Saakhi : हर वर्ष रावण को जलाने वाले ये साखी जरूर सुने

 

साध संगत जी आज की ये साखी रावण और उसकी जीवन लीला से संबंधित है जिसमें सतगुरु रावण की जीवन लीला के बारे में शब्द उच्चारण कर फरमान करते हैं तो आइए बड़े ही प्यार से आज का यह प्रसंग सरवन करते हैं ।

साध संगत जी सतगुरु रावण के साथ इंसाफ करते हुए कहते हैं कि सभी लोग रावण को दुष्ट कहते रहे हैं पापी कहते रहे लेकिन ऐसा नहीं है हर मनुष्य में कुछ गुण होते हैं और कुछ अवगुण होते हैं और ऐसे ही रावण के बारे में भी है रावण के अंदर कुछ ऐसे गुण भी थे जो उसकी महानता को दर्शाते थे लेकिन उसके गुणों को पूरी तरह से मिटा दिया गया जिसका कारण रहा कि वह हार गया था और सतगुरु कहते हैं कि हारे हुए व्यक्ति के साथ कलम के धनी नहीं चलते, हारे हुए व्यक्ति के साथ जुबान के धनी नहीं चलते और हारे हुए व्यक्ति के साथ दिमागी आदमी नहीं चलते, जो जीत जाता है सभी उसी के पक्ष में बोलते हैं क्योंकि जो पुरुष जीत जाता है उसी को भगवान बना दिया जाता है और जो हार जाता है उसको शैतान बना दिया जाता है साध संगत जी यह दुनिया जीत जाने वाले व्यक्ति के पीछे चलती है यह नहीं देखती कि जो जीत गया है यह कौन है जो जीत जाता है बस उसी को भगवान बना दिया जाता है राम जीत गए थे और रावण हार गए थे लेकिन अगर इंसाफ की कसौटी के साथ देखा जाए तो इतना कसूर रावण का नहीं था क्योंकि उस जमाने में स्वयंवर की प्रथा होती थी जिसका अर्थ है लड़की द्वारा वर को चुनना स्वयं वर, उस जमाने में कोई लड़की अगर किसी के गले में वरमाला डाल देती थी तो उसको स्वयंबर कहा जाता था जिसका अर्थ है कि लड़की ने खुद अपने जीवनसाथी को चुन लिया अपने वर को चुन लिया और समाज इस प्रथा से सहमत था लेकिन उसके बाद इस प्रथा को खत्म कर दिया गया और इसे खत्म करने का कारण था कि उस समय स्त्री जज्बातों में आकर भी वर को चुन लेती थी किसी को मजबूरन चुनना पड़ता था और शादी के बाद रिश्ता इतना अच्छा नहीं चलता था एक दूसरे को छोड़ देने की बातें होने लगती थी नौबत तलाक तक पहुंच जाती थी तो जैसे जैसे समाज विकसित होता गया इस प्रथा को खत्म कर दिया गया साध संगत जी रावण की बहन शूर्पणखा ने लक्ष्मण को अपने वर रूप में स्वीकार किया और उसके गले में वरमाला डालने लगी तो लक्ष्मण ने ऐसा करने से मना कर दिया और कहा कि मैं ऐसा नहीं कर सकता क्योंकि मैंने जीवन भर कुंवारा रहने और अपने भाई के साथ रहने का प्रण किया है आप मेरे भाई के साथ बात कीजिए साध संगत जी उस समय समाज व्यक्ति की दूसरी या तीसरी शादी को स्वीकार करता था एक व्यक्ति दो या दो से अधिक विवाह कर सकता था जैसे कि राम के पिता जिनका नाम दशरथ था उनकी भी चार पत्नियां थी, कहते हैं कि राम और उनके भाई लक्ष्मण बहुत सुंदर थे लेकिन यहां राम शांत सभाव के थे वहीं लक्ष्मण क्रोधित सभाव के थे और जो कोई भी उनसे मिलता था