" ऐसी लाल तुध बिन कौन करे "
साध संगत जी आज की ये साखी सुनकर हमें यह पता चलेगा कि सतगुरु अपनी संगत का कहा हुआ कभी नहीं मोड़ते इतना प्यार वह अपनी संगत से करते हैं कि संगत जो कह दे वैसा ही कर देते हैं साध संगत जी जितना प्यार संगत गुरु से करती है उससे कई ज्यादा प्यार गुरु अपनी संगत से करता है जिसको शब्दों में बयान नहीं किया जा सकता तो साध संगत जी ऐसा ही है किस्सा कृपा निधान दीनदयाल सतगुरु महाराज जी के समय का है आयए बड़े ही प्यार से आज का ये प्रसंग सरवन करते हैं ।
साध संगत जी, अकालगढ़, पाकिस्तान बनने से पहले की बात है, उस से भी आठ से दस साल पुरानी बात है, कुल 75 साल पुरानी बात है, की उस समय गुरु के किसी प्यारे ने घर बनाया था और श्री गुरु ग्रंथ साहिब जी का पाठ रखा था और सभी संगत को घर आने का न्योता दिया था और वह गुरु का प्यारा सतगुरु को अपने घर का उद्घाटन करने के लिए कह कर आया था और वे अक्सर सतगुरु की सेवा में रहता था जिसके कारण सतगुरु का उस से प्रेम था क्योंकि जब भी सेवा का कोई हुक्म होता था वह भागकर सतगुरु के पास आ जाता था तो सद्गुरु का अपने उस प्यारे सत्संगी के साथ बहुत प्रेम था साध संगत जी सतगुरु अपनी कुटिया से बहुत कम निकलते थे, ज्यादा वह अंदर ही रहते थे, मालिक की भक्ति में लीन रहते थे जो सेवादार उनकी कुटिया में उन्हें खाना देने जाते थे वह जब खाली खाने की प्लेट लेने जाते थे तो वह देखते थे कि सतगुरु ने तो खाना खाया ही नहीं वह तो वैसे का वैसा पड़ा हुआ है और सतगुरु को मालिक की भजन बंदगी में लीन हुआ पाते थे साध संगत जी सतगुरु दिन रात मालिक की भजन बंदगी करते थे वह एक पल भी उस मालिक से टूट नहीं सकते थे, संगत उनके बाहर आने का इंतजार करती रहती थी और सेवा कर चली जाती थी इतनी भजन बंदगी वह करते थे तो साध संगत जी जब उसने सतगुरु को अपने नए घर के बारे में बताया और सतगुरु से कहा कि सतगुरु मैंने गुरु ग्रंथ साहिब जी का पाठ रखा हुआ है आपको भी वहां पर हाजिरी लगानी है तो सतगुरु ने अपने उस सत्संगी की वह बात मान ली और सतगुरु वहाँ गए हुए थे, दूर दूर से बहुत संगत आई हुई थी और श्री गुरु ग्रन्थ साहिब का पाठ हो रहा था, वहां पर इतनी शांति थी कि अगर पत्ता भी गिरे तो शोर हो जाए, इतनी शान्ति से सब संगत दर्शनों के साथ श्री गुरु ग्रन्थ साहिब जी का पाठ सुन रही थी, कुछ समय बाद कई मर्द और औरतें भी आई और आकर चुप-चाप बैठ गई और सतगुरु ने इशारे से पाठ रुकवा दिया, साध संगत जी संतो की लीला तो वहीं जानते है हमारी बुद्धि उन्हें नहीं समझ सकती क्योंकि हमारा दायरा इतना बड़ा नहीं है कि उनकी लीला को समझ सके तो साध संगत जी जब सतगुरु ने पाठ रुकवा दिया तो सद्गुरु कहने लगे कि जहां पर अपनी कोई सच्ची फरियाद लेकर आया है और सतगुरु फरमाते हैं कि एक सवाल लेकर कोई बीबी आई है, वह आगे आ जाओ लेकिन कोई भी आगे नहीं आया फिर से फरमान हुआ " भाई ग्रन्थ साहिब का पाठ रुकवा कर उस के लिये समय निकाला है जल्दी से आगे आओ लेकिन फिर भी कोई आगे नहीं आया, तो अब की बार जोश में आवाज़ आई " जो जाटनी गाँव से आई है वह आगे आ आओ और सतगुरु ने कहा उस के चेहरे पर चेचक के दाग है और वह बड़ी परेशान है साध संगत जी ऐसे सतगुरु ने सारी निशानी दे दी, अब तो छुपना मुश्किल था धीरे धीरे सोचती हुई वह आगे आ रही थी "जैसा उसने सुना था, उस ने वैसा ही पाया है और मन में सोचने लगी कि मैंने सही सुना था की संत महात्मा अन्तर की बात पकड़ लेते हैं और सोचने लगी कि यह अब इतने समर्थ हैं, तो मेरी मुश्किल भी दूर करेंगे तो जब वह बीबी आगे आ गई, सारी निशानियाँ वहां पर मौजूद संगत ने देख ली तो वहां पर मौजूद संगत सोच रही थी कि इस के भाग्य बड़े जाग गये हैं कि सतगुरु ने पाठ रूकवा कर इसका मसला निकाला है, तो सतगुरु कहते हैं "बेटा ! जल्दी से बोल तू क्या चाहती है" लेकिन वो बीबी चुप रही, लेकिन अब चुप रहने का समय नहीं था, उस जाटनी ने अपनी दो उँगली उठाई, सतगुरु ने उसे अपनी एक उँगली दिखाई, काफी देर तक दो उँगली और एक उँगली चलती रही लेकिन उनके