जब भी गुरु की याद आए तो उस समय यही अरदास करना की हे सच्चे पातशाह ! केवल तूं ही हमसे भजन सिमरन करवाकर हमें इस भवसागर से पार लिजा सकता है तेरी किरपा के बिना यह सब नहीं होगा, गुरु के बिना हम इस भवसागर से पार नहीं जा सकते क्योंकि एक ना एक दिन सबको इस संसार से जाना ही पड़ेगा, आत्मा जिस्म से जुदा होगी, उस राज का कोई वाकिफ, कोई जानने वाला मिल जाए तब जाकर बात बनेगी और वह कौन है ? उसको गुरु कहते हैं ।
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