Guru Nanak Saakhi : सोने की बाली को देखकर सतगुरु क्या उपदेश करते है । जरूर सुने

 

साध संगत जी आज की साखी शुरू करने से पहले गुरु साहब का उपदेश समझने की कोशिश करते हैं सतगुरु कहते है कि जिस तरह पानी में पड़े हुए फूल के पत्ते पानी के सूख जाने पर नष्ट हो जाते है खत्म हो जाते हैं उसी प्रकार यह हे मनुष्य ये तेरा धन और जवानी भी खत्म हो जाएगी जो लोग अपनी जवानी पर नाज करते हैं अपनी जवानी पर अहंकार करते हैं गुरु साहिब उन्हें समझाते हुए कहते हैं की हे प्यारी जीवात्मा जब तक तू देह में जवान रहती है तब तक तू खुश रहती है लेकिन वह दिन दूर नहीं जब यह तेरा शरीर बूढ़ा हो जाता है और उस अवस्था में तुम चाह कर भी ईश्वर का नाम नहीं जप पाती और तुम्हारे वह मित्र जो तुम्हारे साथ बड़े होते है तुम्हारे साथी होते है वह भी कब्रिस्तान में चले जाते है और तुम उनको देखकर रोती हो लेकिन फिर भी यह नहीं समझ पाती कि तुम्हारा भी वही हाल होना है जो उनका हुआ है साध संगत जी गुरु साहब आत्मा को एक सुंदर स्त्री कहते हैं और इस संसार को उसका मायका यानी कि पिता का घर और परमात्मा के घर को उसका ससुराल कहते हुए सतगुरु हमें समझाते हैं की हे प्यारी जीवात्मा तू इस भ्रम में मत रह जो तेरे पिता का घर यानी यह संसार है कि तू इसको कभी नहीं छोड़ेगी अंत में तुम्हे अपने सच्चे घर यानी की परमात्मा के घर जिसको गुरु साहब आत्मा का ससुराल कहकर बयान करते हैं वहां जाना पड़ेगा हे नानक ! जो स्त्री अपने पिता के घर यानी कि अपने मायके में सोती रही कोई गुण नहीं कमाया कोई अच्छा कार्य नहीं किया वह अपने अवगुणों की पोठरी लेकर अपने ससुराल यानी की उस परमात्मा के घर जाएगी ।

