Guru Nanak Sakhi : सतगुरु नानक के अनुसार मां के पेट में बच्चे की हालत ! जरूर सुने

 

साध संगत जी आज की ये साखी सतगुरु नानक देव जी के समय की है जब सतगुरु नानक भाई मरदाना और भाई बालाजी के साथ बंजारों की बस्ती में जा पहुंचे यहां पर एक बच्चे का जन्म हुआ था तो आइए बड़े ही प्यार से आज का यह प्रसंग सरवन करते हैं ।

साध संगत जी सतगुरु नानक भाई मरदाना और भाई बालाजी के साथ जब बंजारों की बस्ती में जा पहुंचे जहां पर एक बच्चे का जन्म हुआ था जब सद्गुरु वहां पर गए और वहां जाकर एक पेड़ के नीचे बैठ गए तब भाई मरदाना और भाई बालाजी भी उस बंजारे के घर उसको बधाई देने जा पहुंचे तो वहां पर बहुत लोग उस बंजारे को बच्चे की बधाई देने आए हुए थे तो उस बंजारे ने सभी को कोई ना कोई उपहार दिया लेकिन भाई मरदाना और भाई बालाजी वहां पर ऐसे ही खड़े रहे तो जब भाई मरदाना और भाई बालाजी सतगुरु नानक के पास आए और आकर सारी बात बताई भाई मरदाना जी ने कहा कि सतगुरु अगर आप कहे तो मैं एक बार फिर उस बंजारे से याचना करके आता हूं तो ये सुनने के बाद सतगुरु नानक ने कहा की हे भाई मरदाना ! जिस बच्चे की बधाई देने जगह-जगह से लोग उस बंजारे के घर आ रहे हैं वह बच्चा चार पहर जी कर यहां से चला जाएगा तो फिर यही खुशी गमी में बदल जाएगी यह कहने के बाद सतगुरु नानक ने भाई मरदाना जी को रबाब बजाने के लिए कहा और उस समय सतगुरु ने शब्द उचारा जोकि श्री गुरु ग्रंथ साहिब जी में अंग 74/75 में दर्ज है जिस को समझाने से पहले बंजारे क्या होते हैं और उनका क्या काम होता है और वह क्या करते हैं वह समझते हैं बंजारे स्त्रियों के सिंगार की वस्तुएं आदि अपने शहर से दूर नगर नगर में जाकर बेचते हैं और विश्राम करने के लिए वह बंजारा उस प्राए नगर में रात बिताता है उसी को देखते हुए सतगुरु नानक ने भी इंसान को एक बंजारा ही कहा है क्योंकि इंसान भी परमात्मा से बिछड़ कर इस पृथ्वी पर चार पहर की रात बिताता है और ईश्वर के नाम का व्यापार करता है और सतगुरु नानक कहते हैं ईश्वर के नाम का व्यापार करने आए हे जीव ! मेरे मित्र मेरे दोस्त तूं जिंदगी का पहला पहर मां के पेट में उल्टा लटक कर तपस्या करता है तप करता है उस परमात्मा के आगे अरदास विनती करता है परमात्मा से जुड़ता है और इस जगत में इंसान बिना कपड़ों के आता है और बिना कपड़ों के ही चला जाएगा सतगुरु नानक कहते हैं कि जब जीव पैदा होता है तो उसके माथे पर परमात्मा के हुकुम के अनुसार कलम चलती है कर्म और संस्कारों को लिखा जाता है और जब जीव का जन्म होता है तो उसके माथे पर जो लिखा जाता है वह उसकी रोजी और पूंजी भाव धन होता है सतगुरु नानक कहते हैं कि जीव ने जीवन के चार पहरों में से एक पहर मां के पेट में काटना होता है और जीवन के दूसरे पहर में बच्चा जन्म लेता है मां के पेट से बाहर आ जाता है और वह इस दुनिया का हिस्सा बन जाता है जब जीव मां के पेट में होता है तो परमात्मा से जुड़ा होता है प्रभु के नाम का सिमरन कर रहा होता है और परमात्मा अपने उस जीव की संभाल करता है मां के पेट में अभी जीव 4 महीने का ही हुआ होता है जब प्रभु अपने उस जीव में जान डाल