Guru Nanak Saakhi : जब सतगुरु नानक ने भाई मरदाना को नदी पर चादर बिछाने के लिए कहा तो क्या हुआ !

 

साध संगत जी आज की ये साखी शुरू करने से पहले सतगुरु का उपदेश समझने की कोशिश करते हैं कि जो लोग अहंकार में रहते हैं और कहते हैं कि मैं सब कुछ कर रहा हूं मैं सब को खाना खिला रहा हूं अगर किसी की रोजी रोटी चल रही है तो वह मेरी वजह से चल रही है तो यहां पर सतगुरु हमें उपदेश करते हैं कि इस पृथ्वी पर एक पत्ता भी मालिक के हुक्म के बिना नहीं हिलता अगर पत्ता भी हिलता है तो वह भी परमात्मा के हुक्म से हिलता है और सतगुरु कहते है कोई भी जीव ऐसा नहीं है जो उसके हुक्म से बाहर है उसके भाने से बाहर है और जो जीव यह जान लेता है कि यहां पर जो भी हो रहा है वह परमात्मा की मर्जी से हो रहा है उसके हुकम से हो रहा है वह कभी भी घमंड नहीं करेगा और सतगुरु कहते है भले ही आप लाखों करोड़ों कमा लो दुनिया को अपने पांव पर झुका लो लेकिन अगर आपके कर्म परमात्मा को खुश नहीं कर पाए तो आपका जीवन असफल हो जाएगा आप इस मनुष्य जामे को खो देंगे ।

