जब भजन सिमरन करने वाले सत्संगी का चेहरा नूर से भर जाता है तो उसके चेहरे पर मन की स्थिरता साफ दिखाई देने लगती है क्योंकि जैसे वर्षा होने पर बीज धरती में छिपा नहीं रहता बल्कि अंकुरित होकर बाहर आ जाता है,
इसी तरह नाम का सुमिरन करने वाले के मन और तन की वृत्ति में बदलाव आने लगता है, चंचल मन निश्चल होने लगता है और यह बात किसी से छिपी नहीं रहती, जो साधक संसार की आशाएं छोड़कर, इच्छाओं का त्याग करके अंतर में केवल उस "नाम" का सुमिरन करता है, वह जीवन की बाजी जीत जाता है, नाम के सुमिरन से अज्ञानता का अंधेरा दूर हो जाता है और अंतर में प्रकाश हो जाता है ।
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