साध संगत जी आज की ये साखी सतगुरु दीनदयाल महाराज जी के समय की है और उस समय एक बुजुर्ग बीबी सेवा करने आया करती थी उसकी सतगुरु के प्रति बहुत लगन थी वह सतगुरु के एक-एक शब्द को गौर से सुना करती थी और उसकी सेवा भी इतनी थी कि उस समय संगत को उनकी मिसालें दी जाती थी और वह नाम की कमाई भी बहुत करती थी उनकी सुरत हमेशा ऊपर ही रहती थी तो आयिए बड़े ही प्यार से आज का यह प्रसंग सरवन करते हैं ।
साध संगत जी जब बड़े सतगुरु हुआ करते थे तब संगत में बहुत सीधे-साधे लोग हुआ करते थे जो अपने अंदर की बातें खुलकर कर दिया करते थे लेकिन वह समय भी अच्छा था और उनकी बात भी जल्दी बन जाती थी क्योंकि सतगुरु दीनदयाल की संगत पर बहुत कृपा थी तो ऐसे ही एक बुजुर्ग बीबी सेवा करने आया करती थी और उसकी गुरुघर के प्रति बहुत लगन थी वह बड़े ही प्यार से गुरुघर की सेवा करती और सतगुरु का सत्संग सुनती उसने कभी भी अपनी सेवा में और भजन बंदगी में नागा नहीं डाला था उसकी नाम की कमाई भी बहुत थी और उस समय की संगत बताती थी कि उनकी सुरत हमेशा ऊपर ही रहती थी और उनका ध्यान भी जल्दी लग जाता था इतना अभ्यास उनका पक गया था सभी संगत उनका बहुत ही मान सम्मान करती थी और अपने निजी अनुभव उनसे सांझा करती ताकि उन्हें भी इस मार्ग के बारे में गहराई से पता चल सके तो साध संगत जी इस साखी से हमें ये भी पता चलता है कि उस समय जो संगत हुआ करती थी वह अपने अंदर के अनुभव खुलकर सत्संगियों से सांझा कर दिया करती थी और उन्हें बहुत कुछ सीखने को मिलता था क्योंकि जो बहुत वर्षों से इस मार्ग पर चल रहे हैं उन्होंने बहुत कमाई कर ली होती है और उन्हें बहुत अनुभव होते हैं और अगर वह अपने उन अनुभवों को किसी से साझा करते हैं तो उस अभ्यासी के लिए इस मार्ग पर उतनी ही आसानी हो जाती है लेकिन आज के समय में ऐसे जीव मिलना बहुत ही मुश्किल है जो भजन बंदगी को पूरा समय देते हो और जो अंतर में रूहानियत के इस मार्ग पर सफर कर रहे हो और जो ऐसे जीव होते हैं उन्हें अपने बारे में और आने वाले समय के बारे में पहले ही मालूम हो जाता है उन्हें पहले ही संकेत मिलने शुरू हो जाते हैं क्योंकि उनके रोम रोम में मालिक का नाम गूंजने लगता है नाम धुन गूंजने लगती है सत्संग में भी अक्सर फरमाया जाता है कि जिस अभ्यासी का नाम पक जाता है तो फिर उसे सिमरन करने की आवश्यकता नहीं पड़ती बल्कि नाम उसके अंदर अपने आप ही चलता रहता है और उस स्थिति में जाकर अभ्यासी उस चल रहे नाम को सिर्फ सुनता है और उसमें मगन होकर अपना रूहानी सफर तय करता है और वह रूहानियत के इस मार्ग पर आगे बढ़ता है तो ऐसे कमाई वाले जीवो को सब कुछ ज्ञात होने लगता है उनकी नजर जब भी किसी चीज पर पड़ती है या फिर किसी जीव पर पड़ती है तो उन्हें उस जीव के कर्म साफ दिखाई देने लग जाते हैं कि इसने पीछे क्या-क्या कर्म किए हैं और आगे इसका क्या होगा उन्हें साफ-साफ सब कुछ दिखाई देने लग पड़ता है लेकिन वह किसी को बताते नहीं है और मालिक के भाने में रहते हैं तो जब उस बीबी का अंतिम समय आया तो उन्हें इस बात की खबर हो गई थी कि मेरा अंतिम समय नजदीक है क्योंकि उन्हें कुछ ऐसे ही अनुभव हो रहे थे और वह बिल्कुल शांत हो गई थी और उन्होंने बात करनी भी बंद कर दी थी और ज्यादा ध्यान भजन सिमरन पर देना शुरू कर दिया था क्योंकि साध संगत जी जब किसी को पता चल जाए कि उसका अंतिम समय नजदीक है तो व्यक्ति भजन बंदगी करने का लाहा लेना शुरू कर देता है कि जितनी भी हो सके भजन बंदगी कर लूं जितना भी समय अब मेरे पास है उसको मालिक की तरफ लगा दूं क्योंकि मौत के बाद कुछ होने वाला नहीं है तो वह अपना पल-पल उस मालिक की याद में बिताना शुरू कर देते हैं तो ऐसे ही इस बीबी ने भी करना शुरू कर दिया यहां पर वह भजन बंदगी को ढाई घंटे देती थी अब उसने भजन बंदगी का समय बड़ा कर दोगुना कर दिया था और वह बिल्कुल शांत रहने लगी उसने अपने घर परिवार से बात करने भी बंद कर दी और फिर एक दिन उस बीबी के सपने में सतगुरु महाराज आते हैं और उसे अपने साथ ले जाने की बात कहते हैं साध संगत जी अक्सर ऐसा होता है जिन्हें एक पूर्ण संत महात्माओं से नाम की बख्सीश हो जाती है तो उसकी पूरी जिम्मेवारी सतगुरु अपने