साध संगत जी आज की साखी है कि जो सत्संगी शुभ मुहूर्त देखकर काम करते हैं उन्हें सतगुरु क्या उपदेश करते हैं वह आज हमें इस साखी के माध्यम से पता चलेगा तो आइए बड़े ही प्यार से आज का यह प्रसंग सरवन करते हैं ।
साध संगत जी बात उस समय की है जब बड़े सतगुरु हुआ करते थे सतगुरु दीनदयाल अपनी मौज में बैठे हुए थे तो शेर सिंह नाम का एक सत्संगी सेवादार हुआ करता था जिसकी सतगुरु के प्रति बहुत लगन थी और वह हर कार्य सतगुरु को पूछ कर करता था जैसा सतगुरु उसे करने के लिए कहते थे वह वैसा ही करता था तो साध संगत जी सतगुरु अपने ध्यान में बैठे हुए थे तो शाम का समय था और बाहर कुछ संगत सतगुरु के बाहर आने का इंतजार कर रही थी ताकि सतगुरु के दर्शन कर सके तो शेर सिंह और उनकी पत्नी भी वहां जाकर बैठ गए ताकि वह भी सतगुरु के दर्शन कर सकें और उनसे पूछताछ कर सके और जब सतगुरु दीनदयाल अंतर्ध्यान होकर बाहर आए और संगत को दर्शन दिए तो सतगुरु ने संगत को दोनों हाथ जोड़कर प्रणाम किया और संगत के बीच बैठ गए तो वहां पर जो संगत मौजूद थी वह अपने-अपने प्रशन उनके आगे रख रही थी कुछ अभ्यासी अपने निजी मामले सतगुरु से साझा कर रहे थे और कुछ अभ्यासी रूहानियत के बारे में उनसे पूछ रहे थे तो सतगुरु बहुत ही अच्छे तरीके से जवाब देते हुए संगत से बातें कर रहे थे तो जब शेर सिंह की पत्नी ने उन्हें सतगुरु से अपनी बेटी की शादी का शुभ मुहूर्त पूछने के लिए कहा तो वह अंदर ही अंदर डर रहा था क्योंकि शेर सिंह ये बात जानता था कि सतगुरु तो हमें इन सब बातों से निकालते हैं लेकिन हम फिर भी इन बातों में पड़ जाते हैं जब भी कोई कार विवहार करना होता है तब हम इन्हीं बातों में पड़ जाते हैं, पूछताछ करनी शुरू कर देते हैं तो शेर सिंह सतगुरु से बात करने से डर रहा था लेकिन उनकी पत्नी पीछे से उन्हें बोल रही थी कि आपको सतगुरु से अपनी बेटी की शादी का शुभ मुहूर्त पूछना चाहिए कि किस दिन हम अपनी बेटी की शादी रखें तो साध संगत जी शेर सिंह की सतगुरु से यह सवाल करने की हिम्मत नहीं हुई तो उनकी पत्नी आगे बढ़कर सतगुरु से पूछती है कि सच्चे पातशाह ! हमारी बेटी की शादी है हम आपसे इसी के बारे में पूछने आए हैं कि हम किस दिन अपनी बेटी की शादी की तारीख पक्की करें हम आपसे वह शुभ मुहूर्त जानने के लिए आए हैं जिस दिन हमारी बेटी की शादी होगी क्योंकि लड़के वालों ने हमें तारीख बताने के लिए कहा है तो हम इसी बात को लेकर चिंता में पड़े हुए हैं कि कौन सा दिन शादी के लिए रखा जाए तो कृपया हमें बताएं कि वह कौन सा शुभ महूरत है जिस दिन हम अपनी बेटी की शादी कर सकें तो साध संगत जी उस बीवी की यह बात सुनकर पहले तो सतगुरु कुछ नहीं बोले लेकिन कुछ देर चुप रहने के बाद सतगुरु ने अपने एक सेवादार को कहा कि जाओ जाकर जंत्री लेकर आओ तो जैसे ही सतगुरु ने ये हुक्म दिया तो वहां पर बैठी संगत यह समझने लगी कि सतगुरु तो हमें इन सब बातों से