
साध संगत जी आज की साखी एक एक सत्संगी बहन की है जिन्हें सतगुरु से नाम मिले 10 साल हो गए और आप गुरु घर की सेवा के लिए हमेशा से ही तैयार रहती और आप जी कहती हैं कि अगर कभी भी सतगुरु की कृपा से कोई सेवा का बुलावा आ जाए तो चली जाती हूं जिसकी वजह से उनकी सत्संगी समाज में बहुत अच्छी पहचान है सभी लोग उनका बहुत मान आदर करते हैं तो साध संगत जी आज की इस साखी में हमें पता चलेगा कि अगर हम नाम की कमाई करते हैं अगर हम बैठक करते हैं और जब हमारे अंदर घमंड का जन्म होना शुरू हो जाता है तो हमें कैसी दिक्कतों का सामना करना पड़ सकता है तो साध संगत जी ऐसे ही इस सत्संगी बहन के साथ भी हुआ आप जी कहती हैं कि मेरे अंदर भी घमंड आना शुरू हो गया था और उसके बाद जो हुआ उन्होंने संगत से साझा किया है तो साखी को पूरा सुनने की कृपालता करें जी ।
साध संगत जी आप जी कहती है कि मुझे नाम मिले 10 साल हो गए थे और आप अक्सर संगत की सेवा में लीन रहती और हमेशा की तरह गुरु घर की सेवा के लिए तैयार रहती आपने कभी भी कोई भी सेवा का मौका नहीं छोड़ा और आप भजन सिमरन को भी पूरा समय देती साध संगत जी जो ऐसे सत्संगी होते हैं जो अक्सर सत्संग पर जाते हैं सतगुरु की सेवा में लीन रहते हैं संगत की सेवा में लीन रहते हैं उनकी संगत में एक बहुत अच्छी पहचान हो जाती है सभी संगत उनको जानने लगती है और अगर कोई नाम की कमाई वाला हो, एक अच्छी कमाई वाला अभ्यासी हो तो संगत उसका बहुत ही मान आदर करती है उसका सम्मान करती है और उसकी एक बहुत अच्छी पहचान संगत में बन जाती है जो नाम की कमाई वाले जीव होते हैं और सभी संगत उनसे मिलने के लिए तत्पर रहती है उनसे बात करने के लिए तत्पर रहती है क्योंकि हर कोई अपनी बात उनसे सांझा करना चाहता है उनसे अपने अनुभव साझा करना चाहता है ताकि उन्हें उनसे मार्गदर्शन प्राप्त हो सके क्योंकि जो अभ्यासी भजन बंदगी को पूरा समय देते है या फिर बताएं गए समय से भी ज्यादा बैठक करते है तो संगत उसके पीछे पीछे भागती है उससे वार्तालाप करने की कोशिश करती है ताकि उनसे कुछ पता चल सके तो ऐसे ही इस सत्संगी बहन के साथ भी था सभी संगत इनका बहुत ही मान आदर करती थी और उनकी एक अच्छी पहचान बनी हुई थी क्योंकि सभी सत्संगियों को पता था की बहन जी बहुत पहुंची हुई है और इनकी बहुत कमाई है यह भजन सिमरन को पूरा समय देती है तो संगत में ऐसी ऐसी बातें होती थी साध संगत जी वैसे भी देखा गया है कि हम सत्संगीयों में अक्सर यह बातें होती रहती है कि वह बहुत पहुंचा हुआ है वह बहुत कमाई करता है वह इतने घंटे भजन सिमरन करता है हम दूसरों की बातें करते रहते हैं दूसरों को पहुंचा हुआ कहते रहते हैं लेकिन हम खुद कुछ नहीं करते दूसरों की बातें कर कर हम सवाद लेते रहते हैं और अपनी तरफ हम नहीं देखते साध संगत जी ऐसी ही पहचान इस सत्संगी बहन की बनी हुई थी जब भी किसी को कोई दिक्कत आती अभ्यास में कोई परेशानी होती तो सभी इन से वार्तालाप करने आ जाते पूछताछ करने आ जाते तो वह अक्सर उनसे कभी कभी अपने अनुभव सांझा कर दिया करती और उनकी मुश्किलों का हल कर दिया करती साध संगत जी अक्सर देखा गया है कि जब हम रूहानियत से संबंधित बातें करते हैं तो हमारा मन करता है कि मैं सब कुछ बता दूं सब कुछ संगत से सांझा कर दूं जो जो मेरे साथ हुआ है सब कुछ संगत के सामने खोल कर रख दूं साध संगत जी यह हमारे मन की चाल होती है और कुछ अभ्यासियों के साथ ऐसा अक्सर होता है और वह अपने अनुभव संगत से सांझा कर देते हैं अपनी