साध संगत जी आज की साखी सतगुरु नानक देव जी की है आज की इस साखी के माध्यम से हमें यह पता चलेगा की सतगुरु नानक को क्यों इस धरती पर आना पड़ा आखिर किसके कहने पर सतगुरु नानक ने अवतार धारण किया, साध संगत जी मालिक समय-समय पर संतों महात्माओं को इस धरती पर भेजता रहता है ताकि वह हमें याद दिला सके कि हमारा असल देश यह नहीं हमारा असल देश तो उस मालिक का घर सचखंड है जिस का संदेश देने संत महात्मा इस धरती पर जन्म लेते है वह हमें नाम की दात देकर हमें नाम से जोड़ते हैं ताकि हम भी नाम अभ्यास कर अपने सच्चे देश सचखंड पहुंच सके साध संगत जी सतगुरु नानक ने शुरू से ही हम संसारी लोगों को उस मालिक के घर का संदेश देना शुरू कर दिया था उसके इशारे देने शुरू कर दिए थे लेकिन उस समय जिन पर उस मालिक की कृपा थी केवल वही उनके उन इशारों को समझ पाए तो सतगुरु नानक ने कैसे अवतार धारण किया और क्या लीलाएं दिखाई आइए बड़े ही प्यार से आज का यह प्रसंग सरवन करते हैं ।
साध संगत जी कहते हैं कि जब सतगुरु का जन्म हुआ तो सतगुरु के मुख पर बहुत तेज़ था उसके नाम का प्रकाश था वे रूहानी नूर था जो सतगुरु के चेहरे पर झलक रहा था जो हमें उस परमात्मा की खबर दे रहा था लेकिन उस समय कलयुग भी अपने करुर रूप में बहुत जोरों पर था जिसके चलते पाप ने बहुत भयानक रूप धारण कर लिया था भाव बहुत बढ़ गया था जैसे कि काल पड़ जाना और दुर्घटनाओं का होना उस समय आम हो गया था मलेशों की हुकूमत बहुत बढ़ रही थी मोहम्मद का पंथ बढ़ रहा था, पाप राजा के सैनिकों का रूप धारण कर गरीब प्रजा पर जुलम कर रहे थे गरीब लोगों को मारा जा रहा था मौत के फरिश्ते खोटी चाल चल रहे थे उस समय के राजा दुष्ट और पाप कर्म करने वाले हो गए थे लोगों को शुभ कार्य करने के लिए रोक दिया गया था मन के पीछे लग कर लोग गलत काम करने लग पड़े थे, दुष्टता, जुएबाज़ी दुख और संताप यह सभी सिंगका राक्षसनी के पुत्र राहु के समान हो गए और धर्म पूर्णमासी का चंद्रमा हो गया उस समय के राजे किसी की बात नहीं सुनते थे और काजी लोग रिश्वत लेकर झूठे व्यक्ति को सच्चा बना देते थे और सच्चे व्यक्ति को निया देने की बात नहीं करते थे जगह जगह मलेशो की बोली का बोलबाला हो गया था अपना अपना धर्म सभी लोगों ने छोड़ दिया, पुण्य कर्म कमजोर हो गए और पाप कर्म भारी हो गए थे गरीब और कमजोर देखकर धन को लूट लिया जाता था या फिर खो लिया जाता था प्राय काम करने वाले का नाश होता है जैसे कि पटसन अपने आपको कटा कर एक रस्सी का रूप हो कर दूसरे को बांधने के काम आ कर दुखदाई होती है पराया धन, पराई निंदिया और पराई स्त्री के लिए दिन रात तन मन से प्रेम की धारा चलती थी जंगम जो टलियों को खड़का कर मांगने वाले होते हैं सरेवरे और दिगंबर जो जैन लोगों के दो भेद हैं आपस में बहुत झगड़ा करते थे वाहेगुरु के नाम के बगैर बाद में वह खराब होते थे जोगियों के 12 पंथ बने हुए थे लेकिन प्रभु की भक्ति के बगैर वह मालिक परमात्मा से बिछड़े हुए थे 12 पंथ इस प्रकार है : हेतु, पाव, आई, गमिया, वागल, गोपाल, दास, कमबडी, बन, ध्वज, चोली और रावल शास्त्रों को लेकर ब्राह्मण झगड़ते रहते थे और आपस में बहुत लड़ाई झगड़ा करते थे सिर को मुना कर कई सन्यासी बन गए थे लेकिन हर समय धन, माया और स्त्री के पीछे भटकते रहते थे और कुछ अपने आपको वैरागी सुनाते थे लेकिन उनका मन ग गरहस्थीयों से भी ज्यादा तृष्णा की आग में जलता था पहरेदार चोरी करते थे तो फिर घर की रखवाली कौन करें प्रजा का हित राजे के हाथ में होता है लेकिन उस समय राजे ही प्रजा को बुरी तरह से बुरी मार मार रहे थे इसलिए पाप कर्मों का धरती पर बहुत बोझ बढ़ गया था धर्म हौसला नहीं धारण करता था और जगत में कोई भी प्रेम प्यार नहीं था धरती भय के कारण भयभीत हो गई थी तो धरती ने दीन होकर उस एक ओंकार परमात्मा के आगे अराधना की धरती ने कहा कि हे परमेश्वर प्रभु ! आप आदि स्वामी