Guru Nanak Sakhi । सतगुरु नानक की दी हुई पत्थरों की पोटली जब भाई मरदाना ने घर जाकर खोली तो क्या हुआ!

 

साध संगत जी आज की साखी गुरु के ऊपर विश्वास पर आधारित है आज इस साखी के माध्यम से हमें यह एहसास होगा कि गुरु जो उपदेश हमें देता है उसमें अवश्य कोई न कोई राज जरूर होता है लेकिन हम में से कुछ अभ्यासी सज्जन ऐसे हैं जो गुरु के उपदेश को नहीं मानते और अपने मन के पीछे लग कर गुरु के उपदेशों को नकार देते हैं साध संगत जी गुरु के ऊपर विश्वास हमें क्या प्रदान करता है आइए आज की इस साखी के माध्यम से जानने की कोशिश करते हैं ।

साध संगत जी आज की ये साखी सतगुरु नानक और भाई मरदाना जी की है जब सतगुरु नानक, भाई मरदाना जी के साथ करतार के नाम का प्रचार करने के लिए जा रहे थे तो बहुत दिन हो गए थे तो भाई मरदाना जी ने सतगुरु नानक से कहा की हे सतगुरु अब बहुत दिन हो गए हैं घर परिवार से मिले हुए और मेरा मन अपने परिवार से मिलने के लिए बहुत तड़प रहा है इसलिए कृपया मुझे घर जाने की आज्ञा दें ताकि मैं अपने परिवार के साथ कुछ समय व्यतीत कर सकूं उनका हालचाल पूछने जा सकूं तो भाई मरदाना जी की यह बात सुनकर सतगुरु नानक ने कहा हे मरदाने ! जल्दी वापस आ जाना अभी बहुत कार्य पड़े हुए हैं परिवार के मोह में मत पड़ जाना तो सतगुरु नानक के मुख्य से यह वचन सुनकर भाई मरदाना जी बहुत प्रसन्न हुए क्योंकि उन्हें सतगुरु नानक से घर जाने की आज्ञा मिल गई थी और भाई मरदाना जी भी बहुत प्रसन्न हुए तो जब भाई मरदाना जी अपने घर की तरफ रवाना हुए तो कुछ ही कदम चलने के बाद उन्हें यह याद आया कि अब इतनी देर बाद घर जा रहा हूं अगर खाली हाथ गया तो अच्छा नहीं लगेगा इतनी देर बाद जा रहा हूं तो मुझे अपने साथ कुछ लेकर जाना चाहिए इतनी देर के बाद अपनी बीवी और बच्चों से मिलना है तो कुछ ना कुछ तो लेकर ही जाना चाहिए तो भाई मरदाना जी वापस सतगुरु नानक के पास आ गए और अपने मन की बात सतगुरु नानक के आगे रखी कि सतगुरु अब इतनी देर बाद घर जा रहा हूं उनके लिए कुछ लेकर जाना पड़ेगा क्योंकि इतनी देर बाद जा रहा हूं तो खाली हाथ नहीं जा सकता कृपया मुझे कोई बक्श दे जो कि मैं अपने साथ लेकर जा सकूं और मेरे परिवार वाले भी आपकी वह बक्शी हुई दात देखकर प्रसन्न हो तो सतगुरु नानक ने भाई मरदाना जी को एक पोटली दी जिसमें सतगुरु ने मुट्ठी भर पत्थर डाल दिए और उसको भाई मरदाना जी को दे दिया था और सतगुरु ने भाई मरदाना जी को फरमान किया की हे मरदाने इसे ऐसे ही अपने साथ ले जाओ लेकिन इसे खोल कर मत देखना जब घर पहुंच जाओगे तब खोलना तो सतगुरु नानक के यह वचन सुनकर भाई मरदाना जी ने वह पोटली अपने पास रख ली और घर की तरफ रवाना हुए लेकिन उनके अंदर बहुत प्रश्न चल रहे थे कि सतगुरु ने तो मुझे पत्थर दिए हैं मैं इन्हें अपने साथ कैसे लेकर जा सकता हूं जब मैं इसको अपने परिवार वालों के सामने खोलूंगा तो मेरे परिवार वाले मुझे क्या कहेंगे कि आप इतनी देर बाद आए और हमारे लिए आप यह पत्थर लेकर आए हो और वह मेरा अपमान करेंगे कि इतनी देर बाद आया है और साथ में पत्थर लेकर आया है और साथ ही भाई मरदाना जी यह भी सोच रहे थे कि यह पत्थर मुझे सतगुरु नानक ने दिए हैं जो कि कुल कायनात के मालिक हैं यह पत्थर कोई मामूली पत्थर नहीं हो सकते इनमें कोई ना कोई बात तो जरूर रही होगी जो सतगुरु ने मुझे पोटली में बांधकर दे दिए और साथ में यह भी फरमान कर दिया कि इसे खोल कर मत देखना इन्हें अपने परिवार वालों के साथ ही खोलना तो भाई मरदाना जी यह सोच कर अपने घर की तरफ आगे बढ़ रहे थे और जब भाई मरदाना जी अपने घर पहुंच गए और अपने परिवार से मिले तो उन सभी के सामने भाई मरदाना जी ने वह पोटली खोली जो सतगुरु नानक ने उन्हें दी थी तो जब वह पोटली उन्होंने खोली तो उसमें से पत्थरों की जगह सोने की अशरफिया निकली जिसे देखकर भाई मरदाना जी और उनके परिवार वाले बहुत खुश हुए और यह सब देखकर भाई मरदाना जी की आंखों में आंसू आ गए थे कि जो कुल कायनात का मालिक है उसे किस चीज की कमी है वह तो बेअंत बादशाह है, मैं मन के पीछे लग कर पता नहीं क्या क्या सोच रहा था लेकिन मेरे सतगुरु ने मेरी लाज रख ली सच में धन्य है गुरु नानक ! धन्य है गुरु नानक ! धन्य है गुरु नानक ।

साध संगत जी इसी के साथ हम आपसे इजाजत लेते हैं आगे मिलेंगे एक नई साखी के साथ, अगर आपको ये साखी अच्छी लगी हो तो इसे और संगत के साथ शेयर जरुर कीजिए, ताकि यह संदेश गुरु के हर प्रेमी सत्संगी के पास पहुंच सकें और अगर आप साखियां, सत्संग और रूहानियत से जुड़ी बातें पढ़ना पसंद करते है तो आप नीचे E-Mail डालकर इस Website को Subscribe कर लीजिए, ताकि हर नई साखी की Notification आप तक पहुंच सके । 

By Sant Vachan


Post a Comment

0 Comments