साध संगत जी आज की ये साखी पंजाब के पटियाला शहर में सत्संगी परिवार के घर पैदा हुए एक बच्चे की है जोकि रोहानियत का भंडार था तो आइए बड़े ही प्यार से आज का यह प्रसंग सरवन करते हैं ।
साध संगत जी जब भी किसी बच्चे का जन्म होता है तो उस बच्चे को जन्म देने वाली मां के ऊपर बहुत कुछ निर्भर करता है कि उसकी औलाद कैसी होने वाली है साध संगत जी आज की यह सच्ची कहानी इसी पर आधारित है जब एक सत्संगी परिवार के घर इस बच्चे का जन्म होता है जिन्हें एक पूर्ण संत महात्मा से नाम की बख्शीश हुई होती है और वह सत्संगी महिला शुरू से ही रूहानियत से जुड़ी हुई होती है क्योंकि शादी से पहले उनके माता-पिता संतों की संगत करते थे जिसके कारण वह भी रूहानियत से जुड़ गई और संतों की सेवा करने लग गई थी तो उसके बाद जब उनकी शादी हुई तो उन्हें आगे भी एक सत्संगी परिवार मिला जिन्हें की एक पूर्ण संत सतगुरु से नाम की बख्शीश हुई थी जब उनकी शादी उस परिवार में हो जाती है तब भी वह अपना नितनेम नहीं छोड़ती वह सुबह उठकर रोजाना जपजी साहब का पाठ करती और भजन बंदगी पर बैठती, यह नितनेम उनका शुरू से ही बना हुआ था इसे उन्होंने कभी नहीं तोड़ा, चाहे जो भी हो जाए साध संगत जी जब भी हमें किसी चीज की आदत पड़ जाती है तो वह हमसे इतनी जल्दी नहीं छूटती फिर चाहे वह आदत बुरी हो या अच्छी हो अगर आदतें अच्छी पड़ी हुई है तो हमारे लिए अच्छा ही है जैसे कि कोई रोजाना नितनेम करता है भजन बंदगी पर बैठता है अगर वह किसी दिन ना बैठे तो उसे वह दिन अच्छा नहीं लगता उसे अंदर कमी महसूस होती रहती है तो ऐसी ही हालत इनकी भी थी यह शुरू से ही नितनेम करती आ रही थी तो जब इनकी शादी हो गई तब भी इन्होंने नितनेम नहीं छोड़ा बल्कि जब वह प्रेग्नेंट थी तब भी उन्होंने अपना नितनेम अपनी भजन बंदगी नहीं छोड़ी जितनी देर भी उनसे बैठा जाता था वह बैठती थी तो ऐसे ही समय निकलता गया और उनके घर एक बच्चे ने जन्म लिया साध संगत जी कहते हैं की किसी साधारण मां का गर्भ किसी संत महात्मा को पैदा नहीं कर सकता उसके लिए मालिक खुद ऐसी मां का चयन करता है जोकि मालिक के उस प्यारे को जन्म देने के काबिल हो क्योंकि रूहानियत से जुड़ी हुई मां का गर्भ रूहानियत को ही जन्म देता है तो ऐसा ही इनके साथ भी हुआ जब इनके घर बच्चा पैदा हुआ वह बच्चा रूहानियत का भंडार था तो जब बच्चे ने उनके घर जन्म ले लिया तो उन्हें बहुत खुशी हुई लेकिन वह बच्चा स्वभाव से शांत था और जैसे-जैसे समय निकलता गया, बच्चा बड़ा हुआ तो बच्चे के अंदर की रूहानियत घरवालों को दिखाई देने लगी कि हमारा बच्चा दूसरे बच्चों जैसा नहीं है क्योंकि वह अकेले रहना पसंद करता था और ज्यादा किसी से बात नहीं करता था अपने आप में मस्त जैसे कि संत अपनी धुन में मस्त होते हैं उन्हें किसी से कोई लेना देना नहीं होता वह उनके अंदर हो रही नाम धुन को सुनकर उस में लीन रहते हैं उस में मस्त रहते है तो साध संगत जी वह बच्चा अक्सर अपने घर से कभी-कभी दूर चला जाता और उसके घर वाले उसे ढूंढने लग पढ़ते कि पता नहीं कहां चला गया तो वह जब भी मिलता था श्मशान भूमि के आसपास मिलता था और जब उससे वहां जाने की वजह पूछी जाती तो कारण यही रहता कि यहां पर बहुत शांति है और शांति मेरे मन को अच्छी लगती है साध संगत जी बचपन में ऐसा ही होता रहा तो उसकी मां ये बात समझ गई थी कि मेरे बच्चे के ऊपर मेरा ही प्रभाव है साध संगत जी जब कोई चीज किसी को पैदा करती है तो वह भी वैसी ही होती है जो उसे जन्म देने वाला होता है जैसा जन्म देने वाला होगा वैसी ही औलाद होगी लेकिन ऐसा बहुत कम होता है की औलाद अपने माता-पिता से कुछ अलग हो वह मालिक की कृपा कह सकते हैं जिसकी संभाल मालिक खुद कर रहा हो साध संगत जी जब उस बच्चे की मां यह बात समझ गई कि इसके अंदर भी वैसी ही तड़प है जैसी मेरे अंदर है उसकी मां ने अपने बच्चे का मार्गदर्शन करना शुरू कर दिया उसे सही मार्ग देना शुरू कर दिया साध संगत जी बच्चा अपनी मां के पीछे लग कर भजन बंदगी पर बैठने लगा लेकिन उसकी मां ने उसे किसी तरह के मंत्र उच्चारण के बारे में नहीं बताया था केवल उसे चुपचाप बैठने के लिए कहा कि तुम्हें रोजाना चुपचाप बैठना है और अंदर हो रही आवाजों को सुनना है बाहर की