हो आप संसार की बड़ी से बड़ी ताकत से भी बड़े हो और सनातन हो हे प्यारे प्रभु ! आप सदा ही दीनो पर दया करते हैं हे दीनो के स्वामी आप गुप्त और प्रतिपालक हो आप माया से रहित, मौत से रहित, भेख रहित, डर रहित, और लेखा रहित हो, कलयुग में पापों का भार बहुत बढ़ गया है अब मुझसे और संभाला नहीं जाता और अब बहुत ही दुखदाई समय आ गया है हे प्रभु जी ! मैं आपके आसरे के बिना जीवित नहीं रह सकती सतयुग में चार पहर थे त्रेता में तीन रह गए द्वापर में दो रहे गए और कलयुग में एक पैर पर ही टिकी हुई हूं कलयुग का समय पाप रूप है इसलिए मेरे ऊपर बहुत बोझ बढ़ गया है अब मुझसे एक पैर पर टिका नहीं जाता तेरे आसरे के बिना मैं और नहीं रह सकती हे एक ओंकार ! मेरी विनती सुने और मुझे आसरा दे ज्योति स्वरूप वाहेगुरु ने धरती की दुख भरी फरियाद सुनी तो सुखों के दाते परमेश्वर ने धरती की पुकार सुनकर विचार किया कि इस कार्य के लिए मैंने धरती पर बहुत पैगंबर भेजे हैं लेकिन वह अपना ही पंथ चला लेते हैं वह ये बात भूल ही जाते हैं कि मैंने उनको किस कार्य के लिए इस संसार में भेजा है सभी अपना अपना मत चला लेते हैं किसी ने भी नाम की महिमा का प्रचार नहीं किया और प्रेम प्यार की लहर नहीं चलाई तो विचार कर जगत के स्वामी ने कहा धरती को मैं आसरा दूंगा और वह आसरे वाली होगी जब नाम कीर्तन का परवाह चल पड़ेगा तो तुझे अपने आप आसरा मिल जाएगा इसलिए मुझे आप ही जगत में प्रगट होना चाहिए मेरे बिना और कोई उपाय नहीं हो सकता और धरती से कहा मैं तुम्हारा सहारा बनकर तुम्हारे सभी दुखों का नाश कर दूंगा तो आकाश की मीठी वाणी सुनकर मुख को मोह लेने वाली धरती बहुत प्रसन्न हुई तो सतगुरु नानक करतार का रूप धारण कर सुंदर बेदी कुल में पैदा हुए, एक ओंकार वाहेगुरू आप ही देह धारण कर इस संसार में प्रगट हुए, तेज़ प्रभाव वाले सतगुरु नानक का जब जन्म हुआ तो बाल अवस्था का सूरज उन्हें लेने आया जब सतगुरु नानक का जन्म इस धरती पर हुआ तो सभी संत महात्मा यह देख कर खिड गए सतगुरु ने इस समाज से अंधविश्वास और पाखंड को जड़ से खत्म किया जिसके कारण ऐसी चीजों को बढ़ावा देने वाले लोगों को भारी दुख हुआ, प्रभु भक्ति की लहर जगत में प्रकाशवान हुई सिखों की आलस का पूरी तरह से नाश हो गया, ज्ञान और नाम में श्रेष्ठ पुरख सद्गुरु की कृपा से जागरूक हो गए और अंधेरा इस तरह अलग हो गया जैसे कि सपना मन को छोड़कर चला जाता है धर्म धरती और धीरज के हित के लिए सतगुरु नानक ने बेदी कुल में अवतार धारण किया, सच्चे पातशाह ! सतगुरु नानक ने इस संसार के लोगों को अपने उपदेशों से सुखी किया, सतगुरु नानक ब्रह्मा की तरह वैराग्य के दाते हैं विष्णु की तरह उन्हें ज्ञान देकर पालना करने वाले हैं शिवजी की तरह दासों के विकार नाश करने वाले हैं विषय रूप अग्नि से चंद्रमा की तरह शीतल करने वाले हैं और मोह रूपी फाही के अंधेरे को सूरज के प्रकाश की तरह दूर करने वाले हैं जैसे घर में दिए की ज्योत जलती है वैसे ही साफ ह्रदय में ज्ञान का प्रकाश करके जीव को माया से अलग कर कर दिखा देते हैं तो ऐसे सतगुरु जी मेरे जैसे भिखारियों को अपने चरणों का आसरा दे कर भय को दूर करने वाले हैं और डूबा लेने वाले इस संसार रूपी समुद्र से तार लेने वाले जहाज रूप है जब सतगुरु नानक की कृपा हो जाती है तो आतम ज्ञान की प्राप्ति हो जाती है और मनुष्य ऊंची पदवी पाता है सतगुरु नानक दुखों को हरने वाले गुरु हुए हैं और उन्होंने जगह जगह जाकर सभी लोगों को सच का उपदेश सुनाया है सतगुरु नानक देव जी ज्ञान का वर देने वाले उदारता का रूप है जो भी उनकी शरण में जाता है उसको दुख की हनेरी से पार कर देते है और सभी पापों से भाव यमों की फ़ाही से, कलयुग के प्रभाव से तुरंत छुटकारा दिलवा देते है ।
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By Sant Vachan
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