गुरु प्यारी साध संगत जी आज की ये साखी सतगुरु नानक के समय की है जब सतगुरु नानक को राजा बाबर ने जेल में डालकर चक्की पीसने के लिए कहा तो उसके बाद जो हुआ आइए बड़े ही प्यार से आज का यह प्रसंग सरवन करते हैं ।
साध संगत जी जब सतगुरु नानक भाई मरदाना और भाई बालाजी के साथ ऐमनाबाद की धरती पर पहुंचे तो वहां पर राजा बाबर की सेना ने पठानों पर हमला किया हुआ था और बहुत सारे पठानों को कैद कर लिया गया था तो सतगुरु नानक के साथ जो संत आए हुए थे वह यह सारा दृश्य देखकर वहां से चले गए लेकिन सतगुरु नानक भाई मर्दाना और भाई बालाजी वही रहे तो उनको देखकर एक मुगल उनकी तरफ आया और उसने अपने एक नौकर को बुलाया और उसे कहने लगा कि यह जो तीन व्यक्ति बैठे हैं इनके सर पर भार रखा जाए और इनको पकड़कर अपने डेरे की तरफ ले जाओ तो उन्होंने भाई मर्दाना और भाई बालाजी के सर पर भार रख दिया और भाई मरदाना जी के हाथ एक घोड़ा पकड़ा दिया और उनको आगे चलने के लिए कहा उन्होंने गुरु जी की महिमा नहीं जानी और जब वह सतगुरु नानक के सिर पर भार की गठड़ी रखने लगे तो वह गुरुजी के सिर से कुछ ऊंचाई पर रही और वह गुरु जी के सर पर वह गठड़ी ना रख सके तो जब वह मुगल सतगुरु नानक, भाई मरदाना और भाई बालाजी को लेकर वह अपने डेरे की तरफ जा रहे थे तो चलते-चलते सतगुरु नानक ने भाई मरदाना जी से कहा कि हे भाई मर्दाना रबाब छेडो बानी आई है तो यह सुनकर भाई मरदाना जी ने कहा हे गुरु जी ! मैं रबाब कैसे बजा सकता हूं क्योंकि इन्होंने मेरे हाथ एक ऐसा घोड़ा पकड़ा दिया है जो कि बहुत चंचल है और अगर यह मेरे हाथ से छूट गया तो ये मुगल मुझे मारेंगे तो भाई मरदाना जी की यह बात सुनकर सतगुरु नानक ने कहा की है भाई मर्दाना मुख से वाहेगुरु शब्द का उच्चारण करो और इस घोड़े को छोड़ दो तो ये अपने आप पीछे आएगा तो भाई मरदाना जी ने ऐसा ही किया भाई मरदाना जी ने मुख से वाहेगुरु शब्द कहकर उस घोड़े को छोड़ दिया और घोड़ा अपने आप पीछे पीछे आने लगा तो भाई मरदाना जी ने रबाब छेड़ा तो सतगुरु ने शब्द उच्चारण किया आसा मुहल्ला पहला "खुरासर खसमाना किया, हिंदुस्तान डराया आपे दोष ना देती करता यम कर मुगल चड़ाया" जिसका अर्थ है कि करता पुरख अपने ऊपर इल्जाम नहीं लेता इसलिए उसने मुगल फौज को मौत का यमदूत करके चढ़ाया है इतनी मार पड़ी कि लोग कुर्ला उठे हे वाहेगुरु ! क्या तुझे तरस नहीं आया हे करता पुरख तू सबका मालिक है अगर एक बलवान दूसरे बलवान को मारे तो मन में रोस नहीं आता लेकिन अगर एक शेर भेड़ों के झुंड पर हमला करें और उन्हें मारे तो क्या उसके मालिक से पूछताछ नहीं होनी चाहिए जैसे इन्होंने पूरे मुल्क को खराब कर दिया है और लोगों की कोई बात नहीं पूछता हे वाहेगुरु ! तो आप ही मिलाता आता है और आप ही विसार देता है और यह तुम्हारी बड़आयी है अगर कोई अपना ऊंचा नाम रखवाले और मन मुताबिक सभी स्वाद ले वह मालिक के लिए एक कीड़ा ही है सतगुरु नानक कहते हैं जिस पर होमें सवार है अगर वह उस समय वाहेगुरु का नाम ले तभी वह कुछ प्राप्त कर सकता है ऐसे शब्द गायन करते हुए सद्गुरु चल रहे हैं सतगुरु एकरस होते हुए भाई मरदाना जी और भाई बालाजी के साथ जा रहे हैं और लोग देख कर उन्हें हैरान हो रहे हैं और लोग कह रहे