संत रविदास जी की साखी । देवराज इन्द्र और संत रविदास जी की मुलाकात । जरूर सुने

साध संगत जी, सतगुरु रविदास, फटे जूते की सिलाई में ऐसे तल्लीन थे कि सामने कौन खड़ा है, इसका उन्हें भान भी न हुआ, वह भी कब तक प्रतीक्षा करता, उसने खांसकर सतगुरु का ध्यान अपनी ओर आकर्षित किया, सतगुरु ने दृष्टि ऊपर उठाई सामने एक सज्जन थे, उन्हें देख सतगुरु खड़े हो गए और विनम्रतापूर्वक बोले, क्षमा करें,

मेरा ध्यान काम में था, उसने सतगुरु रविदास जी से कहा, मेरे पास पारस है, मै कुछ आवश्यक कार्य से आगे जा रहा हूं, कहीं खो न जाए, इसलिए इसे अपने पास रख लें, मै शाम को लौटकर वापस ले लूंगा, इतना जरूर बता दूं कि पारस के स्पर्श से लोहा स्वर्ण में बदल जाता है, यदि आप चाहें तो अपनी रांपी को इसका स्पर्श कराकर सोने की बना सकते हैं, यह सज्जन और कोई नहीं देवराज इंद्र थे जो लम्बे समय से सतगुरु रविदास की भक्ति और सतगुरु की चर्चा सुनते आ रहे थे, वे सतगुरु रविदास की भक्ति की परीक्षा लेने के लिए भेष बदलकर उनके पास पहुंचे थे, सतगुरु ने उनसे कहा, आप पारस निः संकोच छोड़ जाएं, लेकिन इसका उपयोग करने में मैं असमर्थ हूँ क्योंकि यदि मेरी रांपी सोने की बन गई तो वह झटके से मुड जाएगी, वहीं दिन भर की मजदूरी से मैं वंचित रह जाउंगा, मुझे न धन की कामना है और ना ही अन्य व्यवसाय की, प्रभु कृपा से मैं अपने परिश्रम व आस्था से किये व्यवसाय से पूर्ण संतुष्ट हूं, तो सतगुरु की कर्मनिष्ठा और जवाब को सुनकर इन्द्र अत्यंत प्रसन्न हुए और उन्हें प्रणाम कर लौट गए, तो साध संगत जी आज की इस साखी से हमें यही सीख मिलती है कि जैसे कि संत महात्माओं के अंदर किसी प्रकार का लोभ नहीं होता, मोह नहीं होता ऐसे ही हमें भी उस मालिक के आगे यही फरियाद करनी चाहिए कि हे मालिक हमें तो केवल तू चाहिए हम पर कृपा कर कि हमारे अंदर यह जो विकार पड़े हुए हैं हमें इनसे छुटकारा मिल सके और हमारा मिलाप तुझसे हो सके ।

साध संगत जी इसी के साथ हम आपसे इजाजत लेते हैं आगे मिलेंगे एक नई साखी के साथ, अगर आपको ये साखी अच्छी लगी हो तो इसे और संगत के साथ शेयर जरुर करना, ताकि यह संदेश गुरु के हर प्रेमी सत्संगी के पास पहुंच सकें और अगर आप साखियां, सत्संग और रूहानियत से जुड़ी बातें पढ़ना पसंद करते है तो आप नीचे E-Mail डालकर इस Website को Subscribe कर लीजिए, ताकि हर नई साखी की Notification आप तक पहुंच सके । 

By Sant Vachan


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