एक बहुत सुंदर साखी । अगर भजन सिमरन नहीं भी होता तो कोई बात नहीं लेकिन सत्संगी लोग ये करना ना भूले !

साध संगत जी आज की ये साखी सुनकर हमें अपने सतगुरु की अपार कृपा के बारे में पता चलेगा उनकी अहमियत के बारे में पता चलेगा कि आखिर एक पूरे गुरु का जीवन में होना कितना जरूरी है और कैसे हम गुरु के बिना अधूरे हैं गुरु के बिना हम अंधेरे में है और आज हमें सद्गुरु की वह अपार कृपा के बारे में पता चलेगा जो वह हम पर करते हैं और जिसका कोई अंत नहीं है साध संगत जी आज की यह साखी सुनकर हमें सतगुरु पर मान महसूस होगा और उन पर प्यार भी बहुत आएगा क्योंकि साध संगत जी रूहानियत के इस मार्ग पर गुरु के बिना नहीं चला जा सकता, तो कैसे सतगुरु हमारे अंग संग रहते हैं और कैसे वह हमे यमदूतों से बचाते हैं वह आज हमें इस साखी में पता चलेगा तो साखी को पूरा सुनने की कृपालता करें जी ।
साध संगत जी एक साहूकार का नियम था कि वह अपनी असामियों से सूद दर सूद लिया करता था एक दिन वह एक गांव में किसी गरीब किसान के घर अपने पैसों की वसूली करने गया, ब्याज कम करने के लिए किसान ने बहुत जोर लगाया, मिन्नतें की लेकिन साहूकार ने एक ना सुनी उसके बछड़े बछड़ियां और जो उसके घर अनाज था सभी ब्याज में गिन लिया, एक कोडी भी ना छोड़ी, तो किसान ने दिल में कहा अच्छा लाला अब जा और अपना बिस्तरा अपने आप उठाकर ले जा ! साहूकार मजदूर ढूंढ रहा था क्योंकि किसान ने उसके इस व्यवहार के कारण उसे कोई मजदूर लाकर नहीं दिया था अब गांव में मजदूर कहां से मिले संयोग से वहां नजदीक ही एक महात्मा बैठे भजन कर रहा था उसने साहूकार और किसान के बीच हुई सारी बात को सुन लिया था महात्मा ने उस घमंडी साहूकार से कहा मैं तेरा बिस्तरा उठा कर ले चलता हूं लेकिन एक शर्त है कि या तो तू मालिक की स्तुति और प्यार की बातें करते जाना और मैं सुनता जाऊंगा या मैं करता जाऊंगा और तू सुनते जाना, लाला ने सोचा कि यह कौन सी मुश्किल बात है यह बातें करता जाएगा और मैं हां हां करता जाऊंगा मुझे कौन सा इसकी बातें सुननी है महात्मा ने उसका बिस्तरा उठा लिया और प्रभु प्रेम की बातें करते हुए चल पड़े जब उस साहूकार का गांव आ गया तो महात्मा ने उससे कहा कि लो लालाजी आपका गांव आ गया है अब मुझे इजाजत दें, पर महात्मा ने दिल में सोचा कि यह भी क्या याद करेगा कि मेरा किसी महात्मा से मिलाप हुआ था इसलिए इसको कुछ बताना चाहिए तो महात्मा ने साहूकार से कहा आज से 8 दिन के बाद तेरी मौत हो जाएगी तेरी सारी उम्र में कोई अच्छे कर्म नहीं है यह जो एक घंटा मेरे साथ बातें की है वही एक श्रेष्ठ कर्म है जब तुम्हें यमदूत लेकर जाएंगे और पूछेंगे कि इस 1 घंटे के सत्संग का फल पहले लेना है कि बाद में लेना है ? तब तुम कह देना कि पहले लेना है और फल यहीं मांगना कि मुझे उस महात्मा के दर्शन कराओ जिन्होंने मुझसे मालिक की बातें की थी फिर जो होगा तुम खुद देख लोगे तो जब उस साहूकार