देता है और उसे बिना मूह के मां के पेट में खुराक मिलती रहती है वह बिना स्वांस के रहता है लेकिन जब जीव दूसरे पहर में मां के पेट से बाहर आ जाता है तो उसका वह सिमरन टूट जाता है इसलिए वह रोने लगता है जब भी बच्चे का जन्म होता है वह रोने लगता है क्योंकि मां के पेट में वह सिमरन से जुड़ा होता है और जब वह बाहर आ जाता है तो वह सिमरन से और परमात्मा से टूट जाता है और जब बच्चे का जन्म हो जाता है तो उसके पीने के लिए प्रभु ने बाहर भी दूध का इंतजाम किया होता है लेकिन जीव जब दुनिया का हिस्सा बन जाता है तो ये सभ भूल जाता है और जन्म होते ही सभी लोग बच्चे से कितना प्यार करते हैं मां अपने बच्चे को हाथ में लेकर कहती है कि यह मेरा पुत्र है यह मेरा खून है लेकिन उसका मूर्ख मन ये नहीं जानता की अंतिम समय हमारा कोई नहीं रहता इस पृथ्वी पर हमारे जितने भी सगे संबंधी हैं जितने भी हमारे संबंध हैं वह इस जीवन काल तक ही हैं जब हमारा यह जीवन समाप्त हो जाता है तब हमारा उनसे कोई संबंध नहीं रह जाता तो दूसरे पहर में जब बच्चा मां के पेट से बाहर आता है तो वह धीरे धीरे कर इस बात को भूल जाता है कि वह मां के पेट के अंदर परमात्मा से जुड़ा हुआ था उसके सिमरन से जुड़ा हुआ था वह सभी बातें भूल जाता है जिसने उसको जीवन दिया वह उस परमात्मा को भी भूल जाता है तो जीवन के तीसरे पहर जो की जवानी है जवानी में जीव धन और माया के जाल में ऐसा फस जाता है कि वह परमात्मा से दूर होता जाता है उसको परमात्मा की कोई खबर ही नहीं रहती उसको यह बात भूल ही जाती है कि उसे जीवन देने वाला वह परमात्मा है वह मालिक है और वह इस माया के अधीन होकर बुरे कर्म करता चला जाता है और अपना जन्म गवा देता है और ईश्वर के नाम का व्यापार नहीं कर पाता यानि परमात्मा का सिमरन नहीं कर पाता और वैसे जीवन नहीं बिताता जैसे कि उसे बिताना चाहिए था और उसके बाद जीवन के चौथे पहर में जब जीव बूढ़ा हो जाता है और उसकी मृत्यु नजदीक आने लगती है तो यमराज जीव को काल बनकर पकड़ता है तो उस समय जीव डरता है और उसे कुछ भी समझ में नहीं आता कि ये उसके साथ क्या हो रहा है और फिर यमराज उसे अपने साथ ले जाता है और उसके बाद जीव के मृत शरीर के आसपास लोग रोना और चिल्लाना शुरू कर देते हैं वह बिना मतलब के ही रोना धोना शुरू कर देते हैं जिस व्यक्ति को हम मेरा मेरा कहते हैं जब वह इस पृथ्वी पर अपनी देह को छोड़कर चला जाता है तो हम उससे डरने लगते हैं उसे भागने लगते हैं और अपना नाता उससे तोड़ देते हैं और वह जीव हमारे लिए पराया हो जाता है जिसको हम मेरा मेरा करते थे उस समय जीवन की सच्चाई सामने आती है तो भाई मरदाना जी और भाई बालाजी सतगुरु के मुख्य से यह वचन सुनकर निहाल होते हैं और सद्गुरु को प्रणाम करते हैं और दूसरे ही दिन उस बंजारे के बच्चे की मृत्यु हो जाती है वह बच्चा अपने चार पहर जी कर यहां से चला जाता है तो ऐसे सद्गुरु जीवन के चार पहर को समझाते हुए संसार का भला करते हुए आगे चले जाते हैं ।

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By Sant Vachan


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