साध संगत जी आज की यह सच्ची घटना एक सत्संगी परिवार में पैदा हुए उस बच्चे की है जिसने जन्म के बाद 3 दिन तक कुछ भी ग्रहण नहीं किया और आंखें बंद रही ना ही वह रोया और ना ही कोई ऐसी हरकत थी जो दूसरे बच्चों में होती है जैसे कि साधारण बच्चे रोने लग जाते हैं तो आइए बड़े ही प्यार से आज का यह प्रसंग सरवन करते हैं ।
साध संगत जी सत्संगी परिवार में पैदा हुआ यह बच्चा कुछ अद्भुत था मानो कि इसकी पिछली कमाई इसके साथ थी जिसकी वजह के कारण इसका व्यवहार कुछ ऐसा था जब इस बच्चे का जन्म हुआ तब बच्चे की 3 दिन तक आंखें नहीं खुली और ना ही उसने किसी चीज का सेवन किया बच्चे के पिता कहते हैं कि जब इसका जन्म हुआ तो इसकी नानी ने इसे दूध पिलाने की कोशिश की लेकिन इसने दूध नहीं पिया दूध बाहर गिरता जा रहा था लेकिन बच्चे ने दूध नहीं पिया और वह भी वहीं पर मौजूद था तो इसके विषय में मैंने डॉक्टरों से बातचीत की कि मेरा बच्चा ऐसा क्यों है तो डॉक्टर भी यह बात बताने के लिए असमर्थ थे कि बच्चे का व्यवहार ऐसा क्यों है क्योंकि उन्हें कुछ समझ नहीं आ रही थी क्योंकि ऐसा केस उन्होंने पहली बार देखा था कि बच्चे का जन्म हुआ हो और वह रोए ना और ना ही कुछ खाए पिए तो साध संगत जी डॉक्टरों ने बच्चे की पूरी तरह से जांच पड़ताल की लेकिन सभ कुछ नॉर्मल था कुछ भी ऐसा नहीं था जो कि उस परिवार के लिए चिंता का विषय बनता तो कुछ दिन बाद बच्चे की मां को हॉस्पिटल से छुट्टी मिल गई और वह घर आ गए और जब वह घर आ गए तो घर आते ही उन्होंने सतगुरु की फोटो के आगे बच्चे को लेकर अरदास की जैसे कि साधारण ही सत्संगी करते हैं जब भी खुशी की बात होती है वह मालिक हमें खुशियां प्रदान करता है तो जैसे कि हमारे संत सतगुरु ने सिखाया है कि खुशी भी उसी ने दी है तो खुशी में भी उसको भूलना नहीं है सबसे पहले उसका शुक्रिया करना है क्योंकि अक्सर जब दुख का समय होता है तो व्यक्ति मालिक को याद करता है लेकिन जब वह खुश होता है तब उसको मालिक की याद नहीं आती वह खुशियों में डूबा होता है और मालिक को भूल जाता है तो साध संगत जी जैसे ही उन्होंने सतगुरु के आगे अरदास की उसके कुछ दिन बाद बच्चे ने दूध पीना शुरू किया था तो बच्चे को दूध पीता देख परिवार वाले बहुत खुश हुए लेकिन बच्चा रोया नहीं इसकी चिंता उनको पड़ी हुई थी बच्चा स्वभाव से शांत था मानो की अंदर मालिक से जुड़ा हुआ हो तो बच्चा जैसे-जैसे बड़ा होता गया वैसे ही उस परिवार को बच्चे की अंदर की रूहानियत दिखने लग पड़ी थी क्योंकि बच्चा बचपन से ही पोथी पढ़ने लग गया था बच्चे ने बचपन से ही जपजी साहब का पाठ करना शुरू कर दिया था और बच्चे को गुरुवाणी कंठ हो गई थी क्योंकि उस परिवार में बच्चे की दादी रोज़ सुबह जपजी साहब का पाठ करती थी तो वह बच्चा भी अपनी दादी के पास जाकर बैठ जाता और वाणी पड़ने लगता साध संगत जी अपने एक सत्संग के अंदर सतगुरु ने कहा था कि अगर कोई व्यापारी मरता है किसी व्यापारी की मृत्यु होती है तो वह अगले जन्म में व्यापारी बनकर नहीं आता और अगर किसी मंत्री की मृत्यु होती है तो वह अगले जन्म में मंत्री