निकालते हैं लेकिन अब सतगुरु ही इन बातों में पढ़ रहे हैं यह कैसे हो सकता है लेकिन साध संगत जी संतो की लीला तो वही जानते हैं उनकी महिमा तो वही जानते हैं हमारा दायरा बहुत छोटा है जोकि उनकी लीला को नहीं समझ सकता तो जब सतगुरु ने अपने एक सेवादार को जंत्री लेकर आने का हुक्म दिया तो उसने किसी भी तरह करके जंत्री सतगुरु के हाथ में दे दी तो सतगुरु उसे देख रहे थे और सभी संगत की निगाहें सतगुरु पर थी कि सतगुरु क्या कहने वाले हैं तो वहां पर बैठे शेर सिंह को भी लगने लगा कि शायद सतगुरु शादी की तारीख बताने वाले है और वहां पर बैठी और संगत भी यही समझ रही थी तो जब सतगुरु देखते रहे तो वहां पर बैठे एक सत्संगी ने सतगुरु से सवाल कर दिया कि सतगुरु आप तो हमें इन सब बातों से निकालते हो और अब आप ही इन बातों में पढ़ रहे हो यह आपकी क्या लीला है कृपया हमें भी बताएं तो सतगुरु ने उस सत्संगी के प्रश्न का जवाब देते हुए कहा कि मैंने यह जंत्री इसलिए मंगवाई है ताकि मैं इस जंत्री में देख सकूं कि इसमें कौन से शुभ मुहूर्त बताए गए हैं और कौन से अशुभ बताए गए है और जो अशुभ मुहूर्त होंगे जिनको इस जंत्री ने अशुभ बताया है मैं उन्हीं में से एक तारीख ढूंढ कर इनको दूंगा ताकि वह उस दिन अपनी बेटी की शादी कर सके तो साध संगत जी सतगुरु की यह बात सुनकर सभी संगत हैरान रह गई कि सतगुरु ये क्या कह रहे हैं जबकि हम तो कुछ और ही सोच रहे थे तो वह सत्संगी फिर सतगुरु से सवाल करता है कि सच्चे पातशाह हमें कुछ समझ नहीं आई कृपया हमें विस्तार से बताएं कि आप क्या कहना चाहते हैं तो सतगुरु ने उस समय संगत को उपदेश दिया कि भाई इतनी बार तो सत्संग में समझाया जाता है कि हमें इन सब बातों से नहीं पड़ना हमें इन सब बातों से ऊपर उठना है और नाम की कमाई करनी है तब जाकर हम सत्संगी कहलाएंगे लेकिन हम कहां मानते हैं फिर भी वही बातों में पड़ जाते हैं जिनमें हमें नहीं पड़ना चाहिए क्योंकि मालिक के बनाए हुए सभी मुहूर्त शुभ ही है यहां पर शुभ और अशुभ की कोई बात नहीं है ऐसा कोई भी मुहूर्त नहीं है जो अशुभ है क्या वह मालिक हमारे लिए कुछ अशुभ कर सकता है ? वह हमारे लिए अशुभ क्यों बनाएगा ! उसने तो सब कुछ शुभ-शुभ ही बनाया है लेकिन हम फिर भी नहीं मानते फिर भी वही बातों में पड़ते हैं जिनमें पड़ने से मना किया जाता है जबकि ऐसा कुछ भी नहीं होता मालिक की बनाई हुई हर चीज शुभ है उसकी बनाई हुई चीज भला अशुभ कैसे हो सकती है हमें इस पर विचार करने की जरूरत है और साध संगत जी सतगुरु कहते हैं कि मैं इसलिए इस यंत्री से वह अशुभ मुहूर्त ढूंढ रहा था जो इसके मुताबिक बताया गया है ताकि वह तारीख जो इस यंत्री में अशुभ बताई गई वह मैं इनको बता सकूं और यह बात भी सच है कि अगर मैं इनको वह तारीख बता देता तो इन्होने उसी को शुभ मानकर सभी कार्य करने थे क्योंकि इनके अंदर यह विश्वास हो जाना था कि यह तो हमें हमारे गुरु ने दी है