बीच में हुई ये वार्तालाप संगत नहीं समझ पाई कि ये क्या हो रहा है ? इधर अब ये जाटनी सोच रही है कि सर्व-शक्तिमान खुश हो रहे हैं, अगर आज भी चुप रही तो सारी जिंदगी पछतावा रहेगा और ये मुश्किलें सारी ज़िन्दगी दूर नहीं होंगी, तो विचार कर कहने लगी, सच्चे पातशाह ! मेरे पति और भाई के हाथों कत्ल हो गया है, सिपाही पकड़ कर ले गएँ हैं, सब कहते हैं कि, फांसी होनी लाजमी है, बस थोड़े समय का फर्क है, इधर या उधर, कोई दुसरा रास्ता नज़र नहीं आता है, बड़ी दूर से चल कर आई हूं आप का बड़ा नाम सुन कर आई हूँ, मेरा इकलौता भाई है तो ये सुनकर सतगुरु कहते हैं चल ठीक है ! तू बड़ी दूर से नाम सुन कर आई है, तो तेरे पति को बरी करवा देते हैं और ये सुनकर जाटनी बोली बड़ी मेहरबानी जी ! भाई मेरा एक है, ओर मेरी मां के दांत भी गिरने लगे हैं, अब उस के और बच्चा होना नहीं, मां बाप के साथ-साथ मेरे मां-बाप का नामलेवा नहीं रहेगा, ज़िन्दगी भर मैं किसे रखडी (राखी) बाधूँगी ? अगर मेरा भाई नहीं रहा तो मेरा तो, माँ के घर जाना ही बन्द हो जायेगा, हुज़ूर बोले "बात तो ठीक है तेरी, अच्छा ऐसा करते हैं, तेरे भाई को बरी करवा देते हैं, तुझे राखी बांधने में कोई दिक्कत नहीं आएगी तो ये सुनकर वह जाटनी बोली आप तो दाता हैं, आप तो रब हैं अगर मेरा सुहाग चला गया तो लोग बड़ी बातें बनायेंगे, मैं अपनी ज़िन्दगी कैसे काटूँगी ? किस किस के ताने सुनूंगी ? आप की बच्ची विधवा हो जाये, यह आप कैसे देख सकेंगे ? सतगुरु बोले इसीलिए कह रहा हूँ , चल तेरे पति को बचा लेते हैं, वह जाटनी कहती है मैं भी आप से कह रही हूँ कि मैं दाता के घर आई हूँ, उस के घर कोई कंजूसी नहीं हो सकती, मैंने तो दोनों की ही ज़िन्दगी की भीख ले के जानी है, सतगुरु बोले मैंने कहा तो है, किसी एक को बख्श दिया मैंने जा ! तो साध संगत जी सारी संगत चुपचाप बैठी इस रोमांच का अलौकिक आनन्द उठा रहा थी तो जब वह बीबी सतगुरु से दोनों की जिंदगी की भीख मांगने लगी तो संगत ने सतगुरु से अर्ज की कि आप इसे दोनों बख्श दें, तो संगत की ये बात सुनकर किरपा निधान सतगुरु कहते हैं जा बेटी ! एक मैंने बख्शा और एक मेरी संगत ने, मेरी संगत की कोई बात मैं नहीं मोड़ता, पूरी करता ही करता हूँ, भले ही वो लिखे हुए से अलग हो, जा ! मेरी संगत के जोड़े साफ़ कर, तो साध संगत जी वो जाटनी वहाँ पर ही सतगुरु के चरणों पर गिर पड़ी और खुशी के आंसू रोने लगी ओर बोलने लगी, "ऐसी लाल तुध बिन कौन करे" और रोते रोते वह बाहर गई ओर अपने दुपट्टे से संगत के जोड़े चूमती है, फिर दुपट्टे से साफ़ किये जा रही है और मुँह से यही बोले जा रही है कि ऐसी लाल तुध बिन कौन करे तो साध संगत जी इस साखी से हमें भी यही प्रेरणा मिलती है कि सद्गुरु अपनी संगत का कहा हुआ नहीं मोड़ते इतना प्यार वह अपनी संगत से करते हैं जितना कि दुनिया का कोई और जीव दूसरे जीव से नहीं कर सकता और साध संगत जी सतगुरु अक्सर अपने सत्संग में फरमाते थे कि प्यार तो मालिक से किया हुआ ही सच्चा है गुरु से किया हुआ प्यार ही सच्चा है दुनियां के बाकी सब प्यार तो झूठे है देह के सड जाने के बाद वह प्यार भी खत्म हो जाता है और फिर दुनिया में हम जिस किसी से भी प्रेम करते हैं अगर वह हमारे ही विरुद्ध हो जाए हमारे हिसाब से ना चले तो हमें उसी से घृणा हो जाती है नफरत हो जाती है यानी कि हम दुनियावी लोगों का प्यार कुछ समय के बाद नफरत में तब्दील हो जाता है और सतगुरु कहते है इश्क तो एक ही सच्चा है जो उस मालिक से होता है ।
साध संगत जी इसी के साथ हम आपसे इजाजत लेते हैं आगे मिलेंगे एक नई साखी के साथ, अगर आपको ये साखी अच्छी लगी हो तो इसे और संगत के साथ शेयर जरुर कीजिए, ताकि यह संदेश गुरु के हर प्रेमी सत्संगी के पास पहुंच सकें और अगर आप साखियां, सत्संग और रूहानियत से जुड़ी बातें पढ़ना पसंद करते है तो आप नीचे E-Mail डालकर इस Website को Subscribe कर लीजिए, ताकि हर नई साखी की Notification आप तक पहुंच सके ।
By Sant Vachan
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