Guru Nanak Sakhi । दुखी रहने वाले लोग ये साखी जरूर सुने

 

साध संगत जी, सतगुरु फरमान करते हैं हे करतार ! तूने इस सृष्टि की रचना कर और इस सृष्टि में जीव पैदा कर सुख और दुख भी पैदा कर दिए, सुख और दुख के लेख उसके माथे पर लिख दिए, जीव के जन्म से पूर्व ही तूं उसके लेख उसके माथे पर लिख देता है और उसे इस सृष्टि में भेज देता है भाव जन्म दे देता है ।

तेरा ना तो कोई आकार है ना कोई रूप है ना रंग है तूं करता पुरख आदि स्वामी है सबके दिलों की जानता है तुझसे कुछ भी छिपा हुआ नहीं है इस सृष्टि में तुझ से ऊपर और कोई शक्ति नहीं है तेरी कृपा के बिना इस संसार में कुछ भी नहीं होता, इंसान की लाखों करोड़ों इच्छाएं होती है लेकिन तू केवल उसे वही प्रदान करता है जो उसके लिए पर्याप्त है क्योंकि तू उनकी परवाह करता है और तेरी प्राप्ति गुरु के सन्मुख होने से होती है जब गुरु का आशीर्वाद शिष्य के साथ होता है और शिष्य गुरु के बताए हुए मार्ग पर चलकर जैसा गुरु कहता है वैसा करता है तो वह तेरे दर्शन का पात्र बन जाता है वह भी तेरी ही कृपा से होता है क्योंकि तेरी कृपा के बिना जीव को पूरे गुरु की शरण नहीं मिलती और तुझ तक पहुंचने का रास्ता मालूम नहीं होता लेकिन जब तेरी कृपा से उसे एक पूरे गुरु की शरण मिल जाती है तो वह अपने गुरु के बताए हुए मार्ग पर चलकर तेरी कृपा का पात्र बन जाता है और तू उसे अपनी नाम रूपी दौलत से भरपूर कर देता है जो कि ऐसी दौलत है जो कि कभी भी किसी द्वारा छीनी नहीं जा सकती, कम नहीं हो सकती और जो बेअंत है और उस जीव पर तूं अपने नाम का रंग चढ़ा देता है और उसके बुरे कर्मों के लेख दोबारा नहीं लिखता यानी जो प्रभु के करीब आ जाता है उसके सुख और दुख का चक्कर समाप्त हो जाता है परंतु वही मनुष्य तुझ तक पहुंच पाते हैं जो सेवा भाव में रहकर तेरा नाम सिमरन करते हैं और गुरु की आज्ञा के अनुसार चलते हैं गुरु के उपदेशों पर चल कर अपना जीवन व्यतीत करते है यहां पर सतगुरु हमें यह समझाने की कोशिश कर रहे हैं कि हमें करतार की प्राप्ति उसके द्वारा ही उसके आशीर्वाद से ही हो सकती है क्योंकि उसकी कृपा के बिना पूरा गुरु नहीं मिलता, माया के इस महाजाल से छुटकारा नहीं मिलता और सतगुरु कहते हैं कि अगर एक बार भी हमें पूरे गुरु की शरण मिल जाए और हमारा उस करतार के साथ मिलाप हो जाए तो हमारे सुख और दुख का चक्कर समाप्त हो जाता है हम सुख और दुख की अवस्था से ऊपर उठ जाते हैं ऐसा केवल तभी होता है जब हम गुरु के उपदेशों पर चलकर उस करतार की बंदगी करते हैं उसकी बंदगी के लिए समय निकालते हैं, सुख और दुख तो मानवीय जीवन का एक हिस्सा है यह तो संभावित रूप से आते जाते ही रहते हैं इनके आने का भी एक कारण है जोकि करतार से दूरी है जैसे-जैसे जीव पूरे गुरु की शरण लेकर नाम अभ्यास करता है वैसे वैसे ही दुख उसके जीवन से दूर होने लगते हैं और आनंद प्रगट होने लगता है साध संगत जी, बाबा फरीद जी अक्सर अपनी अरदास में मालिक के आगे यह कहा करते थे कि हे मालिक ! मुझे दुख देते रहना ! मुझे दुख देते रहना ! तो एक दिन अरदास के समय किसी ने उनकी यह अरदास सुन ली और उनसे प्रश्न कर दिया कि आप अरदास में यह क्या कह रहे हैं कि मुझे दुख देना, जबकि सभी लोग अरदास में सुख मांगते हैं लेकिन आप उस अल्लाह के आगे दुख की मांग कर रहे हैं ऐसा क्यों ? तो वहां पर बहुत ही सुंदर तरीके से बाबा फरीद जी ने उस अल्लाह की याद में यह वचन कहे थे कि मैं अपनी अरदास में दुख की मांग इसलिए करता हूं क्योंकि केवल दुख ही है जो मुझे उस की याद दिलाता है क्योंकि सुख में तो हम जीव उसे भूल ही जाते है, भटक जाते है लेकिन जब दुख आता है तो उसकी भरपूर याद के साथ आता है हम उसको पुकारते है उसको पुकार लगाते हैं उसको याद करते और जिस क्षण उसको याद किया उसी क्षण दुख का कोई ठिकाना नहीं रहता और वह प्रगट हो जाता है, साध संगत जी दुख का हमारे जीवन में अधिक मात्रा में होना हमें इस बात का संकेत देता है कि हमने उस ईश्वर से दूरी बनाई हुई हम उससे बहुत दूर है इसलिए हमारे जीवन में इतना दुख है लेकिन जैसे-जैसे हम उसके सिमरन से जुड़ते हैं उसके नाम से जुड़ते हैं दुख अपने आप दूर होने लगता है आनंद प्रगट होने लगता है हमारे अंदर एक अजीब सी आनंद की झलक उठने लगती है जिसके होने का कोई कारण नहीं होता वह अकारण होती है और जीव आनंद में रहने लगता है ।

साध संगत जी इसी के साथ हम आपसे इजाजत लेते हैं आगे मिलेंगे एक नई साखी के साथ, अगर आपको ये साखी अच्छी लगी हो तो इसे और संगत के साथ शेयर जरुर कीजिए, ताकि यह संदेश गुरु के हर प्रेमी सत्संगी के पास पहुंच सकें और अगर आप साखियां, सत्संग और रूहानियत से जुड़ी बातें पढ़ना पसंद करते है तो आप नीचे E-Mail डालकर इस Website को Subscribe कर लीजिए, ताकि हर नई साखी की Notification आप तक पहुंच सके । 

By Sant Vachan


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