साध संगत जी आज की यह साखी कुछ वर्ष पहले नाम की खोज में निकले, मालिक की खोज में निकले एक सत्संगी अभ्यासी की है जोकि जगह-जगह भटका ताकि उसे मालिक के दर्शन हो सके वह जगह जगह जाता था और एक पूरे गुरु की तलाश में लगा रहता था ताकि उसे कोई मालिक के दर्शन करा दे और उसका मालिक से मिलाप करवा दें और वह ऐसे ही एक पूरे गुरु की तलाश में था जो कि सीधा उससे परमात्मा से मिला दे उसकी मुलाकात परमात्मा से करवा दे ताकि उसे सीधे ही मालिक के दर्शन हो सके
तो साध संगत जी वह बहुत भटका जगह-जगह उसने धक्के खाए लेकिन साध संगत जी ऐसे सीधे ही मालिक से मिलाप करना कोई आसान बात नहीं है कि ऐसे ही किसी को मालिक के दर्शन हो जाए सीधा ही मालिक से मिलाप हो जाए साध संगत जी आज की साखी शुरू करने से पहले आप जी के एक प्रश्न का उत्तर देना चाहता हूं क्योंकि कुछ सत्संगी जीव है जो कहते हैं कि आप की साखी लंबी होती है और इसे छोटा करने की कोशिश करें तो साध संगत जी अगर साखी को छोटा किया गया तो आप जी को साखी का जो मूल अर्थ है उसे समझने में दिक्कत हो सकती है और बात आधी अधूरी रह जाएगी साध संगत जी संत महात्मा कहते हैं कि अगर रूहानियत से संबंधित कोई बात करनी हो, मालिक से संबंधित कोई बात करनी हो तो उसके बारे में पूरी जानकारी हो तो ही बात करना और पूरी बात करना आधी अधूरी बात ना करना क्योंकि आधी अधूरी बात करने से उसके बहुत अर्थ निकल जाते हैं और उसका जो मूल अर्थ होता है वह अब अभ्यासियों को समझ में नहीं आता वह सत्संगियों को समझ में नहीं आता, तो आधी अधूरी बात नहीं की जानी चाहिए, मालिक से संबंधित या रूहानियत से संबंधित कोई भी बात हो तो वह पूरी ही की जानी चाहिए, आधी अधूरी नहीं की जानी चाहिए और साध संगत जी अच्छा ही है की साखी थोड़ी सी लंबी तो होती है लेकिन वह जो समय होता है वह हमारा मालिक के लेखे लग जाता है क्योंकि जब हम साखी सुन रहे होते हैं तो हमें उस कुल मालिक की याद आती है और हमारा वह समय मालिक के लेखे लगता है हमारी हाजरी सचखंड में लग जाती है मालिक भी खुश होता है कि मेरी प्यारी रूह मुझे याद कर रही है मेरी बातें सुनकर मुझे याद कर रही है तो साध संगत जी मालिक से जुड़ी हुई जितनी भी बातें की जाए कम है और हमारे पास दिन में 24 घंटे होते हैं तो क्या हम 10 मिनट या 15 मिनट भी उस मालिक के लिए नहीं निकाल सकते जिसने हमें सब कुछ दिया है क्या हम इतना भी समय उस के लिए नहीं निकाल सकते हम अपना पूरा समय दुनिया को दे देते हैं दुनिया के काम काजों को दे देते हैं लेकिन जब मालिक के घर की कोई बात हो रही हो उससे संबंधित कोई बात हो रही हो तो हम कह देते हैं कि जल्दी करो इसे थोड़ी देर में ही खत्म करो तो साध संगत जी, क्या यह हमारा प्रेम है उस मालिक के प्रति ? कि हम उसे इतना सा भी समय नहीं दे सकते क्या हम दुनिया की मोह माया में इतने मस्त हो गए हैं कि हम 10 मिनट भी मालिक को याद नहीं कर सकते उससे संबंधित बातें नहीं सुन सकते और हमारा सत्संग में भी यही हाल होता है 10, 15 मिनट हमारा ध्यान सत्संग में लगता है और उसके बाद हम सो जाते हैं उसके बाद हमें पता ही नहीं चलता की सत्संग करता क्या बोल गए और यहां पर एक बात देखने जैसी है कि हमें सत्संग में नींद भी बहुत अच्छी आती है साध संगत जी यह सब हमारे मन की चालें हैं हम इसे नहीं समझ सकते हमारा मन बहुत कोशिश करता है कि इसे किसी तरह मालिक से दूर रखा जा सके इसे रूहानियत से दूर रखा जा सके और हम इसके पीछे लग