वह उनसे प्रभावित होकर जाता था राम और लक्ष्मण दोनों ने ऋषि वशिष्ठ जी से धर्म की शिक्षा ली हुई थी तो साध संगत जी जब लक्ष्मण ने शूर्पणखा को राम जी के पास भेजा तो राम जी ने कहा कि मेरे साथ मेरी पत्नी है आप लक्ष्मण के साथ बात कीजिए तो जब वह फिर लक्ष्मण के पास गई और अपने आपको लक्ष्मण की पत्नी कहलवाया तो लक्ष्मण ने गुस्से में आकर उसकी नाक काट दी जिसके कारण उसका बहुत अपमान हुआ और उसे करूप कर दिया गया जिससे कि पता चलता है की पहल लक्ष्मण जी की तरफ से हुई थी रावण की तरफ से नहीं, साध संगत जी यह बात हम सभी जानते हैं कि अगर किसी साधारण मनुष्य की बहन के साथ इस तरह का व्यवहार हो तो वह भी बदले की भावना में आ जाएगा लेकिन यह तो फिर भी राजा की बहन थी रावण की बहन थी जोकि बहुत शक्तिशाली राजा था साध संगत जी बानी में सतगुरु कहते है "चंद सूरज जाके तप रसोई" जिसका अर्थ है की उस समय रावण की लंका में जो चूल्हे जलते थे वह सूर्य के प्रकाश से जलते थे कोई लकड़ियां नहीं जलती थी ऐसी व्यवस्था रावण ने कर रखी थी इतना उसका दिमाग था जबकि हम देख सकते हैं कि यह चीजें आज संभव हुई है आज के समय में हम सूर्य की ऊर्जा से काम करने लगे है जिसको सोलर पावर कहा जाता है लेकिन रावण ने उस समय में ही यह सब कर दिया था इतना वह ज्ञानी था इतनी उसने तरक्की उस समय में ही कर ली थी और उसकी लंका पूरी सोने की थी और रावण शिव जी का उपासक था शिव जी का सबसे बड़ा भक्त था और उसे चारों वेद जवानी कंठ थे जो कि बिना मन की एकाग्रता से कंठ नहीं हो सकते क्योंकि मन की एकाग्रता का सीधा संबंध हमारी याददाश्त से है इसलिए उसे चारों वेद जवानी कंठ थे साध संगत जी कहते हैं कि रावण शिवजी का कोई मामूली भगत नहीं था उसका शिवजी से इतना प्रेम था एक बार उसने कह दिया कि हे प्रभु ! मेरे इस शीश पर अपनी कृपा का हाथ रखे नहीं तो मुझे इस शीश की कोई आवश्यकता नहीं और उसने अपना शीश काट कर रख दिया था इतना प्रेम उसका शिवजी से था और यहां पर सतगुरु अर्जन देव जी रावण के इस बलिदान को 2 पंक्तियों में बयान करते हुए कहते हैं " संमन जो इस प्रेम की, दम क्यों होती साट, रावण होते सुरंक ने जिन सिर दीने काट " जिसका अर्थ है कि हे धन संपदा के मालिक अगर प्रेम का सौदा, आशीर्वाद का सौदा माया को अर्पण कर देने से होता तो रावण कोई भिखारी नहीं था वह एक राजा था वह अच्छा सोना अर्पण कर आशीर्वाद ले सकता था लेकिन उसने अपने शीश को भेट किया क्योंकि उसे यह मालूम था कि रबी पुरुषों का आशीर्वाद माया की दमड़ी से नहीं मिलता लेकिन जो माया की दमड़ीयों से आशीर्वाद दे देता है उस आशीर्वाद की कीमत भी उतनी है जितनी उस माया की है अब शिव जी का आशीर्वाद उसके साथ है चारों वेद जवानी कंठ है वह महाशक्तिशाली है तो वह क्यों हारा ? उसके हारने का क्या कारण रहा ? कहते हैं कि उसका भाई बागी हो गया था उसने सभी भेद राम