बन कर जन्म नहीं लेता लेकिन अगर मालिक के किसी भक्त की मृत्यु हो जाती है किसी साधक की मृत्यु हो जाती है और उसका कुछ सफर बाकी रह जाता है तो वह अगले जन्म में भी साधक बनकर ही आता है सद्गुरु कहते हैं कि मृत्यु के समय इस संसार से हमारे साथ कोई भी वस्तु नहीं जाती केवल एक ही वस्तु जाती है वह हमारी भक्ति होती है और जब हमारा अगला जन्म होता है तब वही भक्ति ही हमारे साथ वापस आती है तो साध संगत जी जब बच्चे ने जपजी साहब का पाठ करना शुरू कर दिया और उसे बहुत सारी बानी कंठ हो गई तो उसके स्कूल में गुरु वाणी का कोई कार्यक्रम था जिसमें उस बच्चे ने भाग लिया और जपजी साहब का पाठ सुना कर सबको अचंभित कर दिया उसके स्कूल वाले भी उसके माता-पिता से कहने लगे कि आपका यह बच्चा कुछ अलग है इसे इतनी छोटी उम्र में गुरबाणी कंठ है और ऐसा हो पाना संभव नहीं है तो सभ उससे बहुत प्यार करते थे तो सबका उस बच्चे के साथ बहुत लगाव पड़ गया था, स्कूल में भी अध्यापक बच्चे को बहुत प्यार करते थे लेकिन कुछ साल बाद बच्चे के गले में दर्द हुई और उसकी दर्द को देखते हुए उसके माता-पिता उसे हॉस्पिटल ले गए तो जब डॉक्टरों ने अपनी जांच की तो जांच में उन्होंने पता लगाया कि बच्चे के गले में मांस बड़ा हुआ है तो उन्होंने बच्चे के माता-पिता को ऑपरेशन करवाने के लिए कहा तो बच्चे के दर्द को ध्यान में रखते हुए बच्चे के माता-पिता ने ऑपरेशन करवाने के लिए हां कर दी तो जिस दिन बच्चे का ऑपरेशन था उस दिन उस बच्चे ने अपनी मां से कहा की मां मैं चला जाऊंगा आप मेरी चिंता मत करना साध संगत जी उसकी मां कहती है कि मेरा बच्चा ऐसी बातें करने लग गया था कि मैं चला जाऊंगा, मैं मर जाऊंगा और मैं उसे डांट दिया करती थी तो जब उसका ऑपरेशन होने लगा डॉक्टर उसका ऑपरेशन करने लगे ऑपरेशन करते समय डॉक्टरों से कुछ गलती हो गई और गले का ऑपरेशन था तो डॉक्टरों की गलती के कारण बच्चे की मृत्यु हो गई तो जब डॉक्टरों ने उनके माता-पिता को बच्चे की मृत्यु की खबर दी तो वह तो वहीं पर बैठे रोने लग गए और वहां पर उनके कुछ रिश्तेदार भी आए हुए थे जिन्होंने डॉक्टरों की इस गलती को लेकर वहां पर बहुत हंगामा किया डॉक्टरों को मारने तक की धमकी दे दी थी लेकिन बच्चे के माता-पिता ने मालिक के हुक्म को मानते हुए उसके भाने में रहते हुए शांति रखने के लिए कहा तो साध संगत जी ऐसे रोहानियत का भंडार वह बच्चा अपने स्वांसो की पूंजी को भोगता हुआ यहां से चला गया साध संगत जी कहते हैं जो मालिक से जुड़े हुए होते हैं मालिक खुद उनकी संभाल करने आ जाता है और उनके साथ जो भी होता है वह उसके हुक्म के अनुसार ही होता है साध संगत जी संत महात्माओं के कोई कर्म नहीं होते लेकिन उन्हें फिर भी हमारे लिए हमारा उद्धार करने के लिए इस पृथ्वी लोक में जन्म लेना पड़ता है साध संगत जी एक साखी सतगुरु रविदास महाराज जी से संबंधित है कहते हैं कि जब सतगुरु रविदास महाराज जी का जन्म हुआ था तब वह इस मृत्यु लोक में आना नहीं चाहते थे लेकिन मालिक के हुकुम को मानते हुए उन्होंने इस संसार में जन्म लिया लेकिन कहते