साध संगत जी आज की ये साखी गुरु नानक प्रकाश ग्रंथ के अध्याय 46 में दर्ज है जिसमें भाई मरदाना जी को जब जादू टोने करने वाली औरतें भेड़ बना देती है तो भाई मरदाना की संभाल के लिए सतगुरु कैसे सहाई होते हैं और कैसे उनके सभी जंतर मंत्र सतगुरु के आगे विफल हो जाते हैं आज हमें इस साखी के माध्यम से पता चलेगा तो आइए बड़े ही प्यार से आज का यह प्रसंग सरवन करते हैं ।
साध संगत जी जब सतगुरु नानक भाई मरदाना और भाई बालाजी के साथ कामरूप देश में पहुंचे जोकि एक जादू टोने करने वाले लोगों का नगर था उस नगर की औरतें जादू टोने करती थी तो जब सतगुरु नानक भाई मरदाना और भाई बालाजी के साथ उस नगर में जा पहुंचे तो वहां पर सद्गुरु विश्राम करने लगे साध संगत जी सतगुरु ने पैदल चलकर संसार की यात्रा की अपना उपदेश इस संसार में फैलाया और सतगुरु जब पैदल चलते चलते विश्राम करने के लिए कहीं बैठ जाते थे तो वह धरती भी निहाल हो जाती थी यहां पर सद्गुरु अपने पांव रखते थे साध संगत जी कहते हैं कि जहां बैठकर एक पूर्ण संत सतगुरु ने उस मालिक की भजन बंदगी की होती है नाम की कमाई की होती है वह धरती 10000 साल तक उस जगह की गवाही देती है कि यहां बैठकर किसी संत महात्मा ने बंदगी की थी तो साध संगत जी जब सतगुरु नानक पैदल यात्रा पर निकलते थे तो विश्राम करने के लिए रास्ते में रुक जाते थे कहीं बैठ जाते थे तो ऐसे ही जब सतगुरु नानक भाई मरदाना और भाई बालाजी के साथ कामरूप देश में जा पहुंचे तो वहां जाकर सतगुरु ने विश्राम करने की सोची तो जब सतगुरु वहां पर विश्राम करने लग गए तो भाई मरदाना ने देखा कि नगर कितना अच्छा है यहां के वृक्ष कितने अच्छे है और वृक्षों की टहनियां फलों से भरी पड़ी है कितना सुंदर नजारा है साध संगत जी भाई मरदाना जी नगर की सुंदरता को देखकर मोहित हो गए और उस नगर की प्रशंसा करने लग पड़े तो उसके बाद भाई मरदाना जी ने सतगुरु से नगर को देखने की अनुमति मांगी और कहा कि मुझे भूख भी बहुत लगी है कृपया आप मुझे आज्ञा दें मैं इस नगर में जाऊं वहां जाकर अपनी भूख को शांत करू और इस अलौकिक नगर का आनंद उठाऊं इसकी सुंदरता का आनंद उठाऊं तो साध संगत जी यह बात हमने बहुत सारी साखियों में सुनी होगी कि भाई मरदाना जी और भाई बालाजी को अक्सर भूख लग जाया करती थी लेकिन साध संगत जी यह बात कहने के लिए बहुत आसान है कि हम कितनी आसानी से कह देती कि भाई मरदाना जी हमेशा भूखे ही रहते थे लेकिन अगर हम विचार करें तो भाई मरदाना जी सतगुरु के साथ इतनी इतनी यात्रा करते थे कभी-कभी तो उन्हें तीन तीन दिन तक खाना नहीं मिलता था और 3 दिन के बाद अगर उन्होंने सतगुरु के आगे अपनी भूख की चर्चा कर भी दी तो उसमें कौन सी बड़ी बात हो गई लेकीन साध संगत जी भाई मरदाना जी ने सतगुरु नानक का साथ नहीं छोड़ा ! सतगुरु नानक बिना खाए पिए इतने इतने दिनों तक यात्रा करते थे सद्गुरु अपना उपदेश संसार में फैलाने के लिए बिना अन जल के इतनी इतनी यात्रा करते रहे और भाई मरदाना जी उनके साथ होते थे लेकिन अगर कभी सतगुरु