साध संगत जी पिहोवा नामक स्थान हरियाणा के कुरुक्षेत्र जिले में स्थित है और यह स्थान हिन्दुओं के लिए एक बहुत बड़ा धार्मिक स्थान माना जाता है और यहां पर एक कुंड है कहा जाता है कि जिन लोगों की असंभाविक मृत्यु हो जाती थी उन लोगों के प्रियजन इस स्थान पर आकर स्नान करते थे ताकि उन लोगों को मोक्ष मिल सके और वहां पर बहुत भारी संख्या में लोग आते थे जिसका फायदा वहां पर रहने वाले पंडित उठाते थे क्योंकि जो लोग वहां पर स्नान करने आते थे पूजा-पाठ करने आते थे वह दान भी दिया करते थे और वहां पर पंडितों ने एक ऐसा षड्यंत्र रच रखा था ताकि वह वहां पर आने वाले लोगों से ज्यादा धन वसूल कर सके और उन्होंने उस कुंड में एक सोने की बाली डाल रखी थी जिस को दिखाते हुए वह वहां पर आने वाले लोगों को कहते थे कि देखो रात को एक भक्त ने इसमें सोने की छोटी सी बाली डाली थी जो सुबह होते होते उसके आकार से 10 गुना बड़ी हो गई इसलिए आप भी जो कुछ दान करोगे आपका किया हुआ वह दान 10 गुना हो जाएगा और उसका आपको 10 गुना फल मिलेगा इसी बात को लेकर वहां पर लोग बहुत दान करते थे जिससे कि वह पंडित बहुत खुश होते थे तो साध संगत जी सतगुरु नानक जब संसार का भला करते हुए इस स्थान पर पहुंचे तो यहां पर एक धार्मिक मेला लगा हुआ था साध संगत जी सतगुरु से भला क्या छुपा होता है वह तो अंतर्यामी होते हैं जानी जान होते हैं तो जब सतगुरु वहां पर गए तो उन्होंने उन पंडितों को उपदेश दिया जो लोगों को गुमराह कर रहे थे जो वह सोने की बाली दिखाकर लोगो से धन की वसूली कर रहे थे तो सतगुरु ने कहा जिस तरह यहां पर दान का 10 गुना फल मिलता है उसी प्रकार तुम्हारे पाप भी 10 गुना बढ़ जाएंगे तो सतगुरु कहने लगे अधर्म और पाप का रास्ता छोड़कर तुम नेकी और धर्म पर चलो इस मार्ग पर चलकर ही तुम्हें ईश्वर की प्राप्ति होगी साध संगत जी पंडितों को उपदेश देकर सतगुरु जिस स्थान पर आए वहां पर आज गुरुद्वारा बाओली साहब बना हुआ है यहां पर दूर दूर से संगत गुरुद्वारा के दर्शन करने आती है साध संगत जी संत महात्मा केवल मानव जाति का उद्धार करने के लिए ही इस संसार में जन्म लेते हैं यहां तक कि वह इस संसार के दुखों को भी अपने ऊपर ले लेते हैं जैसे कि सतगुरु हरकृष्ण जी ने किया था साध संगत जी सिखों के सातवें गुरु सतगुरु हरराय जी के 2 पुत्र थे उनके बड़े पुत्र का नाम रामराय था और छोटे पुत्र का नाम हरकृष्ण था जो कि सिखों के आठवें गुरु थे साध संगत जी बड़े पुत्र के होते हुए सतगुरु हरराय जी ने अपने छोटे पुत्र हरकृष्ण जी को गद्दी सौंपी थी जिसका कारण था कि उनके बड़े पुत्र रामराय ने औरंगजेब के चंगुल में फंसकर सतगुरु नानक की वाणी बदल दी थी यानी कि वे उनकी राह पर नहीं चल रहे थे तो साध संगत जी जब बाबा रामराय जी को यह पता चला कि उन्हें गुरु नहीं बनाया गया है तो उन्होंने अपने ताऊ धीरमल और कुछ अन्य सिखों के साथ मिलकर यह जताने की कोशिश की कि वह ही आठवें गुरु है लेकिन साध संगत जी संगत को इस बात की खबर थी कि हमारे आठवें गुरु श्री हरकृष्ण जी ही हैं जिसके कारण बाबा राम राय के सभी षड्यंत्र काम नहीं कर पाए और सभी तरफ से विफल होकर बाबा राम राय औरंगजेब के दरबार में जा पहुंचे और वहां जाकर उन्होंने औरंगजेब को कहा कि मैं अपने पिता का बड़ा पुत्र हूं लेकिन मेरे होते हुए भी उन्होंने गुरु गद्दी मुझे नहीं दी जबकि मेरे छोटे भाई श्री हरकृष्ण जी को दे दी है तो उनकी ये बात सुनकर औरंगजेब ने सतगुरु हरकृष्ण जी को दिल्ली आने के लिए कहा तो जब ये बात उस समय सतगुरु के सिखों को पता चली तो वह भी सतगुरु के साथ जाने के लिए तैयार हो गए और जब सद्गुरु की मुलाकात औरंगजेब से हुई तो वह भी सतगुरु की शक्ति से अछूता नहीं रह पाया और उसे मालूम हो गया कि गुरु हरकृष्ण जी को गद्दी उनके विशेष व्यक्तित्व के कारण ही मिली है और बाबा राम राय के साथ कोई भी भेदभाव नहीं हुआ है और साध संगत जी उस समय चेचक की बीमारी लोगों में बहुत फैल गई थी जिसे की सतगुरु हरकृष्ण जी ने यमुना के किनारे लोगों पर अपनी कृपा की दृष्टि कर उन्हें इस बीमारी से मुक्त किया था साध संगत जी जिस स्थान पर सतगुरु हरकृष्ण ने लोगों को चेचक की बीमारी से मुक्त किया उन्हें भोजन बांटा, कपड़े दिए और उनकी संभाल की थी आज वहां पर गुरुद्वारा बंगला साहिब बना हुआ है और उसके बाद सतगुरु हर कृष्ण जी लोगों की भलाई लेकर सतगुरु खुद इस चेचक की बीमारी से ग्रस्त हो गए और सतगुरु ने चेचक की बीमारी के कारण अपनी देह को त्याग दिया था साध संगत जी ऐसे सतगुरु हम संसारी लोगों का भार अपने ऊपर उठा लेते है क्योंकि संत अपने शिष्य को तकलीफ में नहीं देख सकते और उनकी तकलीफ को दूर कर उसे अपने ऊपर ले कर और इस संसार का उद्धार कर इस संसार से चले जाते हैं साध संगत जी इसीलिए तो अक्सर फरमाए जाता है कि जिन को एक पूरे गुरु की शरण मिली है उन्हें तो पल-पल उस मालिक का शुक्रिया करना चाहिए की मालिक ने इस संसार के लाखों-करोड़ों जीवो को छोड़कर हमें अपनी शरण बक्शी उस मालिक ने अपने देह स्वरूप मैं आकर हमारा उद्धार कर दिया ।

साध संगत जी इसी के साथ हम आपसे इजाजत लेते हैं आगे मिलेंगे एक नई साखी के साथ, अगर आपको ये साखी अच्छी लगी हो तो इसे और संगत के साथ शेयर जरुर कीजिए, ताकि यह संदेश गुरु के हर प्रेमी सत्संगी के पास पहुंच सकें और अगर आप साखियां, सत्संग और रूहानियत से जुड़ी बातें पढ़ना पसंद करते है तो आप नीचे E-Mail डालकर इस Website को Subscribe कर लीजिए, ताकि हर नई साखी की Notification आप तक पहुंच सके । 

By Sant Vachan


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