हैं कि सतगुरु रविदास महाराज जी ने यह धारणा की हुई थी कि मैं तब तक कुछ खाऊंगा नहीं जब तक की वह प्रभु मृत्यु लोक में आकर मुझे दर्शन नहीं देता और अपने हाथ से दूध नहीं पिलाता अगर वह आकर मुझे दूध पिलाए तो ही मैं दूध पियुंगा नहीं तो नहीं ! साध संगत जी कहते हैं कि जब सतगुरु का जन्म हुआ तो उन्होंने दूध नहीं पिया और मालिक को उन्हें दूध पिलाने के लिए पृथ्वी पर आना पड़ा था तो जब सतगुरु रविदास महाराज जी की माता ने देखा कि बच्चा दूध नहीं पी रहा है तो उन्हें भी चिंता होने लगी लेकिन उसी समय प्रभु ने मानव अवतार धारण किया और यहां पर सतगुरु का जन्म हुआ वहां जाकर होका देना शुरू कर दिया कि जिसका बच्चा दूध नहीं पीता हो उसको मुझे दिखाएं तो जब सतगुरु की माता के कानों में यह आवाज पड़ी तो उन्होंने भाग कर उनको बुलाया और सतगुरु को उनके हाथों में पकड़ा दिया तो सतगुरु प्रभु के हाथों में जाकर मंद मंद मुस्कुरा रहे थे और उन्होंने मालिक को प्रणाम किया तो उसके बाद मालिक ने सतगुरु की माता को कहा कि अब आप इसे दूध पिलाएं अब यह दूध पिएगा तो जैसे ही मालिक ने यह वचन कहे तो सतगुरु ने दूध पीना शुरू कर दिया और जब उनकी माता उनको दूध पिलाने के लिए घर के अंदर गई और जब वह बाहर आकर देखती है तो वहां पर कोई नहीं होता और यह देख कर सतगुरु की माता हैरान हो जाती है कि अभी तो वह यही पर खड़े थे, पता नहीं कहां चले गए तो साध संगत जी ऐसे सतगुरु महाराज जी ने दूध पीना शुरू किया था साध संगत जी कहते हैं कि जब मालिक संत महात्माओं को इस पृथ्वी लोक पर भेजता है तो वह उन्हें यही हुक्म देकर भेजता है कि जो मेरी आत्माएं इस संसार में भटकी हुई है जो मार्गदर्शन चाहती है जाओ जाकर उनका मार्गदर्शन करो और उनको वापस अपने सच्चे लोग मैं लेकर आओ तो मालिक अपनी उन प्रेमी आत्माओं को कहता है कि जाओ पृथ्वी लोक पर देह धारण कर जो भटके हुए हैं उनको रास्ता दो तो ऐसे मालिक संतों महात्माओं को इस संसार में भेजता है लेकिन वह इस लोक में आना नहीं चाहते क्योंकि वह निरंतर उस मालिक से जुड़े हुए होते हैं प्रेम के उस सागर में मगन होते हैं परमात्मा रूपी सागर में आनंदित होते है तो कोई अपने आनंद को छोड़कर कैसे इस मृत्यु लोक में आ सकता है तो इसीलिए जब उनका जन्म होता है वह स्वभाव से शांत होते है और अंदर मालिक से बिछड़ने का दुख भी होता है आनंद से बिछड़ने का दुख भी होता है वह केवल हम भटके हुए लोगों का उद्धार करने के लिए आते हैं केवल हमारे लिए ही इस पृथ्वी लोक में जन्म लेते हैं उनका और कोई दूसरा मकसद नहीं होता वह तो चुन चुन कर जीव आत्माओं का उद्धार करते हैं क्योंकि मालिक ने उन्हें हुक्म दे रखा होता है कि जो जीवात्मा वापस अपने सच्चे लोग आना चाहती है उसको सही मार्ग दिखाना आपका काम है उस जीवात्मा का मार्गदर्शन करना आपका कर्तव्य है तो संत सद्गुरु केवल मालिक के हुकम को निभाते हुए हम जीवो का उद्धार कर यहां से चले जाते हैं ।
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By Sant Vachan
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