नानक को कोई कुछ भेट कर जाता कोई खाने की वस्तु सतगुरु को भेट कर जाता तो सतगुरु उसे भी ग्रहण नहीं करते थे उसे भी भाई मरदाना जी को दे देते थे साध संगत जी संतो की खुराक कोई बाहरी पदार्थ नहीं होते उनकी खुराक तो मालिक का नाम ही हो जाती है उनके शरीर के रोए रोए में मालिक का नाम गूंजने लग जाता है तो फिर भूख कहां से लगेगी जिसके अंदर नाम रूपी शब्द प्रगट हो फिर उनके शरीर को केवल वही नाम शब्द चलाता है और उनके शरीर के अंदर किसी चीज की कमी नहीं आने देता साध संगत जी इसलिए जो नाम की कमाई करते हैं वह कम खाते हैं कम पीते हैं और उन्हें नींद भी कम ही आती है तो जब सतगुरु नानक के आगे भाई मरदाना जी ने अपनी भूख की इच्छा रखी कि मुझे भूख लगी है मुझे इस नगर में जाने की आज्ञा दे, तो सतगुरु नानक ने भाई मरदाना जी को नगर में जाने के लिए मना कर दिया और कहां की मर्दाने इस नगर में मत जाओ ! इसी में तुम्हारी भलाई है लेकिन भाई मरदाना जी ने कहा कि आप भी इस नगर में जाने के लिए तैयार नहीं है और आप मुझे भी जाने की आज्ञा नहीं दे रहे हैं जबकि मुझे भूख लगी है तो भाई मरदाना जी ने हठ किया और फिर सतगुरु से उस नगर में जाने की आज्ञा मांगी तो सतगुरु ने कहा की हे मरदाने ! जैसी तुम्हारी मर्जी तो साध संगत जी भाई मरदाना जी उस नगर में चले गए जिस नगर की औरतें जादू टोना करती थी और अच्छे-अच्छे वेश बदलकर पुरुषों को आकर्षित करती थी ताकि वह अपनी काम की इच्छा को पूरी कर सके और उनके साथ भोग विलास कर सकें तो जब भाई मरदाना जी उस नगर में गए तो कोई कहने लगी कि यह मेरा है और कोई कहने लगी कि यह मेरा है तो एक स्त्री भाग कर आई और भाई मरदाना जी के गले में उसने रस्सी डाल दी और मंत्र पढ़कर भाई मरदाना जी को भेड़ बना लिया और उसे किले के साथ बांध दिया तो भाई मरदाना जी अपनी यह हालत देखकर बहुत पछतावा करने लगे क्योंकि वह कुछ बोल भी नहीं सकते थे और अपनी ऐसी हालत देख भाई मरदाना जी की आंखों में से आंसू आ गए कि यह मेरे ऊपर कैसी विप्ता आ पड़ी है गुरुजी ने मुझे इस नगर में आने के लिए मना किया था लेकिन मैंने ही यहां आने का हठ किया है अगर मैंने गुरुजी की बात मानी होती तो ऐसा नहीं होना था तो साध संगत जी भाई मरदाना जी अपने आप को छुड़ाने की बहुत कोशिश करते हैं इधर-उधर भागते हैं लेकिन अपनी उस अवस्था को देख अपने ऊपर तरस खाते हैं तो कृपा निधान गुरु जी वहां पर बैठे यह सारा दृश्य देख रहे होते हैं तो सतगुरु नानक ने भाई बालाजी को कहा की हे भाई बाला ! चलो चल कर मरदाने की खबर लेते हैं वह किसी मुसीबत में पड़ गया है तो सतगुरु नानक की यह बात सुनकर भाई बाला ने कहा कि सतगुरु आपने उसे इस नगर में जाने के लिए मना किया था लेकिन उसने आपकी बात नहीं मानी तो आप उसे इसी हालत में रहने दें ताकि उसे आपकी बात ना मानने का पछतावा हो सके तो भाई बालाजी की ये बात सुनकर सतगुरु नानक ने कहा कि हे भाई बाला ! वह मेरे साथ आया है और अब मुझे याद कर रहा है उस पर अब मुसीबत आई है और वह मुझे पुकार रहा है वह मेरा