को बता दिए जिसका नाम था विभीषण क्योंकि जब भी कोई हारता है वह अपनों के कारण ही हारता है क्योंकि हम इतिहास पढ़ कर देख ले कोई ना कोई अपना ही हमें मार डालता है इसी के कारण हिंदुस्तान में एक कहावत मशहूर हो गई "घर का भेदी लंका ढाए" सारी लंका विभीषण के कारण तबाह हो गई क्योंकि रावण हार जाए, यह सवाल ही पैदा नहीं होता लेकिन रावण के सभी राज विभीषण ने राम को बता दिए कि ऐसे आप जीत सकते हो यह मार्ग आपका जीत का मार्ग बन सकता है तो साध संगत जी युद्ध हुआ और राम की रावण पर जीत हुई, सैकड़ों बाण रावण पर लगे और रावण मूर्छित होकर जमीन पर गिर पड़ा कहते है जब रावण मूर्छित होकर जमीन पर गिरा उसके शरीर से खून निकल रहा था और जैसे ही वह जमीन पर गिरा तो राम जी के मुख्य से कुछ वचन निकले जो कि उन्होंने लक्ष्मण को कहे कि लक्ष्मण हमने एक बहुत कीमती मनुष्य को जमीन पर गिरा दिया है और कहां की हे लक्ष्मण इससे पहले कि इसके प्राण चले जाए जाओ उसके पास जाओ ! उससे ज्ञान ले लो इसके पास जो भी ज्ञान का प्रकाश है जो ज्ञान का नूर है वह जाकर ले लो साध संगत जी रावण की पवित्रता पर कोई भी दाग धब्बा नहीं था उसने सीता को कैद में रखा लेकिन अपने महलों में नहीं अशोक वाटिका में जो कि उसके महलों से कोसों दूर थी और यही उसकी एक उच्च ब्राह्मण होने की निशानी थी और वह सीता को बदले की भावना से उठाकर लेकर आया था क्योंकि उसने ये ऐलान कर दिया था कि मेरी बहन की नाक काटी गई है जिसका अर्थ है कि मेरी ही नाक काटी गई है और अब मैं उसकी नाक काट लूंगा जिस ने मेरी बहन की नाक काटी है तो इसलिए वह राम की पत्नी को उठाकर ले आया जिसका अर्थ नाक काटना ही होता है किसी की पत्नी को उठा कर ले आना भाव उसकी नाक काटना साध संगत जी कहते हैं कि इस युद्ध का कारण केवल 2 स्त्रियां ही बनी, एक रावण की बहन शूर्पणखा और एक सीता अगर यह 2 स्त्रियां इतिहास में नहीं होती तो यह युद्ध भी नहीं होना था राम को कोई आवश्यकता नहीं थी रावण से लड़ने की और रावण कोई दुष्ट व्यक्ति नहीं था लेकिन फिर भी उस पर बहुत सारे इल्जाम लगाए गए उसे दुष्ट ठहराया गया लेकिन कोई भी इस बात पर गौर नहीं करता कि लक्ष्मण ने एक स्त्री की नाक काटी थी लेकिन लोग जीते हुए को भगवान कहते हैं और हारे हुए को शैतान बना देते है इसलिए जीते हुए के साथ कलम के धनी जुबान के धनी चल पड़ते हैं और हारे हुए के साथ कोई नहीं चलता इसलिए रावण के पक्ष में किसी ने कुछ नहीं कहा किसी ने कुछ नहीं लिखा जबकि देखा जाए कि अगर सीता को उठा लाने वाला रावण है तो स्त्री की नाक काटने वाला कौन है जिसने रावण की बहन शूर्पणखा की नाक काटी थी जबकि उसने ऐसा कुछ भी नहीं किया था कि उसकी नाक काटी जाए वह तो वरमाला लक्ष्मण के गले में डालने लगी थी जिसको उस समय समाज भी स्वीकार करता था कि अगर कोई स्त्री अपने वर को चुन लेती है तो वे उसके गले में वरमाला