कर ऐसा कर भी देते हैं साध संगत जी हमारे साथ यही होता है कि जल्दी-जल्दी सत्संग खत्म हो जाए क्योंकि हमारा मन मालिक से जुड़ी बातें सुनना पसंद नहीं करता, यह सब मन की चाले है मन के जाल है और हमें इसके जाल में नहीं फंसना हमें अपनी तरफ से पूरी कोशिश करनी है कि हम ज्यादा से ज्यादा समय भजन सिमरन में बताएं संगत में बताएं और वही बातें सुनना पसंद करें जो मालिक से जुड़ी हुई हो जो उसकी खबर देती हो, और कबीर साहब कहते हैं की जीव को हर समय अपने मन को मालिक की तरफ लगाए रखने के लिए उसे ज्यादा से ज्यादा समय सत्संग सुनने में मालिक से जुड़ी बातें सुनने में बिताना चाहिए ताकि मन को हर समय चोट लगती रहे, और मन मालिक से जुड़ा रहे, तो साध संगत जी आज की जो साखी है यह एक ऐसे सत्संगी की है जोकि एक पूरे गुरु की तलाश में था और उसके अंदर यह तड़प थी कि उसे कोई ऐसा गुरु मिले जो कि उसका सीधा मालिक से मिलाप करवा सके उसे सीधे ही मालिक के दर्शन करवा दे, तो वह बहुत भटका लेकिन उसकी कहीं बात नहीं बनी साध संगत जी जो ऐसे सत्संगी जीव होते हैं जिनके अंदर इतनी तड़प होती है मालिक उन्हें खुद ही वह रास्ता बता देता है उनका मार्गदर्शन कर देता है तो ऐसे ही उसके साथ भी हुआ उसकी मुलाकात सतगुरु से हुई और उस समय ज्यादा संगत नहीं थी तो उसने सीधा ही आकर सतगुरु को बोल दिया कि देखो मैं बहुत भटक कर आपके पास आया हूं और पूरी उम्मीद से आया हूं कि आप मुझे मालिक के दर्शन करवा दोगे मेरा मालिक से मिलाप करवा दोगे और उसने कहा कि मैं तभी आपसे नाम लूंगा जब आप मुझे मालिक के दर्शन करवा दोगे मैं देखना चाहता हूं कि वह कैसा दिखता है वह कैसा है मेरे अंदर यह जानने की बहुत तड़प है की मालिक का रूप कैसा है मालिक का आकार कैसा है और क्या वह कोई इंसान है वह हमारे जैसा है या हमसे भिन्न है मुझे देखना है कि वह कैसा है तो साध संगत जी सतगुरु को तो पहले ही पता था कि यह बहुत भटक कर आया है और इसने बहुत खोजा है लेकिन इसकी कहीं पर भी बात नहीं बनी तो सतगुरु ने उसे कहा की मालिक से मिलना चाहते हो ? उसने कहा जी हां ! तो उसके बाद सतगुरु ने कहा कि अभी मिलना है या कुछ समय बाद ? तो उसने कहा कि इसका क्या मतलब है, तो आप जी ने फिर फरमाया कि अभी मिलना है या फिर कुछ देर बाद मिलना है तो उसने कहा कि अगर आप अभी मिला सकते हो, अगर मुझे आप अभी दर्शन करवा सकते हो तो बहुत अच्छी बात होगी तो सतगुरु ने कहा ठीक है और एक प्यारी सी मुस्कान दी, और उसके बाद सतगुरु ने कहा कि ऐसा करो इस कागज पर अपना पता लिख दो कि तुम कौन हो ? ताकि मैं मालिक को बता सकूं कि यह व्यक्ति आपसे मिलना चाहता है तो तुम अपना पता इस कागज पर लिख दो जो तुम हो, तो साध संगत जी पहले तो उस सत्संगी को यह बात मजाक लगी कि सतगुरु मजाक कर रहे हैं तो उसने उस कागज पर अपना पता लिख दिया अपना नाम लिख दिया और साध संगत वह सत्संगी एक अध्यापक था और उसने वह भी लिख दिया तो जब उसने सब लिख दिया कि वह कौन है क्या करता है और कितनी उम्र है तो जब सतगुरु ने देखा तो सतगुरु ने उससे पहला प्रश्न यह किया कि अगर तुम्हारा नाम बदल दिया जाए कुछ और रख दिया जाए तो क्या तुम बदल जाओगे तो क्या तुम्हारा जीवन बदल जाएगा तो उसने कहा कि ऐसा कैसे हो सकता है अगर मेरा नाम कोई बदल दे या मेरा नाम बदल जाए तो मैं तो मैं रहूंगा मैं क्यों बदलूंगा मेरा बदलने का कोई तात्पर्य भी नहीं है तो सतगुरु ने हल्की सी मुस्कान दी और उसके बाद सतगुरु ने कहा कि तुम एक