हैं कि ये बहुत बड़ा आश्चर्य है कि गुरु जी और भाई मरदाना जी और भाई बालाजी के सर पर इतना बोझ रखा हुआ है और वह मुगलों के साथ जा रहे हैं और उनके पीछे पीछे ही घोड़ा आ रहा है जो कि अपने आप चला आ रहा है कुछ लोग कहते हैं कि गुरु नानक खुद करतार है करामाती पुरुष है क्योंकि ऐसी करामातें हमने पहले नहीं देखी, लोग सतगुरु की हाथ जोड़कर वंदना करते थे और उनके चरणों पर अपना सिर रखते थे तो ऐसे ही चलते चलते सतगुरु नानक मुगलों के डेरे में पहुंच गए तो वह मुगल यह सारा दृश्य देखकर बहुत हैरान हुए की इनके सर पर बोझ रखा हुआ है और वह उनके सिर पर होते हुए भी उनके ऊपर नहीं है कुछ ऊंचाई पर है और घोड़ा भी अपने आप उनके पीछे आ रहा है तो उनको इस बात की खबर होती है कि यह खुदा के बंदे हैं और खुदा की बंदगी करते हैं और वह मुगल राजा बाबर से जाकर कहते हैं एक दरवेश हमारे नगर में आया है और वह खुदा की बंदगी करते हैं आप खुद चलकर उनसे मिल लीजिए तो ये सुनकर राजा बाबर ने कहा कि अगर मैं यह बातें पहले जानता होता तो मैं इस नगर को ऐसे तहस-नहस ना करता जिस नगर में ऐसा दरवेश रहता है तो बाबर ने सतगुरु से मिलने का मन बनाया उनकी कथा सुनने के लिए उसने विचार किया तो सेना में सभी लोग बंद थे और विर्लाप कर रहे थे वह हिंदू ब्राह्मण और पठान थे उन सभी के आगे चक्कियों को रख दिया गया और कहा गया कि बिना किसी देरी के दाने पीसने शुरू करो जब सतगुरु नानक डेरे में आए उनके सिर से बोझ उतार दिया गया और उन्हें बंदी खाने में बैठा दिया गया और दो भारी चक्कियां उनके पास लाकर रख दी एक चक्की भाई मरदाना जी के आगे रख दी और एक चक्की भाई बालाजी के आगे रखकर उन्हें बहुत दाने पीसने के लिए दे दिए और एक चक्की गुरुजी के आगे रखकर कहा कि दानों को जल्दी से जल्दी पीसो तो भाई मरदाना जी और भाई बालाजी जल्दी से जल्दी दाने पीसने लगे जैसे कि वहां पर सभी लोग कर रहे थे लेकिन गुरु जी ने चक्की को हाथ नहीं लगाया और सतगुरु नानक अपने हाथों से दाने चक्की में डाल रहे थे और चक्की अपने आप घूमने लगी सभी लोग हैरान होकर यह दृश्य देख रहे थे और इस बात की खबर जब राजा बाबर तक जा पहुंची तो वह भी उस दृश्य को देखने के लिए सतगुरु के पास चल कर आ गया और गुरु जी के चरणों पर आकर उसने प्रणाम किया जब सतगुरु नानक ने बाबर को देखा तो सतगुरु नानक ने एक शब्द गायन किया जिस तरफ सभी लोग बैठे हुए थे उनकी तरफ देखकर सतगुरु नानक ने वह शब्द उच्चारण किया "एक ओंकार सतगुरु प्रसाद जिन सिर सोहन पट्टियां मांगी पाए संदूर ये सिर कादी मुनियन गल विच आवे धूड महिला अंदर हुंडियां हुन बहन ना मिलन हदूर आदेश बाबा आदेश आद पुरख तेरा अंत ना पाया कर कर देखे वेश" सिर जो मिद्दिया से सजे हुए है और चीर जो सुंदूर से भरे हुए है वह सिर केचियों से मुने जा रहे है और नारियों के गले घटे से बंद हुए पड़े है वह मेहलों में बस्ती थी लेकिन अब उन्हें महलों के पास बैठने के लिए नहीं मिलता नमस्कार है प्रभु तुझे नमस्कार हे आद स्वामी ! तेरा उड़ग जाना नहीं जाता तू हर समय नए खेल रचता है और उन्हें देखता है जब इनका विवाह हुआ था ये डोली में बैठकर आयी थी जो की हाथी दांत से सजी हुई थी और जब ये डोली से नीचे उतरी तो इनको बहुत वस्तुएं