हे परमात्मा ! तूं शुरू से ही मुझे देता आया है अब मुझ पर तूं ऐसी किरपा कर कि तेरी प्राप्ति हो क्योंकि बानी मे आया है
" तुध बिन होर किछ माँगना सर दुख दुखा दे दुःख देहि नाम संतोखिया उतरे मन दी भूख" हे परमात्मा ! अगर हम आपसे आपके इलावा और कुछ माँगते है तो दुख माँगने लगे हुए है, हमें आप अपना नाम बख्शो अपना प्रेम बख्शो ताकि हमारी मन की सभी इच्छाये तर्शनाये खत्म हो जाए हमें संतोष आ जाए, जिस इंसान के अंदर संतोष आ गया, उसका लोक और परलोक दोनों सबर गया, उसे कोई दुखी नहीं कर सकता और उससे ज़्यादा कोई सुखी नहीं, वो दुःख और सु:ख मे समान होता है यानि की सहज अवस्था प्राप्त कर लेता है, जिस इंसान ने नाम का आसरा ले लिया नाम को आधार बना लिया वो सबसे अधिक सुखी है ।
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