तरफ से ध्यान एकत्रित कर अंदर की तरफ लाना है तो वह बच्चा वैसे ही अभ्यास करने लगा जैसे उसकी मां ने उसे बताया था, धीरे धीरे बच्चे को धुन सुनाई देने लगी क्योंकि उसकी मां का आशीर्वाद उसके साथ था और उसकी मां को पूर्ण संत सतगुरु से नाम की बख्शीश हुई थी तो गुरु और मां का आशीर्वाद उस बच्चे के साथ था जिससे कि बच्चा धुन सुनने लग गया था और धुन में मस्त रहने लग गया तो सभी उसके माता-पिता से कहते थे कि तुम्हारा बच्चा दूसरे बच्चों जैसा नहीं है आपको इसे कहीं दिखाना चाहिए लेकिन यह बात तो उसकी मां ही जानती थी कि मेरा बच्चा अलग क्यों है उसके पिता के कहने पर कभी-कभी घरवालों का बच्चे को किसी को दिखाने का प्रोग्राम बना लेकिन उसकी मां के कहने पर वह बच्चे को नहीं लेकर गए क्योंकि उसकी मां यह जानती थी कि मेरे बच्चे के अंदर भी रोहानियत की गहरी तड़प है मालिक के लिए अंदर सच्चा प्यार है तो जैसे जैसे बच्चा बड़ा होता गया वैसे वैसे ही उसका ज्ञान बढ़ता गया लेकिन उसने भी अपना नितनेम नहीं छोड़ा रोजाना अपनी मां के बताए हुए अनुसार भजन पर बैठता था और धीरे-धीरे इतना शांत हो गया था कि उसे बाहर का शोरगुल सुनाई नहीं पड़ता वह पढ़ाई भी करता रहा लेकिन उसका ध्यान अपनी अंदर की तरफ ज्यादा था वह रात रात को जाग कर भजन पर बैठ जाता था क्योंकि उसकी सुरत धुन में लीन होने लगी थी साध संगत जी यह जो अंदर का रस है अगर यह किसी को एक बार लग जाए तो व्यक्ति चाह कर भी पीछे नहीं मुड़ सकता वह व्यक्ति परमात्मा की गहराई में डूबता ही जाता है नाम धुन में मस्त होता ही जाता है पीछे मुड़ने का कोई सवाल ही नहीं रहता तो साध संगत जी अपनी मां की आशीर्वाद से वह बच्चा आत्मज्ञान को प्राप्त हुआ और उसने अपनी रूहानी यात्रा को सफल किया साध संगत जी ऐसी ही एक साखी बाबा फरीद जी की है बाबा फरीद जी बालपन अवस्था में थे तो उनकी मां भी उन्हें गुड़ और शक्कर का लालच देकर भजन बंदगी करने के लिए कहती थी तो वह इसी लालच को देखते हुए रोजाना भजन बंदगी करने बैठ जाते थे तो जब वह रोजाना भजन बंदगी पर बैठने लगे तो एक दिन उनकी मां उनके पास गुड और शक्कर रखना भूल गई क्योंकि बाबा फरीद जी की मां बाबा फरीद जी को कहती थी कि अगर तू रोजाना ऐसे ही बैठेगा तो ईश्वर तुझे गुड और शक्कर देंगे जब भी तू आंखें खोलेगा वह तुझे सामने दिखाई पड़ेगी और बाबा फरीद जी को गुड़ और शक्कर बहुत पसंद थी तो वह गुड और शक्कर बाबा फरीदी जी की मां उनके पास रख देती थी जब वह आंखें बंद कर बैठ जाते थे और जब भी आंखें खोलते थे तो उन्हें अपने सामने गुड और शक्कर दिखाई पड़ती थी तो वह बहुत खुश होते थे कि ये ईश्वर ने मुझे दिया है तो एक दिन उनकी मां गुड़ और शक्कर उनके पास रखना भूल गई तो जब बाबा फरीद जी ने आंखें खोली तो उन्होंने अपने सामने गुड़ और शक्कर का भंडार पाया और वह भागकर अपनी मां के पास गए और कहने लगे की मां आज तो ईश्वर ने मुझे बहुत दे दिया है तो यह देखकर बाबा फरीद जी की मां हैरान हो गई थी कि मालिक अपने भक्तों और प्यारों की कितनी संभाल करता है उनका कितना ख्याल रखता है कि अगर बाबा फरीद जी आंखें खोलते हैं और उन्हें अपने सामने गुड़ और शक्कर दिखाई नहीं पड़ते तो उनका मन उदास होना था लेकिन ऐसा नहीं हुआ, ईश्वर ने खुद उनके लिए यह सारा इंतजाम किया तो साध संगत जी इसलिए फरमाया जाता है कि अपने भक्तों की संभाल वह मालिक खुद करता है उन की रखवाली वह खुद करता है उन्हें कभी भी किसी चीज की कमी नहीं आने देता वह अपने इस संसार में अपने भक्तों और प्यारों को शहंशाह बनाकर रखता है उसके बाद बाबा फरीद जी ने अपनी शिक्षा से बहुत लोगों का उद्धार किया और अल्लाह की बंदगी करने के लिए कहा, बाबा फरीद जी का एक कथन है कि जो देह अल्लाह को याद नहीं करती जिस देह में अल्लाह का नाम नहीं वह देह एक लाश के बराबर है साध संगत जी बाबा फरीद जी के वचनों से बहुत लोग प्रभावित हुए और उन्होंने बाबा फरीद जी की शरण ग्रहण की और उन्हें अपना गुरु माना और बाबा फरीद जी ने संसार का भला करते हुए जीवन व्यतीत किया और वह वापस मालिक में समा गए ।
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By Sant Vachan
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