अर्जित की गई लेकिन अब इन पर जुर्म हो रहा है और दूतों को यह हुक्म दिया गया है कि इनको पकड़ लो और मेरे सामने हाजिर करो अगर उसे अच्छा लगता है तो वह उसकी बड़आयी करता है नहीं तो उनको सजा दी जाती है लेकिन अगर प्रभु की बंदगी की होती तो सजा क्यों मिलती बादशाह ने दुनिया के रंग तमाशो में अपनी आत्मा को दबा दिया है जब बाबर के राज का उस नगर में प्रचार होने लगा तो किसी भी पठान ने खाना नहीं खाया बहुत लोगों ने अपने नमाज़ का समय भी गवा दिया और कुछ लोगों का पूजा का समय भी निकल गया, चोंके के बगैर अब हिंदू औरते किस तरह तिलक लगाएगी क्योंकि उन्होंने अपने राम की कभी भी अराधना नहीं की थी और कुछ लोगों को खुदा भी कहने के लिए नहीं मिलता, कुछ लोगों की किस्मत में यह लिखा है कि वह दुख में रहकर ही रोते रहे सतगुरु नानक फरमाते हैं आदमी बेचारा की है शब्द सुनकर बाबर आगे आकर खड़ा हो गया हाथ जोड़कर बोला मुझे अर्थ समेत इसकी व्याख्या बताएं आप जी ने किस के बारे में कहा है तो सतगुरु नानक ने कहा हे बाबर ! ये पठान मार दिए गए हैं और सारा का सारा नगर लूट लिया गया है और लोगों को पकड़ लिया गया है और कैद कर लिया गया है और अब उन पर कष्ट का समय आया है तो उनकी यह हालत देखकर यह शब्द कहां है जिनके सिर पर मिध्दिया शोभ रही थी और उनके तन पर गहने पड़े हुए थे और मांग सिंदूर से भरी हुई थी उनकी मिद्धियों को काट दिया गया है जिस मुख से अनेक प्रकार के भोजन खाए थे उस मुख से कभी प्रभु का नाम नहीं लिया मुगल उन्हें सजा दे रहे हैं और कह रहे हैं कि उन्हें वह धन चाहिए जो धरती में दबाया हुआ है वह सुंदर घरों में रहती थी ताकि उन्हें कोई देख ना ले और अब उन्हें कैद कर लिया गया है और उन पर इतने कष्ट पड़े हैं इतना भारी दुख उन्हें भोगना पड़ रहा है वाहेगुरु करने वाला है वह आद पुरख अविनाशी है उसका अंत पाया नहीं जा सकता वह अपने पति से लेकर गिरी शुहारे खाती थी भोग विलास करती थी मन भाने वाली सेजो पर बैठती थी अब उनके गलो में पत्थर डाले गए है और उनकी मोतियों की माला अब टूट गई है धन जोबन करके सुख पा रही थी अब उसी के कारण दुख पा रही है सिपाहियों ने उन्हें पकड़ा हुआ है और उनकी इज्जत खराब की जा रही है और उन्हें तरह-तरह के कष्ट दिए जा रहे हैं जिस तरह वाहेगुरु को अच्छा लगता है वह वैसा ही करता है किसी को सजा देता है और किसी को मान सम्मान बख्शता है अब ये दुख पाकर रो रही है जिन्होंने पहले कभी प्रभु को याद नहीं किया उनके लिए अब यह दुखों का घर बन गया है हे बाबर ! तूने इन सभी का सफाया कर दिया है वह जो बड़े-बड़े पठान थे उनको अब खाना भी नसीब नहीं होता जिनके मन में राम नाम नहीं था अब उन्हें खुदा का नाम लेना भी नहीं मिलता, दुख सुख किसी को पूछ कर नहीं आता जो मर गए हैं उनके लिए रो रही हैं जिस तरह वाहेगुरु को अच्छा लगता है वह वैसा ही करता है मनुष्य के हाथ में कुछ नहीं है जैसे वह इस सृष्टि को चलाता है वैसे ही यह सृष्टि चलती है बाबर ने सतगुरु के मुख्य से यह वचन सुनकर मन में श्रद्धा धारण की और सद्गुरु को एक बड़ा कलावान पहचाना तो उसने सतगुरु को कहा कि मुझे कोई करामात कर कर दिखाएं आप में कितनी शक्ति है मुझे सब बताएं आप खुदा के बहुत प्यारे हैं या