ऊपर ले लेते हैं जब उस अभ्यासी का अंतिम समय आने वाला होता है तो गुरु अपने उस शिष्य के सपने में आकर उसे संकेत देता है कि भाई तेरा अंतिम समय नजदीक है और जिन्होंने अपने जीवन में अपने सतगुरु के हुक्म को आगे रखकर भजन बंदगी की होती है भजन बंदगी को पूरा समय दिया होता है सद्गुरु अपने ऐसे शिष्य को सब कुछ बता देते हैं कि भाई मैं तुझे इस दिन इतने समय पर लेने आऊंगा और तू तैयार रहना लेकिन ऐसी कृपा तो केवल उन पर होती है जिन्होंने जीवन भर में खूब नाम की कमाई की होती है अपने गुरु के उपदेश को माना होता है और फिर ऐसे अभ्यासियों को मृत्यु से डर नहीं लगता वह तो तैयार खड़े रहते हैं कि कब सतगुरु आए और उन्हें अपने साथ ले जाए और जब उनकी मृत्यु होती है तो उनके चेहरे पर एक अजीब सी मुस्कुराहट होती है नाम की कमाई करने वाला अभ्यासी मृत्यु के समय घबराता नहीं है और ना ही परेशान होता है बल्कि इससे उल्टा खुश होता है कि मैं अपने सच्चे धाम सचखंड जा रहा हूं उसके अंदर एक आनंद सा बना रहता है जिसे केवल वही सत्संगी समझ सकता है जिसने खूब अभ्यास किया हो वही उसकी आंतरिक स्थिति को जान सकता है और दूसरा कोई उसे जान नहीं सकता तो जब उस बीबी का अंतिम समय आया तो सतगुरु उसके सपने में आए और उसे संकेत दिया कि हे मेरी प्यारी जीवत्मा ! मैं इतनी तारीख को तुझे लेने आऊंगा और तू तैयार रहना तो साध संगत जी कहते हैं कि उस बीबी ने अपने परिवार वालों को समझा दिया था कि मेरी इस तारीख को मृत्यु होगी और इतने समय पर मैं अपना अंतिम स्वांस लूंगी और मेरी एक बात का ध्यान रखना कि जब मेरे प्राण छूट रहे होंगे तो उस समय कोई भी रोए ना और ना ही किसी की आंखों से आंसू आने चाहिए क्योंकि मेरे सतगुरु मुझे लेने आ रहे हैं और मैं नहीं चाहती कि मेरे पीछे कोई रो कर मेरे मार्ग में बाधा बने साध संगत जी यह बात अक्सर देखने में आई है जब भी किसी की मौत होती है तो हम उसी समय रोना और चिल्लाना शुरू कर देते हैं जबकि संत महात्मा कहते हैं कि जब किसी व्यक्ति की मृत्यु होती है तो उसके पीछे रोने वाले लोग उसके मार्ग में बाधा बनते हैं क्योंकि जिसकी मृत्यु होती है उसे सब दिखाई पड़ता है कि लोग मेरी मृत्यु के कारण रो रहे है तो वह जीवात्मा अपने आगे के सफर में प्रवेश करने में समय लगाती है क्योंकि जब वह आत्मा अपनी उस देह को छोड़ देती है तो जो भी उसे याद कर कर रोते हैं वे उसे पीछे की तरफ खींचते हैं तो फिर आत्मा अपने आगे के सफर में आगे नहीं बढ़ पाती और रुकावटें महसूस करती है लेकिन जिन्होंने नाम की कमाई की होती है उनकी मृत्यु पर रोने का कोई सवाल ही पैदा नहीं होता क्योंकि वह ऐसे जीव है जिन्होंने मनुष्य जामे में आकर अपना जीवन सफल किया होता है जीते जी मर कर देखा होता है जीते जी अपने आप को मालिक के साथ जोड़ रखा होता है और जब उनकी मृत्यु होती है तो वह मालिक के पास ही जाते हैं वह कहीं और नहीं भटकते और ना ही दुख पाते है लेकिन जो नाम की कमाई नहीं करते जिन्होंने अपना मनुष्य जन्म ऐसे ही गवा दिया, संसार के काम-काजों में गवा दिया उनको दुबारा से इस संसार का हिस्सा बनाया जाता है और उस जीवात्मा को फिर से भटकना पड़ता है और उस जीवात्मा के लिए उसके लायक जब तक कोई देह नहीं मिलती तब तक उसे ऐसे ही रहना पड़ता है तो इसलिए हमें संत महात्मा उपदेश करते हैं कि भाई जीते जी नाम की कमाई कर लो अगर यहां से छुटकारा चाहते हो तो नाम के रंग में रंग जाओ नहीं तो फिर से वही भटकना होगा फिर से वही दुखों से होकर जाना पड़ेगा जिनसे होकर अब हम इस देह में विराजमान हैं तो साध संगत जी इस साखी से हमें भी यही प्रेरणा मिलती है कि जो नाम की कमाई करते हैं वह अपने मनुष्य जन्म को सफल कर जाते हैं और उन्हें अपने और दूसरों के आने वाले समय का पता चल जाता है उन्हें अपनी मृत्यु के संकेत मिलने लग जाते हैं और वह अपनी मृत्यु की तैयारी पहले से ही करनी शुरू कर देते हैं तो आइए हमें भी अपने सतगुरु के उपदेश को मानकर रोजाना भजन बंदगी करनी है और आवा-गवन के इस खेल से छुटकारा हासिल करना है ।
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By Sant Vachan
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