की मौत आई, धर्मराज के यमदूत उसे लेने आए और साहूकार को पकड़ कर ले गए जब उसे पेश किया गया जब वह पेश हुआ तो धर्मराज ने चित्रगुप्त से कहा कि इसके कर्मों का लेखा देखो कि इसने क्या कर्म किए हैं और इसके कितने अच्छे कर्म है और कितने इसके बुरे कर्म है तो जब उसका हिसाब किताब किया गया तो देखा गया कि उसका कोई श्रेष्ठ कर्म नहीं था सिवाय इसके कि उसने एक महात्मा के साथ एक घंटा मालिक से जुड़ी बातें की थी उस मालिक से जुड़ी बातें उसने उस महात्मा से सुनी थी तो वही उसका एक अच्छा कर्म था तो जब धर्मराज ने पूछा कि तुझे इसका फल पहले लेना है कि बाद में साहूकार कहने लगा कि पहले दे दो और जहां वह महात्मा है मुझे वहां ले चलो साध संगत जी महात्माओं का शरीर इस दुनिया में होता है लेकिन उनकी सुरत खंडो ब्राह्मडो पर रहती है तो जब यमदूत उसे अपने साथ वहां ले गए जहां वह महात्मा भजन कर रहे थे तो महात्मा ने उसे देख कर कहा कि आ गए हो, तो साहूकार ने कहा जी हां ! आपकी कृपा से आ गया हूं लेकिन यमदूत बाहर खड़े मेरा इंतजार कर रहे हैं साध संगत जी जब उसने यह बात कही तो वह महात्मा मुस्कुराए क्योंकि साध संगत जी जहां मालिक का भजन सिमरन हो रहा हो यहां उसकी भजन बंदगी हो रही हो वहां यमदूत नहीं जा सकते साहूकार को उस महात्मा के पास बैठे आनंद लेते हुए काफी देर हो गई उसका 1 घंटे के सत्संग का फल खत्म हो गया था तो बाहर यमदूत खड़े थे और आवाजों से तथा इशारों से उसे बुला रहे थे कि तुम्हारा समय खत्म हो गया है तुम्हें हमारे साथ चलना पड़ेगा तो यमदूत उसे आवाजों से और इशारों से बुला रहे थे कि हमारे पास आओ लेकिन वह बाहर नहीं गया, महात्मा ने उसे कहा कि तुम चुपचाप यहां बैठे रहो, क्योंकि यमदूत यहां नहीं आ सकते तो हार कर यमदूत चले गए, धर्मराज के आगे शिकायत कर दी कि वह तो उसी महात्मा के पास जाकर बैठ गया है और बाहर आने का नाम ही नहीं ले रहा तो वहां पर धर्मराज ने कहा :
जह साधू गोबिंद भजन कीर्तन नानक नीत ।।
णा हउ णा तूं णह छूटहि निकट न जाइ आहू दूत ।।
जिसका अर्थ है कि वहां ना तो मैं जा सकता हूं और ना ही तुम जा सकते हो इसलिए अब उसका ख्याल छोड़ दो क्योंकि अब वह नहीं आएगा और ना ही हम उसे लेने जा सकते हैं तो साध संगत जी ऐसे सतगुरु अपने शिष्यों का उद्धार करते हैं क्योंकि जो पूरा गुरु होता है उसके सत्संग के बराबर और कोई कर्म नहीं होता अगर हम सतगुरु के मुख से निकले हुए वचन सुन लेते हैं उनका सत्संग सुनते हैं तो ये भी हमारे लिए बहुत बड़ी बात है क्योंकि सतगुरु चाहे तो इसी से हमारा उद्धार कर सकते हैं क्योंकि एक पूरे गुरु के सत्संग में और उनके लफ्जों में वह ताकत है जो हमें इस जन्म मरण के चक्कर से मुक्त कर सकती है और हमारा उद्धार कर सकती है जैसे कि इस साहूकार के साथ हुआ ! तो साध संगत जी हमें भी जब सतगुरु का सत्संग सुनने का मौका मिलता है तो हमें अपने सतगुरु के वचनों को ध्यान से सुनना चाहिए