फिर खुदा ने ही तन को धारण किया है यह सुनकर सतगुरु नानक बोले की करामात को कहर कहते हैं मांग ले जो भी तू चाहता है और सतगुरु ने कहा मन को स्थिर करो ताकि मन डोले नहीं तो सतगुरु के यह वचन सुनकर बाबर के मन में सद्गुरु के प्रति प्रेम जागा और गुरु जी को खुदा के प्रेम में मगन जाना और उसके बाद बाबर ने सतगुरु नानक के सामने बहुत सारे उपहार प्रकट किए और फिर हाथ जोड़कर प्रार्थना की और फिर दीन होकर बोला की मैंने यह जान लिया है कि आप ही खुदा हो और इस पृथ्वी पर मानव शरीर धारण कर घूम रहे हो मुझे यहां ऐसा वर दें ताकि मैं जगत का बादशाह हो जाऊं और हर तरह का सुख प्राप्त कर सकूं चार पदार्थ आप मुझे दें और देर ना करें क्योंकि आप ही करता पुरख हो और करता पुरख अपनी कृपा से गरीब को बादशाह बना देते है बादशाह को एक पल में गरीब बना देते हैं तो इस प्रकार आप हैं और अगर आप मेरे ऊपर प्रसन्न हो तो आप मेरी कामना पूरी कर सकते हो जो मैं मांगू आप मुझे अभी दे सकते हो हे गुरु जी कृपा करो तो सतगुरु नानक कृपा की दृष्टि से देखते हुए बोले कि जग में तब तक बादशाही करोगे जब तक दिल में नियां रखकर चलोगे जब नियांरहित हो जाओगे तो सारी बादशाही चली जाएगी, नियां रखकर देश विदेश की धरती बल के साथ जीतकर राज भोगोगे यह सुनकर बाबर बहुत खुश हुआ और उसने सतगुरु नानक के चरणों पर वंदना की और दीन होकर विनती की कि है गुरु जी आप धन हो और सदा ही गुणों की खान हो तो ये देख कर वहां पर बहुत भीड़ हो गई सभी सिपाही सतगुरु नानक के चरणों पर वंदना कर रहे थे उनके चरणों पर प्रणाम कर रहे थे तो सतगुरु नानक ने राजा बाबर को बादशाहत का वर दिया और कहा दिल्ली आद देश जीतकर जगत को सुखी करें तो सतगुरु नानक ने देखा कि बहुत लोग कैद में थे और दुख पा रहे थे कुर्ला रहे थे सतगुरु नानक ने बाबर को कहा कि मेरे वचन मानकर इनको छोड़ दो और जितनी भी उनकी सामग्री लूटी गई है उनको वापस दे दो तो गुरु जी के यह वचन मानकर बाबर ने हुक्म दिया कि इन सभी को छोड़ दिया जाए और इनकी जितनी भी सामग्री लूटी गई है इनको वापस दे दी जाए तो सभी को उनकी सामग्री दे दी गई और वह सभी अपने अपने घर चले गए सभी को अपने साथ लेकर गुरुजी फिर ऐमनाबाद नगर को चले गए तो जब सतगुरु नानक ने वहां जाकर नगर को उजड़ा हुआ देखा और किसी भी नर नारी को वहां पर नहीं देखा सतगुरु नानक ने वहां पर एक शब्द को उचारा "सो खेल तबेला घोड़े, कहा भेरी शहनाई, कहा सो तेग बड़ कादे रड़, कहा सो लाल कवाई, कहां सो अर्थियां मोह बांके ऐथे दिसे नाही" इस तरह शब्द उच्चारण कर कृपा निधान सद्गुरु नगर के बाहर बैठ गए और उस नगर के नर नारी सद्गुरु के पास आने लगे जिनके ऊपर कष्टों का बुरा समय आया हुआ था इस तरह शब्द उच्चारण कर मुक्ति देने वाले भाव गुरु जी वहां पर बैठे रहे और उसके बाद सतगुरु मानवता का भला करने के लिए आगे चले गए जिनकी कृपा पाकर मन शांत हो जाता है बेचैनी से मुक्त हो जाता है तो साध संगत जी अब गुरु नानक प्रकाश ग्रंथ के आठवें अध्याय की समाप्ति होती है जी, प्रसंग सुनाते हुए अनेक भूलों की खिमा बक्शे जी ।
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By Sant Vachan
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