अध्यापक हो उसने कहा जी हां और उसके बाद सतगुरु ने कहा कि अगर तुम्हारा अध्यापक का पद तुमसे छीन लिया जाए और तुम्हें एक नौकर बना दिया जाए तो क्या तुम बदल जाओगे तो उसने कहा कि अगर मैं अध्यापक से नौकर बनता हूं तो भी मैं नहीं बदलूंगा क्योंकि मैं तो मैं हूं मेरा पद ही बदला है अध्यापक से नौकर बन जाऊंगा लेकिन मेरे बदलने का कोई तात्पर्य नहीं है और उसके बाद सतगुरु ने कहा कि तुम्हारी उम्र कितनी है तो उसने कहा जी मेरी आयु 40 वर्ष है तो सतगुरु ने कहा कि अगर तुम 50 के हो जाओगे तो क्या तुम बदल जाओगे तो उसके बाद उस सत्संगी ने कहा कि सतगुरु मैं क्यों बदलूंगा आज मैं 40 का हूं और उसके बाद 50 का हो जाऊंगा मेरा शरीर बुड्ढा हो जाएगा लेकिन मैं तो वही रहूंगा, उसने कहा , कि उम्र बदलती है , शरीर बदलता है लेकिन मैं तो जो बचपन में था , जो मेरे भीतर था , वह आज भी है, तो सतगुरु ने कहा कि फिर तुम्हारा नाम भी कोई परिचय नहीं हुआ तुम्हारी उम्र भी तुम्हारा परिचय नहीं है, यह शरीर भी तुम्हारा परिचय नहीं है, फिर तुम कौन हो ? उसे लिख दो, तो पहुंचा दूं मालिक के पास , नहीं तो मैं भी झूठा बनूंगा तुम्हारे साथ, सतगुरु ने कहा इनमें से कोई भी तुम्हारा परिचय नहीं है , तो उसके बाद उस सत्संगी ने कहा कि फिर तो बहुत दिक्कत होगी क्योंकि मैं तो अपने इसी परिचय को जानता हूं जब भी कभी मुझसे पूछा जाता तो मैं यही सब बता देता हूं यही मेरा परिचय है और जो मैं हूं जो मेरे भीतर है उसे तो मैं भी नहीं जानता, तो उसके बाद सतगुरु ने कहा, कि फिर तो बड़ी कठिनाई हो गई , क्योंकि जिसका मैं परिचय भी न दे सकूं , बता भी न सकूं कि कौन मिलना चाहता है , तो मालिक भी क्या कहेंगे कि कोन मिलना चाहता है ? तो जाओ पहले खोज लो कि तुम कौन हो और मैं तुम्हें कहता हूं कि जिस दिन तुम खोज लोगे कि तुम कौन हो तो तुम यह बात कभी नहीं कहोगे कि मुझे मालिक के दर्शन करने हैं मुझे मालिक को देखना है क्योंकि खुद को जानने में वह भी जान लिया जाता है जो परमात्मा है, साध संगत जी इसीलिए सत्संगो में भी फरमाया जाता है की मालिक की पहचान करने से पहले अपनी पहचान करो, तो साध संगत जी सतगुरु का यह जवाब सुनकर उसे समझ आ गई थी कि सतगुरु मुझे क्या समझाना चाहते थे और वह सतगुरु के पांव पकड़कर रोने लग गया क्योंकि उसे यह अहसास हो चुका था कि ऐसा जवाब केवल एक पूर्ण संत महात्मा ही दे सकता है और उसने अपनी झोली उनके आगे फैलाई और कहा कि मुझे नाम की बख्शीश कर दो और मेरा पार उतारा कर दो तो सतगुरु ने उसे अपने गले से लगाया और उसे नाम की बख्शीश की तो साध संगत जी ऐसे प्रश्न हमारे मन में भी बहुत होते हैं जिनके हम जवाब ढूंढने की कोशिश करते हैं लेकिन जवाब नहीं मिलते और वह जवाब केवल एक पूर्ण संत महात्मा ही दे सकता है इसलिए तो कहा जाता है कि भाई गुरु के बिना जीवन व्यर्थ है अगर जीवन में गुरु नहीं है तो हमारा जीना ही व्यर्थ है और साध संगत जी हम बहुत ही भागो वाले जीव हैं जिन्हें एक पूर्ण संत महात्मा की शरण मिली हुई है और उन्होंने हमें अपने आप से जोड़ रखा है ।
साध संगत जी इसी के साथ हम आपसे इजाजत लेते हैं आगे मिलेंगे एक नई साखी के साथ,अगर आप साखियां, सत्संग और सवाल जवाब पढ़ना पसंद करते है तो आप नीचे E-Mail डालकर इस Website को Subscribe कर लीजिए, ताकि हर नई साखियां, सत्संग और सवाल जवाब की Notification आप तक पहुंच सके ।
By Sant Vachan
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