यह तारीख़ तो हमें हमारे गुरु ने बताई है इस तारीख पर कुछ अशुभ हो ही नहीं सकता जबकि यह किसी भी तारीख को अपनी बेटी की शादी कर सकते है तब भी कुछ अशुभ नहीं होगा क्योंकि जो उसे याद कर कर किसी कार्य की शुरुआत करते हैं उनके काम में विघ्न पड़ ही नहीं सकता और अगर पड़ता भी है तो उसके पीछे भी कोई ना कोई कारण अवश्य होता है क्योंकि अगर हमारा कोई कार्य बिगड़ जाता है कोई काम नहीं बनता तो उसके ना बनने के पीछे भी मालिक की कोई ना कोई रजा जरूर छिपी होती है जो हमें तब तो समझ में नहीं आती लेकिन समय के साथ-साथ हमें समझ आने लगती है कि उस समय जो भी हुआ था अच्छा ही हुआ था क्योंकि मालिक जो भी करता है ठीक ही करता है वह किसी का बुरा नहीं करता अगर किसी का बुरा होता है तो वह उसके अपने ही कारण होता है वह तो सबका भला करने वाला है सबकी संभाल करने वाला है तो हमें उसकी रजा को समझने की जरूरत है उसके भाने में रहने की जरूरत है और इन सब बातों से ऊपर उठकर उसके नाम की कमाई करने की जरूरत है तभी हम इन सब बातों से ऊपर उठ पाएंगे और यह एहसास कर पाएंगे कि इस सृष्टि में अच्छी बुरी नाम की कोई चीज नहीं है जो भी उस मालिक ने बनाया है अच्छा ही अच्छा है तो साध संगत जी इस साखी से हमें भी यही प्रेरणा मिलती है कि जब हम भी किसी कार्य की शुरुआत करें कोई कार विवहार करें तो हमें भी इन सब बातों में नहीं पड़ना चाहिए कि कौन सा शुभ मुहूर्त है और कौन सा अशुभ है क्योंकि रूहानियत के इस मार्ग पर ऐसी बातें करने वाले व्यक्ति को मूर्ख कहा जाता है और इसीलिए तो अक्सर सतगुरु अपने सत्संग में भी फरमाते थे की भाई भजन बंदगी पर ज़ोर दो भजन सिमरन करो जब तुम भजन करने लग जाओगे तो फिर तुम ऐसी बातें कभी नहीं करोगे क्योंकि तुम्हें ज्ञान हो जाएगा कि ऐसा कुछ भी नहीं होता जो भी उसके द्वारा निर्मित हुआ है जो भी उसने बनाया है वह अच्छा ही बनाया है और उसकी कृपा सभी पर समान रूप से हो रही है कहीं पर भी कम ज्यादा नहीं है बात सिर्फ इतनी है की बारिश में किसी का बर्तन उल्टा पड़ा होता है जिसमें बारिश का पानी एकत्रित नहीं हो पाता और किसी का सीधा पड़ा हुआ होता है जिसमें पानी एकत्रित तो होता है लेकिन बर्तन के गंदे होने की वजह से वह पानी भी गंदा हो जाता है ऐसे ही हमारी दशा है उसकी कृपा तो हम सभी पर हो रही है लेकिन हम उसकी कृपा के पात्र नहीं बन पाते ।
साध संगत जी इसी के साथ हम आपसे इजाजत लेते हैं आगे मिलेंगे एक नई साखी के साथ, अगर आपको ये साखी अच्छी लगी हो तो इसे और संगत के साथ शेयर जरुर कीजिए, ताकि यह संदेश गुरु के हर प्रेमी सत्संगी के पास पहुंच सकें और अगर आप साखियां, सत्संग और रूहानियत से जुड़ी बातें पढ़ना पसंद करते है तो आप नीचे E-Mail डालकर इस Website को Subscribe कर लीजिए, ताकि हर नई साखी की Notification आप तक पहुंच सके ।
By Sant Vachan
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