बातें संगत से करने लग जाते हैं जो जो उनके साथ अंदर होता है वह सब बाहर बताने लग जाते हैं जिससे कि उन्हें बहुत ही भारी नुकसान होता है जिसका अंदाजा उन्हें तब नहीं मालूम होता तो ऐसे ही इनके साथ भी हुआ जब सभी संगत इनसे वार्तालाप करने आ जाती तो इन्हें धीरे-धीरे घमंड सा होने लग गया था कि सभी मुझसे पूछने आते हैं मैं सब को मार्गदर्शन देती हूं जैसा मैं कहती हूं सभी वैसा ही करते हैं तो ऐसा इनके अंदर घमंड आ गया और जैसा वह कह देती थी वैसा ही होता था उनके मुख्य से निकले वचन सत्य हो जाते थे इसीलिए तो जो पूर्ण संत सतगुरु होता है वह हर पल हमें यही शिक्षा देता है हर पल हमें यही समझाता है कि भाई जो भी तुम अंदर अनुभव करते हो उसको हजम करना सीखो उसको हजम करो उसको बांटने मत लग जाओ तो साध संगत जी अक्सर देखा गया है कि जो खूब नाम की कमाई करते हैं वह अक्सर चुप रहते हैं ज्यादा बात नहीं करते और वह अपने सतगुरु के भाने में रहते हैं क्योंकि उन्हें पता होता है कि अगर उनके मुख्य से कोई ऐसा वचन निकल गया तो वह सत्य हो जाता है और ऐसा अक्सर होता हुआ देखा भी गया है इस विषय पर एक साखी पहले अपलोड की जा चुकी है कि जो नाम की कमाई करने वाले अभ्यासी हैं मालिक के प्यारे हैं उनके वचन कैसे सत्य होते हैं जो कि एक माताजी की सच्ची आप बीती है वे साखी आप इस लिंक पर क्लिक करकर पढ़ सकते है ( click here : www.santvachan.com/2020/07/blog-post_4.html ) जिसमें माताजी ने अपनी सच्ची आपबीती संगत से सांझा की है तो साध संगत जी आप जी कहती हैं कि मुझे जो होने वाला होता था वह पहले ही पता चल जाता था कि आगे क्या होने वाला है और मैं अक्सर बता भी दिया करती थी कि ऐसा होगा जिससे की बहुत सी संगत मेरे से जुड़ गई थी उनका मेरे से बहुत प्यार पड़ गया था क्योंकि मैं सब कुछ बताने लग गई थी जिसके कारण मेरा संगत में बहुत सम्मान होने लग गया था और इसी बात को लेकर मेरे अंदर घमंड भी आ गया था की सभी मेरा कितना मान सम्मान करते हैं सभी मुझसे कितना प्यार करते हैं जिसका कारण केवल मेरा भजन सिमरन है क्योंकि मैं सबसे ज्यादा भजन सिमरन करती हूं साध संगत अक्सर हमें यही लगता है कि हम ही हैं जो नाम की कमाई करते हैं हमसे ज्यादा कोई भजन सिमरन नहीं करता होगा जबकि हमें नहीं पता होता कि संगत में ऐसे-ऐसे जीव है जो देखने में बिल्कुल साधारण लगते हैं लेकिन वह हर पल मालिक से जुड़े होते हैं और वह ज्यादा बात किसी से नहीं करते और ना ही अपने अंदर की बात किसी से करते हैं देखने में हमें वह अपने जैसे लगते हैं हम उनको देखकर कह नहीं सकते कि इनकी कितनी कमाई है लेकिन ऐसे बहुत सारे अभ्यासी संगत में देखे गए हैं जो कि पूरी पूरी रात बैठे रहते हैं पूरी पूरी रात भजन सिमरन करते हैं लेकिन फिर भी किसी को पता नहीं चलता कि इनकी कितनी कमाई है क्योंकि वह हजम करते है वह अपने सद्गुरु के भाने में रहते हैं लेकिन हममें से कुछ ऐसे भी हैं जो घमंड कर जाते हैं जैसे कि इस सत्संगी बहन के साथ हुआ इनको भी अपने आप पर घमंड होने लग गया था जिसके कारण इनका अहंकार बढ़ता गया क्योंकि साध संगत जी इस मार्ग पर अगर हमें आगे बढ़ना है तो पहले हमें काम, क्रोध, लोभ, मोह, अहंकार इन पांच चोरों को हमें अपने अंदर से बाहर निकाल फेंकना होगा और वह केवल सतगुरु की कृपा से हो सकता है जैसे जैसे हम इस मार्ग पर आगे बढ़ते हैं जैसे-जैसे हम भजन बंदगी करते हैं यह पांच चोरअपने आप ही खत्म हो जाते हैं लेकिन अगर आगे जाकर हम फिर इनको पकड़ लेते हैं तो वहां पर हम अपना नुकसान खुद करते हैं इस मार्ग पर अक्सर अभ्यासी को अहंकार हो जाता है कि मैं इतनी देर बैठता हूं मैं इतनी देर नाम की कमाई करता हूं अक्सर अभ्यासियों में अहंकार आ जाता है जैसा कि इस बहन के साथ हुआ इनको भी अहंकार आ गया और जब इनके अंदर अहंकार आ गया तब आप जी कहती हैं कि उस दिन से मेरा भजन सिमरन कम होता गया, ध्यान आना ही बंद हो गया जैसे कि पहले ध्यान आता था, धुन सुनाई देती थी लेकिन जिस दिन से मेरे अंदर अहंकार आ गया उस दिन से ध्यान आना बंद हो गया, धुन भी नहीं सुनाई दी, मैंने बहुत प्रयास किया लेकिन कोई बात ना बनी और कुछ देर ऐसा ही रहा और जब कोई बात ना बनी तब मुझे समझ आ गया कि यह सब मेरी वजह से हुआ है मुझसे हजम नहीं हुआ जबकि सतगुरु अक्सर कहते हैं कि भाई जो आपके अंदरूनी अनुभव है जो आपकी रूहानी तरक्की है इसको हजम करना सीखो, तो आप जी को समझ आ गई कि मुझसे हजम नहीं हुआ मैंने सब बांटना शुरू कर दिया था और इसी के कारण मेरे मन के अंदर अहंकार आ गया जिसके कारण मैं अपने मार्ग से भटक गई और आज जो मेरी हालत हुई है इसकी वजह केवल मैं ही हूं साध संगत जी वह बहुत रोई क्योंकि साध संगत जी जब आप हजम नहीं करते जब हम अपने सतगुरु के भाने में नहीं रहते तो वह मालिक हमसे वह चीज छीन लेता है हमारी तरक्की वहीं पर रुक जाती है तब अभ्यासी को जो दर्द होता है जो तकलीफ होती है वह तो केवल वही जानता है साध संगत जी आप देख सकते हैं कि बुल्ले शाह जी के साथ भी ऐसा ही हुआ था जब उनसे उनके सतगुरु ने रूहानियत की वह तरक्की छीन ली थी तब आप कितनी तकलीफ से गुजरे होंगे जिसका हमें अंदाजा भी नहीं है और आपने तो अपने सद्गुरु को मनाने के लिए अपने पैरों में घुंघरू डालकर नाचना शुरू कर दिया था ताकि सद्गुरु आपको फिर से वही ताकत बख्श दे वही तरक्की आपको फिर से बख्श दे तो साध संगत जो तकलीफ अभ्यासी को होती है इसका अंदाजा हमें नहीं है जो नाम की कमाई करते हैं जो अभ्यासी हैं उसकी तकलीफ तो केवल वही जानते हैं तो ऐसा ही इनके साथ भी हुआ आप जी कहती हैं कि उसके बाद मैंने बात करना कम कर दिया, बोलना बंद कर दिया मैंने ज्यादा बात करनी बंद कर दी और धीरे-धीरे मेरी बात फिर से बनने लगी क्योंकि मैंने हजम करना शुरू कर दिया था लेकिन वापिस वहां तक पहुंचने के लिए मुझे बहुत समय लगा और आज उस मालिक की कृपा से मालिक ने वह ताकत बक्शी है ताकि मैं अपनी अंदर की बातों को हजम कर सकूं अपना हाजमा बड़ा बना सकूं साध संगत जी इस साखी से हमें भी यही प्रेरणा मिलती है कि अगर हमें नाम की बख्शीश हुई है और हम भजन सिमरन को पूरा समय देते हैं तो जो भी हमारे अनुभव रहते हैं जो भी हमारे अंदर की दौलत है वह हमें दूसरों से सांझा नहीं करनी चाहिए क्योंकि वह दौलत बहुत ही कीमती है हमें उसे हजम करना सीखना चाहिए क्योंकि जब हम उसे बांटने लग जाते हैं तब हमारी तरक्की वहीं रुक जाती है इसलिए तो फरमाया जाता है कि भाई हजम करना सीखो अपने हाजमे को बड़ा बनाओ तो हमें भी अपने सतगुरु के भाने में रहकर उसको हजम करना है और अपने सतगुरु की खुशी प्राप्त करनी है
साध संगत जी इसी के साथ हम आपसे इजाजत लेते हैं आगे मिलेंगे एक नई साखी के साथ,अगर आप साखियां, सत्संग और सवाल जवाब पढ़ना पसंद करते है तो आप नीचे E-Mail डालकर इस Website को Subscribe कर लीजिए, ताकि हर नई साखियां, सत्संग और सवाल जवाब की Notification आप तक पहुंच सके ।
By Sant Vachan
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