साध संगत जी ये साखी सतगुरु कबीर महाराज जी के समय की है जब कबीर महाराज जी मालिक के ध्यान में बैठे हुए थे और माता लोई जी बाहर साफ सफाई कर रही थी तो अचानक उनके दरवाजे पर एक व्यक्ति दस्तक देता है और कहता है कि आपको बड़े सेठ जी का निमंत्रण आया है कि उनके बच्चे का जन्मदिन है और आपको भी उस कार्यक्रम में निमंत्रित किया गया है तो उसके बाद क्या होता है आइए बड़े ही प्यार से आज का यह प्रसंग सरवन करते हैं ।
साध संगत जी सतगुरु कबीर महाराज जी अक्सर मालिक के ध्यान में लीन रहते थे मालिक की भजन बंदगी में लीन रहते थे और माई लोई उनकी सेवा में रहती थी और कबीर महाराज जी के घर अक्सर साधु संत महात्माओं का आना जाना होता था तो घर में इतना अनाज तो नहीं होता था कि उन संत महात्माओं के भोजन का प्रबंध किया जा सके तो सतगुरु कबीर अक्सर माता लोई को एक सेठ की दुकान पर सामान लेने भेज दिया करते थे और वहां से उधार समान ले आया करते थे तो वह सेठ उनका हिसाब किताब लिखता रहता था जो जो भी माता लोई उसकी दुकान से ले जाती थी वैसे वैसे वह सेठ उन सभी वस्तुओं का हिसाब किताब लिखता रहता था तो ऐसे ही कबीर महाराज जी और उस सेठ की बहुत अच्छी दोस्ती हो गई थी तो एक दिन उस सेठ के बच्चे का जन्मदिन था और वह सेठ उस नगर में सबसे धनवान व्यक्ति था तो उसने अपने बच्चे का जन्मदिन धूमधाम से मनाने की सोची कि इस बार अपने बच्चे का जन्मदिन बहुत धूमधाम से मनायूगां और सभी नगर वासियों को भोजन के लिए निमंत्रित करूंगा तरह तरह के पकवान बनाए जाएंगे और एक बड़ा समारोह करूंगा तो उसने ऐसा ही किया उसने सभी नगर वासियों को अपने बच्चे के जन्मदिन पर निमंत्रित किया और उसने अपने एक व्यक्ति को संत कबीर जी के घर भी निमंत्रण देने के लिए कहा तो सतगुरु मालिक के ध्यान में लीन थे और माता लोई बाहर साफ सफाई कर रही थी तो अचानक उस सेठ के भेजे हुए व्यक्ति ने उनके दरवाजे पर दस्तक दी और कहा कि आपको बड़े सेठ जी ने निमंत्रित किया है उनके बेटे का जन्मदिन है तो आपको भी वहां पर आकर अपना योगदान देना है और सेठ जी ने खास तौर पर यह कहने के लिए बोला है कि जन्मदिन वाले दिन नगर में किसी के भी घर में खाना नहीं बनेगा सभी नगर वासी वहां चल कर ही भोजन करेंगे तो माता लोई ने वह निमंत्रण उस व्यक्ति से ले लिया और जब सतगुरु कबीर अपने ध्यान से उठते हैं तो माता लोई आकर उन्हें सब बता देती है की सेठ के बच्चे का जन्मदिन है और उसने सभी नगर वासियों को निमंत्रित किया है और वह एक बड़ा कार्यक्रम करने जा रहा है तो माता लोई की यह बात सुनकर सतगुरु मुस्कुराते हुए कहते हैं की हे लोई पिता कहता है कि मेरे बच्चे का जन्मदिन है और मेरा बच्चा बड़ा हो गया है मां कहती है कि मेरा बेटा जवान हो रहा है उसकी आयु बढ़ रही है लेकिन सत्य तो यह है कि उसकी आयु बढ़ नहीं रही बल्कि कम हो रही है लेकिन वह सोचते हैं कि उनके बेटे की आयु बढ़ रही है जबकि वह तो प्रति वर्ष मृत्यु के नजदीक जा रहा है इस संसार के लोग बस इसी भ्रम में पड़े रहते हैं कि हमारा बच्चा अब इतने साल का हो गया है वह इतना बड़ा हो गया है वह ये नहीं जानते कि वह मृत्यु की तरफ बढ़ रहा है उसके स्वासों के भंडार में से रोजाना स्वास खत्म हो रहे है और मेरे प्रभु की माया कितनी अजीब है कि सबको इस में उलझा रखा है जिसको वह समझ देता है केवल वही जान पाता है कि सत्य क्या है क्योंकि मृत्यु की शुरुआत तो उसी दिन से हो जाती है जब बच्चे का जन्म होता है जब बच्चा इस संसार में आता है और पहली सांस लेता है तब से ही उसकी मृत्यु शुरू हो जाती है उसके भंडार में से स्वास दिन प्रतिदिन खत्म होते जाते हैं और वह मृत्यु के नजदीक जाता रहता है तो सतगुरु के यह वचन सुनकर माता लोई जी कहती