब चाचा जी जोकि बड़े महाराज जी के छोटे भाई थे उनको चिट्ठी लिखूंगा, खैर ! चिट्ठी लिखी या नहीं लिखी इसका तो कुछ पता ना चल सका, लेकिन वह नाराज होकर अपने गांव चला गया तो जब सतगुरु चोला छोड़ गए तो उनके बाद फिर वह डेरे आ गया और वही रहने लगा तो वहां पर उसकी बीवी रुको से बिल्कुल भी नहीं बनती थी वह उनके साथ झगड़ा रहता था तो एक बार बीबी को "कालेकी" गांव में एक साधु भेजने की जरूरत पड़ी तो अभी वह तलाश में ही थी कि सतगुरु ने कहा हुकम सिंह को "कालेकी" भेज दो तो बीबी रुको ने ये बात स्वीकार कर ली और उसको "कालेकी" भेज दिया तो वहां पर उसके पास कोई सेवा नहीं होती थी तो वह रसियां बटने लग जाता उसके पास हर रोज तीन ही काम होते थे, हुकम के अनुसार बिना नागा भजन सिमरन करना, पोथी पढ़ना और सेवा करना तो साध संगत जी भले ही उसका अंदर पर्दा बंद था लेकिन उसने फिर भी भजन सिमरन करना बिल्कुल नहीं छोड़ा वह रोजाना भजन को समय देता था नाम की कमाई करता था तो आखिर जब वह बीमार हो गया तो सतगुरु ने उसे अपने पास बुला लिया और उसकी मृत्यु से कुछ दिन पहले सतगुरु को आगरा जाना था उन्हीं दिनों बीबी रखी की सूरत शब्द में लगी हुई थी और आप रोज उसकी तरफ भी जाते थे तो सतगुरु ने सोचा कि बीबी रक्खी की तरफ से होकर हुकम सिंह की और खबर लेने जाऊंगा तो आप जी बीबी रखी को देखकर उधर जाने ही वाले थे की हुकम सिंह वहां आ गया तो बड़े सतगुरु ने कहा मैं तुम्हारी तरफ आ रहा था तो वह बोला मैं आपसे एक मांग मांगने आया हूं सतगुरु ने कहा कि कहो तुम्हारी क्या मांग है उसने कहा कि मुझे अपने चरणों में माथा टेक लेने दो, तो सतगुरु महाराज जी ने कहा कि वह माथा टिकाना पसंद नहीं करते तो सतगुरु की यह बात सुनकर उसने कहा अगर यह आपका शरीर मेरे गुरु का है जिनसे मुझे नाम की बख्शीश हुई थी और मेरी गलती की वजह से मेरा अंदर पर्दा बंद हो गया था तो अगर यह शरीर मेरे गुरु का है तो मुझे माथा टेक लेने दो क्योंकि अगर ऐसा नहीं होता तो मैं कभी भी माथा नहीं टेकता तो साध संगत जी अब कोई प्रेमी शिष्य क्या यह कह सकता है कि उसका शरीर सतगुरु का नहीं है तो सतगुरु महाराज जी ने आखिरकार उस समय अपने सतगुरु का ध्यान करके उससे कहा अच्छा तुम माथा टेक लो ! तो जब उसने चरणों पर माथा टेका तो वह उसी वक्त कहने लगा कि मेरी जो 16 वर्षों की कमाई बंद थी वह एकदम खुल गई है मुझे वापस मिल गई है और मेरी संभाल हो गई है और सतगुरु मुझे लेने आ गए है तो साध संगत जी मतलब यह है कि कमाई का अहंकार करके आदमी गिर जाता है और अंदर का रास्ता बंद हो जाता है यही शिष्य की आज़माइश का वक्त होता है उसको भजन सिमरन बंद नहीं करना चाहिए और ना ही अपने अंदर अभाव लाना चाहिए क्योंकि उसकी कमाई व्यर्थ नहीं जाती और शरीर छोड़ने के वक्त पूरी पूरी संभाल होती है तो साध संगत जी आज की साखी से हमें भी यही प्रेरणा मिलती है कि हमें बिना नागा भजन सिमरन करना है और नाम की कमाई को हजम करना सीखना है क्योंकि ऐसी बहुत सारी बातें संगत में से सामने आती हैं कि जो सत्संगी नाम की कमाई को हजम नहीं कर पाते सद्गुरु अपनी दया मेहर का हाथ उनके ऊपर से खींच लेते हैं वह हमारे साथ इसलिए करते हैं क्योंकि हम उस कमाई को हजम करने के काबिल ही नहीं होते और जब हम काबिल हो जाते हैं तो वही कृपा सतगुरु हम पर फिर से कर देते हैं तो सतगुरु तो अक्सर यही फरमाते हैं कि हमें हजम करना सीखना है हमें अपनी बातें किसी को नहीं बतानी है क्योंकि अगर हम हजम नहीं करते और बाहर सब बताने लगते है तो हमारा जो रूहानी सफर है वह वहीं पर रुक जाता है और हम तब तक आगे नहीं बढ़ सकते जब हम उसके काबिल नहीं बन जाते और सतगुरु वही किरपा हम पर फिर से नहीं कर देते तो साध संगत जी इसी बीच कुछ अभ्यासी ऐसे हैं कि जिनके साथ ऐसा हो जाता है जिन्हें शब्द धुन सुनाई देना बंद हो जाता है तो वह थक हार कर भजन सिमरन करना ही छोड़ देते हैं तो यहां पर सतगुरु हमें समझाते हैं कि भले ही मालिक ने अपनी दया मेहर का हाथ खींच लिया हो लेकिन हमें भजन सिमरन करना बंद नहीं करना है हमें उसको जारी रखना है क्योंकि मालिक को हमारे भजन सिमरन से ज्यादा हमारे प्रयास प्यारे होते है और अगर सत्संगी प्रयास करता जाता है भजन सिमरन करता जाता है तो मालिक उसके यही प्रयासों को देख कर उससे प्रसन्न हो जाता है और उसका अंदर का पर्दा दोबारा खोल देता है और फिर वह सत्संगी दोबारा से उस शब्द उनको सुनने लग जाता है दोबारा से वह नजारे देखने लगता है जो उसे पहले देखने को मिलते थे तो साध संगत जी यहां पर संत महात्मा एक बात कहते हैं कि हमें नाम धुन सुनाई दे या ना दे, अंदर कुछ दिखाई दे या ना दिखे लेकिन हमें उसकी भजन बंदगी में बैठना है नाम की कमाई करनी है क्योंकि मालिक हमारे अंदर इसी तड़प को देखकर हम पर ऐसी अपार कृपा कर देता है जिसके काबिल हम नहीं भी होतेसाध संगत जी इसी के साथ हम आपसे इजाजत लेते हैं आगे मिलेंगे एक नई साखी के साथ, अगर आपको ये साखी अच्छी लगी हो तो इसे और संगत के साथ शेयर जरुर करना, ताकि यह संदेश गुरु के हर प्रेमी सत्संगी के पास पहुंच सकें और अगर आप साखियां, सत्संग और रूहानियत से जुड़ी बातें पढ़ना पसंद करते है तो आप नीचे E-Mail डालकर इस Website को Subscribe कर लीजिए, ताकि हर नई साखी की Notification आप तक पहुंच सके ।
By Sant Vachan
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