क्योंकि उनके वचनों का कोई मोल नहीं है उनकी वाणी का कोई मोल नहीं है वह तो सत्संग के जरिए हम पर कृपा बरसा रहे होते हैं जिसका अंदाजा हमें तब पता नहीं चलता, सत्संग के माध्यम से वह हमारा उद्धार कर रहे होते हैं अपनी रहमत हम पर बरसा रहे होते हैं और यह बात हमें तब समझ में आएगी जब हमारा भी हिसाब किताब देखा जाएगा और देखा जाएगा कि हमने कौन-कौन से कर्म किए हैं कैसे-कैसे हमने कर्म किए हैं कितने सत्संग सुने हैं, कितनी मालिक से जुड़ी बातें की है, कितनी सुनी है, कितनी सेवा की है और कितनी भजन बंदगी की है यह सब वहां पर देखा जाएगा, तो साध संगत जी हमें जब भी मौका मिले सतगुरु का सत्संग सुनने जरूर जाना चाहिए हमें कभी भी कोई भी सत्संग मिस नहीं करना चाहिए, क्योंकि साध संगत जी यह हम नहीं जानते कि सत्संग में ऐसी कौन सी बात हमारे मन पर चोट कर जानी है जोकि हमारी जिंदगी भी बदल सकती है, और यह बात हम भी जानते हैं कि अभी हम इतने काबिल नहीं बन पाए हैं कि अपने सतगुरु का जो सर्वश्रेष्ठ हुक्म है भजन सिमरन उसको निभा पाए और अभी हम केवल सतगुरु के घर की गुरु घर की सेवा ही कर सकते हैं संगत की सेवा ही कर सकते हैं सत्संग सुन सकते हैं और भजन बंदगी पर बैठने की कोशिश कर सकते हैं क्योंकि साध संगत जी उदाहरण के तौर पर जब हमें घर बनाना होता है तब पहले हम उसकी नींव बनाते हैं और फिर उस पर इमारत खड़ी करते हैं तो ऐसे ही गुरु घर की सेवा, संगत की सेवा और सत्संग वह नींव है जिस पर भजन सिमरन रूपी इमारत खड़ी होनी है और वह केवल और केवल सतगुरु की कृपा से ही हो सकती है और इसको निभा पाना वह मालिक के हाथ में है सतगुरु के हाथ में है वह कब हमें एक पक्का अभ्यासी बनाता है कब वह हम पर कृपा कर हमसे भजन बंदगी करवाएंगे यह केवल और केवल उस मालिक के हाथ में है, तो साध संगत जी इस साखी से हमें यही प्रेरणा मिलती है कि अगर सतगुरु का सत्संग सुनने से ही हमारा उद्धार हो सकता है तो आप सोचिए कि जो सतगुरु हमसे सेवा करवाते हैं हमसे भजन बंदगी करवाते हैं और सतगुरु ने खुद हमें नाम की बख्शीश की हुई है तो हम समझ सकते हैं कि हमारी बात कहां तक पहुंचेगी, जिसका अंदाजा हमें अभी बिल्कुल भी नहीं है तो साध संगत जी हमें सतगुरु का सत्संग भी सुनना है सेवा भी करनी है और उनका जो सर्वश्रेष्ठ हुक्म है, भजन बंदगी वह भी निभाना है और उनकी खुशियां प्राप्त करनी है ।
साध संगत जी इसी के साथ हम आपसे इजाजत लेते हैं आगे मिलेंगे एक नई साखी के साथ, अगर आपको ये साखी अच्छी लगी हो तो इसे और संगत के साथ शेयर जरुर करना, ताकि यह संदेश गुरु के हर प्रेमी सत्संगी के पास पहुंच सके और अगर आप साखियां, सत्संग और रूहानियत से जुड़ी बातें पढ़ना पसंद करते है तो आप नीचे E-Mail डालकर इस Website को Subscribe कर लीजिए, ताकि हर नई साखी की Notification आप तक पहुंच सके ।

By Sant Vachan

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