है कि अगर आप कहते हैं कि हम दिन प्रतिदिन मृत्यु की तरफ बढ़ रहे हैं बच्चे की आयु कम हो रही है तो इसमें हम क्या कर सकते हैं यह तो विधि का विधान है यही तो सृष्टि का नियम है तो सतगुरु फरमाते हैं की सुन लोई ये बात तो सत्य है कि यह ही प्रभु का हुक्म है यहां पर जो भी हो रहा है उसके हुकम के अनुसार ही हो रहा है लेकिन उसने इंसान को कर्म करने की खुली छूट दे रखी है इंसान जैसे भी कर्म करता है वह उसका वैसा ही फल पाता है वह परमेश्वर कभी भी इंसान के कर्मों में दखलअंदाजी नहीं करता इंसान अपने कर्मों का खुद जिम्मेदार है क्योंकि वह चाहे तो मालिक की भजन बंदगी भी कर सकता है अच्छे कर्म भी कर सकता है और वह चाहे तो पाप कर्म भी कर सकता है पाप की तरफ भी बढ़ सकता है यह फैसला मनुष्य के हाथ में है और आप जी यहां पर एक पंक्ति का उच्चारण करते हैं
"कबीर मनुआ एक है, चाहे गुरु की भगत करे चाहे विषे कमाए"
जिसका अर्थ है की सदगुरु कबीर कह रहे हैं कि मन तो एक ही है मन दो नहीं है मन एक ही है और अगर वह चाहे तो मालिक की भजन बंदगी की तरफ जा सकता है और अपना मनुष्य जन्म सफल कर सकता है और वह चाहे तो विषय विकारों में भी पड़ सकता है यह फैसला पूरी तरह से उस पर निर्भर है कि उसे किस तरफ जाना है और उसके इस फैसले में मालिक कोई दखलंदाजी नहीं करता अगर व्यक्ति चाहे कि उसे इस संसार से मुक्त होना है उसे मुक्ति हासिल करनी है दुखों से छुटकारा पाना है तो वह अवश्य ही भजन बंदगी की तरफ लगेगा और एक ना एक दिन यहां से छुटकारा पा लेगा लेकिन जिसे संसार में रस है जिसका मन बहुत चंचल है जो इस संसार में तरह-तरह के रस लेना चाहता है वह तो विषय और विकारों की तरफ ही जाएगा और अपना कीमती समय बर्बाद कर लेगा और मालिक ने जो स्वांस बक्शे होते है वह उसे व्यर्थ गंवा देता है और साध संगत जी यह बात सत्संग में भी फरमाई गई है कि मालिक के हिसाब में इंसान की उम्र कुछ महीनों या सालों में नहीं होती बल्कि स्वांसों में होती है मालिक हर जीव को सांसो का एक लिमिटेड भंडार देकर इस संसार में भेजता है और जब वह स्वांस खत्म हो जाते हैं तब हमारी मृत्यु हो जाती है इसलिए तो सतगुरु फरमा रहे कि हम ये ना सोचे कि हम आगे बढ़ रहे हैं हमारी आयु बढ़ रही है बल्कि हमें सोचना चाहिए कि हमारी आयु कम होती जा रही है स्वांसों की गिनती दिन प्रतिदिन कम हो रही है और हमें इस बात पर ध्यान देना चाहिए कि दिन में हमने कितने स्वांसों को मालिक के नाम किया है और यह बात सत्संग में भी फरमाई गई है एक दिन में इंसान 24000 स्वांस लेता है और अगर 24000 स्वांस दिन में खत्म होते है तो उसमें से कितने स्वास मालिक के नाम किए इस बात पर ध्यान देने की जरूरत है तो साध संगत जी इस साखी से हमें भी यही प्रेरणा मिलती है कि हमें सत्य का रास्ता पकड़ना है हमें इस संसार में रहते हुए सभी कार्य करते हुए मालिक की भजन बंदगी के लिए समय निकालना है और अपनी जिम्मेदारियां भी निभानी है ठीक है कि हम बच्चों की खुशी मनाते हैं बड़े-बड़े कार्यक्रम करते हैं लेकिन हमें इसकी गहराई में भी जाना है ताकि हमें अपने संत महात्माओं का संदेश समझ में आ सके और हमारा ये मनुष्य जन्म सफल हो सके ।
साध संगत जी इसी के साथ हम आपसे इजाजत लेते हैं आगे मिलेंगे एक नई साखी के साथ, अगर आपको ये साखी अच्छी लगी हो तो इसे और संगत के साथ शेयर जरुर कीजिए, ताकि यह संदेश गुरु के हर प्रेमी सत्संगी के पास पहुंच सकें और अगर आप साखियां, सत्संग और रूहानियत से जुड़ी बातें पढ़ना पसंद करते है तो आप नीचे E-Mail डालकर इस Website को Subscribe कर लीजिए, ताकि हर नई साखी की Notification आप तक पहुंच सके ।
By Sant Vachan
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