साथी है वह मेरा मित्र है मैं उसका साथ कैसे छोड़ सकता हूं आपको यह बात समझनी चाहिए तो सतगुरु नानक भाई बालाजी के साथ भाई मरदाना जी के पास गए तो भाई मरदाना जी ने सतगुरु को देखा तो सद्गुरु के दिव्य स्वरूप को देखकर भाई मरदाना जी अंदर ही अंदर खुश हो रहे हैं और सोच रहे हैं कि अब सतगुरु मेरी इस अवस्था को सुधार देंगे लेकिन साध संगत जी जब सतगुरु भाई बालाजी के साथ वहां पर जाते हैं तो उस नगर की औरतें सतगुरु के रूप को देखकर उनकी तरफ आकर्षित हो जाती हैं और उन्हें अपने वश में करने की कोशिश करती हैं लेकिन सतगुरु नानक के आगे उनका कोई भी मंत्र नहीं चलता उनके सभी मंत्र विफल हो जाते हैं तो एक स्त्री भागी हुई भाई बालाजी की तरफ बढ़ती है और उनके गले में ताबीज डालने की कोशिश करती है लेकिन जैसे ही वह उनकी तरफ बढ़ने लगती है वह उसी समय भेड़ बन जाती है और जब दूसरी स्त्री सतगुरु नानक की तरफ बढ़ने लगती है तो वह कुती बन जाती है साध संगत जी एक पूर्ण संत महात्मा के साथ ऐसा करने का फल यही होता है तो उसके बाद सतगुरु नानक भाई बालाजी को हुक्म देते हैं कि जाओ भाई बाला मरदाने की रस्सी को खोल दो तो भाई बालाजी सतगुरु का यह हुक्म मान कर भाई मर्दाना की रस्सी खोल देते हैं और भाई मरदाना जी वापिस मानव रूप में आ जाते हैं और सतगुरु को प्रणाम करते हैं लेकिन जो औरतें भेड़ और कुती बन जाती है उनको देखकर जो बाकी औरतें होती है वह सतगुरु की महिमा को समझ जाती हैं और उनसे डरने लगती हैं कि यह कोई पूर्ण महात्मा हमारे इस नगर में आया है और उसके बाद उन स्त्रियों के पति देखते हैं कि इन्होंने एक पूर्ण महात्मा के साथ गलत करने का सोचा है इसलिए इनकी ऐसी हालत हुई है तो उन स्त्रियों के पति सतगुरु नानक के आगे अरदास करते हैं विनती करते हैं कि आप इन्हें बख्श दें यह आपकी महिमा से अनजान थी इसलिए आपको समझ नहीं पाई और अब यह रो रही है हे कृपा निधान गुरु जी आप हम पर कृपा की दृष्टि करो हमें इस अवस्था से बाहर निकालो तो गुरु जी उनकी यह फरियाद सुन कर उन्हें उपदेश करते हैं कि यह बुरे काम छोड़ दो वाहेगुरु का सिमरन करो ! उसके नाम का सिमरन करो और इस नगर में एक धर्मशाला बनवाओ और वहां बैठकर वाहेगुरु की आलोचना करो यही एक सत्य मार्ग है जिस पर चलकर तुम्हें उस प्रभु करतार की प्राप्ति हो सकती है इन कामों में कुछ नहीं रखा है वह करतार ही सबका भला करने वाला है सब के दुख दूर करने वाला है उसकी भक्ति ही तुम्हें सुख दे सकती है तुम्हारे यह कार्य तुम्हारे लिए दुख का कारण बनेंगे इसलिए इन्हें अभी छोड़ दो और भक्ति के इस सच्चे मार्ग पर चलो जिस पर चलकर तुम्हें जगत के ईश्वर की प्राप्ति हो जाएगी तो साध संगत जी सतगुरु नानक उस नगर की औरतों को उपदेश देते हुए वहां से चले गए और उन नगर वासियों ने सतगुरु का उपदेश मानकर वहां पर धर्मशाला बनवाई जो कि आज भी वहां पर स्थित है ।
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By Sant Vachan
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