Guru Nanak Saakhi : जब सतगुरु नानक ने भाई लहना जी को मुर्दा खाने का हुक्म दिया तो क्या हुआ !

 

साध संगत जी आज की ये साखी सतगुरु नानक जी के समय की है जब सतगुरु नानक संसार का भला करते हुए करतारपुर नगर में आ बसे तो वहां आकर सतगुरु ने भाई लहना जी को परखने के लिए क्या हुक्म दिया आयए बड़े ही प्यार से आज का यह प्रसंग सरवन करते हैं ।

साध संगत जी जब सतगुरु नानक अपने अंतिम समय में करतारपुर साहिब में आ बसे तो सद्गुरु से प्रभावित होकर बहुत संगत सतगुरु के पास रहने के लिए करतारपुर साहिब में बस गई थी और सतगुरु ने अपना अंतिम समय करतारपुर साहिब में बिताया तो साध संगत जी संत सतगुरुओ से भला क्या छिपा होता है वह तो जानी जान होते हैं उन्हें आने वाले समय की खबर पहले ही हो जाती है तो ऐसे ही सतगुरु को भी मालिक की तरफ से बुलावा आ गया था तो जब सतगुरु ने देखा कि अब जाने का समय हो गया है इस संसार से विदा लेने का समय आ गया है तो सतगुरु नानक ने अपने सेवकों की परख की क्योंकि उस समय सतगुरु के बहुत सिख सेवादार बन गए थे जो सतगुरु की सेवा में लीन रहते थे तो सतगुरु ने उनमें से गुरुगद्धी के लिए किसी एक को चुनना था तो सतगुरु ने परख करने के लिए वहां पर मौजूद अपने सेवकों को अपने साथ चलने के लिए कहा तो सभी संगत और सद्गुरु के सेवक सद्गुरु के पीछे पीछे नाम सिमरन का जाप करते हुए जा रहे है तो सतगुरु ने परख करने के लिए उन पर धन की वर्षा की तो जब सेवादारों को कुछ तांबे के सिक्के दिखाई पड़े तो उनमें से कुछ सेवकों ने वह सिक्के उठा लिए और अपनी झोली में डाल लिए और सद्गुरु का प्रसाद समझकर वह वहीं से वापस चले गए लेकिन कुछ सेवादार सतगुरु के साथ चलते रहे तो थोड़ा और आगे गए तो उन्हें भी चांदी के सिक्के दिखाई पड़े तो उन्होंने भी चांदी के सिक्के उठाएं और सद्गुरु का प्रसाद समझकर सद्गुरु को प्रणाम कर लौट गए लेकिन अब कुछ ही सेवादार सतगुरु के साथ रह गए थे सद्गुरु यह नजारा अपनी दिव्य दृष्टि से देख रहे थे तो साध संगत जी जब कुछ सेवादार सतगुरु के साथ बाकी रह गए तो उनको सोने की अशर्फियां दिखाई पड़ी तो उन्होंने वह उठाई और सतगुरु का धन्यवाद कर वह भी वापस लौट गए लेकिन अंत में केवल दो ही सिख सतगुरु के साथ बाकी रहे तो सतगुरु ने उनसे पूछा कि भाई सभी वापस लौट गए लेकिन तुम नहीं गए ? ऐसा क्यों ? क्या तुम्हें नहीं जाना चाहिए ? तो उन्होंने सतगुरु के इस प्रश्न का जवाब देते हुए कहा सद्गुरु उन्हें जो चाहिए था आपने वह उन्हें दे दिया इसलिए वह वापस चले गए लेकिन हम कहां जाएं हमें तो आपकी शरण चाहिए हम तो आपकी शरण में आए हैं अब हमारा कोई और स्थान नहीं है हमारा स्थान केवल आपके चरणों में है हमारे लिए और कोई दूसरी जगह नहीं है इसलिए हम आप को छोड़ कर कैसे जा सकते हैं सतगुरु आप हमें अपनी शरण बख्शे तो साध संगत जी ये सुनकर सतगुरु नानक ने उन्हें हुक्म दिया की जाओ ! वहां पर एक मुर्दा पड़ा है जाकर उसे खाना शुरू करो तो जैसे ही सतगुरु नानक ने यह हुक्म किया तो भाई लहना जी भाग कर आगे बढ़े और जैसे ही आगे बढ़े उन्हें मुर्दे के शरीर से दुर्गंध आ रही थी लेकिन वह सतगुरु का हुक्म मान कर वह मुर्दा खाने के लिए तैयार हो गए लेकिन जब वह मुर्दे के पास गए तो पास जाकर वह रुक गए तो उन्हें रुका हुआ देख सतगुरु नानक ने भाई लहना जी से सवाल किया क्या हुआ भाई लहना तुम रुक क्यों गए ? तो ये सुनकर भाई लहना जी ने सतगुरु नानक से कहा कि गुरु साहब मैं इसलिए रुका हूं कि आप कब हुकुम करोगे कि मैं किस तरफ से खाना शुरू करूं, सिर की तरफ से खाना शुरु करूं या फिर पैरों की तरफ से खाना शुरू करूं ? तो सतगुरु नानक ने भाई लहना जी को कहा कि सिर की तरफ से खाना शुरु करो तो जैसे ही भाई लहना जी ने मुर्दे को सिर की तरफ से खाने के लिए पहला कदम आगे बढ़ाया और मुर्दे के कफन को हटाया तो भाई लहना जी क्या देखते हैं कि वहां पर कोई मुर्दा नहीं है बल्कि सद्गुरु का प्रसाद पड़ा हुआ है जिसमें से सुंदर खुशबू आ रही है तो साध संगत जी ऐसे सतगुरु नानक ने भाई लहना जी की परीक्षा लेकर उन्हें भाई लहना से गुरु अंगद साहिब जी बना दिया जो कि सिखों के दूसरे गुरु कहलाए साध संगत जी नाम के इस मार्ग पर चलना कोई आसान काम नहीं है इस मार्ग पर केवल वही चल पाते हैं जिस पर उस मालिक की कृपा होती है नाम के इस मार्ग पर जीव को अपना तन मन और धन सतगुरु को भेंट करना होता है और जो जीव अपना तन मन और धन सतगुरु को भेट कर देता है अपने आपको मिटा देता है वही जीव इस मार्ग पर चलने के काबिल बनता है साध संगत जी वाणी में भी फरमाया गया है "जिन को प्रेम खेलन का चाओ सिर धर तली गली मेरी आओ" जिसका अर्थ है कि जिन्हें सतगुरु से सच्चा प्यार है सच्चा इश्क है और जो सतगुरु के हुकुम को मानकर अपनी जान कुर्बान कर देने को तैयार है वही गुरु का सच्चा शिष्य है क्योंकि गुरु का हुक्म ही सर्वश्रेष्ठ है गुरु के हुक्म से ऊपर कुछ भी नहीं गुरु जो भी कह दे वही सत्य है और जब गुरु हमें कोई हुकुम करें तो हमें मन के पीछे लग कर सोच विचार नहीं करने लग जाना है क्योंकि जो सोच विचार करने लग जाते हैं वह इसलिए ऐसा करते हैं क्योंकि उनके अंदर गुरु को लेकर किसी प्रकार की शंका रहती है लेकिन जिन्होंने अपना सब कुछ सतगुरु को सौंप दिया है और जो गुरु के एक हुकम से ही अपनी जान कुर्बान कर देने को तैयार है वही सतगुरु के सच्चे शिष्य कहलाते हैं और नाम मार्ग पर चलने के काबिल बनते है ।

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By Sant Vachan


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