जब एक सत्संगी नामदान लेने के बाद 40 दिन तक निरंतर सिमरन जाप करता है भजन बंदगी को पूरा समय देता है तो उसकी बात जल्दी बन जाती है और उसकी भीतर की सारी गन्दगी निकलती जाती है और उस दिन उसका नया जन्म होता है
लेकिन वह जन्म देह का नहीं एक आत्मा का होता है और वही सच्चा जन्मदिन है सतगुरु कहते है की कलयुग में सिर्फ एक ही साधन है वह है नामरूपी जहाज, जिसपर सवार होकर ही जीव सचखण्ड पहुच सकते है, आत्मा और परमात्मा के बीच में जो रास्ता है वह नाम है, जिसपर चलकर आत्मा का परमात्मा से मिलाप हो सकता है, आत्मा परमात्मा एक ही सेज पर है लेकिन दोनो का मिलन नही होता क्योकि आत्मा मन के पिंजरे में कैद है उसको आजाद करवाने की 'कुंजी' केवल "सत्गुरु" के पास है वो जीव को मुक्ति दिलवाने के लिये मनुष्य के चोले में धरती पर आते है और "नाम" का "दान" दे कर भजन सिमरन के द्वारा आत्मा को मन के पंजे से आजाद करवा देते है ।
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