जो सत्संगी भजन सिमरन नहीं करते लेकिन सेवा बहुत करते है वह ये जान ले कि भजन के बिना सेवा वह कटी हुई सब्जी है जो कभी बन नहीं पाती और सब्जी को काटने का मकसद उसे बनाने का होता है और इसी से संबंधित एक बार सतगुरु से एक सत्संगी ने पूछा था कि सतगुरु आप अपने सत्संग में भजन बंदगी पर इतना जोर क्यों देते हैं
जबकि आपको पता है कि हमसे भजन सिमरन तो होता नहीं ! तो उसका जवाब देते हुए सतगुरु ने कहा था कि मुझे अच्छी तरह मालूम है इसीलिए तो कहता हूं भजन बंदगी करो ! इस जन्म में कम से कम आंखों तक सिमटाव तो करो ! बाकी काम गुरु पर छोड़ दो ताकि जब गुरु तुम्हें अंतिम समय लेने आए तो उसे खुशी हो ! क्योंकि अंतिम समय सिमटाव की तकलीफ जो जीव को होती है वह असहनीय होती है और संतो से अपने जीव की वह तकलीफ देखी नहीं जाती और वह नहीं चाहते कि आप ऐसी अवस्था में चोला छोड़ें इसलिए जितना ज्यादा हो सके सेवा के साथ-साथ भजन जरूर करो भजन सिमरन को वक्त जरूर दो अक्सर अंतिम समय संत अपने शिष्य का शब्द खोल देते है लेकिन सिमटाव की वह असहनीय दर्द जीव को सहन करनी ही पड़ती है ।
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