डाल सकती है उसे अपना जीवन साथी बना सकती है तो जब रावण की बहन ऐसा करने लगी तो बस इसी के कारण उसकी नाक काटी गई जबकि उसका कोई इतना बड़ा कसूर नहीं था और साध संगत जी कहते हैं कि जितने गुण राम में थे उतने ही गुण रावण में भी थे क्योंकि राम भी धार्मिक थे और रावण भी धार्मिक था तो साध संगत जी जब रावण मूर्छित होकर जमीन पर गिर पड़ा तो राम जी ने लक्ष्मण जी से कहा, लक्ष्मण बहुत कीमती मनुष्य इस पृथ्वी से जा रहा है यह कोई मामूली व्यक्ति नहीं है बहुत महान इंसान है भाग कर जाओ इससे पहले कि इसके प्राण निकले इसकी महानता अपनी झोली में डाल लो तो साध संगत जी कहते हैं कि लक्ष्मण भागकर रावण के पास गया और सिर की तरफ खड़ा हो गया और कहने लगा कि हे ब्राह्मण देवता मैंने सुना है कि आपके पास बहुत ज्ञान है आप बहुत महान हो कोई कीमती बात हमारी झोली में भी डाल दें जोकि जिंदगी में काम आए तो लक्ष्मण की ये बात सुनकर, लक्ष्मण के लिए रावण ने आंखें खोली और मुस्कुराते हुए लक्ष्मण की तरफ देखा और फिर से आंखें बंद कर ली तो लक्ष्मण वापस राम के पास आ गया और आकर राम जी से कहने लगा की भगवन वह तो कुछ बोलता ही नहीं अगर वह कुछ बोलता ही नहीं तो उससे क्या ज्ञान ले तो राम जी ने यह सुन कर कहा कि लक्ष्मण ज्ञान लेने के लिए उस व्यक्ति के सिर की तरफ नहीं खड़े होना चाहिए बल्कि उसके पैरों की तरफ खड़े होना चाहिए और हाथ जोड़कर ज्ञान की मांग करनी चाहिए तो साध संगत जी जिस के कदमों में राम अपने भाई लक्ष्मण को खड़ा करना चाहते हैं यकीन मानिए वह मनुष्य कोई मामूली व्यक्ति नहीं हो सकता वह उस वक्त का कीमती इंसान था तो राम जी की बात मानकर जब लक्ष्मण रावण के पैरों की तरफ़ जाकर हाथ जोड़कर खड़ा हो जाता है और रावण के आगे विनती करता है कि हे ब्राह्मण देवता जिंदगी का कीमती अनुभव झोली में डालें तो लक्ष्मण की ये बात सुनकर रावण ने अपने नेत्र खोले और कहा कि लक्ष्मण अब तुझे लेने का ढंग आया है तो सुन ! मनुष्य की जिंदगी में कल कभी नहीं आया तो जो भी जरूरी काम है उसको आज ही कर लेना चाहिए कल पर नहीं छोड़ना चाहिए क्योंकि मनुष्य जब अच्छाई को कल पर छोड़ देता है तो उसकी जिंदगी में अच्छाई कभी भी बलिभूत नहीं हो सकती तो साध संगत जी इतना कीमती ज्ञान वह जाता हुआ लक्ष्मण को दे रहा है यकीन मानिए की हिंदुस्तानियों के अचेतन मन में रावण के प्रति वह एहसास है और जब भी हर वर्ष रावण को जलाया जाता है तो जो राम और लक्ष्मण का स्वरूप बनाया जाता है वह पहले रावण की परिक्रमा करते हैं और रावण को जलाने से पहले हिंदू लोग उसे माथा टेकते हैं क्योंकि आज भी हम लोगों के मन में यह बात है कि रावण कोई दुष्ट व्यक्ति नहीं था वह एक महान और धार्मिक व्यक्ति था ।

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By Sant Vachan


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