साध संगत जी सतगुरु नानक का नर्मदा नदी के किनारे बनी बहुत सारी जगहों पर जाने का इतिहास है गुजरात और राजस्थान में बहुत सारे ऐसे स्थान है यहां से नर्मदा नदी बहकर निकलती है और उन स्थानों को गुरुजी के चरण स्पर्श प्राप्त हैं गुजरात का ब्रूच नामक स्थान भी उन्हीं स्थानों में आता है जो कि नर्मदा नदी के किनारे पर स्थित है और उस स्थान को सतगुरु नानक के चरण स्पर्श प्राप्त है साध संगत जी सतगुरु नानक अपनी दूसरी उदासी के दौरान उस स्थान पर पहुंचे तो शाम का समय था सतगुरु नानक को नदी को पार कर दूसरी तरफ जाना था जहां पर कुछ साधु महात्मा रहते थे ताकि सतगुरु उनसे मिलाप कर सकें तो सतगुरु नानक ने नदी के पास खड़े एक मल्लाह से कहा कि भाई हमें नदी पार करवा दो लेकिन मल्लाह ने कहा कि मैं आपको इस समय नदी पार नहीं करवा सकता तो सतगुरु नानक ने कहा कि क्यों भाई ! इस समय आप हमें नदी क्यों पार नहीं करवा सकते ? तो उसने सतगुरु के इस प्रश्न का जवाब देते हुए कहा कि इस राज्य के राजा का हुक्म है कि सूर्य अस्त होने के बाद कोई भी नदी पार नहीं कर सकता तो इसीलिए शाम के समय यहां पर कोई भी नदी पार नहीं करता तो उसकी यह बात सुनकर सतगुरु नानक ने भाई मरदाना जी को कहा की मरदाने पानी पर चादर बिछाओ !तो भाई मरदाना जी ने ऐसा ही किया जैसे ही भाई मरदाना जी ने पानी पर चादर बिछाई तो सद्गुरु की कृपा से चादर पानी पर तैरने लगी तो उसके बाद सतगुरु और भाई मरदाना जी उस चादर पर विराजमान हो गए और चादर पर बैठकर नदी पार कर दूसरे किनारे पर पहुंच गए यहां पर आज गुरुद्वारा चादर साहिब बना हुआ है साध संगत जी जब भी आपको गुजरात के ब्रुच शहर में जाने का मौका मिले तो आप गुरुद्वारा चादर साहिब के दर्शन करना मत भूलिएगा क्योंकि यही हमारे संत सतगुरु की वह यादे हैं जो वह हमारे लिए छोड़ गए ताकि जब भी हम उनको देखें तो हमें उनकी याद आए, मालिक का ध्यान आए साध संगत जी सतगुरु नानक अक्सर भाई मरदाना जी के साथ संसार का भला करने के लिए चल पड़ते थे जब भी उन्हें करतार का हुक्म होता वह भाई मरदाना जी के साथ अपनी यात्रा पर चल पड़ते थे ताकि संसार का भला हो सके और सतगुरु ने अपनी सारी यात्रा पैदल चलकर की और भाई मरदाना जी उनके साथ होते थे साध संगत जी सतगुरु नानक बिना खाए पिए बिना पानी के केवल संसार का भला करने के लिए इतनी इतनी यात्रा करते रहे सतगुरु ने सभी जगह जाकर नाम की कमाई करने का होका दिया, करतार से जुड़ने की शिक्षा दी और उसके नाम की आलोचना की, सतगुरु बिना खाए पिए भाई मरदाना जी के साथ चलते जाते थे और जब कभी भोजन करने की बात आती थी तो सतगुरु भाई मरदाना जी को पहल देते थे सतगुरु ने अपने बारे में कभी भी नहीं सोचा अपने लिए वह कम ही खाते थे जो भी उनके पास होता था वह भाई मरदाना जी को दे देते थे साध संगत जी ऐसी ही एक साखी सतगुरु के समय की है जब सतगुरु नानक भाई मरदाना जी के साथ जा रहे थे और चलते चलते एक वृक्ष के नीचे बैठ गए और पास में ही एक किसान लड़का खेती कर रहा था तो उसने सतगुरु नानक और भाई मर्दाना को बैठे हुए देखा और सोचा की वृक्ष के नीचे महात्मा बैठे हुए हैं क्यों ना चलकर उनके दर्शन करूं उनकी सेवा करूं तो वह लड़का अपना काम छोड़कर सतगुरु के दर्शन करने के लिए उनके पास चला आया उनकी सेवा करने के लिए उनके पास गया तो लड़के ने सतगुरु के पास जाकर उनको प्रणाम किया और कहा कि मेरे लिए आपका क्या हुक्म है मैं आपकी क्या सेवा कर सकता हूं उसने देखा की महात्मा चलकर आए है इन्हे भूख भी लगी होगी तो वह भागकर अपने खेत में गया और चने तोड़कर ले आया ताकि सतगुरु को भेंट कर सके तो उसने वह चने सतगुरु के आगे रख दिए और सतगुरु ने वह चने उठा कर भाई मरदाना जी को दे दिए सतगुरु अपने लिए बहुत कम खाते थे कभी कभी खाते थे और वह लड़का सतगुरु के पास बैठ गया तो कुछ देर बाद उस लड़के ने कहा कि आपको ज्यादा भूख लगी होगी मैं आपके लिए घर से खाना बनवा कर ले आता हूं तो जब वह उठने लगा तो सतगुरु ने उसकी बाजू पकड़ ली, बाजू पकड़कर सतगुरु कहने लगे बैठ जाओ शहंशाह ! तुम ने पूछ लिया इतना ही बहुत है हम इसी से प्रसन्न है तो साध संगत जी जब सतगुरु ने उसकी बाजू पकड़कर उसे कहा कि बैठ जाओ शहंशाह ! तो उसके कुछ दिनों बाद उस नगर के राजा की मृत्यु हो गई थी और उस लड़के को उसकी योग्यता के आधार पर उस नगर का राजा घोषित कर दिया था साध संगत जी संत जिसको जो भी कह दे वह वही बन जाता है अगर सतगुरु किसी को शहंशाह कह दें तो वह शहंशाह बन जाता है सतगुरु के मुख्य से निकला एक एक वचन हमारे लिए बहुत मूल्य रखता है और यही एक पूर्ण संत महात्मा की पहचान होती है साध संगत जी इसीलिए तो बड़े-बड़े लोग, राजे महाराजे संत महात्माओं के आगे विनम्र हो जाते हैं झुक जाते हैं क्योंकि इस सृष्टि के असली राजे संत महात्मा ही होते हैं क्योंकि इस सृष्टि की असली दौलत केवल उन्हीं के पास होती है जिसे हम नाम की कमाई कह सकते हैं यह दुनिया की दौलत तो हर किसी के पास है लेकिन जो नाम की दौलत है वह केवल संतों महात्माओं के पास होती है और वह इसी का व्यापार करते हैं और इस सृष्टि पर उसके नाम का होका देकर, नाम का व्यपार कर चले जाते हैं ।

साध संगत जी इसी के साथ हम आपसे इजाजत लेते हैं आगे मिलेंगे एक नई साखी के साथ, अगर आपको ये साखी अच्छी लगी हो तो इसे और संगत के साथ शेयर जरुर कीजिए, ताकि यह संदेश गुरु के हर प्रेमी सत्संगी के पास पहुंच सकें और अगर आप साखियां, सत्संग और रूहानियत से जुड़ी बातें पढ़ना पसंद करते है तो आप नीचे E-Mail डालकर इस Website को Subscribe कर लीजिए, ताकि हर नई साखी की Notification आप तक पहुंच सके ।

By Sant Vachan


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